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प्राण–प्रतिष्ठा दिवस (11 मई) पर विशेष
पाञ्चजन्य डेस्क
भगवान श्रीकृष्ण के देहोत्सर्ग एवं यादवों की विनाश-लीला का स्थल होने के कारण प्रभासतीर्थ महाभारत काल से ही प्रसिद्ध रहा। इस पवित्र तीर्थ में मंदिर का सर्वप्रथम निर्माण कब हुआ, इसका निर्णय कर पाना इतिहासकारों के लिए संभव नहीं हो रहा। किन्तु सन् 1025 में महमूद गजनवी ने जिस मंदिर का विध्वंस किया उसकी विशालता, भव्यता तथा उसके धार्मिक महत्व का वर्णन गजनवी के समकालीन विद्वान अलबरूनी की कलम से हमें प्राप्त होता है। वह लिखता है कि सोमनाथ पत्तन उस जगह स्थित है जहां प्राचीन वैदिक नदी सरस्वती समुद्र में गिरती है और जहां भगवान कृष्ण का देहोत्सर्ग हुआ था। अन्यत्र वह दक्ष प्रजापति द्वारा चंद्रमा को शाप देने की पौराणिक कथा का वर्णन करते हुए लिखता है कि चंद्रमा के बहुत याचना करने पर प्रजापति ने उपाय बताया कि महादेव के लिंग की प्रतिमा की पूजा करने से ही वह शापमुक्त हो सकेगा। तब चंद्रमा ने पत्थर का लिंग स्थापित किया, जो 'सोमनाथ' कहलाया-सोम अर्थात् चंद्रमा का स्वामी।
अलबरूनी ने महमूद गजनवी द्वारा मंदिर के विध्वंस का वर्णन करते हुए लिखा है कि 'महमूद ने सोमनाथ मंदिर पर हमला 416 हिजरी या 947 शक काल में किया। उसने शिवलिंग के ऊपरी हिस्से को चूर-चूर करने का आदेश दिया और शेष भाग को उसके रत्नजड़ित, कसीदाकारी-युक्त मखमली गलीचों आदि के साथ गजनी भेजने का आदेश दिया। उसके कुछ भाग को गजनी शहर की मुख्य घुड़साल में रखवा दिया। कुछ भाग को गजनी की जामा मस्जिद के प्रवेश-द्वार पर फिंकवा दिया, ताकि वहां आने वाले श्रद्धालु उन्हें अपने पैरों से रौंदकर अपने तलवों में लगी गंदगी और कीचड़ को साफ कर सकें।'
राष्ट्रीय स्वप्न
बाद के मुस्लिम लेखकों ने इस हमले और विध्वंस-लीला का बहुत विशद रोमांचकारी वर्णन किया है। महमूद गजनवी का भारत पर यह अंतिम आक्रमण था। सन् 997 से वह लगातार आक्रमण कर रहा था। सोमनाथ का मंदिर बार-बार बना, बार-बार तोड़ा गया। और इस प्रकार वह हमारी राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतीक चिन्ह बन गया। इसका पुनर्निर्माण हमारा राष्ट्रीय स्वप्न बन गया।
विक्रमी संवत् 2004 के पहले दिन पवित्र सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण की घोषणा को सुनकर केवल गुजरात में ही नहीं, पूरे भारत में हर्ष और उत्साह की लहर दौड़ गई। उन क्षणों का वर्णन करते हुए तत्कालीन केन्द्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य एन.वी. गाडगिल, जो काकासाहब के नाम से प्रसिद्ध थे, लिखते हैं- 'मैं और सरदार पटेल कई शताब्दियों पहले मुसलमानों द्वारा विध्वंसित सोमनाथ को देखने गए। वहां मेरे मन में विचार उठा कि इसका पुनर्निर्माण होना चाहिए। सरदार से चर्चा की तो उन्होंने मेरे सुझाव को स्वीकार कर लिया। उनकी स्वीकृति पाकर मैंने मंदिर के मुख्य-द्वार पर खड़े होकर घोषणा की कि भारत सरकार सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करेगी।'
एक घंटे बाद सरदार पटेल ने भी इस घोषणा की पुष्टि की। उन्होंने एक जनसभा में कहा कि 'नववर्ष के इस शुभ दिवस पर हमने संकल्प लिया है कि सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण होगा। आप और राष्ट्रवादियों को इस कार्य में अधिकाधिक सहयोग देना चाहिए। यह एक पवित्र कार्य है, जिसमें सम्मिलित होना सबका कर्तव्य है।'
