पाठकीय (15 अप्रैल,2012)
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पाठकीय
15 अप्रैल,2012
आवरण कथा के अन्तर्गत श्री आलोक गोस्वामी की रपट 'डायन बन गई महंगाई' अच्छी लगी। महंगाई दिन दुगुनी-रात चौगुनी बढ़ रही है। लोग महंगाई से बहुत दु:खी हैं। आदमी जो कमाता है वह खाने में ही खर्च हो जाता है। मजदूर वर्ग में तो ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें भर पेट भोजन भी नहीं मिलता है।
–मनीष कुमार
तिलकामांझी, भागलपुर (बिहार)
के बोझ से जनता कराह रही है, पर वातानूकूलित कमरों में बैठे मंत्री और अधिकारी बता रहे हैं कि हम प्रगति कर रहे हैं। सत्ता में बैठे लोग घोटाले कर रहे हैं, विदेशी बैंकों में पैसा जमा कर रहे हैं, दूसरी ओर आम आदमी दो वक्त की रोटी के लिए भी तरस रहे हैं। यह हमारे देश की सबसे बड़ी विसंगति है।
–मनोहर 'मंजुल'
पिपल्या–बुजुर्ग, प. निमाड़-451225 (म.प्र.)
n केन्द्र सरकार की हर नीति आम आदमी के लिए परेशानी खड़ी कर रही है। सरकार जब चाहती है तब पेट्रोल, डीजल की कीमतें बढ़ा देती है। इसके बाद तो हर चीज की कीमत अपने आप बढ़ जाती है। सरकार के अन्दर जन-कल्याण की भावना बिल्कुल नहीं है, जबकि सरकार का मूल काम जन-कल्याण ही है।
–हरिहर सिंह चौहान
जंवरी बाग नसिया, इन्दौर-452001 (म.प्र.)
n महंगाई जमाखोरों की वजह से बढ़ रही है। जब तक जमाखोरों पर अंकुश नहीं लगाया जाएगा तब तक महंगाई बढ़ती रहेगी। कांग्रेसी राज की यही 'विशेषता' है कि वह जमाखोरों पर 'हाथ' रखती है। महंगाई के कारण लोग अपने भविष्य के लिए दो पैसे बचा भी नहीं पा रहे हैं। गलियों में घूम-घूम कर सब्जी आदि बेचने वाले तो बाजार दर से कई गुनी अधिक कीमत पर सामान बेचते हैं। इन पर तो कोई अंकुश ही नहीं है।
–दिनेश गुप्ता
कृष्णगंज, पिलखुवा, गाजियाबाद (उ.प्र.)
गंभीर सम्पादकीय
सम्पादकीय 'सनसनी के लिए देशहित को ताक पर न रखें' गंभीर है। सरकार और सेनाध्यक्ष के बीच क्यों, किसलिए, किसके संकेत पर विवाद पैदा किया गया, यह जांच का विषय है। प्रधानमंत्री कार्यालय से सेनाध्यक्ष का गोपनीय पत्र सार्वजनिक होता है, यह भी जांच का विषय है। प्रधानमंत्री कार्यालय पूर्व सतर्कता आयुक्त पी.जे. थामस के मामले में भी विवाद के घेरे में आया था। यदि प्रधानमंत्री कार्यालय की ही विश्वसनीयता खत्म हो गई तो फिर किस पर भरोसा किया जाए?
–प्रदीप सिंह राठौर
एम.आई.जी.-36, बी ब्लॉक, पनकी, कानपुर (उ.प्र.)
पाकिस्तानी दुष्प्रचार और हमारी सरकार
श्री नरेन्द्र सहगल का लेख 'जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तानी दुष्प्रचार विफल करे भारत' बड़ा दमदार लगा। यह भारत सरकार की लापरवाही ही है कि पाकिस्तान लाहौर दूरदर्शन केन्द्र के माध्यम से जम्मू, साम्बा, कठुआ, अखनूर, डोडा, भद्रवाह, किश्तबाड़ जैसे भारतीय नगरों में दुष्प्रचार कर रहा है। उस दुष्प्रचार को जम्मू-कश्मीर सरकार या भारत सरकार रोक क्यों नहीं रही है? अमरीका के एक हवाई अड्डे पर शाहरुख खान को रोका गया तो हल्ला मचा, पर हिन्दू धर्माचार्य तो अपने ही देश के हवाई अड्डों पर रोक लिए जाते हैं, तब हल्ला क्यों नहीं मचता है?
