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श की जनता को नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी से बिजली की उपलब्धि को लेकर विशेष आशा है। आपने गुजरात के लोगों को 24 घंटे बिजली उपलब्ध कराने का रिकार्ड बनाया है। गौर करने वाली बात यह है कि गुजरात सरकार को केन्द्र द्वारा कोयला तथा नेशनल ग्रिड से बिजली उपलब्ध कराई जा रही थी। ऐसे में गुजरात सरकार का कार्य इस सांचे में बिजली व्यवस्था को सुचारु रूप से लागू करना मात्र था। देश के स्तर पर विषय बदल जाता है। देश में उपलब्ध कुल कोयले तथा बिजली के दूसरे स्रोतों की गणित बिठानी पड़ती है।
मूल समस्या है कि बिजली की मांग अधिक और आपूर्ति कम है। इस असंतुलन को दूर करने के दो उपाय हैं-एक यह कि आपूर्ति बढ़ाई जाये और दूसरा यह कि मांग घटाई जाये। अब तक का सरकार का पूरा प्रयास आपूर्ति बढ़ाने की ओर रहा है।
मुम्बई के एक उद्योगपति के घर के बिजली का मासिक बिल 74 लाख रुपये है। फिर भी वे तृप्त नहीं हैं। मध्यम वर्ग के लोगों के घर पंखा-बत्ती है। उन्हें फ्रिज और वाशिंग मशीन चाहिये,यह मिल जाये तो कूलर चाहिये। कूलर मिल जाये तो एयर कंडीशनर चाहिये। यह उपलब्ध हो जाये तो डिश वाशर चाहिये। इस प्रकार उत्तरोत्तर खपत बढ़ती ही जाती है पर संतुष्टि नहीं होती।
बिजली की वर्तमान उपलब्धि के अनुरूप खपत को कम करने का उपाय है कि साफ तकनीकों का उपयोग किया जाय जैसे साधारण बल्ब के स्थान पर सीएफएल बल्ब का उपयोग किया जाये। मेरी समझ से यह उपाय सफल नहीं होगा। कारण कि सीएफएल बल्ब के उपयोग के साथ बल्ब की संख्या में वृद्घि कर दी जाये। कई दुकानों में सीएफएल बत्तियों की लाइन लगी रहती है। अमरीका के कैलिफोर्निया राज्य में अधिक ऐवरेज देने वाली हाइब्रिड कारों की खरीद के लिये सब्सिडी दी गई। पाया गया कि लोगों ने हाइब्रिड कार खरीद ली, लेकिन पेट्रोल की खपत में कमी नहीं आयी। लोगों ने घूमना-फिरना बढ़ा दिया। पहले एक माह में एक वीकएन्ड सैर करने जाते थे अब दो वीकएन्ड जाने लगे चूंकि उतने ही पेट्रोल में दो यात्रायें सम्भव हो गयीं। आशय है कि आपूर्ति बढ़ाकर मांग की पूर्ति नहीं की जा सकती।
ऊर्जा की खपत कम करने के प्रयास के साथ-साथ वैकल्पिक स्रोतों के विकास पर ध्यान देने की जरूरत है। वायु एवं सौर ऊर्जा विशेषकर उल्लेखनीय है, लेकिन इनके द्वारा भी असीमित मात्रा में उत्पादन नहीं हो सकता है। अतएव खपत को सीमित करने को ही प्राथमिकता बनाना होगा।
खपत घटानी हो तो अमीर लोगों की ही खपत घटानी होगी चूंकि गरीब की खपत तो पहले से ही न्यून है। सरकार को चाहिये कि प्रति व्यक्ति बिजली के मानक निर्धारित करे, जैसे 20 यूनिट प्रति व्यक्ति प्रति माह के ऊपर खपत करने वालों से बिजली के उच्च दाम वसूल करने चाहिये। वर्तमान में अधिकतर राज्यों में व्यवस्था है कि एक सीमा के बाद बिजली के दामों में वृद्घि की जाती है। इस नियम को और कड़ा करना चाहिये, जैसे 200 यूनिट की खपत के बाद बिजली का दाम 10 रुपये प्रति यूनिट तथा 100 यूनिट के बाद 20 रुपये प्रति यूनिट कर देना चाहिये। दाम में वृद्घि को प्रति व्यक्ति के आधार पर निर्धारित करना चाहिये। जिस घर में चार व्यक्ति हों उस घर से 80 यूनिट के बाद उच्च दाम वसूल करने चाहिये। ऐसा करने से अमीरों की खपत कुछ कम होगी। इससे भी खपत नियंत्रण में न आये तो खपत की ऊपरी सीमा तय कर देनी चाहिये। इस सीमा के बाद बिजली काट देनी चाहिये। मेरी गणना के अनुसार वर्तमान में उपलब्ध बिजली का केवल दो प्रतिशत गरीबों को आवंटित कर दिया जाये तो देश के लगभग 300 करोड़ घरों को 30 यूनिट बिजली प्रति माह उपलब्ध कराई जा सकती है।
हमारे सामने चुनौती है कि सीमित संसाधनों से ग्रामीण जनता के जीवन स्तर में सुधार कैसे करें? वर्तमान में जीवन स्तर का मापदण्ड खपत को माना जा रहा है। जैसे तीन एयर कंडीशनर वाले परिवार को उन्नत माना जाता है। हमें भौतिक वस्तुओं से ऊपर उठकर जीवन स्तर को अच्छे स्वास्थ्य, शिक्षा, साहित्य, विज्ञान आदि के आधार पर निर्धारित करना होगा। जो परिवार कम संसाधनों में अधिक साहित्य का सेवन करे उसे उन्नत मानना होगा। हमें अपनी जीवनशैली को अपने प्राकृतिक संसाधनों के अनुकूल ढालना होगा। सऊदी अरब के लोग हमारे बराबर पानी की खपत नहीं करते हैं। हमें उनके बराबर बिजली की खपत का प्रयास नहीं करना चाहिये। नई सरकार को चाहिये कि बिजली के वैकल्पिक संसाधनों के विकास और बिजली की खपत कम करने पर ध्यान दे।
– डा. भरत झुनझुनवाला
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