मुक्तिदायिनी काशी की महागा
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मुक्तिदायिनी काशी की महागाथा
वेदों-पुराणों से लेकर आधुनिक युग में लिखे गए ग्रंथों में साक्षात् शिव की नगरी काशी को अत्यंत पवित्र और मुक्तिदायिनी माना गया है। माना जाता रहा है कि इस पावन धरा में आकर प्राण त्यागने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसी काशी नगरी के हृदय क्षेत्र से प्रवाहित होने वाली गंगा के किनारे अवस्थित श्मशान भूमि मणिकार्णिका घाट की पृष्ठभूमि पर लिखे गये और अपनी तरह के पहले उपन्यास 'काशी मरणान्मुक्ति' का तीसरा संस्करण हाल में ही प्रकाशित होकर आया है। उपन्यास के लेखकद्वय मनोज ठक्कर और रश्मि छाजेड़ ने इसके लेखन के लिए सर्वथा नई शैली का चयन किया है। उसे पढ़ते समय भले ही एक तारतम्य युक्त कथानक का बोध होता है परन्तु वास्तव में यह एक गहन आध्यात्मिक और दार्शनिक रहस्यों से पर्दा उठाती एक वैचारिक कृति है। रहस्य, जो जीवन-मरण से जुड़े असंख्य सवालों के महीन धागों से बुने गए हैं, जिनके उत्तर खोजने के बारे में प्राय: हम नहीं सोचते, क्योंकि इन प्रश्नों के उत्तर पाने के लिए हमें उस अंतहीन गहनता में डूबना होगा, जहां आत्मलोक के अतिरिक्त कोई अन्य प्रकाश-स्रोत नहीं होता।
राघव और यशोदा को श्मशान में मिले शिशु 'महा' की आत्मचेतन अंतयात्रा की कथा ही है 'काशी मरणान्मुक्ति'। रहस्य रोमांच से भरी बर्हिजगत की यह यात्रा अंतर्मन की उन वीथियों से भी होकर गुजरती है, जहां की अनुभूति सदियों में किसी-किसी को होती है। लेकिन प्रशंसा करनी चाहिए लेखकों की, जिन्होंने चेतन और अवचेतन मन पर घटित अनुभूतियों को पूरी सशक्तता से व्यक्त किया है। इस कृति से जहां एक ओर वेदों-पुराणों में पूजनीय और पवित्र मानी गयी काशी नगरी के महात्म्य को पुन: सिद्ध किया गया है, वहीं दूसरी ओर यह कृति धार्मिक संकीर्णताओं से भी उबारने का कार्य करती है। वस्तुत: यह कृति निर्गुण-सगुण के भेद और उनके अंतर्संबंधों को भी सरल शब्दों में स्पष्ट करने का प्रयत्न करती है। इसमें ऐसे पौराणिक रहस्यों को भी उद्घाटित किया गया है जिसके बारे में सहज कल्पना करना आसान नहीं है। शिव की आत्म व्याख्या में दिए गए वक्तव्य अपने आपमें अद्भुत हैं और बार-बार किसी वेद या उपनिषद को पढ़ने का आभास कराते हैं। शिवनगरी काशी के महात्म्य के बारे में काफी कुछ लिखा जा चुका है लेकिन इस औपन्यासिक कृति में रचनाकारों ने जिस नवीनता के साथ अनुभूति को आध्यात्मिक संस्पर्श देते हुए कथानक में पिरोया है वह अपनी तरह का अनूठा प्रयोग है।
पुस्तक का नाम – काशी मरणान्मुक्ति
लेखक – मनोज ठक्कर, रश्मि छाजेड़
प्रकाशक – शिवा ॐ साई प्रकाशन (म.प्र.)
95/3, बल्लभ नगर,
इंदौर-452003
मूल्य – 360 रु. पृष्ठ – 510
website –www.kashimarnanmukti.com
संवेदनाओं के बहुआयामी स्वर
सुपरिचित साहित्यसेवी डा. दयाकृष्ण विजयवर्गीय 'विजय' ने अनेक विधाओं में सार्थक साहित्य रचा है। मूलत: कवि प्रवृत्ति के रचनाकार विजय ने कहानियां, नाटक, एकांकी, शोध, समीक्षाएं और निबंध भी लिखे हैं। उनकी गजलों के भी तीन संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। सद्य: प्रकाशित गजल संग्रह 'संवेदना के स्वर' में उनके भीतर की संवेदनाओं के बहुआयामी स्वर साफ तौर पर महसूस किए जा सकते हैं। इसमें एक ओर देश प्रेम, समाजोत्थान, वर्तमान समय की विद्रूपता की पड़ताल, राजनीति के गिरते स्तर, अमानवीयता के विस्तार के स्वर मौजूद हैं तो दूसरी ओर रिश्तों, भावनाओं, आध्यात्मिक मान्यताओं, उच्च मानवीय गुणों की स्थापना के प्रेरक स्वर भी सुने जा सकते हैं। संग्रह में संकलित कुल 108 गजलों में से अधिकांश पठनीय और अपने अर्थ-गांभीर्य के चलते ध्यान आकृष्ट करने वाली हैं। कुछ गजलों में भौतिक प्रेम को भी सरल ढंग से व्यक्त किया गया है।
मानवता की महत्ता और इसे अपनाने की प्रेरणा एक अन्य गजल में देते हुए वे लिखते हैं-
मानवता का नाम दूसरा बंधुता
छोटा मान किसी का मत अपमान कर।
वर्तमान समय की विद्रूपताओं के बेशुमार चेहरों को बेनकाब करते हुए वे कहते हैं-
लिखते निर्धन की गाथा तो आंसू ही,
लड़ता महंगाई से प्रतिदिन वेतन है।
संक्षेप में कह सकते हैं कि 'संवेदना के स्वर' संग्रह की गजलें आज के संघर्षशील समाज की उपज हैं। साथ ही इसमें वर्तमान समय और समाज की अनेक विसंगतियां भी पूरे पैनेपन के साथ व्यक्त हुई हैं। हिंदी गजल परम्परा में 'संवेदना के स्वर' कुछ नया जोड़ेगी, इसमें संदेह नहीं।
पुस्तक का नाम – संवेदना के स्वर
रचनाकार – डा. दयाकृष्ण विजयवर्गीय 'विजय'
प्रकाशक – विजय प्रकाशन
228 बी, सिविल लाइन्स,
कोटा (राजस्थान) 324001
मूल्य – 125 रु. पृष्ठ – 116
सम्पर्क – 094605708883
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