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भले ही संविधान ने भारत के सभी नागरिकों को समान माना हो पर ऐसा लगता है कि दिल्ली की कांग्रेस सरकार के पास हिन्दुओं के लिए अलग कानून है और मुसलमानों के लिए अलग। इसके अनेक उदाहरण हैं। सबसे पहले एक हालिया घटनाक्रम पर नजर डालते हैं। 25 मई,2013 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक याचिका (7057/2005) पर सुनवाई करने के बाद आदेश दिया है कि दिल्ली के 40 अवैध धार्मिक स्थलों को गिराएं और 22 अगस्त, 2013 तक इसकी रपट न्यायालय को दें। न्यायालय ने यह आदेश धार्मिक समिति (रिलीजियस कमिटी) की अनुशंसा पर दिया है। मालूम हो कि यह धार्मिक समिति दिल्ली सरकार के गृह विभाग के अधीन काम करती है। न्यायालय ने अपने निर्णय में लिखा है कि धार्मिक समिति ने 74 में से 40 स्थलों को गिराने की अनुशंसा की है। शेष 34 स्थलों के बारे में इस समिति ने कहा है कि इनको गिराने का विरोध हो सकता है। इसलिए इन स्थलों के आसपास के लोगों को समझाकर और उनसे बातचीत करके इन्हें गिराया जा सकता है। इन 40 में से 5 मस्जिदें, 1 मजार, 2 चर्च, 2 गुरुद्वारे, और शेष हिन्दू और जैन समाज के मन्दिर हैं। जिन स्थलों को न गिराने की सूची में रखा गया है उनमें 17 मस्जिदें, 5 गुरुद्वारे, 1 चर्च और बाकी हिन्दू धार्मिक स्थल हैं। न तोड़ने वाली सूची में ज्यादातर मस्जिद हैं। इस सूची का विश्लेषण करने से साफ पता चलता है कि दिल्ली सरकार हिन्दुओं के कथित अवैध धार्मिक स्थलों को तोड़ने के लिए तो तैयार है पर वह मुसलमानों के अवैध मजहबी स्थलों को गिराने के लिए तैयार नहीं है। इससे हिन्दुओं में गुस्सा है।
इस पूरे मामले पर अधिवक्ता एस.डी. विन्दलेश कहते हैं, 'वर्ष 2005 में अखबारों में एक रपट आई थी,जिसमें कहा गया था कि दिल्ली में करीब 43,000 एकड़ सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा है। इस रपट पर उच्च न्यायालय ने स्वयं संज्ञान लेकर केन्द्र सरकार, दिल्ली सरकार और दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) को नोटिस जारी किया था। तभी से इस मामले की निगरानी न्यायालय कर रहा है। इस कारण सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा करने वालों में खलबली मची हुई है। इस बीच इस मामले को दबाने के ख्याल से जनवरी 2013 में एक वकील ने न्यायालय से कहा कि दिल्ली में सरकारी जमीन पर बड़ी संख्या में धार्मिक स्थल भी बने हैं। इसके बाद मुख्य मुद्दा गौण हो गया और धार्मिक स्थल का मामला आगे हो गया। उच्च न्यायालय ने डीडीए से कहा कि जहां भी सरकारी जमीन पर अवैध धार्मिक स्थल बने हैं उन्हें हटाओ और जमीन अपने कब्जे में लो। कहा जाता है कि डीडीए ने कथित अवैध धार्मिक स्थलों की सूची पुलिस को थमा दी। फिर न्यायालय ने यह मामला दिल्ली सरकार के शहरी विकास विभाग को सौंपा। उसने न्यायालय से कहा कि यह दिल्ली के गृह विभाग का मामला है। इसके बाद गृह विभाग ने सभी थाना प्रभारियों से अवैध धार्मिक स्थलों की जानकारी मांगी। पुलिस ने जल्दबाजी में एक रपट तैयार की और उस रपट पर धार्मिक समिति ने अपनी मुहर लगा दी। इसी रपट के आधार पर न्यायालय ने इन धार्मिक स्थलों को गिराने का आदेश दिया। इस मामले में न्यायालय को सत्य नहीं बताया गया है।'