–हरेन्द्र प्रसाद साहा
नया टोला, कटिहार-854105 (बिहार)
मुस्लिम छात्राओं को तीस हजार
कुमुद कुमार के नाम से प्रकाशित पुरस्कृत पत्र 'मुस्लिम प्रदेश' में उ.प्र. सरकार की मुस्लिम-परस्त नीति पर नजर डाली गई है। उ.प्र. सरकार ने मुस्लिम छात्राओं को 30 हजार रु. देने की घोषणा की है। इसके पीछे विशुद्ध साम्प्रदायिक भावना है। हर वर्ग की छात्राओं को यह सुविधा क्यों नहीं? विकास में भी भेदभाव बरता जाएगा तो फिर विकास कैसे होगा? जब मुस्लिम लड़कियों को 'खैरात' मिलेगी तो अन्य छात्राएं क्या सोचेंगी, इसकी कल्पना उ.प्र. सरकार को है क्या?
–प्रो. परेश
1251/8सी, चण्डीगढ़
पाञ्चजन्य का दायित्व
पाञ्चजन्य पढ़कर बहुत अच्छा लगता है। सारे लेख और स्तम्भ मार्गदर्शक की भूमिका में होते हैं। पाठकों को सही दिशा मिल रही है। आज हिन्दू समाज दिग्भ्रमित है। इस हालत में पाञ्चजन्य का दायित्व बहुत बड़ा हो जाता है। वह अपने पाठकों को देश की वास्तविक स्थिति से ईमानदारीपूर्वक अवगत कराता रहे, यही हमारी इच्छा है।
–अनूप कुमार शुक्ल 'मधुप'
संस्कृति भवन, राजेन्द्र नगर, लखनऊ-226004 (उ.प्र.)
इनकी सुध कौन लेगा?
मुसलमानों के लिए अलग मंत्रालय, बैंकों से सस्ता ऋण, बच्चों की शिक्षा के लिए वजीफे और अन्य सुविधाएं दी जा रही हैं। यह तो माना कि जब तक देश के किसी भी वर्ग में पिछड़ापन रहेगा, सर्वांगीण विकास नहीं हो सकता, लेकिन भारतीय समाज में सिर्फ मुसलमान ही पिछड़े हों, ऐसा नहीं है। तथाकथित ऊंची जातियों में गिने जाने वाले ब्राह्मण तथा कुछ अन्य जातियों के लोग भी अत्यन्त दरिद्रता में जीवन व्यततीत कर रहे हैं। मुसलमानों की अनियंत्रित आबादी के चलते जहां कुछ लोग पिछड़े हैं, वहीं यह भी सत्य है कि उनका एक बड़ा वर्ग पढ़ा-लिखा और सम्पन्न है और औसत हिन्दू से ज्यादा सुविधापूर्ण जीवन जी रहा है। एससी, एसटी और ओबीसी के लोगों को तो सरकार ने चिन्हित कर दिया और उन्हें कुछ सुविधाएं भी दे रही है। लेकिन ऊंची जाति के इन पिछड़े लोगों की सुध कौन लेगा? अत: सरकार से अनुरोध है कि मुसलमानों की तरह ऊंची जाति के इन गरीब और पिछड़े वर्ग के अध्ययन के लिए भी एक आयोग बैठाए और उनके उत्थान के लिए योजनाएं बनाए, तभी समाज के सभी तबकों को न्याय मिलेगा, समाज का सम-उत्कर्ष होगा और राष्ट्र के परम वैभव की कल्पना साकार होगी।
–अरुण मित्र
324, रामनगर, दिल्ली-110051
जानकारी बढ़ाने वाला अंक
वर्ष प्रतिपदा विशेषांक देर से मिला। यह अंक बड़ा प्रभावशाली और जानकारी बढ़ाने वाला है। कश्मीर के सन्दर्भ में बिल्कुल सच लिखा गया है कि मुस्लिम बर्बरता के आघात से सांस्कृतिक प्रदूषण का शिकार है कश्मीर। भारत के हिन्दुओं ने अपने यहां ईसाई, मुस्लिम, पारसी, यहूदी सबका स्वागत किया है, सबको फलने-फूलने का अवसर दिया है। यह सच्चाई है कि मुस्लिम सूफियों ने सीधे-साधे हिन्दुओं का मतान्तरण कराने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
–क्षत्रिय देवलाल
उज्जैन कुटीर, अड्डी बंगला, झुमरी तलैया,
कोडरमा-825409 (झारखण्ड)
पुरस्कृत पत्र
…तो इसलिए हो रहा है आलू 'गोल'
