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यह इतिहास के साथ खिलवाड़ है कि भारत के कुछ चापलूस राजनीतिज्ञ, तथाकथित अवसरवादी सेकुलरवादी, मतांध कट्टरपंथी मुस्लिम विद्वान तथा भारतीय कम्युनिस्टों के जाने-पहचाने इतिहासकार, अनेक तथ्यों तथा प्रमाणों के बाद भी, बाबर के क्रूर कृत्यों को जानते हुए भी उसका महिमामंडन करने तथा आरती उतारने में लगे हैं मानों वह कोई प्रतिष्ठित खलीफा या मजहबी पीर हो। कुछ उसे शांति का सन्देशवाहक कहते हैं। कुछ ने उसे भारतीय संस्कृति की विरासत का महान प्रतिनिधि बतलाया है। इतना ही नहीं भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह जहां म्यांमार जाने पर मुगलों के अंतिम शासक निठल्ले, निकम्मे बहादुरशाह जफर की कब्र पर जाना नहीं भूले, वहां वे काबुल में बाग-ए-बाबर काम्पलैक्स में बाबर की कब्र तथा मस्जिद भी देखने गए तथा वहां उन्होंने अपनी भावपूर्ण श्रद्धांजलि भी अर्पित की। कुछ क्षुद्र स्वार्थी नेता तो बाबर को किसी महान राष्ट्रपुरुष से कम मानने को तैयार नहीं हैं।
मध्य एशिया के समरकंद राज्य की एक बहुत छोटी सी जागीर फरगना (वर्तमान खोकन्द) में 1483 ई. में बाबर का जन्म हुआ। उसका पिता उमर शेख मिर्जा, तैमूरशाह तथा माता कुनलुक निगार खानम मंगोलों की वंशज थी। उमर शेख को शराब पीने का बड़ा शौक था। बालक बाबर से भी वह इसे पीने का बार-बार आग्रह करता था। साथ ही उसे कबूतर पालने का भी बड़ा चाव था। तथा कबूतरों को दाना देते हुए एक हौज में गिर जाने से उसकी मृत्यु हो गई थी।
पिता की मृत्यु के समय बाबर की आयु केवल बारह वर्ष की थी। विरासत में उसे पिता से शराब की लत तथा अपने को तैमूरवंश का कहलाने का गौरव प्राप्त हुआ था। वह कभी भी अपने को मंगोल या मुगलों से नहीं जोड़ता था, बल्कि मुगल कहने से उसे चिढ़ होती थी। बाबर ने चगताई तुर्की भाषा में अपनी आत्मकथा 'तुजुक ए बाबरी' लिखी इसे इतिहास में बाबरनामा भी कहा जाता है। निश्चय ही इसमें वर्णित विवरण से ज्यादा कोई अन्य प्रमाणित नहीं हो सकता। इसमें उसने अपनी प्रारंभिक शिक्षा तथा अपने तीनों शिक्षकों (अतालियों) के बारे में लिखा है। पहले शिक्षक शेख मजीद बेग के बारे में बाबर ने स्वयं लिखा कि वह बड़ा लम्पट था इसलिए गुलाम बहुत रखता था। पहले शिक्षक के मरने पर बाबर का दूसरा शिक्षक था कुलीबेग। इसके बारे में बाबर ने लिखा कि वह न नमाज पढ़ता था, न रोजा रखता था, बड़ा कठोर आततायी व पूरा काफिर था। और फिर तीसरा शिक्षक बना, पीर अली दोस्तगाई जो बेहद हंसोड़- ठिठोलिया और बदकारी में बेबाक था। अत: बाबर न केवल अपने उस्तादों के मजहबी स्वभाव से बेहद नाखुश था, परन्तु उसने स्वयं भी उनके केई अवगुण अपना लिए थे। इसका एक उदाहरण देना अनुचित न होगा। जब बाबर केवल 16-17 वर्ष का ही था तब एक बाबुरी नामक तरुण से उसका प्रेम उन्माद हो गया था। इस संदर्भ में बाबर ने आशिकी और मौशिकी पर शेर लिखे थे, परन्तु जब बाबर ने बाद में उसे एक बार आगरा की गली में देखा तो उसने स्वयं बाबरनामा में लिखा, वह लड़का मिल गया जो हमारी सोहब्बत में रह चुका था। हम उससे आंखें नहीं मिला पाये क्योंकि अब हम बादशाह हो चुके थे। ऐसे प्रसंगों से बाबर के भारत आने से पूर्व के ऐय्याशी पूर्ण जीवन का सहजता से आकलन किया जा सकता है। निकम्मे कबूतरबाज उमर शेख मिर्जा ने भी अपनी जागीर को बढ़ाने का प्रयत्न किया पर असफल रहा था। उसके संबंध अपने साले (पत्नी के भाई) सुल्तान महमूद खां, अपने बड़े सगे भाई सुल्तान अहमद