हिन्दू धर्मस्थल सुरक्षा समिति के अध्यक्ष श्री बृज मोहन सेठी कहते हैं, 'पुलिस ने सरकारी दबाव में आधी-अधूरी रपट तैयार की है। मन्दिर संचालकों को बताया तक नहीं गया और न ही न्यायालय ने उनकी राय सुनी। सीधे मन्दिर ढहाने का आदेश दिया गया है। यह सर्वोच्च न्यायालय के उस निर्देश की अवहेलना है जिसमें कहा गया है कि किसी भी अवैध धार्मिक स्थल को सम्बंधित पक्षों की राय जानने के बाद ही तोड़ा जाय। सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा है कि 7 दिसम्बर 2009 से पहले बने किसी भी धार्मिक स्थल को गिराया न जाय। किन्तु दिल्ली में ऐसा कुछ भी नहीं किया गया।'
दिल्ली के अनेक मन्दिरों के संचालकों ने पाञ्चजन्य से बातचीत करते हुए कहा कि दिल्ली सरकार के इशारे पर यह रपट तैयार की गई है। आगामी विधानसभा चुनाव में मुस्लिमों का वोट लेने के लिए शीला सरकार ने अवैध निर्माण के नाम पर हिन्दू मन्दिरों को गिराने की साजिश रची है। जिन मन्दिरों को अवैध बताया जा रहा है वे बहुत पुराने हैं। इन लोगों ने यह भी सवाल उठाया कि दिल्ली सरकार को केवल अवैध मन्दिर ही क्यों दिखते हैं, वे अवैध मस्जिदें और मजारें क्यों नहीं दिखती हैं जो बीच चौराहे या सड़कों के किनारे तेजी से सरकारी जगह घेर कर अपना विस्तार कर रही हैं। दिल्ली के दिल कहे जाने वाले कनाट प्लेस में कई अवैध मस्जिदें और मजारें हैं। संसद के आसपास भी तेजी से मजार और मस्जिदें बन रही हैं। संसद के बिल्कुल पास में रेड क्रॉस सोसायटी और निर्वाचन आयोग के बाहर दो मजारें आये दिन बड़ी होती जा रही हैं। पूरी दिल्ली में अवैध मजारों और मस्जिदों की एक तरह से बाढ़ आई हुई है पर उनकी ओर से दिल्ली सरकार ने अपनी आंखें बंद कर रखी हैं।
दिल्ली सरकार अवैध निर्माण के नाम पर मन्दिरों को तोड़ने के लिए तैयार है। पर यही वह सरकार है जिसने जंगपुरा एक्सटेंशन में न्यायालय के आदेश पर गिराई गई एक अवैध मस्जिद के लिए आंसू टपकाए थे और सूत्रों के अनुसार उस मस्जिद के पुनर्निर्माण के लिए दिल्ली वक्फ बोर्ड को 50 लाख रु. दिए हैं। जहां पहले मस्जिद थी उसी के पास में जमीन भी दी गई है। स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया है इसलिए यह मस्जिद अभी बन नहीं पाई है। उल्लेखनीय है कि जंगपुरा में मुस्लिम आबादी न के बराबर है, फिर भी दिल्ली सरकार वहां मस्जिद के लिये पैसा दे चुकी है। दिल्ली सरकार की शह पर वहां अस्थाई ढांचा खड़ा हो गया है और नियमित नमाज भी पढ़ी जा रही है।
यही दिल्ली सरकार है जिसकी शह पर पिछले वर्ष लालकिले के सामने सुभाष पार्क में 24 घंटे के अन्दर एक मस्जिद खड़ी हो गई थी। उच्च न्यायालय ने इस मस्जिद को गिराने का आदेश दिया था। किन्तु दिल्ली सरकार की 'कृपा' से यह मस्जिद गिराई नहीं गई और अब यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में पड़ा है।
गत 20 जून को एक प्रतिनिधिमण्डल ने दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से भेंट कर निवेदन किया है कि मन्दिरों को न तोड़ा जाए। प्रतिनिधिमण्डल में स्वामी राघवानन्द, महन्त नवल किशोर दास जी, श्री भूषणलाल पाराशर, श्री अनिल गुप्ता, श्री बृजमोहन सेठी आदि शामिल थे। अरुण कुमार सिंह
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