परिचर्चा - बेहतर संवाद के लिए कुशल वाहक जरूरी
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परिचर्चा – बेहतर संवाद के लिए कुशल वाहक जरूरी

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Jun 14, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 14 Jun 2014 16:54:39

 

समाज से केन्द्र सरकार के सीधे संवाद के सशक्त माध्यम-आकाशवाणी और दूरदर्शन को उनके संसाधनों को देखते हुए अधिक कुशलता से काम में जुटाया जा सकता है।

-प्रो़ बी़ के. कुठियाला-

प्रशासन एवं जनमानस में वैचारिक एवं सूचनाओं की सहभागिता लोकतंत्र की अनिवार्यता है। भारत सरकार की नीतियों, कार्यक्रमों एवं उपलब्धियों के प्रचार एवं प्रसार का दायित्व केन्द्र सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का है। इस अति-महत्वपूर्ण विभाग का दायित्व जिन वरिष्ठ राजनीतिज्ञों ने समय-समय पर संभाला है, उनमें प्रमुख हैं श्री वसंत साठे, श्रीमती इंदिरा गांधी व श्री लालकृष्ण आडवाणी। वर्तमान में श्री प्रकाश जावडे़कर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का कार्यभार मंत्री के रूप में देख रहे हैं। इस मंत्रालय में कई मीडिया इकाइयां हैं जो न केवल समाचार एवं विज्ञापन के प्रबंध का कार्य करती हंै बल्कि फील्ड पब्लिसिटी जैसे मीडिया विभाग भी हैं जिनका कार्य जन मानस से प्रत्यक्ष वार्ता करके केन्द्र सरकार एवं आम आदमी के बीच संवाद सेतु बनाने का है।
मानव-संवाद की दुनिया में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए हैं और वास्तविक दुनिया के साथ-साथ एक आभासी जगत का भी निर्माण हुआ है जो जनमानस के जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। मोबाइल, टेलीफोन, नेट या नेट के बिना मोबाइल, नेट आधारित इन्टरनेट ट्विटर और फेसबुक जैसे सामाजिक संवाद के माध्यमों से प्रसारित इन सूचनाओं ने व्यक्ति से व्यक्ति को जोड़ने का ऐसा कार्य किया है जैसा मानव के इतिहास में पहले न तो हुआ है और न ही इसकी कल्पना की गई थी। संवाद के इन अभूतपूर्व परिवर्तनों से भारत सरकार का सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय लगभग अछूता ही रह गया है। केन्द्र में कोई भी सरकार रहे, विशेषकर ऐसी सरकार जो जनमानस के कल्याण के प्रति सबसे अधिक समर्पित हो, उसके लिए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के माध्यम से आम जनता से संवाद करने का अभूतपूर्व ढांचा उपलब्ध है। केवल संवाद के नवीन युग के अनुसार संगठनात्मक परिवर्तन एवं उद्देश्यों को पुन: परिभाषित करने की आवश्यकता है।
एक समय में आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पूर्ण रूप से सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन कार्य करते थे, परन्तु अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं मीडिया की स्वायत्तता को ध्यान में रखते हुए प्रसारण की दोनों संस्थाओं को प्रसार भारती ट्रस्ट के अधीन कर दिया गया। परन्तु वास्तविक स्वायत्तता तो तब भी अधूरी रह गई क्योंकि नई रचना में अर्थव्यवस्था का प्रावधान जानबूझकर नहीं किया गया, जिससे भारत