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अन्धा विरोध और अन्धा समर्थन
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल (एसआईटी) कोई सबूत नहीं पा सका, बल्कि इसके विपरीत अपनी रपट में उसने मोदी द्वारा दंगे से निपटने के तरीके की प्रशंसा की। पर मोदी विरोधियों की मानसिक सुई तो 2002 में वामपंथी लालबुझक्कड़ों द्वारा किये अप्रचार में अटकी हुई है। वे कहते हैं– 'हम 2002 को नहीं भूल सकते'। कौन कहता है उसे भूलो, पर उसकी अब स्पष्ट होती जा रही सच्चाई और उसके बाद बीते दस वर्ष भी तो याद करो। नानावती आयोग, गुजरात उच्च न्यायालय, एसआईटी और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मोदी को राहत देने वाले घटनाक्रम की ओर भी तो देखो जिसने वामपंथी दुष्प्रचार का कुंहासा साफ कर दिया है। पर यहां ये लोग अंधे हो जाते हैं। कुतुबुद्दीन अंसारी, अमदाबाद का वह शख्स, जो 2002 के दंगे में सेकुलर मीडिया का 'पोस्टर बॉय' बन गया था। वह आंखों में आंसू, चेहरे पर विवशता, होठों पर जान बख्शने की विनती तथा दोनों हाथ जुड़े हुए– भीड़ के सामने घिघिया रहा था। उसकी भी असलियत सामने आ चुकी है। बाद में वामपंथी लालबुझक्कड़ उसे पश्चिम बंगाल ले गये थे। पांच साल पहले वह लाल स्वर्ग को लतिया कर वापस अमदाबाद लौट आया। आज उसके चेहरे पर मुस्कान है, शरीर में उमंग व उत्साह। नरेन्द्र मोदी द्वारा किये गये विकास के फल वह भी चख रहा है। उसने अमदाबाद के पुलिस आयुक्त को चिट्ठी लिखी कि वे उसका 2002 का 'रोतेला' फोटो मीडिया में पुन: आने से रोकें, वह गुजरा हुआ, दफनाया हुआ कल है, जो व्यर्थ ही आज की खुशियों में खलल डालता है। गुजरात का विकास सर्वसमावेशी है, उसके फल हिन्दू–मुसलमान सब चख रहे हैं। सेकुलरों के आंख–कान इन सब बातों के लिए बंद हैं।
अगर नीतीश कुमार का हिन्दुत्व व मोदी–विरोध (मोदी विरोध का कारण भी मूलत: हिन्दुत्व–विरोध ही है।) अंधा है तो उनका राष्ट्रपति पद के लिए कांग्रेसी प्रत्याशी प्रणव मुखर्जी का समर्थन भी अंधा है। नीतीश आपातकाल (1975-77) के पक्के विरोधी रहे हैं। वे जान लें कि इन प्रणव मुखर्जी द्वारा आपातकाल में की गयी कम से कम दो कार्रवाइयों को शाह आयोग ने गैर–कानूनी ठहराया। पहली–जयपुर की महारानी गायत्री देवी और उनके पति कर्नल भवानी सिंह की विधि–विरोधी गिरफ्तारी तथा दूसरी– भारतीय स्टेट बैंक के 'चेयरमैन' की नियम–विरोधी नियुक्ति। यदि वर्तमान समय की ओर देखें तो देश की अर्थव्यवस्था गर्त्त में पहुंचाने में वित्तमंत्री के नाते उनका 'योगदान' भी नीतीश ने अनदेखा किया है। फिर प्रणव जिस कांग्रेस पार्टी के प्रतिनिधि हैं, उसके शासनकाल में 1969 में अमदाबाद तथा आसपास भड़के दंगे इतने तीव्र थे कि गांधी जन्मशती वर्ष में भारत सरकार के मेहमान बनकर आये 'सीमांत गांधी' खान अब्दुल गफ्फार खान को गांधी समाधि पर तीन दिन के अनशन पर बैठना पड़ा था। तब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी विवशता में खुद अमदाबाद गयीं और वहां कांग्रेसी मुख्यमंत्री हितेन्द्र देसाई को निर्देशित करते हुए दंगा–विरोधी कमान संभाली। पर वे जिस समय अमदाबाद में यह बताने के लिए प्रेसवार्ता कर रही थीं कि अब पुन: शांति स्थापित हो गयी है, ठीक उसी समय गुजरात की राजधानी में 15 लोग मारे गये। 1984 में सिखों के नरसंहार, जिसमें न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्र और न्यायमूर्ति नानावती दोनों आयोगों के अनुसार 3874 केशधारी (सिख) कत्ल किये गये तथा 131 गुरुद्वारे तोड़े गये, और ये सब कांग्रेसियों ने किया।
–अजय मित्तल
97, खन्दक, मेरठ (उ.प्र.)
