कानून की लताड़ और 'सुपारी पत्रकार'
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कानून की लताड़ और 'सुपारी पत्रकार'

by
Apr 12, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 12 Apr 2014 14:44:55

-संदीप देव-

एक बार फिर चुनाव से पहले कांग्रेस पार्टी के पक्ष में ह्यसुपारी पत्रकारह्ण सक्रिय हो चुके हैं! देश में जब-जब महत्वपूर्ण चुनाव हुए हैं, तब-तब भाजपा को सांप्रदायिक साबित करने के लिए ह्यसुपारी पत्रकारिताह्ण का खेल जनता ने अपनी नजरों से देखा है। इसकी शुरुआत वर्ष 2001 में तरुण तेजपाल के ह्यतहलकाह्ण से हुई थी और आज तक तरुण के ही पूर्व साथी अनिरुद्घ बहल और आशीष खेतान इसे अंजाम देते आ रहे हैं। उच्च न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक ने कई बार इनके स्टिंग को सबूत मानने से इनकार किया है, लेकिन इनका मकसद हमेशा कानूनी से अधिक राजनैतिक रहा है इसलिए हर चुनाव से पहले कांग्रेस के पक्ष में यह समूह सक्रिय हो जाता है।
7 अप्रैल को वर्तमान लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान से महज तीन दिन पहले, 6 दिसंबर 1992 के बाबरी ढांचा (इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेशानुसार विवादित ढांचा बाबरी मस्जिद नहीं, रामजन्मभूमि है) ढहने के विवाद को 22 साल बाद उछाल कर महंगाई और भ्रष्टाचार के कारण चुनावी दौड़ से बाहर दिख रही कांग्रेस पार्टी को फायदा पहुंचाना ही इस समूह का आखिरी मकसद था! इस समूह के अगुआ तरुण तेजपाल अपनी ही महिला सहकर्मी से यौन शोषण के आरोप में जेल की हवा खा रहे हैं, आशीष खेतान अरविंद केजरीवाल की ह्यआम आदमी पार्टीह्ण से नई दिल्ली संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवार हैं और अनिरुद्घ बहल अपने ह्यकोबरा पोस्टह्ण के जरिए भाजपा को सांप्रदायिक साबित करने और कांग्रेस को सत्ता में लाने के अभियान में जुटे हुए हैं। जानकारी के लिए बता दें कि तरुण तेजपाल के ह्यतहलका डॉट कॉमह्ण और ह्यतहलकाह्ण पत्रिका से निकले अनिरुद्घ बहल ने ह्यकोबरा पोस्टह्ण और आशीष खेतान ने ह्यगुलेल डॉट कॉमह्ण की स्थापना की थी और इन तीनों समूह के स्टिंग का निशाना हर बार भाजपा और नरेंद्र मोदी ही रहे हैं।
भाजपा द्वारा नरेंद्र मोदी को अपने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने के बाद दिसंबर 2013 से अप्रैल 2014 के बीच ह्यकोबरा पोस्टह्ण ने तीन स्टिंग किए हैं। ये सभी स्टिंग 10 साल से केंद्र में सत्तासीन कांग्रेस के खिलाफ नहीं, बल्कि 2004 से ही सत्ता से बाहर हुई भाजपा और नरेंद्र मोदी के खिलाफ हंै! इसमें से एक ह्यगुजरात जासूसीह्ण मामले को तो गुजरात उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय, दोनों ने खारिज कर दिया है।
बाबरी ढांचे वाला स्टिंग और कानूनी पहलू
4 अप्रैल को अनिरुद्घ बहल अपने कोबरा पोस्ट के जरिए 22 साल पुराने अयोध्या विवाद पर स्टिंग लेकर सामने आए थे। स्टिंग में दिखाया गया है कि भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आनुषांगिक संगठनों, जैसे बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद के नेताओं ने साजिश रचकर विवादित ढांचे को तोड़ा था। कोबरा पोस्ट ने जिन 23 लोगों का स्टिंग किया था, वे उन 68 लोगों में से थे जिन्हें लिब्राहन आयोग ने अपने 1029 पन्ने की रिपोर्ट में इसके लिए व्यक्तिगत रूप से जिम्मेवार ठहराया था। यदि लिब्राहन आयोग की पूरी रिपोर्ट को पढ़ लिया जाए तो पता चल जाएगा कि कोबरा पोस्ट के स्टिंग में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे लिब्राहन आयोग ने न कहा हो। जिन 23 लोगों का स्टिंग आपरेशन किया गया था, उनमें से 15 को इस पूरे मामले की जांच के लिए गठित लिब्राहन आयोग ने दोषी ठहराया था और 19 ऐसे हैं जिन्हें आरोपी बनाया गया था।
इस स्टिंग के सामने आने के बाद सीबीआई ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि इस स्टिंग का सबूत के तौर पर कोई महत्व नहीं है। सीबीआई ने मीडिया को बताया कि वह पूरे मामले की जांच के बाद सभी आरोपियों के खिलाफ पहले ही चार्जशीट दाखिल कर चुकी है और उनके खिलाफ अदालत में मामला भी चल रहा है। अब सवाल उठता है कि आज से कई वर्ष पूर्व जिस बात को लिब्राहन आयोग कह चुका है और जिन आरोपियों के खिलाफ अदालत में मामला चल रहा है, उन्हें स्टिंग में दर्शाकर लोकसभा चुनाव के ठीक तीन दिन पहले कोबरा पोस्ट आखिर किसे फायदा पहुंचाने की कोशिश कर रहा था?
