कोयला-कलंक विपक्ष परउछालने का कुचक्र
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उछालने का कुचक्र
समाचार विश्लेषण
रमेश नैयर
कोयले की कालिमा से पुते हुए कांग्रेसी चेहरों की ओर से ध्यान बंटाने के केन्द्र सरकार के सभी प्रयास विफल होते जा रहे हैं। डीजल और रसोई गैस में आग लगा कर भी देश की जनता को भरमा पाने में वह सफल नहीं हो पा रही है। कांग्रेस को आभास हो गया है कि जनता उसे कोयला-कलंक में डूबा हुआ मान रही है। इसलिए स्वयं को निर्दोष बताने की अपेक्षा वह हर संभव कोशिश कर रही है कि कुछ कालिख वह विपक्षी दलों पर उछालती रहे। जिस प्रकार की सीनाजोरी उसके प्रवक्ता और मंत्री कर रहे हैं उससे उसकी स्थिति हास्यास्पद हो चुकी है। पहले उसने मोर्चा नियंत्रक और महालेखा परीक्षक के विरुद्ध खोला। कहा गया कि उन्हें घोटालों में अनेक शून्य जोड़ देने की आदत हो गई है। फिर उसके गोयबल्स ढिंढोरा पीटने लगे कि सी.ए.जी. में राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं उत्पन्न हो गई हैं। यह भी कि वह अगले आम चुनावों में उतरने की योजना बना चुके हैं। अनर्गल वक्तव्यों के लिए कुख्यात हो चुके उसके वाग्वीरों की हवा उस समय निकल गई जब उच्चतम न्यायालय ने नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक की रपट पर केंद्र द्वारा उठाई गई आपत्तियों को खारिज कर दिया। बल्कि उससे पूछ लिया कि वह बताये कि कोयला खदानों के आवंटन के लिए क्या मार्गदर्शक व्यवस्था बनाई गई थी और क्या कठोरतापूर्वक उसका पालन किया गया था?
उच्चतम न्यायालय ने यह भी जानना चाहा कि ऐसा क्या 'संयोग' बन गया था कि अनेक कोयला खदान राजनीतिज्ञों, उनके संबंधियों, सहयोगियों तथा कुछेक निजी कंपनियों ने हासिल कर लिये? न्यायमूर्ति श्री आर. एम. लोढ़ा और न्यायमूर्ति श्री ए. आर. दवे की न्यायपीठ ने कोयला मंत्रालय के सचिव को निर्देशित किया कि वह शपथपत्र दाखिल कर स्पष्ट करें कि सन् 2004 की उस नीति पर अमल क्यों नहीं किया गया जिसमें ऊंची प्रतिस्पर्धी बोली (के आधार पर कोयला खदान दिये जाने) का प्रावधान किया गया था।
न्यायालय की खिन्नता इस वाक्य से भी झलकती है कि यह मामला (कुछ) टनों में कोयला बांटने का नहीं, बल्कि कई खदानों के आवंटन का था। न्यायालय ने स्पष्ट कहा, 'नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक एक संवैधानिक संस्था है और उसकी रपट रद्दी का टुकड़ा नहीं है। ध्यान में रखिए कि सी.ए.जी. का अपना एक महत्व है। उसकी रपट पर निर्भर रहने में कहीं कुछ गलत नहीं है।'
उच्चतम न्यायालय की पीठ ने यह व्यवस्था अधिवक्ता श्री एम.एल. शर्मा की उस याचिका पर दी जिसमें 194 कोयला खदानों के आवंटन को गैर कानूनी, असंवैधानिक और मनमाने ढंग से आवंटित बताते हुए समस्त आवंटन रद्द कर देने अपील की गई थी।
चारों तरफ से तिरस्कृत होकर गंभीर आरोपों के कठघरे में घिरी केंद्र सरकार अपने दागी दामन को छुपाने के लिए भ्रमजाल बुनने की असफल काशिशों में जुटी हुई है। उसके मंत्री प्रतिपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों के दौरे करते हुए अपना कलंक उनकी ओर उछालने के कुचक्र में तल्लीन हो गये हैं। गोयबल्स हिटलर का प्रचार प्रमुख कहा करता था कि एक झूठ को हजार बार दोहराने से उस पर जनता का विश्वास होने लगता है। आपातकाल के दौरान श्रीमती इंदिरा गांधी के चारणों ने इसी नीति को अपना कर एक आतंकपूर्ण सन्नाटा बुन दिया था। वर्तमान सरकार भी उसी का अनुसरण कर रही है। जन भावनाओं के अनादर और जनक्षोभ की अवहेलना करने की आदी हो चुकी केंद्र की कांग्रेस नीत सरकार इस भ्रम की बंदी हो चुकी है कि समय के साथ जनता सब भूल जायेगी। गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने बड़े 'आत्मविश्वास' के साथ कह भी दिया कि जैसे जनता बोफोर्स दलाली को भूल गई वैसे ही कोयला प्रकारण को भी विस्मृत कर देगी। असामान्य मनोविज्ञान कहता है कि प्रत्येक अपराधी प्राय: इसी मनोदिशा में सांसें गिनता है।
