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देवभूमि उत्तराखण्ड में पिछले वर्ष चारधाम यात्रा के समय आयी आपदा देश के लिए दु:वप्न जैसी त्रासदी है, जिसका स्मरण करते हुए भी भय और विषाद से रौंगटे खड़े हो जाते हैं। देश में आयी इस राष्ट्रीय आपदा ने जन-जन को पीड़ा और विषाद से झकझोर दिया था। इसके साथ ही विज्ञान और तकनीक के मद में चूर मानव द्वारा प्रकृति के असीम विदोहन पर पुनर्विचार के लिए भी विवश किया है। प्रकृति ने अपने रौद्र रूप के द्वारा मनुष्य की भौतिकवादी भोग लिप्सा और स्वार्थी वृत्ति को आईना दिखाया है। आपदा में जान माल की रक्षा हेतु भारतीय सेना, आपदा प्रबंधन, स्वैच्छिक एवं सामाजिक संगठनों समेत सभी ने यथाशक्ति अपना सहयोग किया।
'खंड-खंड हो गया उत्तराखण्ड' नामक पुस्तिका में लेखक डा. प्रदीप भारद्वाज ने आापदा प्रभावित क्षेत्र में अपनी टीम सिक्स सिग्मा हेल्थकेयर द्वारा किए गए मेडिकल रेस्क्यू ऑपरनेशन के जीवंत संस्मरणों का उद्घाटन किया है। इस टीम ने सेना के हेलीकाप्टर की सहायता से गौरीकुंड व केदारनाथ में रेस्क्यू किया था। प्रस्तावना में लेखक उस विभीषिका को व्यक्त करते हुए कहते हैं कि 'हमने मौत को करीब से देखा, प्रकृति की तबाही के सामने सबको बेबस और लाचार देखा, जो मर गए वह तो मर गए और जो जीवित थे वह गहरे मानसिक सदमे में थे।' लगभग 18 लघु अध्यायों में संकलित इस पुस्तिका में लेखक डा. प्रदीप भारद्वाज ने देवभूमि उत्तराखण्ड का परिचय देते हुए केदारनाथ मन्दिर की महिमा, इतिहास, तबाही के कारणों समेत राहत में उपस्थित सियासत, विध्वंस के कारक बांधों, राहत में स्थानीय ग्रामीणों के भावनात्मक सहयोग और सिक्स सिग्मा टीम के अभियान का वर्णन किया है।
पुस्तक में तबाही के चार प्रमुख कारणों-प्रदूषित गंगा के क्रोध, सैर सपाटे का पर्याय बने तीर्थस्थल, अशुभ मुहूर्त में कपाटों के खुलने और धारी देवी के प्रकोप का उल्लेख किया है। बढ़ती वर्षा, गांधी सरोवर में एकत्रित पानी और परिणामस्वरूप सुबह-सुबह 10-15 फीट ऊंचे सैलाब से शरण के लिए सुरक्षित केदानाथ मन्दिर में एकत्रित हजारों निरीह भक्तों के असमय कालकवलित होने के प्रत्यक्षदर्शियों के वक्तव्य पुस्तक में अंकित हैं। भारतीय सेना द्वारा युद्ध से भी भयानक आपदा राहत और पुनर्वास के अभियान ऑपरेशन सूर्या होप का जीवंत वर्णन करने के साथ 45 हेलीकाप्टरों और 10000 से ज्यादा जवानों द्वारा आपदा प्रभावित क्षेत्रों में लोगों को बचाने का इसमें मार्मिक चित्रण हुआ है। हजारों लोगों की जान बचाने वाले वायुसेना और अर्द्धसैनिक बलों के 20 सदस्यों द्वारा गौरीकुंड के समीप एम.आई.7 हैलीकाप्टर दुर्घटना में शहीद होने समेत इस अभियान में शामिल सेना के 10,000 जवानों, भारत तिब्बत सुरक्षा बल के 1200, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन के 500, वायुसेना के 300, पुलिसबल के 700 और होमगार्ड के 300 जवानों के साहस बहादुरी और दिलेरी का पुस्तक में जीवंत चित्र खींचा गया है।
इस पुस्तक में लेखक ने छोटे-छोटे अध्यायों के माध्यम से प्रामाणिक एवं प्रभावी सामग्री पाठकों के समक्ष प्रस्तुत की है। 15 जून से लेकर 24 जून, 2013 तक की दैनंदिन घटनाओं का उल्लेख करने के साथ इस त्रासदी से सीखकर आगे बढ़ने का संदेश दिया है, कुल मिलाकर 'खंड-खंड हो गया उत्तराखण्ड' नामक यह पुस्तक अत्यंत पठनीय एवं उपयोगी है। ल्ल प्रतिनिधि
पुस्तक का नाम – खंड-खंड हो गया उत्तराखण्ड
लेखक – डा. प्रदीप भारद्वाज
प्रकाशक – सिक्स सिग्मा पब्लिकेशन
का उपक्रम
सिक्स सिग्मा हाउस, 10ए,
साईं बाबा, एंक्लेव, तहसील रोड, नजफगढ़, नई दिल्ली-110043
प्रकाशक –
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मूल्य – 150 रु., पृष्ठ – 106
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