राष्ट्र-आराधक ऋषि
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सुदर्शन जी का महाप्रयाण
नागपुर के क्षितिज पर ढलते सूरज और नम आंखों के साथ निवर्तमान सरसघंचालक स्व. कुप्. सी. सुदर्शन के पार्थिव शरीर को स्थानीय गंगाबाई अंत्येष्टि स्थल पर उनके भाई श्री रमेश ने मुखाग्नि दी। उस समय मानो पूरा शहर 'भारत माता की जय' के जयघोष से गूंज उठा था। हजारों नेत्रों ने सभी बंधन अस्वीकार कर अश्रुपात करते हुए अपने प्रिय सुदर्शन जी को अंतिम प्रणाम निवेदित किए।
रायपुर में 15 सितम्बर की प्रात: सुदर्शन जी का निधन हुआ था। सरकार्यवाह श्री भैयाजी जोशी ने तुरंत यह हृदय विदारक समाचार एक शोक संदेश के रूप में देश के समस्त स्वयंसेवकों और कार्यकर्ताओं की सूचनार्थ जारी किया। पत्र में भैयाजी ने लिखा- 'अत्यंत दुख के साथ मैं स्वयंसेवकों को मा. कुप्.सी. सुदर्शन जी (निवर्तमान सरसंघचालक) के दु:खद निधन के बारे में सूचित करता हूं।' सूचना मिलते ही देशभर में शोक का वातावरण तिर गया। मीडिया ने भी यह खबर प्रसारित की। विदेशों से भी स्वयंसेवकों, समर्थकों, हितचिंतकों ने विस्तार से जानकारी प्राप्त की। देशभर में संघ कार्यालयों पर अंतिम संस्कार के वक्त मौन धारण कर संस्कार स्थल पर मानसिक रूप से उपस्थित रहने का विचार आया। तय हुआ था कि सुदर्शन जी का अंतिम संस्कार नागपुर में किया जाए। 15 सितम्बर की शाम 7 बजे विशेष विमान द्वारा उनका पार्थिव शरीर नागपुर लाया गया। रेशिमबाग के महर्षि व्यास सभागृह में उनका पार्थिव शरीर अंतिम दर्शनों हेतु रखा गया। देर रात तक वहां श्रद्धांजलि देने वालों का तांता लगा रहा। विमान, बस, रेल तथा निजी वाहनों से बड़ी संख्या में देशभर से लोग पहुंचे थे। 16 सितम्बर की दोपहर गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान पहुंचे। भाजपा के वरिष्ठ नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी, भाजपाध्यक्ष श्री नितिन गडकरी, राज्यसभा में प्रतिपक्ष के नेता श्री अरुण जेटली, श्री राजनाथ सिंह, लोकसभा में भाजपा के उपनेता श्री गोपीनाथ मुंडे, श्री अनंत कुमार आदि अनेक विशिष्टजन पहुंचे। दोपहर करीब 2.45 बजे उपस्थित जन ने अपने प्रिय निवर्तमान सरसंघचालक को अपने अंतिम प्रणाम निवेदित किए, फिर संघ प्रार्थना हुई। इसके बाद अंतिम यात्रा आरंभ हुई।
सुदर्शन जी का पार्थिव शरीर फूलों से सजे वाहन पर रखा गया, सबसे आगे उनका भव्य चित्र लगा था। वाहन पर सरकार्यवाह श्री भैयाजी जोशी, सहसरकार्यवाह श्री सुरेश सोनी, सहसरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबले, सहसरकार्यवाह डा. कृष्ण गोपाल तथा सुदर्शन जी के भाई श्री रमेश थे तो उनके पीछे पैदल चल रहे थे सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत, श्री नितिन गडकरी, श्री लालकृष्ण आडवाणी, भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री। अंतिम यात्रा में बहुत बड़ी संख्या में गणवेशधारी स्वयंसेवक, कार्यकर्ता और स्थानीयजन सम्मिलित थे। केशव द्वार तक सभी विशिष्ट जन पैदल गये, उसके बाद सुरक्षा कारणों से उन्हें वाहनों में बैठना पड़ा। वहां से लोकांची शाला, जामदार हाई स्कूल और जगनाडे चौक होते हुए अंतिम यात्रा लगभग 4.30 बजे गंगाबाई घाट पहुंची। रास्ते में जहां से भी यह अंतिम यात्रा गुजरी वहां सड़क के दोनों ओर बड़ी संख्या में महिलाएं और पुरुष हाथ जोड़े खड़े थे और ऊपर घरों से लोग श्री सुदर्शन की पार्थिव देह पर पुष्पवर्षा कर रहे थे। एक समर्पित राष्ट्रभक्त की इससे बेहतर अभ्यर्थना क्या हो सकती है? रास्ते भर लोगों की ऐसी भीड़ थी कि महज 2 किमी. की रास्ता तय करने में 2 घंटे से ज्यादा का समय लगा।