जब इस संकल्प की सूचना गांधीजी को दी गई तो वे बहुत ही आनंदित हुए। उन्होंने सुझाव दिया कि सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण अवश्य होना चाहिए, किन्तु जनता के पैसे से। सरकार को उसमें पूरा सहयोग देना चाहिए, पर सरकारी पैसा उसमें नहीं लगना चाहिए।
गांधीजी की सहमति पाकर इस विषय को केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में गाडगिल द्वारा प्रस्तुत किया गया। मंत्रिमंडल ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण के राष्ट्रीय संकल्प को शिरोधार्य किया। प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू चुप रहे। केवल मौलाना आजाद ने सुझाव दिया कि मंदिर का पुनर्निर्माण करने के बजाय ध्वंसित मंदिर को उसके मूल रूप में सुरक्षित रखा जाए और पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को सौंप दिया जाए। इस सुझाव का विरोध करते हुए काकासाहब गाडगिल ने कहा, 'मंदिर के ध्वंसावशेषों को सुरक्षित रखने का अर्थ होगा कि उसके ध्वंस की पीड़ा को बनाए रखा जाए, वह हिन्दू-मुस्लिम सौहार्द के बजाय कटुता पैदा करेगा। इसलिए अच्छा होगा कि उन ध्वंसावशेषों पर सोमनाथ मंदिर का उसके पुराने भव्य रूप में पुनर्निर्माण किया जाए।' गाडगिल के इस तर्क को मंत्रिमंडल का समर्थन प्राप्त हुआ। किन्तु मौलाना आजाद एवं कुछ वामपंथी बुद्धिजीवियों के इशारे पर पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने भी यह मांग उठाई कि सोमनाथ मंदिर के ध्वंसावशेषों को सुरक्षित स्मारकों की सूची में सम्मिलित किया जाए। इस मांग को अस्वीकार करते हुए सरदार पटेल ने 9 अगस्त, 1948 को टिप्पणी लिखी कि 'इस मंदिर के प्रति हिन्दू भावना बहुत प्रबल और व्यापक है। वर्तमान स्थितियों में यह संभव नहीं है कि मंदिर की थोड़ी-बहुत मरम्मत करके या उसे बनाए रखकर हिन्दू भावना को शांत किया जा सकेगा। मंदिर में प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा हिन्दू समाज के लिए प्रतिष्ठा एवं भावना का विषय बन चुकी है।'
न्यासी मंडल
गांधीजी की इच्छा का पालन करते हुए धन-संग्रह करने के लिए 23 जनवरी, 1949 को सरदार पटेल और काकासाहब की उपस्थिति में जामनगर में एक बैठक करके आठ सदस्यों का एक न्यासी मंडल बनाने का निर्णय हुआ। 18 अक्तूबर, 1949 को सरदार पटेल ने न्यासी मण्डल के 8 सदस्यों के नामों की घोषणा की। इनमें भारत सरकार के प्रतिनिधि के नाते निर्माण, खनिज और ऊर्जा मंत्री काकासाहब गाडगिल एवं सौराष्ट्र के क्षेत्रीय आयुक्त डी.बी. रेगे सम्मिलित किए गए, तो सौराष्ट्र सरकार का प्रतिनिधित्व जामसाहब और सामलदास गांधी कर रहे थे। क.मा. मुंशी और बृजमोहन बिड़ला को जन-प्रतिनिधि के नाते मनोनीत किया गया। दानदाताओं के दो प्रतिनिधियों की जगह खाली रखी गई। क.मा. मुंशी को न्यासी मंडल की उद्देशिका तैयार करने का काम दिया गया।
