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ग्रमीण/शहरी विकास
भारत गांवों को देश है। प्राकृतिक सौंदर्य के साथ परिश्रम का सामंजस्य विकास का प्रतीक बन जाता है। औद्योगिकीकरण के पश्चात संयुक्त परिवार विघटित हुए और गांवों की संख्या घटती गई, शहर बसते गए। गांवों में बिजली, पानी,सड़क व संचार के साधनों का अभाव है तो शहरों में मास्टर प्लान के अभाव में एक सुंदर शहर की कल्पना दूर की कौड़ी लगती है। आज देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए दोनों के ही विकास की आवश्यकता है।
यदि गांव का किसान खुशहाल होगा तो वह शहर के नागरिक को भी राष्ट्र की सेवा के लिए प्रेरणा प्रदान करेगा। स्वच्छ पर्यावरण के लिए भी गांव का अस्तित्व में रहना आवश्यक है। इसके लिए गांवों में बुनियादी सुविधाएं और शहरों में उन्नत जीवन के लिए ठोस एवं स्थायी जनसुविधाएं सुलभ करानी होंगी।
– शरद कुमार डडसेना, रायपुर (छत्तीसगढ़)
क्या हो दृष्टिकोण
प्राथमिकता के आधार पर अधिक से अधिक पीयूआरए (ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी क्षेत्रों जैसी सुविधाएं) जैसी योजनाएं संचालित होनी चाहिए।
2011 की जनगणना के अनुसार एक तिहाई जनसंख्या शहरों में। शहरी स्थानीय निकायों को शक्तिशाली बनाने की जरूरत। राजस्व के मामले इन निकायों के सुपुर्द किए जाएं। राज्य वित्त आयोग को केन्द्रीय वित्त आयोग जैसी शक्ति दी जाए।
फौरन करना होगा
ल्ल गांव और शहर में बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध करवानी होंगी।
ल्ल दोनों के चरित्र और पहचान को बनाए रखना होगा।
दीर्घकालिक लक्ष्य
ल्ल अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए बुनियादी ढांचे को मजबूत करना होगा। गांवों में परम्परागत और शहरों में ढांचागत बुनियादी सुविधाएं दी जाएं।
यह है वादा
ल्ल गांव की आत्मा को बचाए रखते हुए कृषि, ग्रामीण विकास और गरीबी रेखा से निकालना होगा। हम शहरीकरण को एक विकास के रूप में देखते हैं न कि समस्या की तरह।
ल्ल बुनियादी सुविधाएं इस तरह की बनाई जाएंगी जिससे सतत विकास की धारणा मजबूत हो, जिसमें चलते-चलते काम हो जाए, इसमें विशेष क्षेत्रों पर फोकस होगा।
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