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शाहजहां के शासन काल की बात है। स्यालकोट के एक छोटे से मदरसे में हकीकतराय पढ़ता था। मौलवी वहां पर बच्चों को पढ़ाया करते थे। एक दिन मौलवी कहीं बाहर गए हुए थे तो उनकी अनुपस्थिति में बच्चे खेलने-कूदने लगे, लेकिन हकीकत राय इस खेल में शामिल नहीं हुआ। इस बात पर दूसरे बच्चों ने उसे छेड़ा। एक मुसलमान बच्चे ने हकीकत राय को गाली दी, दूसरे ने हिंदुओं को, और तीसरे ने हिंदुओं के देवी देवताओं को भगवती दुर्गा कोइस बात पर हकीकत राय का खून खौल उठा। वह बोला यदि मैं भी यही शब्द तुम्हारी बीवी फातिमा के लिए कहूं तो। मुसलमान बालक ने कहा, तू ऐसा बोल कर दिखा। हकीकत राय ने वही शब्द बीवी फातिमा के लिए कह दिए। चारों तरफ सन्नाटा छा गया। कुछ देर बाद मौलवी साहब लौटे तो मुसलमान बच्चों ने नमक मिर्च लगाकर सारी घटना उन्हें सुनाई। मौलवी ने हकीकत से पूछा कि क्या सच में उसने ऐसा किया? हकीकत ने कहा हां, लेकिन पहले उन्होंने मां भगवती के बारे में अपशब्द कहे थे।
मौलवी का चेहरा तमतमा उठा। उन्होंने इस्लाम की तौहीन का यह मामला स्यालकोट के हाकिम अमीर बेग की अदालत में भेज दिया। वहां भी हकीकत डरा नहीं, उसने पूरी घटना स्पष्ट बता दी। हाकिम ने मुल्लाओं की राय ली, उन्होंने बताया कि इस्लाम की तौहीन करने वाले को शरीयत के मुताबिक मौत की सजा मिलनी चाहिए। हकीकत राय उस समय महज 13 वर्ष का था। हकीकत राय का बूढ़ा बाप यह सुनकर रो पड़ा। उसकी मां बेहोश हो गई।
हकीकत को जेल में डाल दिया गया। अगली सुबह उसे भरे मैदान में लोगों के सामने मौत की सजा दी जानी थी। कुछ मुल्ला और काजी हकीकत के पिता को साथ लेकर जेल में पहुंचे। उन्होंने उससे कहा, यदि तुम इस्लाम कबूल कर मुसलमान बन जाओ तो तुम्हारी सजा माफ कर दी जाएगी। इसके अलावा तुम्हें ईनाम भी दिया जाएगा। हकीकत के बूढ़े पिता ने भी रोते हुए उससे कहा कि बेटा तू मुसलमान बन जा, कम से कम तू जिंदा रहेगा तो हम तुझे देखकर जी तो लेंगे। हकीकत राय का चेहरा तमतमा उठा। उसने कहा कि पिताजी आप भी यही कहने लगे। मुसलमान बनने के बाद क्या मुझे मौत नहीं आएगी। कुछ दिनों के जीवन के लिए धर्म छोड़ने का क्या मतलब ?
हकीकत राय ने काजी की आंखों में आंखें डालकर कहा काजी साहब, धर्म कभी बदला नहीं जाता, वह तो अटल होता है। वह जीवनभर हमारे साथ रहता है और मरने पर हमारे साथ ही जाता है। अगली सुबह हकीकत को काजी के सामने लाया गया। पूरा मैदान मुसलमानों और हिंदुओं की भीड़ से खचाखच भरा हुआ था। हकीकत राय से काजी ने एक बार फिर कहा कि वह इस्लाम कबूल कर लेगा तो उसकी जान बख्श दी जाएगी, लेकिन हकीकत राय अपनी बात पर अडिग रहा। काजी ने जल्लाद को उसकी गर्दन काटने का हुक्म दिया। हकीकत राय ने खुद अपनी गर्दन झुका दी। 13 वर्ष के बच्चे की गर्दन काटने के लिए जब जल्लाद ने तलवार उठाई तो उसके भी हाथ कांप उठे तलवार हाथों से छूटकर नीचे गिर पड़ी। हकीकत राय ने खुद तलवार उठाई और जल्लाद से कहा, घबराओ मत जो तुम्हारा कर्तव्य है वह पूरा करो। जल्लाद ने तलवार उठाई और हकीकत राय की गर्दन काट दी। अपने धर्म के लिए प्राण न्यौछावर करने वाले इन वीर सपूतों के कारण ही हमारा देश सबसे महान है। ल्ल बाल चौपाल डेस्क
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