आवरण कथा: नई सुबह की आस
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जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव
जम्मू-कश्मीर का नाम आते ही दो चित्र मन में उभरते हैं— खूबसूरत डल झील में चप्पुओं की छप-छप या फिर बारूदी गंध में लिपटे लाल चौक का सन्नाटा।
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खास बात यह कि इसमें से कोई चित्र पूरा सच नहीं है। सिर्फ घाटी का मतलब पूरा राज्य नहीं है। श्रीनगर की सुगबुगाहट को पूरे सूबे का स्वर मानने की गलती दिल्ली से भी हुई है। जम्मू-लद्दाख के बाशिंदों का, पलायन कर गए हिंदुओं का, पाक अधिकृत हिस्से से आए अपने ही बंधुओं का हक घाटी के घडि़याल मारते रहे हैं। लेकिन इस बार लगता है यह तस्वीर बदलेगी। दिल्ली में मजबूत सरकार के गठन और सीमा पर सेना की सतर्कता, जम्मू-कश्मीर की राजनीति को प्रभावित करने वाली ये दो अहम बातें हैं। अलग-थलग पड़े सीमांत गांव पहली बार अपने साथ पूरे देश की ताकत देख रहे हैं। अलगाव का नारा लगाते हुए अपने नागरिकों से ही अलग-अलग बर्ताव करने वाली राजनीति पर सवाल उठ रहे हैं।
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