मिर्जा से अत्यन्त कटु थे। बाबर के जागीर का स्वामी बन जाने पर भी संबंध खराब ही रहे। बाबर ने अपनी आत्मकथा में अपने जीवन के 48 वर्षों तथा 10 महीनों में से बीच-बीच में स्थान छोड़कर कुल 18 वर्षों का ही वर्णन किया है। इन वर्णनों से ज्ञात होता है कि उसने भी समरकंद को जीतने के लिए तीन बार प्रयास किये थे, पर सभी में उसे असफलता ही मिली। इतना ही नहीं उसकी फरगना जागीर भी उसके हाथ से निकल गई। अत: कुछ काल बाद वह दीन-हीन अवस्था में अपनी माता के साथ केवल दो खेमों के साथ खुरासा की ओर बढ़ा। उसने शीघ्र ही छल कपट तथा चतुराई से 1504 में काबुल पर कब्जा कर लिया। अब उसने भारत की ओर ध्यान दिया जो उसके जीवन की बड़े लंबे समय से लालसा थी। बाबर के भारत आक्रमण का मूल कारण, भारत की राजनीतिक परिस्थितियों से भी अधिक स्वयं उसकी दयनीय तथा असहाय अवस्था थी। वह काबुल के उत्तर अथवा पश्चिम में संघर्ष करने की अवस्था में न था। हां, भारत की अतुल धन संपत्ति तथा भारत को दारुल हरब से दारुल इस्लाम बनाने की उसकी महत्वाकांक्षा थी। जिस भांति बाद के इतिहास में अंग्रेजों ने भारत में अपने राज्य के औचित्य तथा प्रभुत्व को कानूनी तथा नैतिक आधार देते हुए भारत पर अपने (यूरोप) पूर्ववर्ती सिकन्दर के आक्रमण को महत्व दिया। इसी भांति भारत में बाबर ने अपने पूर्वजों- महमूद गजनवी तथा मोहम्मद गौरी का सन्दर्भ देकर भारत को तैमूरिया वंश का क्षेत्र बताया।
अत: बाबर ने 1519 से 1526 ई. तक भारत पर पांच आक्रमण किये। बाबर के सभी आक्रमण उसकी मजहबी कट्टरता, मतांधता, क्रूरता तथा इस्लामी जिहादी भावना से ओतप्रोत थे। पहला आक्रमण उसने बाजौर के सीधे सादे वनवासियों पर किया। 3000 से भी अधिक निर्दोष मार दिये। इन पर आक्रमण इसलिए किया क्योंकि बाजौर वाले विद्रोही तथा मुसलमानों के शत्रु थे और क्योंकि उनमें काफिरों की प्रथाएं प्रचलित थीं (देखें, बाबरनामा) एक पुश्ते पर आदमियों के सिरों को काटकर उसका उसने स्तंभ बनाया। कुछ सिर बदख्शां, क्रून्दूज व बल्ख भी भेजे। यह नृशंस अत्याचार उसने भेरा पर आक्रमण करके भी किये। बाबर द्वारा तीसरे, चौथे तथा पांचवें आक्रमणों- जो सैयदपुर, लाहौर तथा पानीपत की घटनाओं से जुड़े हैं, गुरुनानक ने बाबर के वीभत्स अत्याचारों को स्वयं देखा। उन्होंने बाबर के काबुल से आक्रमण को पाप की बारात कहा है (देखें तिलंगा महल पृ. 722-23) बाबर को यमराज कहा है (देखें तिलंगा महल पृ. 722-23) बाबर को यमराज कहा (देखें आसा महल) जनम साखी भाई वाला में भी इसका वर्णन किया है। बाबर का टकराव दिल्ली के शासक इब्राहिम लोदी से हुआ। एक कम्युनिस्ट लेखिका व इतिहासकार के अनुसार, बाबर ने इब्राहिम को मार कर दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों के स्वप्न को भारत में अपने साम्राज्य की स्थापना कर व मुगलों का राज्य स्थापित कर पूरा किया। (रोमिला थापर, ए हिस्ट्री ऑफ इंडिया, पृ. 281) बाबर के जीवन का सबसे बड़ा टकराव मेवाड़ के राणा सांगा के साथ था। बाबरनामा में इसका विस्तृत वर्णन है। बाबर के लिए यह एक 'प्रतिष्ठा का प्रश्न' था। कहने कि लिए उसने मदिरा पान त्याग दिया। केवल मुसलमानों की सहानुभूति प्राप्त करने के लिए उनसे 'तमगा' कर हटा दिया। संघर्ष में 1927 ई. में खन्वाह के युद्ध में, अन्त में उसे सफलता मिली। उसने इस युद्ध को मोहम्मद साहब के मजहब के शत्रु दुष्ट काफिरों से संघर्ष बतलाया। बाबर ने अपने विजय पत्र में अपने को मूर्तियों की नींव का खण्डन करने वाला बताया। बाबर यद्यपि कोई पैगम्बर, खलीफा या मजहबी पीर न था, परन्तु उसने इस भयंकर संघर्ष से गाजी की उपाधि प्राप्त की। विजय पत्र के नीचे यह रुबाई लिखी, इस्लाम के लिए मैं वनों में चक्कर लगाता रहा, काफिरों तथा हिन्दुओं से युद्धों की तैयारी करता रहा। मैंने शहीदों के समान मरने का निश्चय किया। ईश्वर का धन्यवाद है, मैं गाजी हो गया। (देखें रिजवी द्वारा बाबरनामा का हिन्दी अनुवाद, पृ. 