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श्रद्धाञ्जलि : बाल आप्टे
राजनीति में शुचिता के प्रकाश स्तंभ
गत अप्रैल माह में श्री बलवंत परशुराम आप्टे उपाख्य बाल आप्टे का राज्यसभा का दूसरा कार्यकाल पूरा हुआ। इस अवसर पर उनके मित्रों और कार्यकर्ताओं ने एक शुभेच्छा कार्यक्रम आयोजित किया। अपने संक्षिप्त उद्बोधन में श्री आप्टे ने कहा कि गत वर्ष अस्वस्थ होने के बाद अब वे यह नहीं कह सकते कि उन्हें कुछ नहीं होता, जैसा वे हमेशा कहा करते थे। इससे पहले तक वे पूरी तरह स्वस्थ थे। नियमित आसन व ध्यान के साथ संयमित जीवन का इसमें बहुत योगदान था। दिल्ली से मुम्बई जाने के बाद भी उन्होंने अपना चिकित्सा-परीक्षण कराया जिसमें उन्हें पूरी तरह ठीक पाया था। हाल ही में उनकी सहधर्मिणी निर्मला ताई के घुटनों का आपरेशन हुआ था, जिसके कारण कुछ समय के लिये वे पुत्री जाह्नवी के घर मुम्बई चले गये थे। पत्नी के स्वास्थ्य लाभ के बाद वे अपने घर 'गिरीश' जाने की योजना बना ही रहे थे कि उन्हें सांस लेने में कुछ कठिनाई अनुभव होने लगी। 6 जुलाई को श्री आप्टे को हिन्दुजा अस्पताल ले जाया गया जहां उन्हें भर्ती कर लिया गया।
अस्पताल में उनका इलाज तो चल रहा था किन्तु अचानक ऐसी स्थिति आने का कारण डाक्टर भी नहीं समझ पा रहे थे। तरह- तरह की जांच होती रहीं और चिकित्सा चलती रही किन्तु उनकी स्थिति बिगड़ती ही गयी। फिर उन्हें 'वेंटिलेटर' (कृत्रिम सांस) पर ले जाना पड़ा। शरीर के अवयव दिन-प्रतिदिन शिथिल होते जा रहे थे। 15 जुलाई की शाम डाक्टरों ने जवाब दे दिए और ईश्वर से प्रार्थना करने को कहा। 17 जुलाई को अपराह्न 3.10 बजे वेंटिलेटर पर रहते हुए ही उन्होंने अन्तिम सांस ली।
बाल्यकाल से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक रहे श्री आप्टे 1960 के दशक में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् से जुड़े। इसके बाद प्राय: चार दशकों तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् ने उनके नेतृत्व में अपनी यात्रा पूरी की। वे 1974 में परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गये। यही वह समय था फिर गुजरात में नवनिर्माण आंदोलन प्रारंभ हो चुका था। बिहार में आंदोलन की गूंज सुनाई देने लगी थी। 1974 का यह वर्ष अभाविप की स्थापना का रजत जयन्ती वर्ष भी था। मुंबई में संपन्न तब तक के सबसे बड़े राष्ट्रीय अधिवेशन में श्री आप्टे को अध्यक्ष चुना गया, साथ ही मंहगाई और भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन को देशव्यापी बनाने की घोषणा भी की गयी। फिर देश में आपातकाल की घोषणा हुई तथा विद्यार्थी परिषद् ने इसके विरुद्ध भूमिगत आंदोलन प्रारंभ कर दिया। दिसम्बर, 1975 में श्री आप्टे को गिरफ्तार कर लिया गया और मीसा (आन्तरिक सुरक्षा कानून) के अंतर्गत नजरबन्द कर दिया गया। 1977 में चुनाव की घोषणा के बाद ही उनकी रिहाई हो सकी थी।
इस बीच मुम्बई के विधि महाविद्यालय, जहां वे प्राध्यापक थे, से उनकी सेवा समाप्त की जा चुकी थी। अत: उन्हें व्यावसायिक रूप से वकालत को अपनाना पड़ा लेकिन परिषद से उनका प्रगाढ़ संबंध बना रहा। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को गढ़ने वाले शिल्पियों में श्री आप्टे की प्रभावी भूमिका थी। संगठन का नेतृत्व किया, यह कहने से शायद बात पूरी नहीं होती। यशवंतराव केलकर हों या बाल आप्टे, उन्होंने संगठन को जिया था। कार्यकर्ता से जिन गुणों, मूल्यों की अपेक्षा की, अपने व्यक्तिगत जीवन में उन्हें उतारा।
