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अब तक भारत ने स्वतंत्र हो,
बंधन का ही दुख झेला।
नहीं सिर्फ यह संस्था का ही
युग परिवर्तन की बेला।।
चमत्कार हो गया,
रूप यह नया कोई अवतारी है।
नहीं अकेला अभिमन्यु है,
संग में जनता सारी है।।
चक्रव्यूह तो तोड़ दिया,
अब पाञ्चजन्य भी गूंजेगा।
नहीं सिर्फ यह संस्था का ही,
युग परिवर्तन की बेला।।
देखो रामलला हंसते हैं,
काश्मीर भी मुस्काता।
गंगा मैली नहीं रहेगी अब,
शाख-शाख पंछी गाता।।
कांप उठी महंगाई,
तोड़ रहा, दम युग भ्रष्टाचारी।
नई राह मिल गई,
मिट रही भूल-भुलैया बेकारी।।
बदल गई सत्ता जिसमें संतों ने
अब तक दुख झेला।
नहीं सिर्फ यह सस्था का ही
युग परिवर्तन की बेला।।
ल्ल डॉ. रामस्वरूप ब्रजपुरिया
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