सरकार पर निर्भरता बनी रहे। दूरदर्शन और आकाशवाणी का एक मुख्य कार्य समाचारों का प्रसारण एवं समसामयिक विषयों पर संवाद आयोजित करने का भी है। प्रसार भारती से पूर्व स्थिति को यथावत रखते हुए समाचार प्रसारण का मुख्य काम भारतीय सूचना सेवा के जिम्मे ही रहा। यह सेवा केन्द्रीय प्रशासनिक सेवाओं में से एक है और इसके अधिकारी भारत सरकार के कर्मचारी ही रहे। परिणाम यह हुआ कि प्रसार भारती का जो मूल उद्देश्य समाचारों में निष्पक्षता, वस्तुनिष्ठता एवं संतुलन रखने का था वह पूर्णत: अनदेखा हो गया और समूचा उपक्रम सत्ताधारी पार्टी एवं उसके नेतृत्व का भोंपू बनकर रह गया।
पिछली शताब्दी के 60 एवं 70 के दशक में जो भूमिका आकाशवाणी ने कुछ क्षेत्रों के विकास में, विशेषकर कृषि की क्रान्ति में निभाई वह सब दूर की बात हो गई और देश के दोनों मुख्य जन प्रसारण के माध्यम मीडिया के बाजार में अप्रासंगिक से हो गए। भारतीय सूचना सेवा के अधिकारियों का प्रशिक्षण एवं उन्मुखीकरण भी सूचनाओं के प्रबंधक के रूप में हुआ जबकि उनका वास्तविक कार्य संवाद विशेषज्ञ के रूप में होना चाहिए था।
दूरदर्शन एवं आकाशवाणी का ढांचा विश्व की प्रसारण संस्थाओं के मुकाबले सबसे बड़ा है। देश के सुदूर क्षेत्रों में भी इसके केन्द्र हैं और इनका सिग्नल पहुंचता है। उपकरण के मामले में भी दोनों प्रसारण संस्थाएं उत्कृष्ट हैं परन्तु परोसी जाने वाली सामग्री अपूर्ण, पक्षपाती एवं विकृत रही है। मनोरंजन के लिहाज से भी दूरदर्शन एवं आकाशवाणी अपनी क्षमताओं के अनुसार न तो कलात्मक स्तर पर श्रेष्ठ हैं और न ही वैचारिक दृष्टि से राष्ट्रहित में।
एक व्याधि, विशेषकर दूरदर्शन को और लगी। बजाय जनसंवाद की शैली में और जनहित में कार्य करने के, दूरदर्शन ने निजी टीवी चैनलों की भौंडी नकल शुरू कर दी। परिणामस्वरूप दूरदर्शन न तो जनहित का चैनल बन सका और न ही पूरी तरह से व्यावसायिक या व्यापारिक चैनल। दूरदर्शन एवं आकाशवाणी के उद्देश्यों को वर्तमान परिस्थिति के अनुसार परिभाषित करके कार्यरत व्यावसायिक मानव संसाधन की सोच एवं कार्यशैली की भी नवीन व्याख्या करने की आज महती आवश्यकता है।
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का एक और महत्वपूर्ण विभाग है पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी)। इसकी स्थापना समाचारपत्रों एवं पत्रिकाओं को सरकारी समाचार एवं सूचनाएं देने के लिए हुई थी। ऐसी सामग्री पहले प्रेस विज्ञप्ति के रूप में बांटी जाती थी और अब इन्टरनेट के माध्यम से भेजी जाने लगी है। केन्द्रीय सरकार के हर मंत्रालय एवं बड़े विभाग में एक अधिकारी इस कार्य के लिए नियुक्त होता है। राज्यों एवं बड़े नगरों में भी पत्र सूचना कार्यालय कार्यरत हैं। बदलते परिवेश में समाचारों की तुरंत उपलब्धता के चलते पत्र सूचना कार्यालय अप्रासंगिक लगने लगे हैं, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि केन्द्र सरकार में एक ऐसे विभाग की आवश्यकता नहीं है जो विभिन्न निजी जनसंचार माध्यमों का उपयोग करते हुए जनता तक केन्द्र सरकार से संवाद बना सके।