15 फरवरी, 1949 को राज्य मंत्रालय ने सौराष्ट्र सरकार द्वारा मंदिर की पुनर्निर्माण योजना के लिए आवंटित भूमि पर भारत सरकार के स्वामित्व को समाप्त करके उसका पूरा अधिकार न्यासी मंडल को सौंप दिया। न्यासी मंडल की सहायता के लिए भारत सरकार ने एक परामर्शदाता समिति नियुक्त की, जिसमें गुजरात के परंपरागत वास्तुशिल्पी सोमपुरा परिवार के अलावा भारत सरकार के वास्तुकारों एवं नगर योजनाधिकारी को सम्मिलित किया गया। वास्तुकार प्रभाशंकर सोमपुरा ने मंदिर की रूपरेखा तैयार की।
सन् 1949 के अंत तक सोमनाथ कोष में पच्चीस लाख रुपए एकत्र हो गए। भारत सरकार और सौराष्ट्र सरकार की औपचारिक स्वीकृति प्राप्त होने पर 15 मार्च, 1950 को सोमनाथ न्यासी मंडल का विधिवत पंजीकरण हो गया।
8 मई, 1950 को जामसाहब ने चांदी के नंदी की स्थापना करके सोमनाथ मंदिर का शिलान्यास किया। 19 अक्तूबर, 1950 को पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने पांचवें मंदिर के ध्वंसावशेषों को गिराने व हटाने का कार्य आरंभ किया। ध्वंसावेशेषों की सफाई के साथ-साथ मंदिर का पुनर्निर्माण कार्य आरंभ करने का रास्ता साफ हो चुका था। किन्तु इसी बीच 15 दिसम्बर, 1950 को लौह पुरुष सरदार पटेल की देहलीला समाप्त हो गई। पुनर्निर्माण कार्य को जल्द-से-जल्द पूरा करके ही लौह पुरुष के अधूरे संकल्प को पूरा किया जा सकता था। अत: मंदिर के निर्माण कार्य को द्रुतगति से आगे बढ़ाया गया।
नेहरू का विरोध
केवल पांच माह की अल्पावधि में मंदिर की सुदृढ़ नींव तैयार करके उस पर चबूतरा और गर्भगृह का निर्माण पूरा कर लिया गया। गर्भगृह में शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा के लिए 11 मई, 1951 की शुभ तिथि निर्धारित हो गई। यह शुभ कार्य भारतीय गणतंत्र के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद के कर-कमलों से कराने का निर्णय हुआ। डा. राजेन्द्र प्रसाद ने आश्वासन दिया कि वे इसमें अवश्य सम्मिलित होंगे। राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद से यह आश्वासन मिलने के बाद सोमनाथ मंदिर न्यासी के अध्यक्ष के नाते सौराष्ट्र संघ के राजप्रमुख और जामसाहब नवानगर श्री दिग्विजय सिंह ने राष्ट्रपति के नाम औपचारिक निमंत्रण-पत्र भेज दिया। डा. राजेन्द्र प्रसाद ने संवैधानिक औपचारिकता को पूरा करने के लिए 2 मार्च, 1951 को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को पत्र द्वारा सूचित किया कि मैं जामसाहब नवानगर के निमंत्रण को स्वीकार करने में आपत्ति का कोई कारण नहीं देखता, क्योंकि मैं मंदिरों एवं अन्य धर्मों के पवित्र स्थलों में जाता रहा हूं। नेहरू ने उसी दिन राष्ट्रपति को पत्र भेजकर अपना विरोध सूचित किया। उन्होंने लिखा कि 'सोमनाथ मंदिर के धूमधाम भरे उद्घाटन सामारोह से आपका जुड़ना मुझे कतई पसंद नहीं है। मेरे विचार से सोमनाथ में बड़े पैमाने पर भवन निर्माण के लिए यह समय उपयुक्त नहीं है। यह काम धीरे-धीरे हो सकता था, बाद में इसमें तेजी लाई जा सकती थी, लेकिन यह किया जा चुका है। मैं सोचता हूं कि आप इस समारोह की अध्यक्षता न करते तो अच्छा होता।'
डा. राजेन्द्र प्रसाद ने 10 मार्च को नेहरू के पत्र का उत्तर देते हुए स्पष्ट कर दिया कि उस समारोह में सम्मिलित होने के लिए वे वचनबद्ध हैं। यानी डा. राजेन्द्र प्रसाद नेहरू के विरोध के बावजूद सोमनाथ गए। 11 मई, 1951 को सोमनाथ मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा के समय डा. राजेन्द्र प्रसाद ने कहा,
'बहनो और भाइयो!
