सुनहरा अतीत : एंबेसेडर ! याद तो बहुत आएगी
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सुनहरा अतीत : एंबेसेडर ! याद तो बहुत आएगी

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Jun 9, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 09 Jun 2014 16:13:12

पिछले 24 मई को एंबेसेडर की प्रोड्क्शन हमेशा के लिए थम गई। हिन्दुस्तान मोटर्स ने सात दशकों के सफर के बाद अपनी उत्तरपाड़ा फैक्ट्री से इसके उत्पादन को रोक देने का फैसला ले लिया। सी़ के़ बिड़ला समूह की तरफ से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया कि, कंपनी के तमाम प्रयासों के बावजूद एंबेसेडर की मांग में बढ़ोत्तरी ना होने के चलते इसका उत्पादन रोका जा रहा है। मारुति-800 के भारतीय सड़कों पर उतरने से एंबेसेडर का जलवा हुआ करता था, जिसके पास एबेसेडर होती थी,उसे समाज में विशेष स्थान हासिल होता था।
एंबेसेडर कार भारतीय सड़कों की रानी बनी रही 70 और 80 के दशक के मध्य तक। आप मान सकते हैं कि जैसे ही मारुति-800 ने सड़कों पर अपनी दस्तक दी और फिर अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद एंबेसेडर के स्थान पर बीएमडब्ल्यू पर सफर करने का फैसला किया तो शुरू हो गए एंबेसेडर के बुरे दिन। हालांकि अब भी सोनिया गांधी और सेनाध्यक्ष जैसे खासमखास हिन्दुस्तानी एंबेसेडर में ही सफर करना पसंद करते हैं, पर ज्यादातर नेताओं को रास आने लगी हैं मर्सडीज बैंज,आडी,बीएमडब्ल्यू जैसी ज्यादा सुरक्षित और लक्जरी कारें।
आप कह सकते हैं कि एंबेसेडर की यात्रा लगभग भारतीय लोकतंत्र जितनी पुरानी है और एंबेसेडर सफल हिन्दुस्तानियों की पहली पसंद बन गई थी। एंबेसेडर को हिंदुस्तान मोटर्स ने 1957 में पेश किया था और देश का पहला चुनाव 1951-52 में हुआ था। हिंदुस्तान मोटर्स की स्थापना स्वतंत्रता मिलने से कुछ साल पहले 1942 में हुई थी, जो देश की पहली कार निर्माता कंपनी थी और यह बरसों तक राजनेताओं, नौकरशाहों और सत्ता-वर्ग की पसंदीदा कार रही और लगभग 80 साल तक बाजार पर इसका एकाधिकार रहा। एंबेसेडर कार को लांच करने में बिड़ला समूह के संस्थापक घनश्याम दास बिड़ला की अहम भूमिका रही थी।
हालांकि एंबेसेडर का उत्पादन रोक दिया है, पर अब भी बहुत से नेताओं का इसको लेकर प्रेम बना हुआ है। 16वें लोकसभा चुनाव में भाग लेने वाले उम्मीदवारों के लिए यह बहुमूल्य है और इसका जिक्र उन्होंने अपने हलफनामे में संपत्ति की सूची में किया है। जिन नेताओं ने अपनी परिसंपत्ति की सूची में एंबेसेडर का जिक्र किया है, उनमें से ज्यादातर कांग्रेस या बीजेपी के हैं। बीजेपी के जिन उम्मीदवारों के पास एंबेसेडर कार हंै, उनमें नितिन गडकरी, पूर्व केंद्रीय मंत्री शाहनवाज हुसैन, फिल्म अभिनेता से राजनेता बने शत्रुघ्न सिन्हा और दार्जीलिंग से पार्टी के सासंद एसएस अहलूवालिया शामिल हैं। कांग्रेस नेताओं में पूर्व केंद्रीय मंत्री कमलनाथ और दो अन्य नेताओं के पास एंबेसेडर कार है। वरिष्ठ लेखक-पत्रकार मार्क टुली का एंबेसेडर से 50 साल रिश्ता बना रहा है। एंबेसेडर की प्रोड्क्शन के बंद होने से वे जाहिर है निराश हैं। वे कहते है, मैं हमेशा से ही एंबेसेडर का प्रशंसक रहा हूं। मैंने उसके साथ बेवफाई की क्योंकि पिछले कुछ बरसों से मेरी जीवनसंगिनी ने मुझे एंबेसेडर नहीं खरीदने दी है।
मैंने सालोंसाल हर मौसम में सैकड़ों-हजारों किलोमीटर का सफर इसी एंबेसेडर से किया है, भारत के तकरीबन हर हिस्से में सड़कें नापी हैं।
राजन धवन पेशे से सीए हैं। उनका भी एंबेसेडर से 40 साल पुराना संबंध है। वे बताते हैं कि उनके घर में पहली बार जब पिता जी 1975 में एंबेसेडर लेकर आए तो वो उसके साथ चिपट गए। मुझे एंबेसेडर इसलिए हमेशा पसंद आई क्योकिं इसमें हमारा सारा परिवार समा जाता था। माता-पिता,भाई-बहन,छोटे बच्चे और भाभी। इसमें सबके लिए स्पेस था। एंबेसेडर की सवारी ढोने की क्षमता ही उसकी असली ताकत है।
मार्क टुली को एंबेसेडर हमेशा ही सबसे ज्यादा भरोसेमंद लगी। वे बताते हैं,मैं जब दिल्ली में बीबीसी का संवाददाता हुआ करता था तो हमारे दफ्तर के बाहर एक टैक्सी स्टैंड होता था। जहां तक मुझे याद है, वहां सारी टैक्सियां एंबेसेडर की थीं और काफी पुरानी थीं। उन्होंने एंबेसेडर में सबसे लंबा सफर कोलकाता से दिल्ली तक का किया था। अपने उस सफर को याद करते हुए वे बताते हैं कि इतनी लंबी यात्रा को एंबेसेडर में करना मेरे जीवन का सबसे बड़ा रोमांच था। मैं उसे कभी नहीं भूल सकता।
आटो एक्सपर्ट युनुस थरियन कहते हैं कि जब से इसकी प्रोड्क्शन शुरू हुई उसके बाद इसमें कभी कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ। इसकी शक्ल-सूरत एक-जैसी ही रही। एंबेसेडर कार का मडल मोरिस आक्सफोर्ड थ्री पर आधारित था। इसके बावजूद इसे सदा भारत की कार के रूप में देखा गया। भारत में बनने वाली यह पहली कार थी। वक्त गुजरने के साथ एंबेसेडर से नई पीढ़ी अपने को जोड़कर नहीं देख पा रही थी। इसे समझने के लिए आपको इसके पिछले वित्तीय साल-2014 की बिक्री के आंकड़ें को समझना होगा। पिछले साल मात्र 2200 एंबेसेडर कारें बिकीं। हालांकि देश के आटो बाजार में मंदी है,फिर भी 18 लाख कारें तो बिकीं । यानी कि एंबेसेडर को लेकर नई पीढ़ी का उत्साह घटा।

– पाञ्चजन्य ब्यूरो

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