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इंटरनेट का विकास-विस्तार
90 के दशक के पूर्वार्द्ध में जिस प्रकार से पूरी दुनिया में पहली सूचना क्रांति हुई, ठीक उसी प्रकार वर्ष 2013 से 2016 तक दूसरी सूचना क्रांति हो रही है। 22 साल बाद, पहली बार इंटरनेट बदल रहा है। बदलता इंटरनेट, स्मार्ट फोन्स, 3 जी और 4 जी, टेबलेट्स, भारी मात्रा में उपलब्ध 'आईपी एड्रेस'-ये सब सूचना क्रांति के वाहक हैं। शायद आज से 5-10 वर्षो के बाद जब हम पीछे मुड़कर देखेंगे तो पाएंगे कि वर्ष 2014 में हम एक जबरदस्त सूचना क्रांति के वाहक बनकर आगे बढ़ रहे थे।
आईटी या टेलीकॉम के क्षेत्र में काम करने वाले व्यवसायी या विद्यार्थियों से यदि पूछा जाए कि इंटरनेट की शुरुआत कहां से हुई तो 100 में से 99 यही उत्तर देंगे आरपानेट या अमरीका में, लेकिन यह कहना गलत है, या यूं कहें कि अर्धसत्य है। लोकप्रिय लेखक डेनब्राउन ने 'एंजल्स एंडडेमोंस' नाम के उपन्यास में जब इस सन्दर्भ में लिखा तो दुनिया का चौंकना स्वाभाविक था। सारे विश्व में 'बिगबेंगथ्योरी' के लिए प्रसिद्ध यूरोप की 'सर्न'(उएफठ) प्रयोगशाला में इंटरनेट का प्रारंभ हुआ था। मेरे सर्न के प्रवास के दौरान मैंने वह कमरा देखा था, जिसके बाहर लिखा हुआ था, 'इंटरनेट वाज बोर्न हियर'। उस समय सर्न में काम करनेवाले 'टिमबर्नर्स ली'ने सबसे पहले 'वर्ल्ड वाइड वेब' की संकल्पना दुनिया के सामने रखी थी। उसने दुनिया की पहली वेबसाइट बनाई, जो 6 अगस्त,1991 को शुरू हुई थी। आज भी यह साइट काम कर रही है और यहीं से इंटरनेट की शुरुआत हुई थी।
इंटरनेट 23 वर्ष पूरे करने वाला है। इन वषार्ें में बहुत कुछ बदल गया है। इंटरनेट दुनिया के कोने-कोने तक पहुंच चुका है। भारत में 20 करोड़ से ज्यादा लोग इंटरनेट का उपयोग कर रहे हैं। 40 फीसदी से ज्यादा व्यवहार इंटरनेट के माध्यम से हो रहे हैं और इंटरनेट से फोन कॉल्स भी हो रहे हैं। यहां तक कि वीडियो कान्फ्रेंसिंग हो रही है। सोशल मीडिया का तो आधार ही इंटरनेट है, लेकिन यह सब होते हुए भी इंटरनेट का मूल स्वरूप नहीं बदला है। 22 वर्ष पहले, इंटरनेट के प्रारंभ में जिस वर्जन 4 (कढ५4) को आधार मानकर इंटरनेट ने काम करना शुरू किया था, वह लगभग आज भी कायम है।
इस वर्जन 4 की अनेक मर्यादाएं हैं। इंटरनेट से जुड़ते समय प्रत्येक उपयोगकर्ता को एक 'आईपी एड्रेस' मिलता है। इंटरनेट के महाप्रचंड वैश्विक जाल में यह 'आईपी एड्रेस', उस उपयोगकर्ता की पहचान होती है, उसका स्थायी/अस्थायी पता होता है। यह तब तक उपयोगकर्ता के पास रहता है, जब तक उपयोगकर्ता इंटरनेट से जुड़ा होता है। यह स्थायी (स्टेटिक) या अस्थायी (डायनामिक) रूप में होता है। इंटरनेट के शुरू होते समय इस आईपी एड्रेस की लंबाई थी, 32 बिट्स अर्थात इसके द्वारा लगभग 430 करोड़ 'आईपी एड्रेस' तैयार होते थे।
शायद इंटरनेट का व्यवस्थापन करने वाली संस्थाओं को तब इंटरनेट के इस अतिविशाल फैलाव का अंदाजा नहीं था, इसलिए उन्होंने शुरुआत में इंटरनेट की सेवाएं देने के लिए जिन टेलीकॉम कंपनियों को दुनिया भर में तैयार किया, उनको 'क्लास ए' के 'आईपी एड्रेस' बांट दिए। ऐसे प्रत्येक इंटरनेट सेवा प्रदाता को लगभग 1 करोड़ 67 लाख 'आईपी एड्रेस' मिले, जो कि जरूरत से बहुत ज्यादा थे। लगभग 125 इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को ही आईपी 'क्लास ए' एड्रेस बंट सके और इंटरनेट के आधे एड्रेस समाप्त हो गए। ये 'क्लास ए' सेवा प्रदाता अपने सारे 'आईपी एड्रेस' को उपयोग में लाने की परिस्थिति में ही नहीं थे अर्थात ये एड्रेस फालतू पड़े रहे।
