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हाल ही में एक पुस्तक आई है, जिसका शीर्षक है-केजरीकथा। इसमें आम आदमी पार्टी (आआपा) के संयोजक अरविन्द केजरीवाल से जुड़े उन तथ्यों को उजागर किया गया है, जिनकी जानकारी उस आम आदमी को ही नहीं है जिसके नाम पर केजरीवाल राजनीति करते हैं। पांच अध्यायों में बंटी इस पुस्तक को पढ़ने के बाद एक आम आदमी को यह अहसास होने लगता है कि अरविन्द केजरीवाल ने अपने और अपने साथियों के बारे में आम आदमी से बहुत कुछ छिपाया है और बहुत कुछ झूठ भी बोला है। पुस्तक के पहले अध्याय के पहले लेख का शीर्षक है-'आयकर अधिकारी।' इसमें बताया गया है कि अरविन्द केजरीवाल 1995 में आयकर अधिकारी बने, पर इस पद के साथ उन्होंने कभी न्याय नहीं किया। कभी अध्ययन अवकाश, तो कभी अवैतनिक अवकाश लेकर वे अपने काम से बचते रहे। यह भी बताया गया है कि केजरीवाल कभी भी आयकर आयुक्त नहीं बने। इसके बावजूद वे अपने भाषणों में स्वयं को आयकर आयुक्त बताते हैं। सवाल उठता है कि ऐसा सफेद झूठ वे क्यों बोलते हैं?
पुस्तक में केजरीवाल पर यह भी आरोप लगाया गया है कि अध्ययन अवकाश के दौरान केजरीवाल अपने एन.जी.ओ. के लिए काम करते थे। उल्लेखनीय है कि केजरीवाल ने सरकारी नौकरी करते हुए ह्यसम्पूर्ण परिवर्तनह्ण और ह्यकबीरह्ण नामक दो गैर-सरकारी संस्थाओं का गठन किया था। वर्ष 2000 में सम्पूर्ण परिवर्तन और वर्ष 2005 में कबीर ने काम करना शुरू किया था। साल 2005 में ही कबीर को अमरीका के फोर्ड फाउण्डेशन ने 1 लाख, 72 हजार डॉलर की राशि दी थी।
वर्ष 2012 में दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्देश पर केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने कबीर को मिलने वाली विदेशी सहायता की जांच के लिए एक समिति बनाई थी। जांच में पाया गया है कि कबीर को 2005-06 और 2011-12 में 2 करोड़, 20 लाख रुपए केवल विदेश से अनुदान के रूप में मिले हैं। सबसे मजेदार बात तो यह है कि जांच समिति को कबीर के संचालकों ने बताया कि इन विदेशी पैसों में से 80 लाख रुपए प्रशासनिक मद पर खर्च किए गए। रपट में यह भी कहा गया है कि कबीर के संचालकों के पास न तो किसी कर्मचारी की नियुक्ति का कोई पत्र है और न ही वेतन भुगतान की कोई रसीद। कबीर को नई दिल्ली स्थित डच दूतावास से भी आर्थिक सहायता मिली है। यहां भी प्रश्न उठता है कि विवादास्पद डच दूतावास से अरविन्द केजरीवाल के रिश्ते कैसे हैं?
