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राधा कृष्ण भागियाचैत्र पक्ष की पूर्णिमा को हनुमान जयंती का आयोजन किया जाता है। हनुमान जयंती शुक्ल पक्ष की रामनवमी के ठीक एक सप्ताह बाद मनाई जाती है। इस दिन केसरी-अंजनी के पुत्र हनुमान जी का प्रकटोत्सव पूरे भारत मंे धूमधाम के साथ मनाया जाता है। विशेषकर वाराणसी के संकटमोचन मंदिर, राजस्थान के मेहंदीपुर और सालासर बालाजी में देश के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु पहुंचकर भगवान हनुमान की पूजा-अर्चना करते हैं। इंडोनेशिया में भी भगवान राम और हनुमान जी की विशेष पूजा की जाती है। हनुमान जयंती के अवसर पर विभिन्न हनुमान मंदिरों में हनुमान चालीसा और संुदर कांड का पाठ किया जाता है। इस दिन बूंदी का प्रसाद बांटने का विशेष महत्व होता है। कई श्रद्धालु अपनी श्रद्धानुसार हनुमान चालीसा और सुंदरकांड की पुस्तकें भी सप्रेम भेंट करते हैं।
हनुमान जी को बजरंग बली, संकटमोचन, केसरीनंदन, मारुति और पवन पुत्र आदि नामों से भी जाना जाता है। वाल्मीकि रामायण में उल्लेख मिलता है कि अंजनी और केसरी ने भगवान शिव से प्रार्थना कर उन्हंे पुत्र के रूप मंे मांगा था जिसके बाद भगवान शिव ने वायु देव को अपनी ऊर्जा अंजनी में समाहित करने को कहा था। फिर उन्होंने अंजनी-केसरी के पुत्र यानी हनुमान जी के रूप में जन्म लिया था। बाल अवस्था में ही हनुमान जी ने सूर्य को आम समझकर अपने मुंह में ले लिया था, तभी देवराज इन्द्र ने अपने वज्र से हनुमान जी के मुख पर प्रहार किया था जिससे वह अचेत होकर आकाश से पृथ्वी पर जा गिरे थे।
इस बात से क्रोधित होकर वायु देव ने पूरी सृष्टि में वायु के प्रसार को रोक दिया था पूरे संसार में मनुष्य, जीव, जन्तु और वृक्ष मरणासन्न अवस्था में पहुंच गए थे। इसके बाद जब सब देवताओं ने अनुरोध किया तब जाकर वायु देव ने अपनी हठ छोड़ी थी, उस समय ब्रह्मा जी ने उन्हें आशीर्वाद दिया था कि हनुमान पर कोई भी शस्त्र असर नहीं करेगा और साथ ही सभी देवताओं ने हनुमान जी को अपनी-अपनी शक्तियां प्रदान की थीं। रावण द्वारा सीता जी के हरण के बाद उन्हें वन में खोजते राम-लक्ष्मण प्रथम बार हनुमान जी से मिले थे। इसके बाद उन्होंने सुग्रीव से उनकी भेंट करवाई, जिसके बाद भगवान राम ने बाली का वध कर सुग्रीव का राज्याभिषेक कराया था। इसके बाद से समस्त वानर सेना सीता जी की खोज में जुट गई थी। तभी हनुमान जी ने समुद्र पार कर लंका जाकर सीता जी का पता लगाया था। हनुमान जी को रामायण का केन्द्र, बिंदु भी कहा जाता है क्योंकि उनके प्राण प्रभु राम में और प्रभु राम में हनुमान जी के प्राण वास करते हैं।
यमुना बाजार का हनुमान मंदिर
दिल्ली के कश्मीरी गेट स्थित यमुना बाजार अथवा प्राचीन मरघट वाले हनुमान मंदिर में जयंती धूमधाम के साथ मनाई जाती है। इस दिन प्रात: चार बजे से ही दिल्ली और बाहरी राज्यों से श्रद्धालुओं की भीड़ मंदिर में जुटनी शुरू हो जाती है। देर रात तक मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के दर्शनों हेतु खुले रहते हैं। मंदिर के चारों ओर पहले शमशान था जिस कारण से इसे मरघट वाला मंदिर कहा जाता है।
मंदिर के बारे में बताया जाता है कि महाभारत काल मंे कौरव-पांडवों का युद्ध समाप्त होने के बाद हनुमान जी ने इसी स्थल पर आकर विश्राम किया था, जहां आज मंदिर स्थापित है। मान्यता है कि पांडवांे के वन में घूमने के दौरान हनुमान जी ने उन्हें दर्शन दिए थे क्योंकि भीम भी वायु पुत्र थे और स्वयं हनुमान जी भी वायु पु़त्र थे। इस दौरान उन्होंने भीम की शक्ति परीक्षा के लिए अपनी पूंछ भी उनसे उठाने को कहा था, लेकिन भीम उसे हिला तक नहीं सके थे, तभी उन्हें हनुमान जी की महिमा का ज्ञान हुआ था। उसी समय हनुमान जी ने महाभारत के धर्म युद्ध मंे पांडवों को साथ देकर उनकी रक्षा करने का वचन दिया था। वह स्थान आज राजस्थान के अलवर जिले में सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान के नाम से बताया है जिसमें पांडुपोल नाम से हनुमान जी का एक प्रसिद्ध मंदिर भी है। हनुमान जी अर्जुन के रथ की पताका पर बहुत छोटा रूप लेकर विराजमान हुए थे। युद्ध समाप्ति के बाद भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को पहले रथ से उतरने के लिए कहा था। उसके बाद भगवान कृष्ण भी रथ नीचे उतर आए थे और उन्हांेने हनुमान जी का धन्यवाद किया था। उसके बाद तुरंत बाद वह रथ अग्नि में समाहित हो गया था। उस समय श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया था कि युद्ध में उनके और हनुमान जी के उपस्थित रहने के कारण ही रथ की पताका अंत तक स्थापित रही।
विशेष बात यह है कि इस मंदिर में स्थापित हनुमान जी की मूर्ति जमीन के स्तर से काफी नीचे है, लेकिन दिल्ली में चाहे कितनी ही बार बाढ़ आई हो, लेकिन जलस्तर कभी हनुमान जी की प्रतिमा के चरणों से ऊपर नहीं गया। यहां प्रत्येक मंगलवार व शनिवार को श्रद्धालुओं की खूब भीड़ जुटती है। हनुमान जयंती के दिन एक शोभा यात्रा मंदिर से लेकर पुरानी दिल्ली तक निकाली जाती है। शोभा यात्रा मंदिर से गौरी शंकर मंदिर और चांदनी चौक होती हुई वापस मंदिर आकर पूर्ण होती है। इस यात्रा के दौरान हजारों श्रद्धालु यात्रा में शामिल होते हैं और राम भक्त हनुमान जी के जयकारे गूंजते हैं। -इन्द्रधनुष डेस्क -
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