अंत्येष्टि स्थल गंगाबाई घाट पर संघ के अनेक पदाधिकारी तथा अन्य गण्यमान्यजन पहले से ही उपस्थित थे। संघ के वरिष्ठ अधिकारी एवं प्रचारक यथा श्री मदनदास, श्री श्रीकांत जोशी, डा. मनमोहन वैद्य, श्री राममाधव, राष्ट्र सेविका समिति की प्रमुख संचालिका शांताक्का, पूर्व प्रमुख संचालिका प्रमिला ताई मेढ़े, उषा ताई चाटी, हरिद्वार के स्वामी अखिलेश्वरानंद जी, मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री बाबूलाल गौर, श्री कैलाश जोशी, अनेक सांसद, विधायक, समाजसेवी एवं विद्वत्जन अपने पूज्य सुदर्शन जी को अंतिम विदा देने पहुंचे थे।
'श्री राम जय राम जय जय राम' के जाप के साथ ही मंत्रोच्चार आरंभ हुआ और सुदर्शन जी के भ्राता श्री रमेश ने अपने अग्रज को मुखाग्नि दी। पंचतत्व की देह धू-धू कर पंचतत्व में लीन होने लगी। वहां उपस्थित हजारों लोगों की आंखों से अश्रुधारा बह चली। एक देह के रूप में सुदर्शन जी विदा हो गये, परंतु जिस संघकार्य को उन्होंने अपने तप समान जीवन से सींचा है उससे इस राष्ट्र को परम वैभव पर ले जाएंगे, ऐसा संकल्प लेकर लोग अंत्येष्टि स्थल से वापस लौटे।
भोपाल लाया गया अस्थि कलश
स्व. सुदर्शन जी का अस्थि कलश 17 सितम्बर को नागपुर से रेल द्वारा भोपाल लाया गया, जहां मध्य भारत के पूर्व प्रांत संघचालक श्री शशिभाई सेठ, पश्चिम क्षेत्र के क्षेत्र कार्यवाह श्री रवीन्द्र जोशी, सह प्रांत कार्यवाह श्री हेमंत मुक्तिबोध, म.प्र. के गृहमंत्री श्री उमाशंकर गुप्ता सहित एक हजार से ज्यादा लोग नम आंखों के साथ उपस्थित थे। स्टेशन से अस्थि कलश को संघ कार्यालय, समिधा लाया गया, जहां से सड़क मार्ग से इंदौर ले जाया गया और वहां स्वयंसेवकों के दर्शनार्थ रखा गया। वहां एक श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गई, जिसमें रा.स्व.संघ के सहसरकार्यवाह श्री सुरेश सोनी भी उपस्थित थे। इंदौर से अस्थिकलश को अगले दिन 18 सितम्बर को भोपाल लाकर स्थानीय मानस भवन में श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गई जिसमें बड़ी संख्या में संघ के स्वयंसेवक, कार्यकर्ता, विविध संगठनों से जुड़े लोग, मुख्यमंत्री व प्रदेश सरकार के कई मंत्री और अनेक गण्यमान्यजन व अनेक मत-पंथों के धर्मगुरु उपस्थित थे। अस्थिकलश दो दिन समिधा, भोपाल में स्वयंसेवकों के दर्शनार्थ रखने के बाद मैसूर रवाना कर दिया गया जहां श्रीरंगपट्टनम में अन्य विधियां सम्पन्न कराई जाएंगी।
श्रद्धांजलि सभा में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने सुदर्शन जी की स्मृति को नमन करते हुये कहा कि 'मुझे अभी भी यह विश्वास नहीं होता कि सुदर्शन जी हमारे बीच नहीं रहे। वे मौलिक चिन्तक, राष्ट्रवादी विचारक और बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे एक सात्विक कार्यकर्ता थे। अहंकार उनमें बिल्कुल नहीं था और उनका व्यक्तित्व अद्भुत था। वे स्वदेशी मॉडल तथा देशज ज्ञान परंपरा को बढ़ावा देने के आग्रही थे। उन्होंने मुझे जैविक खेती कराने का आग्रह किया। हम लोगों ने जैविक नीति बनाई। जो भी विषय उनके मन में रहते थे वे तत्काल बताते थे। हिन्दी विश्वविद्यालय का उन्होंने आग्रह किया। मेरा सौभाग्य है कि उनके जीवित रहते यह काम पूरा कर सका।'
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्री सुरेश सोनी ने सुदर्शन जी को भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुये कहा कि डा. हेडगेवार जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की जो नींव रखी उसमें अनेक पुष्प समर्पित हुये, सुदर्शन जी उनमंे से एक थे। उन्होंने बताया कि सुदर्शन जी ने टेलीकम्यूनिकेशन में बी.ई. की उपाधि प्राप्त की थी। उस समय देश में काफी उथल-पुथल का दौर था, जिसे देखते हुये उन्होंने राष्ट्र के लिये कार्य करने का निर्णय लिया। उन्होंने संघ का सर्वोच्च दायित्व निभाया परन्तु सहज भाव से उसे त्यागा, जो उनकी सरलता को परिलक्षित करता है।
