असुरक्षित राजधानी
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कायरता और अदूरदर्शिता का दुष्परिणाम
स्वदेश चिन्तन
नरेन्द्र सहगल
देश की राजधानी में हिंसा फैलाने के लिए अनेक भारत विरोधी ताकतें अपने हथियार पैने कर रही हैं। जिहादी आतंकवाद, लाल माओवाद, बंगलादेशी घुसपैठ और खालिस्तानी कट्टरवाद की गिद्धदृष्टि दिल्ली पर गड़ चुकी है। सुरक्षा पर संकट के गहराते बादल कभी भी फट कर तबाही मचा सकते हैं। केन्द्र और दिल्ली की सोनिया निर्देशित सरकारों की कमजोर राजनीतिक इच्छाशक्ति सुरक्षा एजेंसियों पर भारी पड़ती जा रही है।
पाकिस्तान और अरब देशों से संचालित होता है
भारत में आतंकी जिहाद
हाल ही में बंगलूरु, नांदेड़ और हैदराबाद से पकड़े गए 19 दुर्दांत आतंकियों से प्राप्त जानकारी ने भारत की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। पाकिस्तान सहित खाड़ी देशों विशेषतया सऊदी अरब से आतंकी गिरोह का संचालन होना राजधानी समेत पूरे देश में खूनी दहशत फैलाकर देश को साम्प्रदायिक गृहयुद्ध में धकेलने की तैयारी का सीधा संकेत है। पकड़े गए सभी आतंकी युवकों के तार लश्करे तोएबा, हरकत उल जिहाद अल इस्लामी (हूजी), इंडियन मुजाहिद्दीन और अंतरराष्ट्रीय जिहादी संगठन अलकायदा से जुड़े हुए हैं। यमन से प्रकाशित अलकायदा की एक ऑनलाइन पत्रिका 'इंस्पायर' इन जिहादी आतंकियों के दिमाग में भारत विरोध का जहर भरती है। इस पत्रिका में छपने वाली सामग्री में मुस्लिम युवकों को भारत, अमरीका, इस्रायल और अन्य पश्चिमी देशों के विरुद्ध जिहादी जंग छेड़ने के फतवे जारी किए जाते हैं। यह सभी सबूत पकड़े गए आतंकियों से बरामद लैपटॉप और पैन ड्राइव से मिले हैं। आतंक के अब तक के इतिहास में सबसे बड़ी सनसनी है यह।
इस सनसनीखेज रहस्योद्घाटन का सबसे बड़ा महत्वपूर्ण और खतरनाक पक्ष यह है कि पकड़े गए आतंकी गिरोह में शामिल सभी युवक भारतीय मुसलमान हैं। इनके संबंध गुजरात और उत्तर प्रदेश से हैं। इनके निशाने पर दक्षिण भारत के प्रमुख रक्षा ठिकाने (परमाणु संयंत्र, नवल बेस और रक्षा निगरानी केन्द्र) थे। भारत के अधिकांश राष्ट्रीय नेताओं समेत हिन्दू संगठनों के नेताओं का सफाया करने के इस विदेश प्रेरित षड्यंत्र की पूरी जानकारी भारत की सुरक्षा एजेंसियां प्राप्त करने की जी तोड़ कोशिश कर रही हैं। परंतु सोनिया निर्देशित सरकार की वोट बैंक राजनीति इस अति महत्वपूर्ण कार्य में कोई बाधा उत्पन्न नहीं करेगी, इसमें संदेह है। सवाल यह भी है कि देश में कमजोर आतंक विरोधी कानूनी व्यवस्था को बदलने का साहस क्या यह ढुलमुल सरकार करेगी? क्या जिहादी साहित्य सहित भारत और ईरान के पकड़े गए नक्शों के संकेतों की खोजबीन गंभीरता से हो सकेगी? पोटा और टाडा जैसे सख्त कानूनों को भी दलगत राजनीति का शिकार बना देने वाले नेता क्या सोशल मीडिया की आधुनिक तकनीकों से युक्त इस विदेशी षड्यंत्र को कुचलने का कोई सख्त कदम उठाएंगे?