हमारे शास्त्रों में श्री सोमनाथजी को बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक माना गया है और इसलिए पुरातन काल में भारत की समृद्धि, श्रद्धा और संस्कृति का प्रतीक यह मंदिर भगवान् सोमनाथ का था, जिसके चरण विशाल सागर धोता था, जिसका ललाट स्वर्ग को छूता था और जिसके विराट कक्ष में श्रद्धालु जन भारत के विभिन्न प्रदेशों और प्रांतों से एकत्र होकर भगवान शंकर के चरणों में अपरिमित श्रद्धा, भक्ति और अक्षय धन-धान्य की भेंट चढ़ाया करते थे। इस तरह यह भारत में श्रद्धा और धन का केन्द्र तथा भंडार बना हुआ था। दूर-दूर तक तथा देश-देश में इसके अतुलनीय वैभव की ख्याति फैली हुई थी। …आज इस ऐतिहासिक मंदिर के जीर्णोद्धार के पश्चात् इसके प्रांगण में भारत के कोने-कोने से आए हुए अनेक नर-पारियों का कलरव फिर सुनाई दे रहा है। …सोमनाथ का यह मंदिर आज फिर अपना मस्तक ऊंचा करके संसार के सामने यह घोषित कर रहा है कि जिसे जनता प्यार करती है, जिसके लिए जनता के हृदय में अक्षय श्रद्धा और स्नेह है, उसे संसार में कोई भी मिटा नहीं सकता। आज इस मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा पुन: हो रही है और जब तक इसका आधार जनता के हृदय में बना रहेगा तब तक यह मंदिर अमर रहेगा।'
(यह आलेख वरिष्ठ इतिहासकार श्री देवेन्द्र स्वरूप की पुस्तक 'अयोध्या का सच' से लिए अंशों पर आधारित है।)
ये कैसे विचार?
रानी कुमारी
आज भारतीय लड़कियां जमीन पर ए.के.-47 चलाकर देश की रक्षा कर रही हैं, तो आसमान पर वायुयान उड़ाकर पूरे संसार का भ्रमण कर रही हैं। कई ऐसी भारतीय बेटियां हैं, जो दुनिया की कई बड़ी कम्पनियों को चला रही हैं। भारत में कई ऐसे निजी बैंक हैं, जिनकी मुख्य कार्यकारी अधिकारी महिला हैं। हर सजग भारतीय इन बेटियों और महिलाओं की चर्चा करता है, अपनी सन्तानों को उनकी ही तरह बनने को प्रेरित करता है।
निश्चित रूप से ये सभी महिलाएं अपनी क्षमता, अपनी योग्यता, अपनी कर्मठता और अपनी मेहनत से ही आगे बढ़ी हैं। इन सबके बारे में पढ़ने से यह भी पता चलता है कि ये बेटियां अपने पारिवारिक और सामाजिक दायित्वों को भी बड़ी कुशलता से निभा रही हैं। किन्तु आज की कुछ बेटियां ऐसी हरकतें भी कर रही हैं कि पूछिए मत। इस लेख में तीन वास्तविक घटनाओं की चर्चा करके यह बताने का प्रयास किया जाएगा कि आज की पढ़ी-लिखी लड़कियों में कैसे-कैसे कुविचार पैदा हो रहे हैं, जो हर माता-पिता को सचेत करते हैं। पहली घटना है दिल्ली के मयूर विहार में रहने वाले एक सनातनी परिवार की। लन्दन से पढ़ाई पूरी कर और दिल्ली में नौकरी कर रहे एक युवक का विवाह तय हुआ। लड़की दिल्ली में पढ़ी-लिखी है, और एक बड़ी कम्पनी में कार्यरत है। सगाई के बाद एक दिन लड़की ने लड़के से कहा, मुझे तुम्हारी मां गंवार लगती है, उनसे निभेगी कैसे? वह युवक दंग रह गया। आखिर में उनकी शादी नहीं हुई।
