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अंक संदर्भ : 23 नवम्बर,2014
आवरण कथा 'नई सुबह की आस' से प्रतीत होता है कि जम्मू-कश्मीर नई सुबह की आस लगाए बैठा है। वंशवादी राजनीति को पालने-पोषने वाले नेताओं ने सदैव कश्मीर को अपनी जागीर समझकर यहां की जनता को निजस्वार्थ के लिए उपयोग किया और विकास के नाम पर प्रदेश में मात्र आतंक दिया। आज यहां की जनता के सामने बड़ा ही अच्छा अवसर है, जब वह अलगाव व कट्टर आतंक के घने कोहरे को छांटकर परिवर्तनकारी इबारत लिख सकती है।
—कमलेश कुमार ओझा,पुष्पविहार(दिल्ली)
ङ्म आज जम्मू-कश्मीर की जनता के सामने वह मौका है जब वह अपना व प्रदेश का कायापलट कर 'विकास की किरण प्रदेश में ला सकती है। वर्षों से अब्दुल्ला परिवार व कांग्रेस की षड्यंत्रपूर्ण नीतियों में जकड़ा कश्मीर आज आजाद होने के लिए बेताब है। आज प्रदेश का मतदाता अपना हित भाजपा में देखकर उसमें संभावनाएं तलाश रहा है क्योंकि उसे विश्वास है कि भाजपा ही एकमात्र विकल्प है जिसके लिए देशहित व समाज हित सर्वोच्च है।
—हरिओम जोशी
चतुर्वेदीनगर, भिण्ड (म.प्र.)
ङ्म हाल के दिनों में एक कुचक्र के तहत यहां के लोगांे के मनोबल को तोड़ने के प्रयास हुए हैं। लेकिन इस बार देखना है कि आमजन अपने अधिकार का प्रयोग कर क्या बदलाव लाता है या फिर उसी वंशवाद की बेल में पानी डालकर उसे सींचने का कार्य करता है जो वर्षोँ से लहलहाती आई है। असल में यहां कुछ क्षेत्र को छोड़ दें तो घाटी में अधिकतर उन तथाकथित आतंकियों का कब्जा है जो इसे कभी लहलहाते हुए नहीं देखना चाहते हैं। इसी का नतीजा है कि जब भी यहां कुछ सकारात्मक करने का प्रयास किया जाता है तो यहां के निवासी ही हाथ में ईट-पत्थर लेकर निकल आते हैं। लेकिन इस बार उनके पास ऐसा समय है जब वे अपने साथ सम्पूर्ण प्रदेश को एक नया रूप दे सकते हैं।
—हरिहर सिंह चौहान
जंबरीबाग नसिया, इंदौर(म.प्र.)
समान कानून हों लागू
देश में आज एक बात की महती आवश्यकता है कि यहां रहने वाला कोई भी व्यक्ति वह किसी भी धर्म-मजहब व पंथ से क्यों न हो उसके लिए समान कानून होना चाहिए। इस तरह के कानून से प्रत्येक वर्ग के मन में समानता का भाव जागेगा । क्योंकि सदियों से भारत में कुछ लोगों द्वारा तुष्टीकरण के जहर को बोकर स्वार्थ की राजनीति की गई। जिसका परिणाम आज हमारे समक्ष है कि देश में हिन्दू बहुसंख्यक होने के बाद भी कुछ प्रदेशों में उसके साथ अत्याचार हो रहा है। इस सबको देखकर लगता है कि सम्पूर्ण देश में समान कानून वर्तमान समय की प्रमुख मांग या फिर जरूरत कह सकते हैं।
—शान्ति रानी साहा, कटिहार(बिहार)
परिवर्तन की बहती बयार
नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारतीय समाज व राजनीति में एक अंतर स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा है। वर्तमान में बदले राजनीतिक परिवर्तन से पूरे विश्व की निगाहे भारत पर टिकी हुई हैं। असल में अब तक जो राजनीति होती थी वह अपने को बेचकर स्वयं की स्वार्थपूर्ति के लिए होती थी,लेकिन अब इसमें थोड़ा परिवर्तन आया है। अब हम दूसरों को चीजें बेचने की इच्छा लेकर दुनिया में उभर रहे हैं, वह भी देशहित को सर्वोच्च स्थिति में रखकर।
—विपिन कुमार 'सोनिया'
मेरठ (उ.प्र.)
