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भारतीय नौसेना के बेड़े में आईएनएस विक्रमादित्य के शामिल होने से एशिया महाद्वीप में भारत पहले के मुकाबले और शक्तिशाली हो गया है। नौसेना में 60 के दशक से ही आईएनएस विक्रांत अपना लोहा दुश्मन को मनवा चुका है। इसके बाद उसकी जगह 80 के दशक में आईएनएस विराट को भारतीय नौसेना में शामिल कर लिया गया। विराट 2016 तक अपनी सेवाएं देगा। वहीं विक्रमादित्य अरब सागर में दुश्मन देशों पर पूरी निगरानी बरतेगा। आईएनएस विक्रांत और विराट दोनों ही भारत ने ब्रिटेन से खरीदे थे, लेकिन विक्रमादित्य को रूस से खरीदा गया है। चीन में जहाजों की संख्या भारत के मुकाबले कहीं ज्यादा है, लेकिन गुणवत्ता और शक्तिशाली विमानवाही जहाजों का उसके पास अभाव है। भारत के पास बेशक जहाजों की संख्या कम है, लेकिन जो जहाज नौसेना के बेड़े में शामिल जहाज शक्तिशाली हैं।
विक्रमादित्य के बेड़े के आसपास अन्य विध्वंसक जहाज और हेलीकॉप्टर चारों ओर अपनी नजर बनाए रखंेगें, ये हेलीकॉप्टर 400 से 500 किलोमीटर दूरी से ही खतरा भांपने की क्षमता रखते हैं। विक्रमादित्य स्टोबार तकनीक से भी लैस है जिससे विमान परिचालन में पूरी मदद मिलती है, इससे विमान के जहाज पर लैंड करते समय उसमें लगा हुक जहाज पर लगे तारों में उलझाकर उसे उतरने में मदद देता है। विक्रमादित्य ने एशिया और विश्व के दूसरे देशों को भारतीय नौसेना की शक्ति और क्षमता में हुई वृद्धि की ओर देखने को विवश कर दिया है। खास बात यह है कि जल्द ही भारत तीन स्वदेशी विमानवाही पोत तैयार करने का महारथ भी हासिल करने जा रहा है। इस क्रम में कोचीन में पहले स्वदेशी विमानवाही जहाज विक्रांत का जलावतरण हो चुका है। स्वदेशी विमानवाही पोत तैयार होने से भारत की नौसैनिक शक्ति और इजाफा हो जाएगा। इससे दुश्मन देशों से सुरक्षा मिलेगी तो वहीं मित्र देशों को परस्पर सहयोग भी मिलेगा। वहीं भारतीय नौसेना को वर्तमान में अपने बेडे़े में पनडुब्बियों की संख्या में वृद्धि करने की अत्यंत आवश्यकता है क्योंकि पाकिस्तान पनडु़ब्बी के मामले में आगे है और उसी के बल पर छिपकर वह शत्रु पर हमला करता है। भारत के लिए छह पनडुब्बी मंुबई में तैयार हो रही हैं, लेकिन विशाखापतनम में बनने वाली पनडुब्बियों का मामला लटका हुआ है।
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