इधर इंटरनेट सेवा प्रदाताओं की संख्या भी बढ़ रही थी, और इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की भी, इन सबको देने के लिए 'आईपी एड्रेस' की कमी खलने लगी। वर्ष 2012-13 में चीन, ब्राजील सहित अनेक देशों को दिए गए वर्जन के 'आईपी एड्रेस' समाप्त हो गए थे।
इंटरनेट का परिचालन करने वाली संस्थाओं को इसका अंदाजा हो गया था। इसलिए इंटरनेट का वर्जन 6 (कढ५6) कुछ वर्ष पहले से ही उपलब्ध करा दिया गया था। इस वर्जन में आईपी के हेडर में 128 बिट्स हैं। इससे निर्माण होने वाले 'आईपी एड्रेस' की संख्या इतनी ज्यादा है कि गिनना संभव ही नहीं है। वर्जन 4 से वर्जन 6 पर जाना यह जटिल और खर्चीला काम है। कोई कंपनी या संस्था इस हेतु खुद को आगे करने के लिए तैयार नहीं थी। अत: इंटरनेट को वर्जन में बदलने हेतु जनजागरण हो, इसलिए 6 जून, 2012 को विश्व (कढ५6) ' मनाया गया, लेकिन आज भी वर्जन 6 में जाने की गति अत्यंत धीमी है। दुनिया में मात्र 4 से 5 प्रतिशत इंटरनेट उपयोगकर्ता ही इसका प्रयोग कर रहे हैं। अगले 2 वषार्ें में इसमें भारी बदलाव आने की उम्मीद है और ऐसा अनुमान है कि 25 फीसदी से ज्यादा उपयोगकर्ता वर्जन 6 पर रहेंगे।
इंटरनेट बदल रहा है, मात्र आईपी वर्जन ही नहीं, अब तो इंटरनेट की गति भी बढ़ रही है। इंटरनेट पर होने वाले लगभग सभी व्यवहार इंटरनेट के 'बैकबोन' से होकर गुजरते हैं। यह 'बैकबोन' अपने नेशनल हाईवे या 'एक्सप्रेस वे' जैसा रहता है, स्वाभाविक रूप से यहां जाम भी लगता है। जाम लगने का कारण रहता है, इंटरनेट पर बीच-बीच में उपयोग में आने वाले इलेक्ट्रॉनिक उपकरण। इंटरनेट का पूरा प्रवास ऑप्टिकल फाइबर केबल के माध्यम से होता है, जिसकी गति प्रकाश की गति के बराबर अर्थात तीव्रतम होती है। इस गति की बराबरी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण नहीं कर सकते और इसलिए उन उपकरणों पर जाम लगता है। इसे तकनीकी भाषा में 'इंटरनेट का कंजेशन' कहते हैं। इस कंजेशन के कारण ही इंटरनेट बीच-बीच में रुक गया सा लगता है। इंटरनेट की इस रचना को ओईओ यानी ऑप्टिकल इलेक्ट्रॉनिक ऑप्टिकल कहा जाता है।
तीव्रतम गति से चलने वाली इस दुनिया को इंटरनेट का यह रुक-रुक कर चलना मंजूर नहीं है, इसलिए अब इंटरनेट का यह 'बैकबोन' ओईओ से बदलकर ओओओ यानी ऑप्टिकल ऑप्टिकल ऑप्टिकल हो रहा है। यह बहुत बड़ा बदलाव है। इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उत्पादन ऑप्टिकल पद्धति से किया जा रहा है। सारे 'क्रास कनेक्ट' और 'मल्टी प्लेक्सर'को ऑप्टिकल बनाया जा रहा है। पूरे बैकबोन को बदलने वाली यह परियोजना अगले डेढ़ से दो वषार्ें में पूरी होगी और तब इंटरनेट की गति आज की अपेक्षा बहुत ज्यादा होगी।
यह बदलाव बड़े बदलावों की श्रंृखला की शुरुआत है। इससे मात्र इंटरनेट की गति ही नहीं बढे़गी, बल्कि अनेक नए-नए उपयोग सामने आयेंगे, वीडियो का प्रचलन खूब बढेगा। ई-कॉमर्स और एम-कॉमर्स और आसान होंगे तथा उनका क्षेत्र बढे़गा। लोग इंटरनेट के माध्यम से सहजता से और गुणवत्ता के साथ फोन जैसी बातचीत करने लगेंगे।
इंटरनेट के वर्जन 6 (IPv6) के कारण 'आईपी एड्रेस' भारी संख्या में उपलब्ध रहेंगे। इसलिए सभी विद्युत एवं इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के 'आईपी एड्रेस' जुड़े रहेंगे। रोजमर्रा के सारे उपकरण इंटरनेट से जुड़े रहने के कारण दुनिया के किसी भी कोने से इन उपकरणों को चलाया जा सकेगा। 3जी और 4जी के कारण मोबाइल से इंटरनेट चलाने का प्रचलन रहेगा।
-प्रशांत पोल
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