हां, कोबरा पोस्ट के आशीष नामक जिस रिपोर्टर ने विवादित ढांचा गिराए जाने पर किताब लिखने के मकसद से जिस स्टिंग को अंजाम दिया है, उसके पूरे नाम का खुलासा पत्रकारों के पूछने पर भी अनिरुद्घ बहल ने नहीं किया। लेकिन आशंका जताई जा रही है कि वह के़ आशीष और कोई नहीं, बल्कि आम आदमी पार्टी का नई दिल्ली संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवार आशीष खेतान है, जिसने दिल्ली मंे आम आदमी पार्टी के लिए और उ़ प्र. सहित पूरे देश में कांग्रेस के पक्ष में मुस्लिम धु्रवीकरण के लिए यह खेल खेला है! वैसे इस के़ आशीष के स्टिंग की पूरी कार्यप्रणाली गुजरात विधानसभा चुनाव से ठीक पहले 2007 में ह्यऑपरेशन कलंकह्ण के नाम से स्टिंग करने वाले आशीष खेतान से हूबहू मिलती है। उसने भी गोधरा-गुजरात दंगे पर हिंदूवादी नजर से पुस्तक लिखने का नाटक करते हुए स्टिंग को अंजाम दिया था, जिसकी सच्चाई आपको आगे बताई जाएगी।
सुपारी पत्रकारिता की उपज जासूसी कांड
भाजपा ने नरेंद्र मोदी को 13 सितंबर 2013 को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था। इसके ठीक दो महीने बाद 15 नवंबर, 2013 को आशीष खेतान के 'गुलेल डॉट कॉम' व अनिरुद्घ बहल के ह्यकोबरा पोस्टह्ण नामक वेबसाइट ने सीबीआई के पास मौजूद एक संदिग्ध ऑडियो क्लिप जारी कर नरेंद्र मोदी पर एक युवती की जासूसी कराने का आरोप लगाया था। दावा किया गया था कि गुजरात के निलंबित आईपीएस अधिकारी और इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ मामले में आरोपी जी़ एल. सिंघल ने यह ऑडियो टेप सीबीआई को मुहैया कराये थे। इस क्लिप के अनुसार वर्ष 2009 में गुजरात के तत्कालीन गृहमंत्री अमित शाह ने किसी ह्यसाहबह्ण के कहने पर राज्य के शीर्ष पुलिस अधिकारियों को प्रदीप शर्मा और एक युवती की जासूसी करने का आदेश दिया था। हालांकि इसके जारी होते ही सीबीआई ने कहा कि वह इन ऑडियो रिकर्डिंग की सत्यता की पुष्टि नहीं करती है। इसके बावजूद इन दोनों ह्यसुपारी पत्रकारोंह्ण ने इसे जारी किया और राहुल गांधी समेत पूरी कांग्रेस पार्टी व यूपीए सरकार के मंत्रियों ने नरेंद्र मोदी पर हमला बोल दिया। इस टेप के सार्वजनिक होने के तुरंत बाद भ्रष्टाचार के आरोप में निलंबित आईएएस अधिकारी और कच्छ जिले के पूर्व कलेक्टर प्रदीप शर्मा सर्वोच्च न्यायालय में गए और यह आरोप लगाया कि 'जिस युवती की जासूसी वर्ष 2009 में गुजरात पुलिस की तरफ से की गई, उस लड़की का संबंध राज्य के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से है, जिससे वे परिचित थे। यही कारण है कि मोदी ने उन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर उन्हें निलंबित कर दिया।'
