|
राजेन्द्र कुमार मिश्रा
क्या भारतीय वायुसेना का सी130जे सुपर हरक्यूलिस विमान, जो कुछ दिन पहले ग्वालियर के निकट दुर्घटनाग्रस्त हुआ और जिसमें पांच वायुसेना अधिकारियों की मृत्यु हुई वो उसमें लगे घटिया स्तर के चीनी कलपुर्जों के कारण नष्ट हुआ। सरकारी के अनुसार दुर्घटना का कारण उसमें लगे चीनी कलपुर्जे नहीं थे और गहरी छानबीन की जा रही है। लेकिन सरकारी खंडन तो औपचारिक भी हो सकते हैं, सरकार द्वारा खरीदे गए हथियारों के लिए जिम्मेदार भ्रष्ट राजनीतिज्ञों और ऊंचे अधिकारियों की रक्षा करने के लिए, बल्कि इस तरह झूठ और बेइमानी को इन भ्रष्टाचारियों के अधिकार के रूप में मान्यता मिल चुकी है।
भारत-अमरीका से 6 और विमान खरीदने वाला है, जिनमें से प्रत्येक का मूल्य एक हजार करोड़ रुपये है। इस बारे में सबसे आश्चर्यजनक तथ्य ये है कि इस विमान की संदिग्ध क्षमता और विश्वसनीयता की जांच स्वयं अमरीका तथा कनाडा में की जा चुकी है। यही नहीं बल्कि अमरीकी सीनेट की उच्चस्तरीय जांच पड़ताल समिति वर्ष 2011-12 में ही इस निष्कर्ष पर पहंुची कि अमरीका के फौजी साजोसामान बनाने और बेचने वाली सबसे बड़ी कंपनियां, जिन्हें लॉकहिड मार्टिन जो भारत में दुर्घटनाग्रस्त हुए सी130जे विमान बेचने में शामिल है, सस्ते चीनी कलपुर्जों का इस्तेमाल करती है। दरअसल अब ये बात गुप्त नहीं है कि महंगे हवाई जहाज तथा अन्य फौजी उपकरण बनाने वाली अमरीकी कंपनियां आमतौर पर बजाए अमरीका में बने हुए ज्यादा कीमती कलपुर्जों के सस्ते चीनी कलपुर्जों का इस्तेमाल करने लगी हैं, सवाल यहां इस बात का है कि फिर इस अमरीकी कंपनी से ये विमान खरीदने का सौदा क्यों हुआ?
ऐसी दुर्घटनाआंे का एक कारण ये भी है कि चीन में बने हवाई जहाज जो बड़ी संख्या में (300 से ज्यादा) पाकिस्तान को भी सप्लाई किए गए हैं शायद ही कभी दुर्घटनाग्रस्त होते हों! क्योंकि चीनी विमान में चीनी पुर्जे 100 फीसदी उपयुक्त होते हैं, जबकि दूसरे देशांे में बने हुए विमान में चीनी पुर्जे उतने सही नहीं होते। फिर भी सस्ते होने के कारण कंपनियां उनका इस्तेमाल करती हैं।
भारत जब विदेशों से हजारों करोड़ के महंगे हथियार खरीदता है तो रक्षा मंत्रालय के 18 स्तरों पर तकनीकी विशेषायोग द्वारा छानबीन के बार मंजूरी मिलती है। इस विलंब के कारण यदि किसी हथियार या अन्य सामान की पूर्ति में दो-तीन साल का समय लगना चाहिए तो वो पांच-सात साल में प्राप्त होता है। इस बीच हथियार की कीमत बढ़ जाती है। वो थोड़ा पुराने किस्म का हो जाता है तथा राजनीतिज्ञों और अधिकारियों का चोरी का कमीशन भी बढ़ जाता है। यानी यदि आप चोरी रोकने के लिए सख्त प्रक्रिया अपनाते हैं तो चोरी की रकम और ज्यादा हो जाती है। वर्ष 1999 में रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीज ने एजेंटों को हथियारों की खरीद से निकाल बाहर करने के लिए एक लंबी जांच पड़ताल शुरू की थी। इसके अंतर्गत वर्ष 1985 से लेकर अब तक की सभी बड़ी खरीदों की जांच की गई और अनुशंसाएं प्रस्तुत