ङ्म नई सरकार विदेश नीति और कूटनीति को आधार बनाकर देश की तरक्की का रास्ता खोलने की कोशिश कर रही है। साथ ही चीन की चालों का मुंहतोड़ जवाब भी दे रही है। पहली बार अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के प्रधानमंत्री का ऐसा असर देखने को मिला है। अमरीका सहित अन्य राष्ट्रों में जिस प्रकार नरेन्द्र मोदी का स्वागत हुआ वह इसका स्पष्ट प्रमाण है। नहीं तो अब तक रहे प्रधानमंत्री तो विदेशियांे के आगे उनकी चरण वंदना करते नहीं थकते थे।
—अभिलाषा सिंह
अहिंसा चौक,जबलपुर(म.प्र.)
हिन्दू राष्ट्र
आदिकाल से अब तक भारत हिन्दू राष्ट्र के रूप में जाना जाता रहा है। सम्राट विक्रमादित्य से लेकर चंद्रगुप्त तक ने भारतवर्ष की पहचान पूरे विश्व में एक हिन्दू राष्ट्र के रूप में कराई। साथ ही महाराज पृथ्वीराज चौहान के समय भी भारतवर्ष विदेशों में हिन्दू राष्ट्र के रूप में ही पहचाना जाता था, लेकिन सवाल है कि फिर इस बात को सेकुलर क्यों तूल दे रहे हैं? क्या उन्होंने इतिहास को पढ़ा नहीं है या फिर वे देश व समाज को दिग्भ्रमित करना चाहते हैं? असल में यह कुचक्र आज से नहीं लंबे समय से चल रहा है, इसलिए आज विचार की नहीं विश्वास की आवश्यकता है। भारत हिन्दू राष्ट्र ही है। अन्य कोई नाम उसको नहीं दिया जा सकता।
—हितेश कुमार शर्मा, बिजनौर(उ.प्र.)
वास्तविक चिंता
बौद्ध मत को मानने वाले संसार में कई देश हैं। भारत इसका प्रमुख केन्द्र रहा है, लेकिन अपरिहार्य कारणों से वे सभी हमसे धीरे-धीरे अलग-थलग होते जा रहे हैं। किसी ने भी इनको जोड़ने की कोशिश नहीं की, इसलिए आज जरूरत है कि भारत के प्रधानमंत्री इस ओर ध्यान दें और इस मत की सभी धरोहरों को सहेजकर विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करें।
—ईश्वर दयाल जायसवाल
टाण्डा,अंबेडकरनगर(उ.प्र.)
दिखी वास्तविकता
इमाम बुखारी ने अपने बेटे की दस्तारबंदी में उस देश के प्रधानमंत्री को आमंत्रित किया जो सदैव हमारे देश में आतंक फैलाने की फिराक में रहता है। लेकिन इसके उलट इमाम ने पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर भारत के प्रधानमंत्री को न्योता नहीं भेजा। यह मानसिकता दिखाती है कि कैसे देश में रहकर कुछ आतंकी तत्व यहां का खाकर देश में ही विषवमन करने का कार्य करते हैं और ऐसा कोई भी मौका नहीं चूकते हैं जिससे देश की मान और मर्यादा को ठेस न पहुंचे।
—वीरेन्द्र सिंह,ग्वालियर (म.प्र.)
इस्लाम का उद्देश्य
कुरान में बार-बार कहा गया है कि इस्लाम का प्रमुख उद्देश्य विश्व के अन्य सभी धर्म व मतों को समाप्त कर उनके देशों में इस्लामी राज्य स्थापित करना,भले ही इसके लिए कुछ भी करना पड़े। अब इस छोटी सी ही बात से एकदम स्पष्ट है कि इस्लाम क्या चाहता है? मेरा उन सेकुलरवादियों और कठमुल्लाओं से सवाल है जो कहते हैं कि इस्लाम शान्ति का संदेश देता है तो कुरान में जो लिखा है वह किस बात का संदेश है?
—डॉ.के.वी.पालीवाल
राजौरी गार्डन(नई दिल्ली)
पाक की नापाक हरकतें
पाकिस्तान आए दिन जम्मू-कश्मीर सहित संपूर्ण भारत में नापाक हरकतें करने से नहीं चूक रहा है। असल में वह भारत में बनी नई सरकार की कार्य प्रणाली को देखकर विक्षिप्त हो गया है। अब उसे सिर्फ एक ही चीज दिखाई पड़ रही है कैसे भारत में आतंक का माहौल बनाया जाए,ताकि उसके मंसूबे पूरे हो सकें।
—रामदास गुप्ता, जनता मिल(जम्मू-कश्मीर)
वैचारिक संकीर्णता
हाफ पैंट से शरद पवार का भयभीत होना उनकी वैचारिक संकीर्णता व स्वार्थपरता को परिलक्षित करता है। संघ का निस्वार्थ भाव से राष्ट्र के प्रति समर्पण ऐसे लोगों को तनिक भी नहीं सुहाता। अपने अतार्किक बयानों द्वारा संघ पर निरन्तर आघात करना पवार व उन जैसे तमाम लोगों के लिए एक फैशन बन गया है। लेकिन देश की जनता सच जानती है। वह यह भी जानती है कि कौन देशहित में कार्य कर रहा है और कौन स्वार्थ की राजनीति करता है? शरद पवार ने सदैव देश को बांटने की राजनीति की है,यह आज किसी से भी छिपा नहीं है।
—रमेश कुमार मिश्र
कटघरमूसा,जिला-अंबेडकरनगर(उ.प्र.)
