हनक खोती संप्रग सरकार
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मार्गों के किनारों पर वृक्ष हैं और हर मार्ग में पथिक उनका आश्रय लेते हैं, लेकिन ऐसा वृक्ष विरला ही होता है जिसका स्मरण घर पहुंचकर पथिक करता हो।
–पंडितराज जगन्नाथ
पाञ्चजन्य
प्रग सरकार की अकर्मण्यता और जनविरोधी नीतियों के कारण देश में गंभीर राजनीतिक संकट की स्थिति उत्पन्न होने लगी है। सरकार के प्रति जनता का विश्वास पूरी तरह खत्म हो गया है, उसके सहयोगी ही उससे पल्ला झाड़ रहे हैं और आंखें तरेर रहे हैं। परिणामत: देश में सरकार–शून्यता की सी स्थिति है। आर्थिक सुधारों के नाम पर यह सरकार राष्ट्रहित और जनहित को भी दांव पर लगाने से नहीं चूक रही। अमरीकी दबाव में खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश के दरवाजे खोलने का निर्णय कितना आत्मघाती होगा, इसका अनुमान तक इसे नहीं है कि इससे देश की अर्थव्यवस्था में लगभग सवा 6 करोड़ खुदरा दुकानदारों की भागीदारी तो प्रभावित होगी ही, उनके समक्ष बेरोजगारी का गंभीर संकट भी खड़ा हो जाएगा और इसकी कीमत पर वालमार्ट जैसी अमरीकी व विदेशी कंपनियां अपनी झोलियां भरेंगी। उधर डीजल की मूल्य वृद्धि और रसोई गैस के सब्सिडी प्राप्त सिलेंडरों की संख्या सीमित करने जैसे निर्णय पहले ही भीषण महंगाई झेल रहे आम उपभोक्ता के लिए कितनी परेशानी खड़ी करेंगे, इस ओर सरकार पूरी तरह संवेदनहीन हो गई है। महंगाई दर दो अंकों में पहुंचना इसी का परिचायक है। इससे स्पष्ट है कि स्थितियों पर इस सरकार का कोई नियंत्रण नहीं रहा।
दुर्भाग्य है कि कांग्रेसनीत संप्रग फिर भी सत्ता से चिपका हुआ है। वह अपनी दिशाहीनता के कारण सरकार चलाने के नाम पर देश को और कितनी गहरी खाई में धकेलेगा? ममता बनर्जी के संप्रग से नाता तोड़ने के बाद सरकार पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं और सपा–बसपा जैसे दल इसमें अपने लिए राजनीतिक लाभ तलाशते हुए कांग्रेस से सौदेबाजी करने में लगे हैं। कांग्रेस भी इस सौदेबाजी को तोल रही है कि उसके लिए किससे कितनी सौदेबाजी करना ठीक रहेगा। सवाल यह है कि क्या सौदेबाजी से देश चलेगा? यदि कांग्रेस ने जनसमर्थन का दावा कर संप्रग सरकार के सहारे देश की सत्ता की बागडोर संभाली थी तो क्या वह जनसमर्थन सत्ता की सौदेबाजी करने के लिए था? कांग्रेस के तौर–तरीकों और संप्रग सरकार की हर मोर्चे पर विफलता से यह सिद्ध हो गया है कि देश और जनता को लगातार ठगा जा रहा है। कांग्रेस और संप्रग सरकार जनाकांक्षाओं पर खरी नहीं उतरी है। इसलिए यह वक्त का तकाजा है कि देश को और अधिक ऊहापोह की स्थिति न झेलनी पड़े और बेबसी में छटपटाती जनता इस सरकार से मुक्ति पाए। 20 सितम्बर को भारत बंद के दौरान देशभर में उमड़ा जनरोष इसी का परिचायक है।
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