पूर्वोत्तर से दिल्ली तक लाल गलियारा बना रहे हैं
चीन प्रेरित माओवादी
रक्तिम क्रांति के माध्यम से सम्पूर्ण भारत को अपनी लपेट में लेने के उद्देश्य से प्रेरित माओवादियों ने अपनी नजरें दिल्ली पर गाड़ दी हैं। पूर्वोत्तर क्षेत्र के लगभग 84 जिलों को 'मुक्त क्षेत्र' घोषित करके वहां अपनी कथित जनता सरकारें स्थापित करने के बाद माओवादी संगठन अब देश की राजधानी पर कब्जा करने के लिए सक्रिय हो गए हैं। सरकारी सूत्रों के अनुसार दिल्ली महानगर के 9 जिलों में से 7 जिलों में इनकी सतही गतिविधियां प्रारंभ हो चुकी हैं। संभ्रांत घरों के शिक्षित लोगों द्वारा गैर सरकारी संगठनों की स्थापना के जरिए अपना जाल बिछाने के पश्चात हिंसक वारदातों को अंजाम देना माओवादियों की सोची-समझी रणनीति है। केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री जितेन्द्र सिंह ने संसद में स्वीकार किया है कि सन् 2011 में भारत के 203 जिलों में अपनी गतिविधियों (गैर सरकारी संगठन) के पांव जमाने में सफल हो चुके माओवादी 84 जिलों में रक्तिम क्रांति का रास्ता पकड़ रहे हैं। स्थानीय असामाजिक तत्वों को महत्व देकर उन्हीं को हथियारों का प्रशिक्षण देने की नीति अपनाने वाले माओवादी संगठनों को चीन से हथियारों की सप्लाई होती है। चीन प्रेरित इन संगठनों के कमांडरों ने राजधानी दिल्ली की चारों ओर के प्रांतों पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान में भी अपने पांव पसार लिए हैं। शहरी इलाकों को अपने वैचारिक जाल में फंसाने के लिए उच्च शिक्षा प्राप्त प्रभावशाली लोगों में अपनी पैठ जमाने में सफल हो रहे हैं। सन् 2009 में दिल्ली से गिरफ्तार माओवादी नेता कोबाद घेंडी ने इस तरह का रहस्योद्घाटन किया था। इस मुद्दे पर दिल्ली और केन्द्र सरकारों की खामोशी चिंताजनक है। संगीनों की नोक पर धन एकत्रित करने वाले माओवादियों ने अब राजस्थान को अपने निशाने पर ले लिया है। प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) ने सुरक्षाबलों के सामने ह्यूमन शील्ड का इस्तेमाल करने की रणनीति अपनाई है। सुदूर पूर्वोत्तर से लेकर दिल्ली तक को लाल गलियारा बनाने में सफल होते जा रहे माओवादियों की नकेल कसने में विफल हो रही सरकार विशेषतया गृह विभाग और गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे की जिम्मेदारी है कि वे देश की राजधानी की ओर बढ़ चुके इस संकट से निपटने की तैयारी करें।
दिल्ली का जनसंख्या संतुलन बिगाड़ने में जुटे हैं
बंगलादेशी मुसलमान
पाञ्चजन्य समेत देश के प्राय: सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में दिल्ली में खतरा बन रहे बंगलादेशियों के समाचार छप जाने के बावजूद दिल्ली और केन्द्र की सरकारों पर जूं तक नहीं रेंगी। राजधानी पर मंडरा रहे खतरे के यह बादल किसी समय भी फटकर तबाही मचा सकते हैं। इंस्टीट्यूट आफ डिफेंस स्टडीज एंड एनलाइसिस (आईडीएमए) की ताजा रपट के अनुसार दिल्ली में 15 लाख से भी ज्यादा बंगलादेशी घुसपैठिए मौजूद हैं जिनमें से दस लाख तो यहां की नागरिकता लेकर बकायदा सरकारी मेहमान की तरह रह रहे हैं। खुफिया रपटों के मुताबिक पाकिस्तान की आईएसआई और बंगलादेश में सक्रिय आतंकी संगठन हरकत उल जिहाद ए इस्लामी के साथ इनके नियमित तार जुड़े हैं। भारत की नागरिकता प्राप्त कर चुके घुसपैठिए नए बंगलादेशियों को घुसपैठ करवाकर असम और कोलकत्ता से दिल्ली तक आने की व्यवस्था करते हैं। इनके पास सभी प्रकार के नकली दस्तावेज उपलब्ध रहते हैं। दिल्ली के स्थानीय मुस्लिम परिवारों के साथ रोटी और बेटी के संबंध बना लेने में सफल हो रहे यह घुसपैठिए राजधानी की सुरक्षा के लिए भी खतरा बन रहे हैं।
