आम चुनाव और संघ की भूमिका (पुरस्कृत पत्र )
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.देश में सम्पन्न हुए आम चुनावों ने पूर्ण बहुमत वाली पहली गैर-कांग्रेसी सरकार देश को देकर एक नया इतिहास रचा है। महंगाई, बेरोजगारी और लाचार कानून व्यवस्था के खिलाफ नागरिकांे का गुस्सा वोट के रूप में उभर कर बाहर आया है। विचारांे के आधार पर कई सामाजिक संगठनों और संस्थाओं को प्रतिद्वंद्वी पार्टियों द्वारा इस दौरान निशाना बनाया गया। इसमें सबसे ऊपर नाम है-राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का। आरोप लगे कि संघ ने चुनाव में हिन्दू हित की बात करने के कारण भाजपा का समर्थन किया। लेकिन संघ अपनी स्थापना के समय से ही सत्ता संघर्ष और राजनीतिक दलबंदी से दूर रहा है। संघ राष्ट्रनीतियों के पीछे जरूर है, परन्तु सक्रिय राजनीति में कभी भी हस्तक्षेप नहीं करता। डॉ़ हेडगेवार के समय में भी जब रैमसे मैकडोनाल्ड ने भारत शासन अधिनियम-1935 के अंतर्गत सांप्रदायिक निर्णय दिया तो महात्मा गांधी और कांग्रेस की स्थिति बड़ी विडंबनापूर्ण हो गयी। वह निर्णय स्पष्ट रूप से राष्ट्रविरोधी था, इसलिए उसको स्वीकारना संभव नहीं था। इसलिए कांग्रेस ने चुनाव के समय यह नीति अपनायी कि वह सांप्रदायिक निर्णय को न तो स्वीकार करती है और न अस्वीकार,क्योंकि अस्वीकार कर देने से उनको मुसलमानों के नाराज होने का डर था,उस समय संघ के स्वयंसेवकों ने राष्ट्रसर्वोपरि है ध्येय ध्यान में रखकर श्री मालवीय की नेशनलिस्ट पार्टी एवं हिन्दू महासभा का काम किया। इंदिरा गांधी ने जब जनवरी 1977 में अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते चुनाव की घोषणा की तो केवल भूमिगत आंदोलन और सत्याग्रह ही नहीं लोकतंत्र की रक्षा के लिए लोकतान्त्रिक शक्तियों को एकजुट करने का कार्य भी संघ के स्वयंसेवकों ने किया। श्री दत्तोपंत ठेंगडी और प्रो़ रज्जू भैया के प्रयास से जनता पार्टी के रूप में चार दल एक साथ चुनाव में उतरने को तैयार हो सके। आपातस्थिति के विरुद्घ संघर्ष की जिम्मेदारियां संभालने वाले 60 प्रतिशत लोग संघ के स्वयंसेवक ही थे, जिसके कारण इंदिरा ने संघ के नेतृत्व से सौदेबाजी के प्रयास किये और कहा-संघ से प्रतिबन्ध हटा कर सभी एक लाख से अधिक स्वयंसेवकों को जेलों से मुक्त किया जा सकता है, यदि संघ इस आन्दोलन से अलग हो जाए, लेकिन संघ ने आपातकाल हटाकर लोकतंत्र बहाली से कम कुछ भी स्वीकार नहीं किया। इंदिरा और कम्युनिस्ट पार्टी बुरी तरह से हारी। संघ ने इस बार भी लोकसभा चुनाव में देश के लोगों से शत प्रतिशत मतदान का आह्वान किया था। संघ का यह आन्दोलन पार्टी या व्यक्ति विशेष के लिए नहीं बल्कि राष्ट्रीय परिपेक्ष्य को सामने रखकर था।
-विवेक बंसल,
आर्यसमाज रोड़, देवनगर, नई दिल्ली
आकर्षक पाञ्चजन्य
पाञ्चजन्य का पत्रिका स्वरूप में आना सुखद अनुभव कराता है। समय के अनुरूप यह निर्णय बड़ा सटीक है। संपादकीय 'हाथ मिले हैं,बात बनेगी' एक सार्थक विचार उत्पन्न करता है। लेकिन पाकिस्तान में ऐसा नहीं है। वहां दो ताकतंे काम कर रही हैं। सेना वहां की प्रमुख ताकत है, जो सभी कार्यों पर नियंत्रण रखती है। पाकिस्तान के लिए यह ठीक नहीं है। पाकिस्तान को जल्द ही सेना के चंगुल से मुक्ति पानी होगी।
-वीरेन्द्र जरयाल, शिवपुरी विस्तार (नई दिल्ली)
० समय के अनुरूप पाञ्चजन्य का पत्रिका स्वरूप में आना बेहद जरूरी था। इस बदलाव के लिए संपादकीय टोली विशेषरूप से बधाई के पात्र हैं,क्योंकि उन्होंने पाठकों की मानसिकता को समझा और समय के साथ इसका बदलाव किया। पहले की अपेक्षा कुछ अक्षर छोटे हैं,इसलिए पढ़ने में कुछ असुविधा हो रही है। कृपा करके इसका निदान करें।
-पदमाकर शिवराम तारे, सेठी नगर,उज्जैन(म.प्र.)