जो लोग आप्टे जी को निकट से जानते हैं वे यह भी जानते हैं कि उन्हें मूल्यों से डिगा पाना कठिन ही नहीं, असंभव था। जीवन के उतार-चढ़ाव में उन्होंने हर कठिनाई को अपनी दृढ़ता से पार किया। सरल इतने, कि बड़ी से बड़ी गलती को मानवीय भूल मान कर क्षमा करने में पल भर न लगायें। कठोर इतने, कि सिद्धान्त के विरुद्ध किसी भी बात को मनवा लेना असंभव, चाहे वह बात कितना भी बड़ा व्यक्ति कह रहा हो। जब सब ओर पतन के आलेख लिखे जा रहे हों, तब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का एक कार्यकर्ता राजनैतिक जीवन में प्रकाश स्तंभ के रूप में खड़ा रहे, यह संगठन के लिये गौरव का विषय है। राज्यसभा में आना अथवा कार्यकाल पूरा कर जाना, यह कोई नयी अथवा विशेष बात नहीं है। विशेष है उनका कृतित्व।
पुणे के निकट खेड तालुका में राजगुरुनगर नामक एक गांव में श्री परशुराम आप्टे के पुत्ररूप में 18 जनवरी, 1939 को श्री बलवंत आप्टे ने जन्म लिया था। गांव की ऐतिहासिकता इस तथ्य से ही जानी जा सकती है कि शहीद भगत सिंह के साथ फांसी का फंदा चूमने वाले राजगुरु भी इसी गांव के थे। ऊर्जा के धनी इस गांव में श्री आप्टे के पिता ने न केवल स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया बल्कि सामाजिक परिवर्तन के भी अग्रदूत रहे। पिता के संस्कार पुत्र में सहज रूप में ही विकसित हुए।
राज्यसभा में आने के बाद उन्होंने राजगुरुनगर की छोटी-छोटी समस्याओं को दूर करने का काम प्राथमिकता के आधार पर किया। पिता की स्मृति में आयोजित होने वाले कार्यक्रम में वे अत्यंत व्यस्त रहते हुए भी उपस्थित रहने का सदैव प्रयास करते। इस बार जब बीमार पड़े तो एक कार्यकर्ता से मन की बात कह ही दी। बोले, लगता है कि बीमारी साथ नहीं छोड़ रही, अब यही अच्छा है कि चल कर राजगुरुनगर में रहा जाय। लेकिन शायद ईश्वर को यह स्वीकार नहीं था।
गांव में ही प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिये बाल आप्टे मुंबई आये तो यहीं के होकर रह गये। विवाह हुआ निर्मला ताई से, जो स्वयं विद्यार्थी परिषद की कार्यकर्ता रहीं। उनकी पुत्री डा. जाह्नवी चिकित्साशास्त्र (डाक्टरी) की पढ़ाई पूरी करने के बाद अ.भा. विद्यार्थी परिषद की दो वर्ष तक पूर्णकालिक कार्यकर्ता रहीं। पुत्री का विवाह भी परिषद में पूर्णकालिक कार्यकर्ता रहे शिरीष केदारे से हुआ। आप्टे जी के परिवार में यूं तो तीन ही लोग हैं लेकिन उनके विस्तृत परिवार में अभाविप, भाजपा और संघ के सैकड़ों-हजारों कार्यकर्ता शामिल हैं।
छात्र संगठन को दिशा देने के बाद राजनैतिक क्षेत्र में उनके जीवन की एक तरह से दूसरी पारी थी। दोनों ही पारियों को उन्होंने सफलता के साथ-साथ सार्थकता से पूरा किया। उन्हें शत्-शत् नमन। प्रतिनिधि
राष्ट्रीय मुस्लिम मंच का 11वां राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविर सम्पन्न
राष्ट्रीय जीवन का अभिन्न अंग हैं भारत के मुसलमान
–कुप्.सी. सुदर्शन, निवर्तमान सरसंघचालक, रा.स्व.संघ
विगत दिनों राष्ट्रीय मुस्लिम मंच का 11वां राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविर राजस्थान के पुष्कर में सम्पन्न हुआ। इसमें राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के देशभर के कार्यकर्ताओं ने भाग लिया।
