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वर्ष: 9 अंक: 28
23 जनवरी,1956
पाञ्चजन्य के पन्नों से
करोड़ों रुपए की मशीनरी पुरानी खरीदी गई
नई दिल्ली। भाखड़ा नांगल कांड के गड़बड़ घोटाले को लेकर पंजाब व केन्द्रीय सरकार के बीच एक वर्ष से मतभेद चल रहा था। केन्द्रीय सरकार उस उक्त कांड की जांच के लिए एक उच्च अधिकार सम्पन्न न्यायालयीन आयोग नियुक्त करना चाहती थी किन्तु पंजाब सरकार उससे सहमत नहीं थी। अब इस प्रकार के आयोग की नियुक्ति और उसके सदस्यों के नामों का निश्चय कर लिया गया है।
इस सम्बन्ध में पंजाब सरकार इस कारण हिचकिचाहट प्रगट कर रही थी कि भाखड़ा नांगल बांध का कार्य उसी के निरीक्षण में हो रहा है और उसको भय था कि कहीं जांच के परिणामस्वरूप कुछ एसे तत्व सामने न आएं जो स्वयं की सफेद चादर पर कालिख के ध्ब्बे लगा दें।
पंजाब के इन्स्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस,श्री डी.सी.लाल की अध्यक्षता में पुलिस द्वारा की गई धरपकड़ ने जो तथ्य उपस्थित किए हैं वे इतने भीषण हैं कि जांच आयोग की नियुक्ति की आवश्यकता का स्पष्ट अनुभव कराते हैं। श्री डी.सी.लाल के प्रयास से उक्त घोटाले के सम्बन्ध में 75 अफसर अब तक गिरफ्तार किए जा चुके हैं। सिंचाई विभाग के चीफ इंजीनियर तथा सिंचाई विभाग के सचिव श्री गुप्ता, जिन्हें 'पद्मश्री'से विभूषित किया जा चुका है, निलम्बित हैं। सुपरिन्टेन्डिंग इंजीनियर श्री शर्मा जालंधर में गिरफ्तार किए जा चुके हैं। नांगल बांध के चीफ स्टोर कीपर को भी गिरफ्तार किया जा चुका है।
अनुमान यह है कि बांध पर अब तक खर्च एक अरब रुपए में से 10 करोड़ रुपयों का गबन किया जा चुका है। देश का कितना दुर्भाग्य है कि सबसे बड़ी निर्माण योजना में सबसे अधिक गोलमाल हुआ है। यह भी ज्ञात हुआ है कि करोड़ों रुपए की मशीनरी पुरानी ली गई है। सबसे हृदय विदारक बात यह है कि अधिकतर पुरानी मशीनरी एक ऐसी अमरीकन फर्म से ली गई है जिसका सम्बम्ध एक अमरीकन विशेषज्ञ से है। कितने आश्चर्य का विषय है कि बांध बनाने के लिए लकड़ी विदेशों से मंगाई गई है जबकि उससे अच्छी लकड़ी भारत में प्राप्त हो सकती है।
मजहब की आड़ में अराष्ट्रीयता का पोषण घातक
राजस्थान जनसंघ अधिवेशन में श्री डोगरा का उद्घाटन भाषण
कोटा। राजस्थान के प्रादेशिक अधिवेशन के अवसर पर उद्घाटन भाषण करते हुए जनसंघ के प्रधान पं. प्रेमनाथ डोगरा ने कहा, 'देश की आवश्यक्ताओं के अनुसार एक सुगठित अर्थ-नीति अपनाई जानी चाहिए। हमारी आर्थिक योजना बनाने वालों को भारत के आर्थिक ढांचे की तीन मूल बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। प्रथम ये कि भारत की अर्थ-व्यवस्था का मुख्य आधार कृषि है,न कि उद्योग। दूसरे यह कि खेती-बाड़ी और उद्योग में जितने मजदूरों की आवश्यक्ता है उनसे कहीं अधिक संख्या मजदूरों की है। और तीसरे यह कि कृषि और उद्योग,दोनों का शीघ्र और विस्तृत विकास आवश्यक है। परन्तु हर प्रकार के प्रयास और सदिच्छा के होते हुए भी सरकार अकेली उसको पूरा नहीं कर सकती।'