की गईं। इस विस्तृत जांच-पड़ताल का काम सेंट्रल विजिलेंस कमीशन, सीबीआई तथा कंट्रोलर और ऑडिट जनरल को सौंपा गया। इस जांच ने एजेंटों को खत्म करने के बजाए उन्हंे मान्यता देने और रजिस्टर करने की सिफारिश की क्योंकि उन्हें खत्म करना मुमकिन नहीं था, लेकिन उन्हें पंजीकृत करने के लिए इतनी कड़ी शर्तें रखी गईं कि उन्होंने पंजीकृत होने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया और पुराने तौर तरीकों को ही अपनाने में अपनी खैर समझी। सरकार को भी इस मजबूरी से समझौता करना पड़ा। असलियत ये है कि लड़ाई का अत्यंत जरूरी सामान, चाहे वो लड़ाकू विमान हो या टैंक या तोप, जल्दी प्राप्त करने से अधिक महत्वपूर्ण कुछ नहीं है। तथा विलंब से ज्यादा भ्रष्टाचार के लिए कोई चीज जिम्मेदार नहीं है। जब सिर्फ रक्षा मंत्रालय ही नहीं, बल्कि हर मंत्रालय में खाना-पीना सामान्य और परोक्ष रूप से स्वीकृत हो गया है तो दुश्मनों से देश की सुरक्षा के लिए भारतीय सेना को श्रेष्ठ और आधुनिक हथियारों से अविलंब लैस करने से अधिक महत्वपूर्ण कुछ नहीं है। पिछले दस वर्षों में हथियारों के अंतरराष्ट्रीय विक्रेताआंे में से लगभग सभी ने भारत में अपने एजेंट नियुक्त कर दिए हैं। इनमें से अनेक भारतीय सेना के सेवानिवृत्त फौजी अफसर हैं।
प्रश्न उठता है कि भारत आधुनिक फौजी व हथियार बनाने में अमरीका, रूस और चीन से ही नहीं, बल्कि फ्रांस, इटली, स्वीडन जैसे छोटे देशों से बहुत पीछे क्यों है, जबकि भारतीय वैज्ञानिक किसी से पीछे नहीं हैं। भारतीय वैज्ञानिकों की श्रेष्ठता का प्रमाण, मिसाइल, सेटेलाइट के क्षेत्रों में हमारी विश्वविख्यात क्षमता है, इसके दो कारण हैं। पूंजीवादी देशों में हथियारों का निर्माण निजी क्षेत्र में ही जो गुणवत्ता और मात्रा दोनों में अपने लाभ के लिए तेजी से प्रगति करता है और इससे देश को भी फायदा होता है। इसके विपरीत रूस और चीन में प्रजातंत्र नहीं है और विरोधी दल नहीं हैं जो सरकार की सत्य-असत्य आलोचना करके प्रगति में रोड़ा अटकाते हैं। भारत में प्रजातंत्र है, इसीलिए यहां अमरीका, स्वीडन, फ्रांस, इटली आदि की तरह रक्षा उत्पादों को अधिक से अधिक निजी क्षेत्र में सुविधा मिलनी चाहिए। इससे देश की विदेशी मुद्रा में वृद्धि होगी और रक्षा उत्पादन में भारत को विदेशों का मुंह नहीं देखना पड़ेगा। यदि मोदी सरकार आती है तो उसे इस नीति को ऊंची प्राथमिकता प्रदान करनी चाहिए। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार हैं)
सुपर हरक्यूलिस की विशेषताएं
ल्लकम ऊंचाई पर उड़ने की विशेषता के कारण युद्ध के समय दुश्मन की रडार की पकड़ से बाहर रह सकता है
खराब मौसम में उड़ान भरने के साथ लैंडिंग में सक्षम
लैंड करने के लिए ज्यादा रनवे की आवश्यकता नहीं
विमान 20 टन तक सामरिक सामान उठाने में सक्षम
80 सैनिकों को हथियार सहित लेकर उड़ान भर सकता है
ऊंचे इलाके में लैंड कराने में विश्व कीर्तिमान स्थापित
नाइट लैंडिंग और पैराड्रॅाप का अभ्यास किया था
टिप्पणियाँ