श्री मनमोहन शर्मा की रपट 'संप्रग सरकार की शर्मनाक साजिश' पढ़ी। कांग्रेस सबसे बड़ी साम्प्रदायिक पार्टी है, जो हर काम सम्प्रदाय विशेष के लिए करती है। जो दल या व्यक्ति उसके साम्प्रदायिक कार्यों का समर्थन करते हैं, उन्हें 'सेकुलर' और जो विरोध करते हैं, उन्हें 'साम्प्रदायिक' कहा जाता है। यह 'परिभाषा' कांग्रेसियों ने गढ़ी है। कितनी शर्म की बात है कि इस देश में साम्प्रदायिकता के बीज सरकारी स्तर पर बोए जा रहे हैं।
–चन्द्रमोहन चौहान
165-सी, तलवंडी, कोटा (राजस्थान)
मजहब के आधार पर मुस्लिमों को आरक्षण और मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों के पुलिस थानों में मुस्लिम अधिकारियों की नियुक्ति- इस देश की एकता को खण्डित करने का प्रयास है। सच्चर समिति और रंगनाथ मिश्र आयोग की सिफारिशें बहुत ही घातक हैं। संप्रग सरकार ने वोट बैंक के लिए जानबूझकर ऐसी तथ्यहीन रपटें तैयार करवाई हैं।
–रीतावली पाण्डेय
देवरिया (उ.प्र.)
इस समय पूरा देश आतंकवादियों की करतूतों से त्रस्त हो रहा है। देश के गद्दार विदेश में बैठकर भारत को समाप्त करने की साजिश रच रहे हैं। किन्तु दुर्भाग्य यह है कि संप्रग सरकार उन आतंकवादियों को खत्म करने के बजाय पूरा दिमाग और पैसा इस बात पर खर्च कर रही है कि मुस्लिमों को किस तरह कांग्रेस के पक्ष में लाया जाए। यह बहुत ही देशघातक कदम है। लोग कांग्रेस को कभी माफ नहीं करेंगे।
–वीरेन्द्र सिंह जरयाल
28-ए, शिवपुरी विस्तार, कृष्ण नगर, दिल्ली-110051
सोनिया निर्देशित संप्रग सरकार मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में सुरक्षा की बागडोर पूर्णत: मुस्लिमों के हाथों में देकर क्या सन्देश देना चाहती है? इससे अराजकता पैदा हो सकती है। गैर-मुस्लिमों में भय पैदा हो सकता है। सरकार का यह कदम घोर निन्दनीय है। सरकार राष्ट्रधर्म का पालन करे। वह समाज को अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक के आधार पर न देखे। वरना लोगों में दूरियां बढ़ेंगी, आपसी भाईचारा खत्म होगा।
–उदय कमल मिश्र
गांधी विद्यालय के समीप, सीधी-486661 (म.प्र.)
संप्रग सरकार साम्प्रदायिकता और कट्टरवाद को बढ़ावा देकर राष्ट्र विभाजन का मार्ग तैयार कर रही है। अपने आपको पंथनिरपेक्ष कहने वाले राजनीतिक दलों, विशेषकर कांग्रेस का कोई दीन-ईमान रह ही नहीं गया है। कांग्रेस एक दीमक की भांति इस राष्ट्र को काष्ठ मानकर खा रही है।
–सूर्यप्रताप सिंह सोनगरा
कांडरवासा, रतलाम (म.प्र.)
