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विश्वभर की कुछ सुर्खियां – 2014 जून माह के प्रथम पखवाड़े में अखबार इराक से आ रही खूँरेजी की खबरों से लाल होने लगते हैं। विश्व सिहर जाता है, जब इराक से सुन्नी आतंकी संगठन 'इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड लेवांत' (आईएसआईएल) इराक के 1700 बंदी शिया सैनिकों की नृशंस हत्या के वीडियो और फोटो जारी करता है। 18 जून को खबर आती है कि इन आतंकियों ने 40 भारतीयों का अपहरण कर लिया है, और इसके साथ ही भारत भी इस त्रासदी की चपेट में आ जाता है। इराक के पश्चिम में शिया अलवाइट (एक शिया पंथ) शासक बशर अल असद की सत्ता को पलटने के लिए अलकायदा के झंडे तले काम करने वाले अनेक सुन्नी आतंकी संगठन और आईएसआईएल रक्त से सीरिया की धरती को लाल कर देते हैं। नरभक्षी आतंक से लेकर गैर सुन्नी महिलाओं को यौनदासी बनाने की घटनाएँ सामने आती हैं। इस 'लूट' के बँटवारे को लेकर ये गुट आपस में उलझते भी हैं। असद की सेनाएँ भी कठोर प्रत्युत्तर देती हैं।
सुदूर अफ्रीका में अलकायदा से जुड़ा 'बोको हराम' नामक आतंकी संगठन नाइजीरिया में इस्लामी शरिया कानून लागू करने के लिए मौत बाँटता घूम रहा है। एक दशक में ये संगठन 10 हजार जानें ले चुका है। इसके गुर्गे 300 मासूम बच्चियों को स्कूल जाने के जुर्म में अपह्रत कर जिहादियों के हाथों बेच देते हैं। 21 सितंबर 2013 केन्या के नैरोबी में एक शॉपिंग मॉल पर अल-शबाब नामक संगठन के जिहादी आतंकी धावा बोलते हैं। मॉल में बंदी लोगों से पूछताछ कर उनके मजहब का पता लगाते हैं, और गैर मुस्लिमों की शिनाख्त कर गोली मार देते हैं। 67 लोग मारे जाते हैं।
अफगानिस्तान में जिहादी हमले जारी हैं। 2014 के अंत में अमरीकी सेना की आगामी वापसी के चलते अफगानिस्तान के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है। पाकिस्तान की दो समांतर सत्ताआंे सरकार और फौज के साथ ही तीसरी सत्ता इस्लामी आतंकी संगठन पाक के बड़े हिस्से में अपनी पकड़ सिद्घ कर रहे हैं। इन्हीं शक्तियों के प्रश्न पर बंग्लादेश गृहयुद्घ के मुहाने पर आ खड़ा होता है। तुर्की, चेचेन्या और चीन के सिक्यांग में जिहादी आतंक पनप रहा है। इसी बीच अलकायदा के लड़ाके भारत के अंतर्गत कश्मीर में प्रवेश करने और हिंदुओं के विरुद्घ जिहाद की घोषणा करते हैं।
आतंक की इस लहर से बर्मा, मलेशिया, फिलीपींस कोई भी अछूता नहीं बचता। राजनैतिक कट्टरपंथी इस्लाम सारे विश्व में सर उठा रहा है।
भौगोलिक और राष्ट्रीय सीमाओं के पार
आतंक की इस नयी लहर ने राष्ट्रों और महाद्वीपों की सीमाओं को पीछे छोड़ दिया है। और दुनिया भर के मुस्लिम युवक जिहाद की इस विचारधारा से संक्रमित हो रहे हैं। इराक में आईएसआईएस के लड़ाकों में यूरोप और अमरीका में जन्मे, पले-बढ़े मुस्लिम युवक भी शामिल हैं। इनमें कई इस्लाम में नवमतांतरित हैं। सीरिया में असद के खिलाफ लड़ने के लिए दुनिया भर से जिहादी इकटठे हुए हैं। पाकिस्तान के कराची में 9 व 10 जून को हुए हमलों में उज्बेक युवक शामिल हैं। एशिया, अफ्रीका, यूरोप, अमरीका और ऑस्ट्रेलिया से जिहादियों की भर्ती हो रही है और अफगानिस्तान, चेचेन्या, इराक और केन्या की जिहादी तंजीमों में शामिल हो रहे हैं। शायद बहुतों को आश्चर्य होगा कि इन रंगरूटों की भर्तियाँ बड़ी मात्रा में इंटरनेट और सोशल नेटवर्किंग साइट्स के माध्यम से हो
रही हंै।
कट्टरपंथ का विस्फोटक