आगे श्री डोगरा ने कहा, 'इन मौलिक सच्चाइयों के कारण आवश्यकता इस बात की है कि आर्थिक दृष्टि से विचार करते तथा योजना बनाते समय कृषि, जिस पर हमारे 80 प्रतिशत से अधिक लोग निर्भर हैं, तथा ग्रामीण समस्याओं को प्रमुख रूप से ध्यान में रखा जाय। आर्थिक योजनाओं का एक मुख्य लक्ष्य यह होना चाहिए कि उनसे ग्रामों में बसने वाले पांच करोड़ ऐसे आदमियों को, जो पूर्ण बेकार हंै अथवा आधे बेकार हैं, पूरा अथवा थोड़ा काम मिल सके। इसके लिए उपयोगी वस्तुओं के उत्पादन और बड़े उद्योगों के विकेन्द्रीकरण को प्राथमिकता देनी होगी। इसी कारण जनसंघ इस बात की मांग करता रहा है कि बड़े और छोटे उद्योगों के क्षेत्रों का स्पष्ट विभाजन किया जाना चाहिए,जिससे इन दोनों की परस्पर प्रतियोगिता को, जिससे छोटे उद्योगों को ही हानि पहंुचती है,रोका जा सके और दोनों उद्योग एक दूसरे के पूरक बन सकें।'
प्रोत्साहन की आवश्यक्ता
उद्योगों के पूर्ण राष्ट्रीयकरण की आलोचना करते हुए श्री डोगरा ने आगे कहा, 'जनसंघ की दूसरी यह मांग है कि निजी पूंजी को भी इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जाय कि वह राज्य के उचित नियंत्रण तथा नियमों के अन्तर्गत और अधिक उद्योग प्रारम्भ करे। राष्ट्रीयकरण की अस्पष्ट गोलमोल बातंे करना उतना ही अनीतिपूर्ण है जितना कि अव्यवहारिक। सर्वाधिकारवादी भावनाओं को,जो पहले ही सत्तारूढ़ दल की नीति से प्रकट हो रही हैं, इससे प्रोत्साहन ही मिलता है। आवश्यक व योग्य प्रकार के शिक्षित व्यक्तियों की कमी के कारण राष्ट्रीयकरण असंभव है। इस प्रकार की चर्चा से लोग निजी पूंजी लगाने में अवश्य भयभीत होंगे, जिससे देश के औद्योगीकरण में बाधा पड़ेगी।… '
सभी क्षेत्रों के कार्य संघ के लिए पोषक हों -श्रीगुरुजी
यदि मैं ऐसा कहूं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि संघ के कार्य का इन विविध कार्यों से ऐसा ही संबंध है,जैसा श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान ने अपना संबंध चराचर सृष्टि से बताया है। उन्होंने कहा है कि सब भूतों में मैं हूं और मुझमें वे हैं,किन्तु मैं उनमें नहीं और वे मुझमें नहीं, ऐसा मेरा योग का ऐश्वर्य है।
मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना।
मत्स्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेष्ववस्थित:।।4।।
न च मत्स्थानि भूतानि पश्य मे योगमैश्वरम्।
भूतभृन्न च भूतस्थो ममत्मा भूतभावन:।।5।।
(गीता: अध्याय 9)
समझने के लिए यह जरा जटिल बात है। इसी प्रकार अपना भी संबंध इन कार्यों से है कि इनमें से हम किसी में नहीं और वे हमारे में नहीं। इस आधार पर हमारी उनसे क्या अपेक्षा है? संघ के कार्य, सिद्धांत, अनुशासन, सुव्यवस्था, ध्येयवाद आदि श्रेष्ठ भावों की इन विभिन्न क्षेत्रों मे अभिव्यक्ति होती रहे,ऐसी अपनी
अपेक्षा है। -श्रीगुरुजी समग्र: खण्ड 2 पृष्ठ 270
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