दिख रहा ठोस इरादा
घोटालों से हो नहीं, भारत का अपमान
हुनर बने हर हाथ की, अब पक्की पहचान।
अब पक्की पहचान, मंत्र मोदी बतलाते
साथ विरोधी चलें, प्रेम से हाथ बढ़ाते।
कह 'प्रशांत' है लोकतंत्र की नव मर्यादा
सबके साथ विकास, दिख रहा ठोस इरादा॥
-प्रशांत
आम चुनाव और संघ की भूमिका
देश में सम्पन्न हुए आम चुनावों ने पूर्ण बहुमत वाली पहली गैर-कांग्रेसी सरकार देश को देकर एक नया इतिहास रचा है। महंगाई, बेरोजगारी और लाचार कानून व्यवस्था के खिलाफ नागरिकांे का गुस्सा वोट के रूप में उभर कर बाहर आया है। विचारांे के आधार पर कई सामाजिक संगठनों और संस्थाओं को प्रतिद्वंद्वी पार्टियों द्वारा इस दौरान निशाना बनाया गया। इसमें सबसे ऊपर नाम है-राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का। आरोप लगे कि संघ ने चुनाव में हिन्दू हित की बात करने के कारण भाजपा का समर्थन किया। लेकिन संघ अपनी स्थापना के समय से ही सत्ता संघर्ष और राजनीतिक दलबंदी से दूर रहा है। संघ राष्ट्रनीतियों के पीछे जरूर है, परन्तु सक्रिय राजनीति में कभी भी हस्तक्षेप नहीं करता। डॉ़ हेडगेवार के समय में भी जब रैमसे मैकडोनाल्ड ने भारत शासन अधिनियम-1935 के अंतर्गत सांप्रदायिक निर्णय दिया तो महात्मा गांधी और कांग्रेस की स्थिति बड़ी विडंबनापूर्ण हो गयी। वह निर्णय स्पष्ट रूप से राष्ट्रविरोधी था, इसलिए उसको स्वीकारना संभव नहीं था। इसलिए कांग्रेस ने चुनाव के समय यह नीति अपनायी कि वह सांप्रदायिक निर्णय को न तो स्वीकार करती है और न अस्वीकार,क्योंकि अस्वीकार कर देने से उनको मुसलमानों के नाराज होने का डर था,उस समय संघ के स्वयंसेवकों ने राष्ट्रसर्वोपरि है ध्येय ध्यान में रखकर श्री मालवीय की नेशनलिस्ट पार्टी एवं हिन्दू महासभा का काम किया। इंदिरा गांधी ने जब जनवरी 1977 में अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते चुनाव की घोषणा की तो केवल भूमिगत आंदोलन और सत्याग्रह ही नहीं लोकतंत्र की रक्षा के लिए लोकतान्त्रिक शक्तियों को एकजुट करने का कार्य भी संघ के स्वयंसेवकों ने किया। श्री दत्तोपंत ठेंगडी और प्रो़ रज्जू भैया के प्रयास से जनता पार्टी के रूप में चार दल एक साथ चुनाव में उतरने को तैयार हो सके। आपातस्थिति के विरुद्घ संघर्ष की जिम्मेदारियां संभालने वाले 60 प्रतिशत लोग संघ के स्वयंसेवक ही थे, जिसके कारण इंदिरा ने संघ के नेतृत्व से सौदेबाजी के प्रयास किये और कहा-संघ से प्रतिबन्ध हटा कर सभी एक लाख से अधिक स्वयंसेवकों को जेलों से मुक्त किया जा सकता है, यदि संघ इस आन्दोलन से अलग हो जाए, लेकिन संघ ने आपातकाल हटाकर लोकतंत्र बहाली से कम कुछ भी स्वीकार नहीं किया। इंदिरा और कम्युनिस्ट पार्टी बुरी तरह से हारी। संघ ने इस बार भी लोकसभा चुनाव में देश के लोगों से शत प्रतिशत मतदान का आह्वान किया था। संघ का यह आन्दोलन पार्टी या व्यक्ति विशेष के लिए नहीं बल्कि राष्ट्रीय परिपेक्ष्य को सामने रखकर था।
-विवेक बंसल,
आर्यसमाज रोड़, देवनगर, नई दिल्ली
आकर्षक पाञ्चजन्य
पाञ्चजन्य का पत्रिका स्वरूप में आना सुखद अनुभव कराता है। समय के अनुरूप यह निर्णय बड़ा सटीक है। संपादकीय 'हाथ मिले हैं,बात बनेगी' एक सार्थक विचार उत्पन्न करता है। लेकिन पाकिस्तान में ऐसा नहीं है। वहां दो ताकतंे काम कर रही हैं। सेना वहां की प्रमुख ताकत है, जो सभी कार्यों पर नियंत्रण रखती है। पाकिस्तान के लिए यह ठीक नहीं है। पाकिस्तान को जल्द ही सेना के चंगुल से मुक्ति पानी होगी।
-वीरेन्द्र जरयाल, शिवपुरी विस्तार (नई दिल्ली)
० समय के अनुरूप पाञ्चजन्य का पत्रिका स्वरूप में आना बेहद जरूरी था। इस बदलाव के लिए संपादकीय टोली विशेषरूप से बधाई के पात्र हैं,क्योंकि उन्होंने पाठकों की मानसिकता को समझा और समय के साथ इसका बदलाव किया। पहले की अपेक्षा कुछ अक्षर छोटे हैं,इसलिए पढ़ने में कुछ असुविधा हो रही है। कृपा करके इसका निदान करें।
-पदमाकर शिवराम तारे, सेठी नगर,उज्जैन(म.प्र.)
घोटालों से हो नहीं, भारत का अपमान
हुनर बने हर हाथ की, अब पक्की पहचान।
अब पक्की पहचान, मंत्र मोदी बतलाते
साथ विरोधी चलें, प्रेम से हाथ बढ़ाते।
कह 'प्रशांत' है लोकतंत्र की नव मर्यादा
सबके साथ विकास, दिख रहा ठोस इरादा॥
-प्रशांत
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