प्रदीप शर्मा की यही दलील वर्ष 2011 में अदालत ने खारिज कर दी थी! इस दलील को पुन: अपनी याचिका में शामिल कराने के लिए ह्यकोबरा पोस्टह्ण व ह्यगुलेलह्ण के जरिए ह्यमीडिया ट्रिक्सह्ण का इस्तेमाल किया गया। इस स्टिंग के सामने आने के चार दिन बाद ही प्रदीप शर्मा सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे और वहां कहा कि ह्यगुलेलह्ण व ह्यकोबरापोस्टह्ण पर चलाए गए ऑडियो टेपों को संज्ञान में लिया जाए! शर्मा के वकील व आम आदमी पार्टी के नेता प्रशांत भूषण ने दलील दी कि ऑडियो टेपों को लेकर दोनों वेबसाइटों ने अहम खुलासे किए हैं इसलिए इस मामले को सुना जाए। इस बार भी अदालत ने 18 जनवरी 2014 को दिए अपने निर्णय में प्रदीप शर्मा व उनके वकील प्रशांत भूषण को लताड़ लगाते हुए कहा कि अपनी याचिका से नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी हटाएं, अन्यथा उन्हें सुना भी नहीं जाएगा।
यही नहीं, 3 अप्रैल 2014 को गुजरात उच्च न्यायालय ने प्रदीप शर्मा की वह अर्जी ही खारिज कर दी, जिसमें उन्होंने मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ उस युवती की जासूसी कराने को लेकर प्राथमिकी दर्ज कराने की मांग की थी। तात्पर्य यह कि सर्वोच्च न्यायालय और गुजरात उच्च न्यायालय ने ह्यकोबरा पोस्टह्य और ह्णगुलेलह्ण की सुपारी पत्रकारिता और उनके द्वारा रची गई साजिश को पूरी तरह से निराधार ठहरा दिया।
केवल नरेंद्र मोदी पर हमला
जासूसी कांड के तुरंत बाद 29 नवंबर 2013 को अनिरुद्घ बहल ने अपने ह्यकोबरा पोस्टह्ण के जरिए ह्यऑपरेशन ब्लू वायरसह्ण को अंजाम दिया। इस स्टिंग में यह दर्शाया गया था कि आईटी कंपनियां नेताओं की ऑनलाइन लोकप्रियता बढ़ाने के लिए सोशल मीडिया का गलत इस्तेमाल कर रही हैं और उस नेता के दुश्मन नेताओं की छवि खराब कर रही हैं। यह भी दावा किया गया कि सोशल मीडिया सांप्रदायिक तनाव फैलाने से भी बाज नहीं आ रहा है। अनिरुद्घ बहल ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में नेता के तौर पर केवल नरेंद्र मोदी और पार्टी के तौर पर केवल भाजपा का नाम लिया था और बताया था कि दर्जनों कंपनियां केवल नरेंद्र मोदी के लिए काम कर रही हैं। जब कुछ पत्रकारों ने यह सवाल किया कि क्या कारण है कि आपके स्टिंग में केवल और केवल नरेंद्र मोदी का नाम है तो वह कोई भी संतोषप्रद उत्तर नहीं दे सके थे। इस स्टिंग में जिन कंपनियों को दर्शाया गया था उनमें से एक भी बड़ी कंपनी नहीं थी, बल्कि एक कोठरी, कमरे में चलने वाली दो-तीन व्यक्तियों वाली छोटी-छोटी कंपनियों का स्टिंग कर नरेंद्र मोदी की छवि खराब करने की कोशिश की गई थी। अपनी पुरानी सभी स्टिंग का हश्र देखते हुए अनिरुद्घ इसे लेकर अभी तक अदालत नहीं पहुंचे हैं। शायद डर है कि कहीं यह स्टिंग भी फर्जी साबित न हो जाए!