उन्होंने बताया कि सुदर्शन जी कहते थे, मानव को विनाश से बचाना है तो भारतीय जीवन मूल्यों की ओर लौटना होगा। आज जो दुनिया में आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक उथल-पुथल का दौर चल रहा है उसे देखकर लगता है कि उनका चिंतन मानव को बचा सकता है। उन्होंने अंत में कहा कि जिन बातों का आज इस सभागार में उल्लेख हुआ उनको हम अपने जीवन में उतारें और श्री सुदर्शन के पद चिन्हों पर चलें तो यही सुदर्शन जी के प्रति सबसे बड़ी श्रद्धांजलि ½þÉäMÉÒ* |ÉÊiÉÊxÉÊvÉ
दीनदयाल शोध संस्थान की श्रद्धांजलि
समाज को समर्पित जीवन
दीनदयाल शोध संस्थान, चित्रकूट द्वारा उद्यमिता विद्यापीठ में श्री सुदर्शन के देहावसान पर उनकी दिवंगत आत्मा की शांति हेतु श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। सर्वप्रथम दीनदयाल शोध संस्थान के प्रधान सचिव डा. भरत पाठक एवं ग्रामोदय विश्वविद्यालय के कुलसचिव डा. भरत मिश्रा, प्रो. कपिल देव मिश्रा सहित अन्य विशिष्टजन ने सुदर्शन जी के चित्र पर पुष्पार्चन करते हुए विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की। गुरुकुल संकुल के गुरु माता–पिता, सुरेन्द्रपाल ग्रामोदय विद्यालय, शैक्षणिक अनुसंधान केन्द्र, आरोग्यधाम, गोशाला, रसशाला, सियाराम कुटीर, उद्यमिता विद्यापीठ, दीनदयाल औद्योगिक प्रशिक्षण केन्द्र, रामदर्शन, ग्रामोदय विश्वविद्यालय के प्रमुख लोगों सहित बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं द्वारा उन्हें श्रद्धांजलि दी गई। डा. पाठक ने कहा कि पूज्य सुदर्शन जी देश की बौद्धिक दशा को लेकर काफी चिन्तित रहते थे। सामाजिक समरसता के क्षेत्र में भी उनका योगदान सर्वव्यापी रहा है। उद्यमिता विद्यापीठ की निदेशक डा. नंदिता पाठक ने श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए कहा कि सुदर्शन जी का योगदान एकता के प्रयासों की दृष्टि से भी नकारा नहीं जा सकता है। ग्रामोदय विश्वविद्यालय के प्रो. कपिल देव मिश्रा ने कहा कि सुदर्शन जी का समाज के लिए सब अर्पित कर देने का भाव रहा। संघ प्रार्थना के साथ श्रद्धांजलि सभा का समापन हुआ। इस अवसर पर उद्यमिता विद्यापीठ में उनके चित्रों की प्रदर्शनी भी लगाई गई।
शोक संदेशों का तांता…
निवर्तमान सरसंघचालक श्री कुप्.सी. सुदर्शन के आकस्मिक निधन पर अनेक विशिष्टजन तथा संस्थाओं ने गहन शोक व्यक्त किया। केवल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या हिन्दुत्वनिष्ठ विचारधारा के प्रति प्रतिबद्ध लोगों ने ही नहीं, संघ विचारधारा से मतभेद रखने वाले अनेक महानुभावों ने भी अपने हृदय की पीड़ा व्यक्त की। ऐसी ही हैं मुम्बई की सुश्री बानी देशपांडे व रोजा देशपांडे। रोजा सुप्रसिद्ध साम्यवादी विचारक कामरेड श्रीपाद अमृत डांगे जी की पुत्री हैं। सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत को मराठी में लिखे पत्र में बानी जी एवं रोजा जी लिखती हैं, 'श्री सुदर्शन के साथ हमारी मित्रता राजनीति से परे थी। जब उनके साथ हमारी चर्चा होती थी तो उसमें वेदान्त एवं विज्ञान तक के विषय आते थे। वह इन सभी विषयों में गहरा अध्ययन एवं चिंतन रखते थे। हमने आज एक सच्चा मित्र खो दिया है।'
सूरत के मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के डा. एम.एस. लोखंडवाला, मंसूरी समाज विकास सोसाइटी, जयपुर के उस्मान खां मंसूरी, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के मसूद नकवी, राष्ट्रीय सिख संगत (राजस्थान) के प्रांत अध्यक्ष श्री हरभजन सिंह, श्री ज्योतिष पीठ के स्वामी विशुद्धानंद ब्रह्मचारी, इंदौर के भय्युजी महाराज, स्वातंत्र्यवीर सावरकर स्मारक समिति के श्री मुकुन्द पाचखेड़े, वात्सल्य ग्राम की साध्वी ऋतंभरा, भारत-तिब्बत समन्वय केन्द्र के लेपसंग तेंसिंग, निर्वासित तिब्बती संसद के पेना तेंसिंग आदि ने शोक संदेश भेज कर अपनी भावपूर्ण श्रद्धांजलि व्यक्त की।
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