आज खुदरा बाजार में आलू 20-22 रु. प्रति किलो मिल रहा है, जबकि मार्च के प्रथम सप्ताह तक 5-7 रु. प्रति किलो मिल रहा था। फरवरी महीने में कई दिन समाचार पत्रों में पढ़ा कि इस बार आलू की उपज बहुत ही अच्छी हुई है। किसानों ने सरकार से गुहार लगाई कि उन्हें आलू का उचित भाव दिलाया जाए। किन्तु सरकार ने कुछ नहीं किया। विरोध स्वरूप पंजाब, हरियाणा, उ.प्र., बिहार आदि राज्यों के अनेक किसानों ने सड़कों पर आलू फेंक दिया। उन पर ट्रैक्टर चलाया गया। किसानों का कहना था कि आलू रखने के लिए उनके पास जगह नहीं है। सरकार आलू खरीदकर अपने पास रखे। किन्तु सरकार सोती रही। इसलिए किसानों ने कौड़ी के भाव आलू बेच दिया। जब व्यापारियों को अनुमान हो गया कि अब किसानों के पास आलू नहीं बचा है तो उन्होंने जानबूझकर आलू का कृत्रिम अभाव पैदा किया। कुछ दिन उन्होंने बाजार तक आलू आने ही नहीं दिया। इस कारण आलू का दाम अचानक कई गुना बढ़ गया। अब आलू के बड़े व्यापारी जम कर मुनाफा कमा रहे हैं। इन व्यापारियों के पास अपने शीत गृह (कोल्ड स्टोरेज) हैं। किसानों से सस्ते दाम पर आलू खरीदकर इन लोगों ने अपने शीत गृहों को भर लिया है। अब वहीं से आलू बाजार तक पहुंच रहा है। सरकार कहती है कि उसके पास पर्याप्त शीत गृह नहीं हैं। किसानों से आलू खरीदकर वह कहां रखेगी? सवाल उठता है कि सरकार पूरे देश में शीत गृहों का निर्माण क्यों नहीं कराती है? जो सरकारें देश के कोने-कोने में 'हज हाउस' बना रही हैं, उनके पास शीत गृह बनाने के लिए पैसे नहीं होंगे, यह विश्वास से परे की बात है। ऐसे बहुत काम हैं, जिन पर सरकार पानी की तरह पैसा बहा रही है। ऐसा लगता है कि देश में मुनाफाखोरों का एक वर्ग है, जो सरकारों को शीत-गृह और अन्न गोदाम बनाने से येन-केण प्रकारेण रोकता है। मालूम हो कि देश में अधिकांश शीत गृह बड़े-बड़े व्यापारियों के हैं। लोग किसानों से माल खरीदकर अपने गोदाम भर लेते हैं। आलू उत्पादक किसान जब आलू लेकर शीत गृह पहुंचते हैं तो उन्हें कहा जाता है कि अब जगह नहीं बची है। थक-हार कर किसान सस्ते में आलू बेच देते हैं। दूरस्थ क्षेत्रों के जिन शीत गृहों में जगह होती है वहां बिजली की बड़ी समस्या है। इस कारण अनेक शीत गृह बन्द हो रहे हैं। किसानों को आलू का उचित दाम मिले, यह सुनिश्चित करना सरकार का काम है। इसके लिए सरकार पूरे देश के हर प्रखण्ड में कम से कम दो शीत गृहों का निर्माण करे, ताकि स्थानीय किसान आलू पैदा कर उनमें रख सकें और समय-समय पर वे आलू को बाजार तक पहुंचा पाएं। इससे किसानों को उचित दाम तो मिलेगा ही, साथ ही साथ उपभोक्ताओं को भी फायदा होगा। क्योंकि किसान के माध्यम से जो चीज बाजार तक पहुंचती है, वह हमेशा सस्ती रहती है। किसान तो थोड़े से मुनाफे पर ही माल बेचने को तैयार रहता है। किन्तु व्यापारी अधिक से अधिक मुनाफा कमाना चाहता है।
–गोपाल महतो
विवेकानन्द मिशन, गांधीग्राम, जिला–गोड्डा-814133 (झारखण्ड)
पञ्चांग
वि.सं.2069 तिथि वार ई. सन् 2012
ज्येष्ठ कृष्ण 8 रवि 13 मई, 2012
” ” 9 सोम 14 ” “
” ” 10 मंगल 15 ” “
” ” 11 बुध 16 ” “
” ” 12 गुरु 17 ” “
” ” 13 शुक्र 18 ” “
” ” 14 शनि 19 ” “
हिन्दू होना गुनाह
हिन्दू होना बन गया, मानो एक गुनाह
भारत–पाकिस्तान में, चली एक ही राह।
चली एक ही राह, नित्य होता उत्पीड़न
सुनने को तैयार नहीं, इस्लामी शासन।
है 'प्रशांत' भारत में वोट बैंक का चक्कर
इसीलिए हिन्दू खाता है दर–दर ठोकर
-प्रशांत
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