विश्व भर में सक्रिय इन आतंकी संगठनों में बहुत सारे अंतर हैं। ये अंतर वाद, मजहबी शाखाओं और नस्ल तथा कार्यपद्घति आधारित हैंं, परंतु सबमें एक बात समान है। विश्व के अलग-अलग भागों में लड़ रहे ये आतंकी सारे विश्व को कट्टर इस्लामी शरिया शासन के अंतर्गत लाना चाह रहे हैं। ये वही शरिया कानून है, जिसका नमूना विश्व अफगानिस्तान में तालिबान शासन के दौरान देख चुका है। इस व्यवस्था में लोकतंत्र, मानव अधिकार, आधुनिक शिक्षा (इस्लाम के अतिरिक्त और कोई शिक्षा), नारी स्वातंत्र्य, बोलने की स्वतंत्रता आदि के लिए कोई स्थान नहीं है। गैर मुस्लिमांे के लिए कोई स्थान नही है। इतना ही नहीं गैर सुन्नी मुस्लिमों जैसे शिया, अहमदी आदि के लिए भी कोई स्थान नहीं है। इराक और सीरिया में शियाओं का ही संहार किया जा रहा है।
पंेच में पेंच और मकडज़ाल –
आतंक के विरुद्घ लड़ाई के नारे डेढ़ दशक पुराने हो चले हैं। भारी मात्रा में जान-माल और समय खप चुका है, परंतु इस लंबी उठापटक में पत्ते काटे गए और जड़ें अछूती छोड़ दी गईं। कहीं-कहीं तो साथ-साथ जड़ों को सींचा भी जाता रहा है। वैमनस्यों को सुलटाने और सत्ता की कडि़यों को बिठाने के लिए राजनैतिक इस्लाम का उपयोग होता आया है। पूरे पश्चिम और दक्षिण एशिया में पनप रहे ये जिहादी आतंकी किसी न किसी तख्त के रणनीतिक अस्त्र बने हुए हैं।
इस समय जिसकी सर्वाधिक चर्चा हो रही है वो इस्लामिक स्टेट आफ इराक एण्ड लेवेन्ट (लेवेन्ट अर्थात् सीरिया, लेबनान, इजराइल, जार्डन, साइप्रस तथा दक्षिण तुर्की) है। इसका ही नाम आईएसआईएल (इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एण्ड अल-शाम) है। नाम से ही स्पष्ट है, कि ये संगठन इराक, इजराइल व सीरिया समेत पूरे भूमध्यसागरीय क्षेत्र मंे इस्लामी खिलाफत कायम करना चाहता है। इसमें मुजाहिदीन शूरा काउंसिल, अलकायदा इराक, जैश अल फातिहान, जुन्द अल सहाबा, कातबियान अंसार अल वाहिद वल सुन्ना, जैश अल तैफ अल मन्सूरा और दूसरे सुन्नी संगठन शामिल हैं।
अलकायदा प्रमुख अल जवाहिरी ने फरवरी 2014 में आईएसआईएल से अलकायदा के संबंध विच्छेद की घोषणा की है। समाचार जगत में चर्चा हो रही है, कि ये संगठन इतना हिंसक है, कि अलकायदा को भी पच नही पा रहा है। वास्तविकता ये है, कि आईएसआईएल जिस प्रकार शियाओं की हत्या कर उनके वीडियो बनाकर विश्व में प्रसारित कर रहा है, उससे अल जवाहिरी असहमत है, क्योंकि उसे लग रहा है, कि इससे विश्व मत तेजी से जिहादियों के विरुद्घ ध्रुवीकृत हो जाएगा, अन्यथा अलकायदा भी बीच आबादी में बम विस्फोट कर और अपने बंदियों के गले रेतकर उनके वीडियो इंटरनेट पर बाँटता आया है। जबकि आईएसआईएल प्रचार की इस रणनीति के माध्यम से इराक की 35 प्रतिशन सुन्नी आबादी को तेजी से अपने पक्ष मंे ध्रुवीकृत करना चाह रहा है। इराक के मोसुल व तिकरित जैसे शहरों में सुन्नी आबादी आईएसआईएल के लड़ाकों का स्वागत कर रही है। दूसरा कारण है, संगठन का 43 वर्षीय महत्वाकांक्षी प्रमुख अबु बकर अल बगदादी, जो जवाहिरी की सुनता नहीं है और अपनी नृशंसता और बिजली की गति से की जा रही कार्यवाहियों के चलते जिहादियों के बीच तेजी से नाम कमा रहा है। एक और बुनियादी अंतर ये है, कि मूल रूप से अलकायदा विश्व भर के जिहादी आतंकियों को संसाधन और सहायता उपलब्ध करवाने के लिए गढ़ा गया था, जबकि आईएसआईएस शासन करने की इच्छा से बढ़ रहा है। उसने कब्जे वाले इलाकों में शरिया आधारित शासन व्यवस्था प्रारंभ भी कर दी है।
दूसरा पहलू राजनीतिक षड़यंत्रों का है। सऊदी अरब की गुप्तचर संस्थाओं के द्वारा आविष्कृत और पाकिस्तान की आईएसआइ तथा सी़आइ़ए द्वारा पाला पोसा गया अलकायदा आज इन्हीं के साथ लुकाछिपी खेल रहा है। हजार से अधिक राजकुमारों वाले शाही सऊदी परिवार के अनेक उत्तराधिकारी अपनी अकूत तेल संपत्ति में से उसे हिस्सा देते आए हैं। ये क्रम आज भी जारी है, जबकि सऊदी अरब पश्चिम एशिया में अमेरिका और नाटो का विशेष सहयोगी है। आखिर पंद्रह हजार सदस्यों के परिवार पर दृष्टि व नियंत्रण रखना सरल काम भी नहीं है।