कांग्रेस का काला चेहरा
जिस प्रकार अंग्रेजों ने भारत पर वर्षों तक 'फूट डालों और राज करो' की नीति को लागू कर राज किया। जिसका परिणाम यह हुआ कि भारत वर्षों तक उनके अधीन रहा। लेकिन उनके जाने के बाद इस नीति को कांग्रेस ने हाथो-हाथ लेकर यहां की जनता व देश तोड़ने के वे सभी उपक्रम संचालित कर दिये जो अंग्रेज करते आए थे। तुष्टीकरण की राजनीति कर मुसलमानों को अलग वोट बैंक बनाकर उन्हें मुख्यधारा से तोड़ दिया और हिन्दू -मुसलमान के मन में ऐसा विष बो दिया जो आज तक समाप्त नहीं किया जा सका है। वहीं हिन्दू समाज के अंदर भी भेद उत्पन्न कर फूट डाल दी। जिसका परिणाम आज हम सभी के सामने है, लेकिन इस लोकसभा चुनाव में देश ने एकजुटता का परिचय देकर कांग्रेस को उसका असली चेहरा दिखा दिया है।
—सुहासिनी प्रमोद वालसंगकर
गोलीगुडा,तेलंगाना
सदमे में कांग्रेस
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्य को देखकर कांग्रेस और उनके नेताओं में खलबली मची हुई है। कुछ नेता तो मोदी जी के कार्य को देखकर तारीफ करने में ही अपना पद तक गंवा चुके हैं। देश-विदेश में मोदी की लोकप्रियता को देखकर कांग्रेस सदमे में है।
—आभा शुक्ला, गोरखपुर(उ.प्र.)
इस्लामीकरण की काली छाया
हैदर फिल्म वर्तमान फिल्म जगत की वास्तविक स्थिति को प्रकट करती है। किसी समय भारतीय सिनेमा देशभक्ति पूर्ण फिल्में समाज को देता था, जिसका स्पष्ट व सकारात्मक प्रभाव समाज पर पड़ता था। भारतीय सिनेमा से ही निकले हृदय को छू लेने वाले गीत ' है प्रीत जहां की रीत सदा' और 'जहां डाल-डाल पर सोने की चिडि़या करती हैं बसेरा' भारतीय समाज के मन मस्तिष्क में आज भी बसे हुए हैं। लेकिन फिल्मी जगत आज परिवर्तित हो चुका है। भारतीय सिनेमा फिराक,फना तथा हैदर जैसी फिल्में लगातार समाज को क्यों परोस रहा है? जिन फिल्मों मेें इतिहास को तोड़कर जैसे- मार्तण्ड सूर्य मंदिर को शैतान का घर,अनंतनाग को इस्लामाबाद और शंकराचार्य पहाड़ी को तख्त ए सुलेमान बताया जा रहा है। इन चीजों से एक बात स्पष्ट है कि भारतीय सिनेमा धीरे-धीरे इस्लाम पोषित हो रहा है और हिन्दुओं के विरुद्ध रचे जा रहे एक व्यवस्थित षड्यंत्र के तहत इसे इस्लामीकरण करके समाज के समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है।
अब यह कहना गलत नहीं होगा कि आज फिल्म जगत हिन्दू अस्मिता एवं मानदंडों को चिन्हित करके लगातार एक कुचक्र पूर्वक प्रहार कर रहा है। भारतीयों के मन-मस्तिष्क पर वैचारिक आक्रमण कर उनकी सोच परिवर्तित कर युवा मन को पथभ्रष्ट करना असल में इनका मकसद है।
—सुनील पाठक
11/ 22, अमरपाटन
जिला-सतना(म.प्र.)
भीषण नरसंहार
छत्तीसगढ़ में जो हुआ, भीषण नरसंहार
ऐसे हमलों के लिए, नहीं देश तैयार।
नहीं देश तैयार, सैकड़ों लोग मरे हैं
मां-बहनों के घाव दिलों में अभी हरे हैं।
कह 'प्रशांत' उनके दिल ठंडे तब ही होंगे
जिस दिन सारे नक्सलवादी चिता चढे़ंगे॥
—प्रशांत
इस्लामीकरण की काली छाया
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