ह्यऑपरेशन कलंकह्ण भी फर्जी साबित
गुजरात विधानसभा चुनाव से पूर्व वर्ष 2007 में ह्यतहलकाह्ण पत्रिका व ह्यआज तकह्ण न्यूज चैनल के लिए आशीष खेतान ने ह्यऑपरेशन कलंकह्ण को अंजाम दिया था। इस पूरे स्टिंग का मकसद नरेंद्र मोदी को 'नरसंहारी' साबित करना था। गुजरात उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय ने बाद में इसे प्रमाण मानने से इनकार करते हुए इसे पूरी तरह से खारिज कर दिया। गुजरात दंगों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) ने भी इस स्टिंग की पूरी विषयवस्तु को जांच के बाद फर्जी ठहरा दिया।
इस स्टिंग के दूसरे सबसे बड़े झूठ का पर्दाफाश सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित एसआईटी ने ही कर दिया। इस स्टिंग में सुरेश रिचर्ड ने जिस 'गर्भवती महिला का पेट चीर कर भ्रूण निकालने और उसे चाकू से गोदकर मारने' का जिक्र किया है, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित एसआईटी रिपोर्ट के अनुसार, वह घटना कभी हुई ही नहीं। कौसर बानो का पाोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर जे़ एस़ कनोरिया के अदालत में दिए गए बयान के मुताबिक, कौसर बानो की मौत किसी धारदार हथियार से नहीं, बल्कि आग में जलकर हुई थी। मरते वक्त कौसरबानो का गर्भ और उसके अंदर का भ्रूण दोनों सुरक्षित थे।
इस स्टिंग का एक तीसरा झूठ भी शीघ्र ही सामने आ गया। इस स्टिंग में विश्व हिंदू परिषद के एक कार्यकर्ता रमेश दवे को तहलका रिपोर्टर आशीष खेतान से यह कहते हुए दर्शाया गया था कि 'डिविजनल सुपरिटेंडेंट ऑफ गुजरात पुलिस एस़ के. गढ़वी ने उसके कहने पर दरियापुर इलाके में पांच मुसलमानों को जान से मारा था।' जबकि सरकारी दस्तावेज दर्शाते हैं कि एस़ के़ गढ़वी की दरियापुर में नियुक्ति गुजरात दंगे के एक महीने बाद हुई थी। दंगे के वक्त वह वहां नियुक्त ही नहीं थे और जब उनकी नियुक्ति हुई तो दंगा पूरी तरह से शांत हो चुका था।
ह्यतहलकाह्ण, ह्यआज तकह्ण और उसके लिए ह्यऑपरेशन कलंकह्ण जैसे स्टिंग को अंजाम देने वाले आशीष खेतान को कानून ने फर्जी ठहरा दिया और उनका राजनैतिक मकसद भी पूरा नहीं हुआ। इसके बाद हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में एक बार फिर से नरेंद्र मोदी पूर्ण बहुमत से आने में सफल रहे थे।
बेस्ट बेकरी 'स्टिंग' पर फिरा पानी
1 मार्च, 2002 को वडोदरा में बेस्ट बेकरी पर हमला कर दंगाइयों ने 14 लोगों को मार डाला था, जिसमें उसके मालिक शेख के परिवार समेत उसमें काम करने वाले हिंदू भी शामिल थे। इस केस की अहम गवाह जाहिरा शेख थी। जाहिरा शेख पल-पल अपना बयान बदल रही थी। इस बदलते बयान के बीच जाहिरा शेख ने वर्ष 2004 में वडोदार के कलेक्टर के समक्ष यह बयान दिया कि तीस्ता सीतलवाड़ ने अदालत में उससे झूठी गवाही दिलाई थी। यही नहीं, उसे धमकाने के लिए तीस्ता ने अपने साथी रईस खान पठान के साथ मिलकर उसे मुंबई में बंधक बनाकर रखा था।
जाहिरा शेख के इस बयान की वजह से तीस्ता बुरी तरह से फंस रही थी। उस पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही थी। तीस्ता नरेंद्र मोदी को घेरने वाले गुट, जैसे-कांग्रेस पार्टी, मीडिया, एनजीओ, मानवाधिकारवादियों व बुद्घिजीवियों का संयुक्त चेहरा थी। यदि वह जेल जाती तो मोदी को घेरने की इन सभी की योजनाएं चौपट हो जातीं, इसलिए तीस्ता को संकट से बाहर निकालने के लिए तहलका व तरुण तेजपाल को ह्यसुपारीह्ण दी गई! तरुण तेजपाल ने ह्यतहलकाह्ण में धमाका किया कि जाहिरा शेख को बयान बदलने के लिए भाजपा के तत्कालीन विधायक मधु श्रीवास्तव ने 18 लाख रुपए दिए थे। तरुण की टीम ने इसे साबित करने के लिए एक स्टिंग ऑपरेशन किया था, जिसे बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने सबूत नहीं माना। उस स्टिंग की सीडी को सबूत के तौर पर पेश किया गया। अदालत ने इस टेप की जांच एक समिति से कराने का निर्णय लिया। समिति ने कहा कि इस वीडियो से यह कहीं से साबित नहीं होता कि वास्तव में जाहिरा शेख को 18 लाख रुपए दिए गए हैं। लिहाजा अदालत ने इसे सबूत मानने से ही इनकार कर दिया। तहलका की ह्यसुपारी पत्रकारिताह्ण बेनकाब हो गई थी।

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