दूसरी घटना है दिल्ली के मॉडल टाउन की। पिछले दिनों यहां रहने वाले एक बड़े व्यापारी संजीव बंसल (बदला हुआ नाम) के पुत्र अनिल बंसल (बदला हुआ नाम) का विवाह तय हुआ। अनिल बंसल ने हैदराबाद के एक नामी संस्थान से एम.बी.ए. किया है और इन दिनों वे अपने पिता के व्यवसाय को संभाल रहे हैं। लड़की आकांक्षा (बदला हुआ नाम) भी एक बड़े बाप की उच्च शिक्षित पुत्री है। विवाह परिवार वालों ने तय किया था। सगाई के बाद अनिल और आकांक्षा एक-दूसरे से मिलने-जुलने लगे। इसी दौरान एक दिन आकांक्षा ने अनिल से कहा कि हमारी सगाई हो गई, यह तो ठीक है। किन्तु मैं चाहती हूं कि शादी से पहले तुम्हारे नाम से घर हो, कारोबार हो। पिताजी को मनाकर या उन पर दबाव डाल कर ऐसा कर सको तो हम दोनों का ही नहीं, हमारे आने वाले बच्चों का भी भविष्य बन जाएगा। आकांक्षा की इन बातों से अनिल हैरान रह गया। फिर उसने कई दिनों तक आकांक्षा को यह समझाने का प्रयास किया कि पिताजी के पास जो भी सम्पत्ति है, उनके न रहने के बाद तो वह हम तीनों भाइयों की ही होगी। भाइयों में बंटवारे के बाद भी हर भाई के पास जीवन-यापन के लिए अच्छी-खासी सम्पत्ति रहेगी। फिर अभी ही …? किन्तु आकांक्षा अपनी जिद पर अड़ी रही। वह अनिल से मिलने से भी बचने लगी। आखिर में अनिल ने पूरी बात अपने परिवार को बताकर यह फैसला लिया कि वह आकांक्षा से शादी नहीं करेगा।
तीसरी घटना नोएडा की है। इस घटना में भी नाम काल्पनिक हैं। एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में काम करने वाले अभिषेक और पूजा एक-दूसरे को चाहते थे। अभिषेक अक्सर पूजा से कहता था कि हम दोनों शादी करके घर बसा लेते हैं। पर पूजा कहती थी कि शादी तक तो कोई बात नहीं, किन्तु बच्चे पैदा नहीं करूंगी। अगर यह शर्त तुम्हें मंजूर है, तो फिर शादी कर लो, अन्यथा दूसरी लड़की देखो। अभिषेक ने भी पूजा को मनाने की भरपूर कोशिश की, किन्तु पूजा अपनी शर्त छोड़ने को तैयार नहीं हुई। फिर अभिषेक ने एक दूसरी लड़की से विवाह कर लिया। हालांकि आकांक्षा और पूजा जैसी सोच रखने वाली लड़कियां अभी बहुत कम हैं। पर ऐसी लड़कियों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ेगी ही, इसमें कोई दो राय नहीं है। इसलिए गंभीर प्रश्न यह है कि आखिर कुछ लड़कियों में ऐसे 'कुविचार' क्यों आ रहे हैं? ऐसा लगता है कि ये लड़कियां पश्चिमी देशों के रहन-सहन से कुछ ज्यादा ही प्रभावित हो रही हैं। यूरोप के अनेक देशों में लड़कियां विवाह तो करती हैं, किन्तु मां बनने से उन्हें गुरेज है। उन्हें लगता है कि बच्चों को जन्म देकर वर्षों तक बंधन में क्यों बंधें? इस कारण यूरोप के कई देशों में आबादी तेजी से घट रही है। वहां हर काम के लिए बाहरी लोगों पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। उन देशों में एशियाई मूल के लोग, विशेषकर मुस्लिम बड़ी संख्या में पहुंच रहे हैं। यदि स्थिति ऐसी ही रही तो कुछ साल में अनेक यूरोपीय देश, जो अभी ईसाईबहुल हैं, मुस्लिम-बहुल हो जाएंगे।