पुस्तक में अरविन्द केजरीवाल की तुलना सार्जेंट मासुमोटो से की गई है। सार्जेंट मासुमोटो दूसरे विश्व युद्ध के समय अमरीकी सेना के खुफिया विभाग में भर्ती हुए थे। मासुमोटो की मां जापानी थीं और पिता अमरीकी थे। पर आचार,व्यवहार और चेहरे-मोहरे से वे जापानी ही लगते थे। जापानी सेना ने मार्च, 1944 में म्यांमार के उत्तरी भाग में अमरीकी सेना को घेर लिया था। 38 घंटे के अन्दर ही मासुमोटो ने जापानी सेना की योजना को पूरी तरह समझ लिया और जापानी सेना में घुसपैठ कर उनकी योजना को ध्वस्त कर दिया। परिणाम यह हुआ कि जापान की सेना उस युद्ध में बुरी तरह हार गई। अन्य कई मोर्चों पर भी मासुमोटो ने अमरीकी सेना की बड़ी मदद की थी।
पुस्तक में अरविन्द केजरीवाल की कथित पंथनिरपेक्षता पर भी कई सवाल खड़े किए गए हैं। जब अन्ना आन्दोलन शुरू हुआ तो उनके मंच पर भारत माता का चित्र लगाया जाता था और मंच से ह्यभारत माता की जयह्ण के नारे भी लगाए जाते थे,पर केजरीवाल को बाद में ऐसा करते हुए नहीं देखा गया। बाद में अन्ना के मंच से भारत माता का चित्र भी गायब हो गया। यही अरविन्द केजरीवाल बाद में दिल्ली के बाटला हाउस काण्ड को फर्जी बताने लगे और बरेली दंगे के आरोपी तौकीर रजा खान से भी मिलने गए थे। आम आदमी पार्टी की नींव रखने वालों में से एक और उसको सबसे अधिक चन्दा देने वाले प्रशान्त भूषण के कश्मीर पर दिए गए देश विरोधी बयान का भी अरविन्द केजरीवाल ने कभी विरोध नहीं किया है। अरविन्द केजरीवाल ने आरोप लगाया है कि 65 सालों में 65 हजार दंगे मुसलमानों के खिलााफ हुए हैं। उनसे पूछा गया है कि क्या इन दंगों की सूची उनके पास है?
अरविन्द केजरीवाल के नक्सलियों से किस प्रकार के रिश्ते हैं, इस पर भी पुस्तक में एक अध्याय दिया गया है। अरविन्द केजरीवाल की पार्टी ने छत्तीसगढ़ के बस्तर लोकसभा क्षेत्र से सोनी सोरी को चुनाव मैदान में उतारा है। सोनी सोरी का नक्सलियों से गहरे रिश्ते हैं, यह पूरा देश जानता है। इसी मामले मंें वह काफी समय तक जेल में भी रही हैं। इन दिनों जमानत पर वह बाहर हैं। आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्य और जाने-माने वकील प्रशान्त भूषण नक्सलियों के मुकदमे लड़ते हैं। अरविन्द केजरीवाल उन डॉ. बिनायक सेन की रिहाई की भी मांग करते रहे हैं,जिन्हें नक्सलियों की मदद करने के आरोप में आजीवन कारावास की सजा हुई है।
पुस्तक में अरविन्द केजरीवाल को दिशाहीन मुख्यमंत्री बताया गया है। कहा गया है कि जब दिल्ली में उनकी सरकार बनी तो लोगों की उम्मीदें काफी बढ़ गई थीं, पर उन्होंने सार्थक काम करने के बजाए स्वयं को खबरों में बनाए रखने में अधिक रुचि दिखाई।
पुस्तक का एक अध्याय है अभिमत। इसमें शेखर गुप्ता, तवलीन सिंह, रामबहादुर राय, अरुण अग्रवाल और कैलाश गोदुका जैसे कुछ वरिष्ठ पत्रकारों और चिन्तकों के अन्यत्र छपे लेखों को जगह दी गई है। तवलीन सिंह ने अपने लेख का प्रारंभ इन शब्दों में किया है,ह्यअरविन्द केजरीवाल को समझना है तो उनके तमाशों पर मत जाएं। उनकी पुस्तक स्वराज पढ़ें। मैंने पिछले सप्ताह यह पुस्तक पढ़ी। — पढ़ने के बाद मुझे यकीन हो गया कि केजरीवाल साहब या तो आर्थिक या राजनीतिक मामलों में बिल्कुल नादान हैं या उन्होंने जानबूझकर अपने राजनीतिक जीवन की इमारत कई झूठों पर खड़ी की है।ह्ण
ल्ल अरुण कुमार सिंह
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