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नई दिल्ली के रोहिणी स्थित जापानी पार्क में 21 दिसम्बर को आयोजित वनवासी रक्षा परिवार कंुभ में आए लोगों ने वनवासियों की रक्षा के लिए एक नई ज्योति जलाई। उन्होंने संकल्प लिया कि वे अपने वनवासी भाइयों की रक्षा के लिए तन,मन और धन से सहयोग करेंगे। कंुभ का उद्देश्य था श्री हरि सत्संग समिति की वनवासी रक्षा परिवार योजना को विस्तार देना, समाज को योजना के बारे में जागरूक करना, वनवासी क्षेत्रों में हो रहे कार्यों को नगरीय समाज तक पहुंचाना तथा वनवासियों और उनके गांवों को गोद लेकर सहायता कर रहे नगरवासियों को बल देना। कंुभ का आयोजन भारत माता मन्दिर, हरिद्वार के संस्थापक और निवर्तमान शंकराचार्य स्वामी सत्यमित्रानन्द जी के सान्निध्य में हुआ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत और विश्व हिन्दू परिषद् के संरक्षक श्री अशोक सिंहल के विचारों से लोगों में नई ऊर्जा का संचार हुआ। कंुभ का उद्घाटन सत्र बहुत ही अनूठा रहा। उद्घाटन वनवासी क्षेत्रों में कथा करने वालीं महिलाओं ने दीप प्रज्वलित कर किया।
कंुभ को सम्बोधित करते हुए श्री मोहनराव भागवत ने कहा कि कुछ लोगों ने हमारी गुलामी का लाभ उठाकर हमें टूटे दर्पण देखने की आदत डाल दी और हम मानने लगे कि वनवासी समाज हमसे अलग है। अगर वनवासी समाज को भरोसा होता कि उसके साथ पूरा देश खड़ा है तो शायद वे हमसे दूर नहीं होते। अब हमें पूरे दर्पण को देखना चाहिए और वह दर्पण वनवासी समाज के पास है। वनवासी संस्कृति रक्षक हैं और आध्यात्मिक भाव से भरे हुए हैं। देश में भावनात्मक एकात्मता को मजबूत करने के लिए हमें वनवासियों के बीच जाना होगा, यह हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है।
स्वामी सत्यमित्रानन्द जी ने अपने आशीर्वचन में कहा कि वनवासियों मेंे भगवान श्रीराम के दर्शन होते हैं, लेकिन हमने उन्हें कभी देखने का प्रयास नहीं किया। हमारी उपेक्षा से ही चर्च के मिशनरियों को उन्हें ईसाई बनाने का अवसर मिला है। अब हमें उन्हें अपने घर वापस लाना है। इस घर वापसी के कारण किसी के पेट में दर्द हो तो इसमें हमारा कोई दोष नहीं है। सरकार उनकी व्यथा को सुने, जिस दिन उनकी व्यथा समाप्त हो जाएगी उनके पेट का दर्द भी समाप्त हो जाएगा। उन्होंने कहा कि वनवासी पहले हमारी रक्षा करते थे। जब माता सीता को राजमहल छोड़ना पड़ा था, उस समय उनकी रक्षा वनवासियों ने ही की थी। वनवासियों ने देश की रक्षा में भी अपना खून बहाया है। अब हम वनवासियों की रक्षा कर रहे हैं। वनवासी हमारे अपने हैं। उनके प्रति श्रेष्ठ भाव होना चाहिए। उन्होंने लोगों का आह्वान किया कि वे वनवासियों के बीच जाएं, उनके साथ भोजन करें, उनके सुख-दु:ख को बांटें। उन्होंने यह भी कहा कि हर परिवार वनवासी सेवा पात्र रखे और उसमें प्रतिदिन 1 रुपया डाले। इसी से इतना पैसा जमा हो जाएगा कि हम वनवासियों को हर तरह की सुविधा उपलब्ध करा सकते हैं और ईसाई मिशनरियों को उनसे दूर रख सकते हैं।
श्री अशोक सिंहल ने कहा कि हमारे देश में लगभग 9 करोड़ वनवासी और करीब 18 करोड़ वंचित (जिसे दलित कहा जाता है) रहते हैं। यह पूरा समाज उपेक्षित है। यह समाज ईसाइयों से आक्रान्त है। लोभ-लालच और धोखे से उनका मतान्तरण किया जाता है। हमारे जो लोग मतान्तरित हो गए हैं, उन्हें वापस लाना आवश्यक है। मतान्तरण कराने वाले लोग उन्हें अपनी मातृभूमि के विरुद्ध ही हथियार उठाने के लिए विवश कर रहे हैं। यह देश के लिए ठीक नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि केवल भारत मेंं ही नहीं, बल्कि अमरीका, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया आदि देशों में भी मतान्तरण जारी है। मतान्तरण एक साजिश है। मतान्तरण कराने वाली ताकतें अपनी आबादी बढ़ाकर पूरी दुनिया पर कब्जा करना चाहती हैं। इस्लाम भी मोरक्को से मलेशिया तक साजिश रच रहा है।
प्रारंभ में कुंभ के प्रभारी श्री वीरेन्द्र ने बताया कि दिल्ली में वनवासी रक्षा परिवार योजना 7 वर्ष से चल रही है। 24 जिलों और 60 नगरों में इसकी समितियां गठित हो चुकी हैं। इस योजना से 25 हजार परिवारों को जोड़ा गया है और इस संख्या को 1 लाख तक ले जाने की योजना है। कुंभ में वनवासी रक्षा परिवार बनाने वाले कार्यकर्ताओं का सम्मान भी किया गया और श्री हरि सत्संग समिति के कार्यकर्ताओं ने अपने अनुभव भी सुनाए।
मंच पर कुंभ के संरक्षक श्री मनोज अरोड़ा, स्वागताध्यक्ष श्री महेश भागचंदका, संयोजक श्री मुरारीलाल अग्रवाल सहित कई वरिष्ठ कार्यकर्ता उपस्थित थे। कुंभ में वनवासी क्षेत्रों में हो रहे कायोंर् पर एक प्रदर्शनी भी लगाई गई थी। इसका उद्घाटन विश्व हिन्दू परिषद् के अन्तरराष्ट्रीय महामंत्री श्री चम्पत राय ने किया। प्रतिनिधि
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