भारत की बेटियां पश्चिम के कुविचारों से अलग रहें, यह सुनिश्चित करना हर माता-पिता का परम कर्तव्य है। प्रारंभ से बच्चों को ऐसे संस्कार दिए जाएं कि उन पर कुसंस्कारों का कभी प्रभाव ही न पड़े। और भारतीय विचार-संस्कार उनमें रच बस जाएं, तभी परिवार और समाज की अवधारणा पुष्ट हो सकेगी।
जीवनशाला
जीवन अमूल्य है। दुर्गुण और कुसंस्कार या गलत आदतें जीवन में ऐसी दुर्गंध उत्पन्न कर देती हैं कि हर कोई उस व्यक्ति से बचना चाहता है। जीवन को लगातार गुणों और संस्कारों से संवारना पड़ता है, तभी वह सबका प्रिय और प्रेरक बनता है। यहां हम इस स्तंभ में शिष्टाचार की कुछ छोटी–छोटी बातें बताएंगे जो आपके दैनिक जीवन में सुगंध बिखेर सकती हैं–
कभी भी अपने वरिष्ठों या समकक्षों को न तो उपदेश देने की कोशिश करें और न ही नैतिकता का पाठ पढ़ाएं। सबके बीच कभी भी बिना बारी या बिना जरूरत के न बोलें और न ही खुद को दूसरों पर थोपने की कोशिश करें। हमेशा ऐसी भाषा या शब्दों का प्रयोग करें, जो सबकी समझ में आएं। बातचीत के दौरान लफ्फाजी करने या शब्दों के जाल बुनने से बचें।
जानकारी न रखने वालों के सामने कभी भी कठिन विषयों पर चर्चा न करें।
कभी भी किसी की कमी या अपूर्णता पर नजरें न टिकाएं। अगर कोई व्यक्ति ऐसा है भी तो सीधे उसकी कमी या हालात के बारे में बातचीत न शुरू कर दें। या फिर बातचीत का सिलसिला ही इस बात से न शुरू कर दें।
कभी भी किसी की शारीरिक कमी, रंग–रूप, विकलांगता, हकलाने या तुतलाने की आदत का मजाक न बनाएं।
कभी भी किसी के दु:ख या दुर्भाग्य पर खुशियां न मनाएं, भले ही वह आपका दुश्मन ही क्यों न हो।
खान–पान
आजकल आम की बहार है। यह पौष्टिकता से भरपूर है। आइये इसे बोतलों में बन्द करके सदाबहार बनाकर, घर में रखते हैं।
विधि: पके आम के गूदे को निकालकर छान लें। चाशनी के लिए पानी व चीनी को मिलाकर रख दें। चीनी घुलने पर सिट्रिक एसिड डालें और उबाल आने पर पतले कपड़े से छानें और ठण्डा कर लें। ठण्डी की हुई चाशनी में आम का गूदा, धीरे-धीरे मिलाएं। पोटेशियम मेटाबाइस्लफाइट थोड़े से पानी में घोलकर डालें। रंग और सार आवश्यकतानुसार डालें। अच्छी, साफ, सूखी बोतलों में भर दें। याद रखें बोतल ऊपर से 2 इंच खाली रखें। ढक्कन को मोम लगाकर 'सील' कर दें।
सामग्री
पके आम का गूदा- 1 किलो ग्राम, चीनी- 1 किलोग्राम, पानी- 1 लीटर, सिट्रिक एसिड-5 छोटे चम्मच, पोटेशियम मेटाबाइस्लफाइट – 1.5 चम्मच, आम का सार- 1 चम्मच और पीला रंग- चुटकी भर
सूचना
आप भी अपनी कोई विशिष्ट रेसीपी भेज सकती हैं, जिसे पढ़कर लगे कि वाह क्या चीज बनाई है!
पता है–
सम्पादक, पाञ्चजन्य, संस्कृति भवन, देशबंधु गुप्ता मार्ग,
झण्डेवालां, नई दिल्ली-110055
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