तीन दिवसीय शिविर के उद्घाटन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निवर्तमान सरसंघचालक श्री कुप्.सी. सुदर्शन ने कहा कि हम सब हिन्दू हैं। जामा मस्जिद के इमाम के साथ घटी एक घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि जब इमाम हज करने मक्का गये तो उनसे पूछा गया कि क्या वे हिन्दू हैं? जब इमाम ने न कहा तो उनसे कहा गया कि वे हिन्दुस्थान से आये हैं इसलिए वे हिन्दू ही हैं। शिवाजी महाराज ने भी जब अपना स्वराज्य स्थापित किया तो कहा कि यह हिन्दवी स्वराज्य है। अत: हम सब हिन्दू हैं और यह हमारा देश हिन्दुस्थान है।
श्री सुदर्शन ने कहा कि 1857 की लड़ाई अंग्रेजांे के विरुद्ध हिन्दू और मुसलमान ने मिल कर लड़ी थी। उसके बाद अंग्रेजांे ने इन दो समुदायों के बीच विभेद पैदा कर 'फूट डालो और राज करो' की नीति अपनाई। उसी नीति को कांग्रेस ने आजादी के बाद भी जारी रखा और दोनों को मिलने नहीं दिया। मुसलमानांे को केवल वोट बैंक बनाकर रख दिया, परन्तु उनके विकास का कोई ख्याल नहीं रखा। भारत का मुसलमान बाहर से नहीं आया। वह इस देश के राष्ट्रीय जीवन का अभिन्न अंग है।
श्री सुदर्शन ने संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य श्रीगुरुजी के प्रयास से कश्मीर के भारत में विलय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सरदार पटेल ने श्रीगुरुजी को कश्मीर के महाराजा हरिसिंह के पास भेजा और श्रीगुरुजी ने कश्मीर का भारत में विलय करने के लिए महाराजा का मन बना लिया। इस तरह महाराजा हरिसिंह ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये।
शिविर के दूसरे दिन रक्तदान शिविर का आयोजन हुआ। इस अवसर पर संबोधित करते हुए रा.स्व.संघ के अ.भा. कार्यकारी मंडल के सदस्य श्री इन्द्रेश कुमार ने कहा कि रक्तदान शिविर के माध्यम से मंच के सेवा विभाग का भी प्रारम्भ हो गया है। रक्तदान के बारे में बहुत गलत धारणाएं हैं हमें उनको दूर करना होगा। यह ईश्वरीय कार्य है और हर किसी को साल में एक बार रक्तदान करना चाहिए। उन्होंने कहा कि रक्त का धर्म इंसानियत है और जिंदगी कि हिफाजत करना है।
शिविर के एक अन्य सत्र को संबोधित करते हुए रा.स्व.संघ के अ.भा. सह-सम्पर्क प्रमुख श्री अरुण कुमार ने कहा कि जम्मू-कश्मीर की समस्या के मूल में ठीक जानकारी का नहीं होना है। कश्मीर में असली समस्या तो अलगाववाद और आतंकवाद की है। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर की समस्या का हल उसके बारे में सही जानकारी देश में प्रचारित करना है।
शिविर में निश्चित किया गया कि जम्मू-कश्मीर के संबंध में वार्ताकारों की रपट के विरोध में देशभर में आगामी 9 अगस्त से 15 अगस्त तक रपट को जलाने के कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। इस मुद्दे पर हस्ताक्षर अभियान 26 अक्तूबर, 2012 से अप्रैल, 2013 तक पूरे देश में चलाया जाएगा। साथ ही प्रमुख स्थानों पर संगोष्ठी, परिसंवाद जैसे कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। शिविर के समापन पर श्री इन्द्रेश कुमार ने मंच की राष्ट्रीय कार्यकारिणी और राष्ट्रीय परिषद के गठन की घोषणा की। सुषमा पाचपोर
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