249) इस युद्ध के पश्चात भी बाबर ने काफिरों के सिरों का एक विजयस्तंभ बनवाया। 1528 में बाबर ने चंदेरी के दुर्ग पर कब्जा किया। इस पर बाबर ने लिखा , हमने वहां के काफिरों का संहार कर दिया तथा जो स्थान वर्षों से दारुल हरब बना हुआ था, उसे दारुल इस्लाम बना दिया। (देखें बाबरनामा पृ. 167) वहां भी नर-मुंडों का एक स्तंभ बनाया गया।
बाबर ने अमानुषिक ढंग से तथा क्रूरतापूर्वक हिन्दुओं का नरसंहार ही नहीं किया, बल्कि अनेक हिन्दू मंदिरों को भी नष्ट किया। उसके एक अधिकारी ने संभल में एक मंदिर को गिराकर मस्जिद का निर्माण करवाया। उसके सदर शेख जैना ने चन्देरी के अनेक मंदिरों को नष्ट किया। बाबर की आज्ञा से मीर बाकी ने अयोध्या में राम जन्मभूमि पर निर्मित प्रसिद्ध मंदिर को नष्ट कर मस्जिद बनवाई, इसी भांति ग्वालियर के निकट उरवा में अनेक जैन मंदिरों को नष्ट किया।
यह उल्लेखनीय है कि कुछ छद्मवेशी सेकुलरवादी इतिहासकार उपरोक्त तथ्यों के पश्चात भी बाबर को एक सेकुलर बादशाह सिद्ध करने में अपनी समस्त ऊर्जा को बिना प्रमाण, मनगढ़ंत आधार पर करते रहे हैं। इस पर किसी ढोंगी इतिहासकार ने भोपाल से प्राप्त एक बाबर की नकली अंतिम इच्छा ढूंढ निकाली। इस जालसाजी दस्तावेज से बाबर को सेकुलर, महान तथा धर्मनिरपेक्ष बताने का भी षड्यंत्र रचा। इसे विश्व की प्रसिद्ध 'बाबरनामा' की अनुवादक मिसेज ए.एस. बैवरिज ने अपने 17 तर्कों को देकर खारिज कर दिया था। उदाहरण के लिए कुछ बेसुरे, बेहूदे तर्कों को देखिए- बाबर ने कोई हिन्दू मंदिर नष्ट नहीं किया, बल्कि हिन्दू मंदिरों को दान दिये। बाबर ने अपने दो पुत्रों का विवाह हिन्दू कन्याओं से किया। बाबर ने अपने पुत्र हुमायूं से उदारता की नीति अपनाने को कहा आदि आदि। अत: यह सही है कि ऐसे तर्क वही लिख सकता है जो इतिहास के प्रति अज्ञानी तथा उस विद्या से अपरिचित हो। इन्हीं जाली तथ्यों को कुछ विद्वानों ने अपना आधार बनाया। इसके साथ यह भी हास्यास्पद है कि कुछ कम्युनिस्ट लेखक बाबर को भारत में एक महान संस्कृति की विरासत का देयता मानते हैं। संभवत: यह उनकी पुरानी सोवियत संघ से मित्रता के कारण से है, जिसका उजबेकिस्तान भी सोवियत साम्राज्य का अंग रहा था या मीर बाकी के प्रति प्रेम रहा हो जो ताशकन्द का ही रहने वाला था, जहां कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई) का 1920 में जन्म हुआ था। उपरोक्त आभास इसलिए भी पक्का होता है क्योंकि 1973 ई. में श्रीमती इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में जब इण्डो-सोवियत प्रतिनिधिमण्डल भारत आया था तब सभी ने बाबर के तमगे लगाये हुए थे तथा जिनका आदान-प्रदान भी हुआ था।
अत: निष्कर्ष रूप में ऐतिहासिक रूप से इसमें जरा भी संदेह नहीं कि क्रूर बाबर का भारत पर आक्रमण प्रत्येक दृष्टि से महमूद गजनवी या मोहम्मद गोरी के समान था तथा वह मतांधता में औरंगजेब का अग्रगामी अवश्य था। अब भारत के जनमानस को और अधिक भ्रमित नहीं किया जा सकता। -डॉ. सतीश मित्तल
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