वोट बैंक के सौदागर राजनीतिक दल इस कट्टरवादी इस्लामिक साजिश की अनदेखी करने में अपने को धन्य मान रहे हैं। राजधानी को असुरक्षित देखकर सुरक्षा एजेंसियां चिंतित हैं। इनकी चिंता की वजह यह भी है कि पाकिस्तान और बंगलादेश के आतंकी संगठनों की देखरेख में रची जा रही भारत विरोधी साजिशों के सूत्रधार यह घुसपैठिए भी बनेंगे। समाचारों के अनुसार यह घुसपैठिए हवाला कारोबार के माध्यम से दिल्ली से लूट खसोट का धन कोलकत्ता और वहां से बंगलादेश पहुंचाते हैं। यह कारोबार कभी भी असम की तरह हथियारों की सप्लाई में बदल सकता है। वोट के लोभियों को देश की राजधानी के बदल रहे जनसंख्या अनुपात की भी कोई चिंता नहीं है। अनुभव तो यही बताता है कि दिल्ली के कट्टरवादी मुसलमान और बंगलादेशी घुसपैठिए एक ऐसा धरातल तैयार कर रहे हैं जहां विदेशों में प्रशिक्षित हो रहे आतंकी जिहाद के मुजाहिद्दीन अपने अड्डे बनाएंगे। अब समय आ गया है कि दिल्ली सहित पूरे देश में जमते जा रहे इन घुसपैठियों की पहचान करके इन्हें भारत के बाहर का रास्ता दिखाया जाए।
सरकारी नासमझी से ही पुनर्जीवित हो रहा है
कट्टर खालिस्तानी आतंकवाद
पंजाब की धरती पर अस्सी के दशक में पूरी तरह पिट चुके खालिस्तानी आतंकवाद को पुनर्जीवित करने के लिए पाकिस्तान की आईएसआई पुरजोर कोशिशों में लगी है। समाप्त प्राय: हो चुके इन आतंकियों के एकजुट होने की जानकारी दिल्ली पुलिस द्वारा 23 दिसंबर, 2011 को गिरफ्तार किए गए बबर खालसा इंटरनेशनल के दो आतंकियों सरबजीत सिंह और जसविंदर सिंह ने दी थी। दिल्ली समेत देश के कई धार्मिक एवं राजनीतिक नेता इनके निशाने पर थे। दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने इस नए खालिस्तानी खतरे का पर्दाफाश करने में सफलता प्राप्त करके सरकार को चेताने का काम किया है। पाकिस्तान के धन और हथियारों की मदद से खालिस्तानी संगठनों ने कई देशों में अपने अड्डे बना लिए हैं। अरब जगत के कई मुस्लिम देश इनकी पीठ पर हाथ रखे हुए हैं। पाकिस्तान में शरण लिए हुए खालिस्तानी कमांडर रणजीत सिंह उर्फ नीटा द्वारा स्थापित संगठन खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स का तालमेल भी बबर खालसा इंटरनेशनल के साथ बना हुआ है। आईएसआई तो इन खालिस्तानी आतंकियों और कश्मीरी आतंकियों का गठजोड़ बनाने का प्रयास कर ही रही है।
गत वर्ष दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा के उपायुक्त अशोक चांद ने कहा था कि बबर खालसा इंटरनेशनल पूरे जोश के साथ वापसी की तैयारी में है। लेकिन उसकी मंशा अब दिल्ली को केन्द्र बनाकर पूरे भारत में हिंसक गतिविधियों को अंजाम देने की है। सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार पुनर्जीवित हो रही इस अंतरराष्ट्रीय स्तर की आतंकी शक्ति को प्रारंभ में ही दबा देने की जरूरत है। अमरीका, इंग्लैंड और कनाडा में बबर खालसा इंटरनेशनल को आतंकी संगठन घोषित करके गैरकानूनी करार दे दिया गया है। परंतु पाकिस्तान और अरब देशों में इस संगठन का दायरा बढ़ाने की पूरी संभावनाएं मौजूद हैं। दिल्ली और पंजाब पुलिस ने अपनी संयुक्त कार्रवाई से भविष्य की गोद में पनाह ले रहे इस खास आतंकी गिरोह का पर्दाफाश करने में सफलता प्राप्त की है। क्या दिल्ली और केन्द्र की सरकारें हरकत में आकर अपनी कर्तव्यनिष्ठा का परिचय देंगी?
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