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वाह री हुडडा सरकार!
उच्च न्यायालय से पीटीआई भर्ती में फटकार के बाद, वन अधिकारी संजीव चतुर्वेदी के खिलाफ हरियाणा सरकार के आरोपपत्र को राष्ट्रपति ने निरस्त किया, इसके बावजूद सरकार राबर्ट वाड्रा-डीएलएफ सौदे में फर्जीवाड़ा उजागर करने वाले अधिकारी अशोक खेमका के खिलाफ सरकार आरोपपत्र दायर करने की फिराक में है।
सरकार जिस आरोपपत्र को अपना हथियार बनाकर ईमानदारी से कर्तव्य निभाने वाले और भ्रष्टाचार को वफादारी से उजागर करने वाले अधिकारियों को प्रताड़ना के रूप में इस्तेमाल कर रही है, वे ही उसके लिए किरकरी बनकर सामने आ रहे हैं। वन विभाग के जिस अधिकारी ने वन विभाग में करोड़ों रुपये का घोटाला सामने लाने की हिम्मत जुटाई, सरकार ने उसे ही दण्डित करने की कोशिश की और उसे उसी मामले में फसाकर आरोपपत्र दाखिल कर दिया जिसको उसने उजागर किया था। लेकिन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने आरोपपत्र को निरस्त कर दिया। यह झटका हरियाणा की हुड्डा सरकार की कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह लगाता है। राबर्ट वाड्रा-डी एल एफ सौदे का 'म्यूटेशन' गलत करार देने वाले अधिकारी अशोक खेमका के खिलाफ भी आरोपपत्र लाने की जुगत चल रही है।
क्या है वन अधिकारी संजीव चतुर्वेदी मामला
वर्ष 2009 में झज्जर में लगभग 5 करोड़ रुपए का वन घोटाला सामना आया था, जिसमें कागजों में मजदूरी पर 5 करोड़ खर्च किए जाने की बात कही गई थी और जिले को हरा-भरा करने का आश्वासन था। लेकिन जब जांच हुई तो न जिले में हरियाली देखने को मिली और न ही मजदूरों को उनका मेहनताना मिला था। यह एक भ्रष्टाचार के रूप में उजागर हो रहा था। इसकी भनक लगते ही अधिकारी चतुर्वेदी ने अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की ओर से पौधारोपण के लिए आए अनुदान में गोलमाल का मामला उजागर किया और उसमें संलिप्त 5 रेंज अफसरों सहित 40 कर्मचारियों को निलंबित कर दिया था। यही बात सरकार को रास नहीं आ रही थी, क्यांेकि झज्जर रोहतक संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है और यह मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का क्षेत्र होने के कारण उनके नजदीकी लोगों का दबाव रहता है। यही बात अधिकारी पर भारी पड़ी और सरकार ने उसे प्रताडि़त करने का काम शुरू किया और तबादले के साथ आरोपपत्र भी दाखिल कर दिया। सरकार ने आरोपपत्र में कहा था कि हरियाणा में नियुक्ति के दौरान चतुर्वेदी को पौधा रोपण की जो जिम्मेदारी दी गई थी, उसमें वह विफल रहे और जारी किए गए अनुदान का इस्तेमाल भी नहीं कर पाए। हरियाणा सरकार ने 21 अगस्त को संजीव चतुर्वेदी पर आरोपपत्र जारी किया था। जिसपर चतुर्वेदी ने 8 अक्तूबर 2012 को अखिल भारतीय सेवाएं (अनुशासन एवं अपील) रूल्स, 1969 के नियम 25 के तहत राष्ट्रपति के समक्ष गुहार लगाई और 10 नवम्बर, 31 दिसंबर 2012, 28 अप्रैल, 28 मई, 7 जून और 28 जून 2013 को आरोपपत्र के खिलाफ अपना पक्ष रक्षा। सरकार ने भी 16 जनवरी 2013 को इस मामले में अपना पक्ष रखा और 18 मार्च 2013 को आईएफएस आर.के. सिंह को जांच सौंपी।
राष्ट्रपति का आदेश, आरोपपत्र निरस्त
राष्ट्रपति के आदेश को जारी करते हुए कहा गया कि संजीव चतुर्वेदी पर हरियाणा सरकार के आरोपपत्र का औचित्य नजर नहीं आया है, जिससे उनके खिलाफ तैयार किया गया आरोपपत्र निरस्त करने योग्य समझा जाता है। आदेश की जानकारी केंद्र सरकार को भी दी गई और इसे पर्यावरण मंत्रालय को भी भेजा गया। आदेश का अनुपालन करते हुए पर्यावरण मंत्रालय ने हरियाणा के मुख्य सचिव, अतिरिक्त मुख्य सचिव व वन एवं पर्यावरण विभाग के महानिरीक्षक को आदेश जारी किया है। इसके साथ ही संजीव चतुर्वेदी के खिलाफ जांच भी बंद करने का आदेश दिया गया है। डा. गणेश दत्त वत्स
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