विकास सम्बन्धी संवाद में समाचारपत्रों-पत्रिकाओं एवं समाचार चैनलों के माध्यम से जनमानस की सहभागिता का अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य पत्र सूचना कार्यालय कर सकते हैं। केवल रचना एवं उद्देश्यों में वांछित परिवर्तन करना होगा।
इसी प्रकार हजारों करोड़ के बजट वाला विज्ञापन एवं दृश्य प्रचार निदेशालय(डीएवीपी) है। यह निदेशालय भारत सरकार की विभिन्न योजनाओं का विज्ञापनों के माध्यम से प्रचार-प्रसार करता है। अनेक समाचारपत्र एवं पत्रिकाएंं तथा टीवी चैनल इसके माध्यम से करोड़ों का बजट प्राप्त करते हैं। सिद्घान्तत: पब्लिसिटी के माध्यम से लोकतंत्र में जनमानस की विकास में सहभागिता बखूबी बनाई जा सकती है, परन्तु डीएवीपी तो न केवल चहेतों को विज्ञापन के माध्यम से उपकृत करने का जरिया बन गया है वरन् भ्रष्टाचार का भी एक मुख्य स्रोत है। एक ओर पीआईबी का कार्य समाचार एवं लेखों के माध्यम से विकास का संवाद बनाना है। वहीं डीएवीपी को यही कार्य विज्ञापन के द्वारा करना होता है। प्रश्न केवल यह है कि संवाद सत्ताधारी पार्टी का, कुछ नेताओं का या कुछ असफल योजनाओं का हो या इसके माध्यम से अंत्योदय की कल्पना को साकार करने के लिए अन्तिम जन से भी संवाद स्थापित कर उसकी विकास में सहभागिता सुनिश्चित हो।
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का एक अत्यंत महत्वपूर्ण विभाग जो वषार्ें से उपेक्षित पड़ा हुआ है वह है क्षेत्रीय प्रचार निदेशालय। इसकी एक अत्यंत सुन्दर एवं प्रभावी रचना थी। योजना के अनुसार देश के हर जिले में एक क्षेत्रीय प्रचार कार्यालय होगा जिसमें एक प्रशिक्षित अधिकारी गांव-गांव जाकर जनमानस से प्रत्यक्ष बात करेगा, प्रदर्शनियों के माध्यम से विकास की योजनाओं की जानकारी देगा और सहभागिता के लिए प्रेरित करेगा एवं इसके लिए टीवी और फिल्म के माध्यमों का भी उपयोग करेगा। यही नहीं क्षेत्रीय प्रचार संस्था का कार्य जनमानस के मन को टटोलकर और फीडबैक को केन्द्र तक पहुंचाने का है। यह कार्य गांव और ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक है। इस पूरे विभाग को कई बार बंद करने की भी योजना बनाई गई। सौभाग्यवश यह विभाग बन्द तो नहीं हुआ परन्तु सब प्रकार के साधनों की कमी से लगभग क्रियाहीन ही पड़ा है।
वास्तव में, अनुभव भी बताता है और शोध से यह तथ्य सामने आया कि प्रत्यक्ष वार्ता ही संवाद का सबसे अधिक प्रभावशाली साधन है। कल्पना करें कि देश के हर जिले में एक सक्षम फील्ड पब्लिसिटी अफसर हो जो महीने में कम-से-कम 20 दिन सरकार द्वारा दिए गए वाहन का प्रयोग करके गांव-गांव जाकर न केवल केन्द्र सरकार की बात जनमानस से करे, बल्कि जनमानस की बात भी व्यवस्थित रूप से एकत्रित कर क्षेत्रीय कार्यालयों के माध्यम से केन्द्र तक पहुंचाए। इससे बेहतर फीडबैक न तो जनमत संग्रह का अध्ययन कर ले सकतेे हैं और न ही सरकारी खुफिया संस्थाएं। देश के हर जिले में केन्द्रीय सरकार की एक टोली यदि आम आदमी से संवाद की निरन्तरता का निर्माण करती है तो सारा राष्ट्र ही सुसंवादित होकर राष्ट्र के कार्य में सहभागी हो सकता है।

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