रही बात अपने कोयला-कलंक को प्रतिपक्षी राज्य सरकारों पर उछालने की, तो कोयला खदान आवंटन की प्रक्रिया दूध का दूध और पानी का पानी कर देती है। कोयला आवंटन का सत्य यह है कि इसके खदानों के आवंटन/विक्रय का अंतिम अधिकार केंद्र सरकार के पास होता है। वह इनके लिये विज्ञापन के माध्यम से सीधे आवेदन आमंत्रित करती है। ये आवेदन प्राप्त होने के बाद केंद्र सरकार ही संबंधित प्रशासकीय मंत्रालयों, यथा ऊर्जा, इस्पात अथवा उद्योग को भेजती है। जिस राज्य में कोयला खदान स्थित है वहां की राज्य सरकार को भी टीप के लिए एक प्रति भेजती है। आवेदन पर निर्णय हेतु केन्द्रीय कोयला सचिव की अध्यक्षता में संबंधित केंद्रीय मंत्रालयों के प्रतिनिधियों की परीक्षण समिति विचार करती है। संबंधित राज्य सरकार के मुख्य सचिव अथवा उनके प्रतिनिधि को भी परीक्षण समिति में आमंत्रित किया जाता है। परीक्षण समिति आवेदनों पर विचार करके खदान आवंटन के लिए एक सूची बनाती है। सफल आवेदकों का चयन मुख्यतया संबंधित मंत्रालय की अनुशंसा को महत्व देते हुए किया जाता है। अलबत्ता उसमें संबंधित राज्य सरकार के प्रतिनिधि की राय भी ली जाती है। कोयला खदान आवंटन के लिए सूचीबद्ध किये गये आवेदकों की कोयला संबंधी जरूरत की पड़ताल और कोयले की मात्रा का निर्धारण केंद्र का अतंर्मंत्रालय समूह करता है। इसमें कोयला मंत्रालय, प्रशासकीय मंत्रालय और कोल इंडिया के अधिकारी शामिल होते हैं। परीक्षण समिति अपनी अनुशंसाएं केंद्रीय कोयला मंत्रालय के प्रभारी मंत्री के सामने रखती है। मंत्री के अनुमोदन से ही आवंटन आदेश जारी किये जाते हैं। आदेश की एक प्रति संबंधित राज्य सरकार को भी भेजी जाती है। इसमें एक प्रावधान अवश्य है कि जिसे कोयला खदान आवंटित किया गया है उसे कानूनी अधिकार तभी प्राप्त होते हैं जब संबंधित राज्य सरकार द्वारा 'प्रास्पेक्टिंग लायसेंस' अथवा खनन लीज स्वीकृत की गई हो। जिस छत्तीसगढ़ सरकार पर केंद्रीय मंत्रियों सहित कांग्रेस पार्टी द्वारा बार-बार हल्ला बोला जा रहा है वहां 2005 के बाद केवल एक आवंटी को 'प्रास्पेक्टिंग लायसेंस' दिया गया है।
कोयले की थोक लूट का मूल मुद्दा यह है कि इन्हें खुली नीलामी के बजाय मनमाने ढंग से अपने चहेतों को केंद्र सरकार द्वारा आवंटित कर दिया गया। इसी के दृष्टिगत भारत सरकार के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने शासकीय राजस्व को लगभग दो लाख करोड़ की हानि होने की बात कही थी। जो कोयाला-कलंक केंद्र सरकार के साथ चिपक गया है उसे दूर करने का समाधानकारक उपाय यही हो सकता है कि विवादास्पद ढंग से आवंटित सभी 194 कोयला खदान रद्द किए जाएं और खुली नीलामी के आधार पर उनका पुन: आवंटन किया जाये। यहां यह नहीं भूलना चाहिए कि जो भी खनिज संपदा धरती के गर्भ में है वह किसी एक सरकार के कार्यकाल की मनमानी लूट के लिए नहीं बल्कि कई पीढ़ियों के लिए प्रकृति की धरोहर के रूप में है। परंतु जिस हड़बड़ी में वर्तमान केंद्र सरकार नजर आ रही है उससे तो यही लगता है कि वह सब कुछ अपने कार्यकाल में ही उलीच देना चाहती है। आदर्श सोसायटी जैसे घोटालों की जो श्रृंखला अब मुम्बई से हरियाणा तक फैल चुकी है, उससे स्पष्ट हो गया कि कांग्रेस पूरी धरती को अपने चहेतों को कौड़ियों के मोल बांट देने पर आमदा है। 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले से प्रमाणित हो गया कि गगन को काली कमाई के लिए बेचा गया है। अब धरती के गर्भ पर भी लालची नजरें जमी हुई हैं।
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