आईएसआईएस इराक की सीरिया से लगी सीमा के दोनों और पनपा है। पिछले दो सालों में इसने 10 हजार दुर्दांत जिहादी और 2 बिलियन डॉलर का साम्राज्य खड़ा कर लिया है। ये किसी आतंकी संगठन के लिए अस्वाभाविक नहीं लगता ? इराक की शिया-सुन्नी विभाजक रेखा पर पनपे बाहरी सहायता प्राप्त इस संगठन को कमजोर शिया सरकार कैसे और कितना रोक पाएगी इस पर अभी प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है। आज इसकी बढ़त पर हड़बड़ाया ओबामा प्रशासन कुछ ही समय पहले सीरिया में असद के खिलाफ इसकी सहायता कर रहा था। सीरिया, इराक व लेबनान में वर्षों से चल रहा संघर्ष आज एक ही पात्र में उबल रहा है। इराक में अमरीका ने सद्दाम की सुन्नी सत्ता को उलटकर शिया सत्ता का तख्त तैयार किया। इससे उसके पुराने शत्रु शिया बहुल ईरान का प्रभाव बढ़ा, और पुराना मित्र सऊदी अरब असंतुष्ट हुआ। वहीं दूसरी ओर सीरिया में शिया शासक असद की कुर्सी मजबूत हुई। ईरान ने लेबनान में शिया आतंकी संगठन हिजबुल्ला को मजबूत किया। पश्चिम एशिया में ईरान-हिजबुल्ला -अलवाइट शिया (सीरिया) और इराक की नयी शिया धुरी तैयार हुई, जिसका प्रभाव पश्चिमी अफगानिस्तान से लेकर मध्यपूर्व तक फैला था। अब उत्तरी इराक व सीरिया में सुन्नी उभार ने नए समीकरण पैदा किए हैं। पूरे पश्चिम एशिया में दर्जनों जिहादी संगठन सक्रिय हैं। संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, तुर्की, ईरान व अमरीका अलग-अलग गुटों को समर्थन दे रहे हैं। परंतु आईएसआईएस नामक नए उभार ने सबको नयी रणनीति बनाने पर विवश कर दिया है। तेल के मैदानों में हिंसा धधक रही है। और अकल्पित घटित होने की संभावना दिख रही है। इराक के संकट से निपटने के लिए ईरान व अमरीका परस्पर सहयोग पर विचार कर रहे हैं।
इस संकट में ईरान की भूमिका वास्तव में बड़े महत्व की है। ईरान के पूर्व और पश्चिम में सलाफी मजबूत हो रहे हैं। अमरीका व ईरान वार्ता-मेज की ओर बढ़ सकते हैं। इराक अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। असद की आशा जाग रही है। सऊदी अरब व इजराइल चौकन्ने होकर देख रहे हैं। अफगानिस्तान को छ: महीने बाद के बुरे सपने आ रहे हैं। पाक फौज ने कराची के हमलावरों को दंडित करने का अभियान प्रारंभ किया है। ऑपरेशन का नाम है 'रसूल की तलवार का वार'। इराक में आईएसआईएस आँधी बनकर आगे बढ़ रहा है। अलकायदा पहले की तरह धरती के कोने-कोने में आतंक के सूत्रों का संचालन कर रहा है।
विश्व एक लम्बे और खतरनाक युद्घ की ओर फिसलता दिखाई दे रहा है। अक्लें भिड़ाई जा रही हैं, योजनाएँ बनाई जा रही हैं। इस दाँव पेंच में उलझे सभी नेताओं और शासकों को एक बात समझनी होगी, कि उनकी लड़ाई व्यक्तियों या संगठनों से नही बल्कि राजनैतिक इस्लाम से है। जबतक समस्या के इस जड़ पर प्रहार नहीं किया जाता तब तक स्थायी शांति संभव नही है।
निशाना भारत भी
इराक में चल रही इस उथल-पुथल का प्रभाव केवल पश्चिम एशिया तक सीमित रहने वाला नहीं है। आईएसआईएल का महत्वाकांक्षी नेतृत्व दूर तक जाने के इरादे दिखा रहा है। 19 जून को आईएसआईएल द्वारा उसके लक्षित इस्लामी राज्य 'खुरासान' का नक्शा जारी किया गया। इस नक्शे में भारत के उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्रों को इस राज्य का हिस्सा दिखाया गया है। सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता। विशेष बात ये है कि कुछ भारतीय युवक भी इन जिहादी गुटों में शामिल होकर इराक और सीरिया में लड़ रहे हैं। ये जिहादी जब वापिस लौटेंगे, ये भारत में आईएसआईएल का आधार बन सकते हैं। भारत पहले से ही अंतरराष्ट्रीय जिहादी आतंकियों के निशाने पर है।
-प्रशांत बाजपेई
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