पंथनिरपेक्षता की आड़ में इस देश का पूरी तरह इस्लामीकरण करने का षड्यंत्र चल रहा है। मुस्लिमों को पुलिस में आरक्षण, अर्द्धसैनिक बलों में आरक्षण, शिक्षण-संस्थानों में आरक्षण- इन सबकी परिणति इस्लामीकरण में ही होगी। बहुत दु:ख होता है कि बहुसंख्यक हिन्दू समाज आसन्न खतरों को भांप नहीं पा रहा है या जानबूझकर चुप है।
–कुन्ती रानी
वार्ड नं.-36, कटिहार (बिहार)
यदि यूं ही मुस्लिमों की देशघातक मांगें पूरी होती रहीं तो आगे स्थिति भयावह हो सकती है। यह भी मांग की जा सकती है कि मुस्लिम विचाराधीन कैदियों की न्यायालय में सुनवाई केवल मुस्लिम न्यायाधीश ही करें। जब तक मुस्लिम न्यायाधीश पर्याप्त संख्या में न हों तब तक मुस्लिम कैदियों को जेल में ही रखा जाए। सरकारी अस्पतालों में मुस्लिम रोगियों का इलाज केवल मुस्लिम डाक्टर ही करें। रेल गाड़ियों में महिला डिब्बे की तरह 'मुस्लिम डिब्बे' जोड़े जाएं। उर्स के समय अजमेर शरीफ जाने वालों के लिए विशेष रेलगाड़ी चलाई जाए, जिसमें चालक, टिकट निरीक्षक, गार्ड सभी अनिवार्य रूप से मुस्लिम हों।
–परमानन्द रेड्डी
डी/19, सेक्टर-1, देवेन्द्र नगर, रायपुर (छ.ग.)
सत्ता-लोभी और मजहबी कट्टरवादी 'सेकुलर' शब्द को लेकर लोगों को भ्रमित कर रहे हैं। हिन्दुओं की बहुलता के बावजूद भारत में सभी मत-पंथ के लोगों को पूरी आजादी के साथ आगे बढ़ने का अवसर मिल रहा है। यानी हिन्दू वास्तव में पंथनिरपेक्ष हैं, वहीं अन्य देशों में, विशेषकर मुस्लिम देशों में गैर-मुस्लिमों का क्या हाल है, यह पूरी दुनिया जानती है।
–प्रभाकर आत्माराम
2807/4 अ, बी वार्ड, मंगलवार पेठ, एफ टी-8
श्री महालक्ष्मी संकुल, बेलबाग, कोल्हापुर-416012 (महाराष्ट्र)
सम्पादकीय 'हिन्दुत्व से चिढ़ क्यों?' में एक अच्छा सवाल उठाया गया है। चूंकि आज भी हिन्दू सहनशील और उदार है। छद्म सेकुलरों को पता है कि हिन्दुओं की कमजोरी का लाभ कैसे उठाया जा सकता है। अब तो सेकुलरवाद की परिभाषा नए सिरे से तय होनी चाहिए।
–बी.एल. सचदेवा
263, आई.एन.ए. मार्केट, नई दिल्ली-110023
'मुस्लिम पुलिस सेवा'
चर्चा है कि केन्द्र सरकार सच्चर कमेटी की आड़ में 'मुस्लिम पुलिस सेवा' शुरू करने जा रही है। राजेन्द्र सच्चर शुरू से ही एक विवादास्पद व्यक्ति रहे हैं। जब उन्हें मुस्लिम समाज के अध्ययन की जिम्मेदारी सौंपी गई थी तभी उनका कड़ा विरोध राष्ट्रवादियों को करना चाहिए था। यदि ऐसा होता तो शायद अभी 'मुस्लिम पुलिस सेवा' की बात आती ही नहीं।
–अनिता मिश्रा
25, विवेकानन्दपुरी, हाइडिल कॉलोनी, पो. न्यू हैदराबाद, लखनऊ-226007 (उ.प्र.)
सत्यता सामने आई
श्री मुजफ्फर हुसैन के लेख 'भारत सरकार ही बढ़ा रही है कट्टरवाद' में सौ प्रतिशत सत्यता सामने आई है। संप्रग सरकार अलगाववादियों और जिहादियों को प्रोत्साहित करने वाला काम कर रही है। इसलिए यहां आतंकवादी घटनाएं होती रहती हैं। वहीं अमरीका जिहादियों के साथ बड़ी कड़ाई दिखाता है। इसलिए वहां 9/11 के बाद कोई आतंकवादी घटना नहीं हुई है।
–हरेन्द्र प्रसाद साहा
नया टोला, कटिहार-854105 (बिहार)
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