पाकिस्तान में गूंजी एक हिन्दू मां की पुकार"मेरी बेटी वापस कर दो!!"
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कट्टरवादियों ने रिंकल को “फरयाल” बनाया फिर नवीद से निकाह कराया
पाकिस्तान में हिन्दुओं पर दमन का नया दौर
पाकिस्तान में गूंजी एक हिन्दू मां की पुकार
आलोक गोस्वामी
26 मार्च की सुबह पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय में काफी गहमा-गहमी थी। मुख्य न्यायाधीश इफ्तिखार मोहम्मद चौधरी की अदालत में एक ओर हिन्दू समाज के प्रतिनिधि थे तो दूसरी तरफ इस्लाम के अलम्बरदार एक स्थानीय राजनीतिज्ञ कट्टरवादी मियां मिट्ठो के इर्द-गिर्द घेरा डाले हिन्दू समुदाय के लोगों पर आंखें तरेर रहे थे। सुनवाई होनी थी 19 साल की हिन्दू छात्रा रिंकल कुमारी को जबरन इस्लाम में मतांतरित कराकर एक मुस्लिम लड़के नवीद शाह से निकाह पढ़ाए जाने के मामले की।
यह वो मामला था जो आजकल उस पाकिस्तान में सुर्खियों में छाया हुआ है जहां गिनती के बचे अल्पसंख्यक हिन्दुओं की अस्मिता को सरेआम उछाला जाता है, जहां हिन्दू लड़कियों को अगवा कर इस्लाम में मतांतरित करके जबरन मुस्लिम लड़कों के साथ निकाह कराने की घटनाएं आए दिन सुनाई देती हैं, जहां हिन्दू मंदिरों पर बुलडोजर चलाकर बाजार खड़े करने के चर्चे आम हैं, जहां हिन्दू परिवार सहमे-सहमे से जीते हैं, जहां के नेताओं के लिए हिन्दुओं के मानवाधिकार रौंदे जाने लायक हैं, जहां की हुकूमत हिन्दुओं को किसी ऊंचे सरकारी ओहदे पर कभी नहीं बैठाती, जहां हिन्दुओं को अपने मृत परिजनों के अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाट नसीब नहीं होने दिया जाता, घाट की जमीन जबरन कब्जा ली जाती है, जहां से हिन्दू जान हथेली पर लिए चोरी-छिपे पलायन करके जान की अमान के लिए भारत आते रहे हैं, जहां हिन्दू कामगारों को उचित मेहनताना नहीं मिलता…और जहां कट्टरवादी मुल्लाओं के बंदूकधारी कारिंदों से घिरी बेचारी हिन्दू लड़की अदालत में कथित दबाव में उनके मन-माफिक हलफनामा देती है।
रिंकल की कहानी भी, उसके माता-पिता सुलच्छनी देवी और नंदलाल के अनुसार, ऐसी ही है। सिंध सूबे के छोटे से गांव मीरपुर मठेलो में पिछली 24 फरवरी को तड़के 19 साल की रिंकल कुमारी अपने घर से लापता हो गई। कुछ घंटों बाद उसके घर से 12 मील दूर एक मौलवी ने अपने घर से उसके माता-पिता को फोन करके कहा कि उनकी बेटी ने इस्लाम कबूलने की इच्छा जाहिर की है। सुलच्छनी देवी और नंदलाल के पैरों तले जमीन खिसक गई। आखिर वही हुआ, जिसका उन्हें डर था। उन्होंने मौलवी से फोन पर मिन्नतें कीं, बेटी को सही-सलामत वापस घर भेजने को कहा, पर फोन तड़ाक से पटक दिया गया। सूरज ढलते तक रिंकल “फरयाल बीबी” बनकर एक मुस्लिम लड़के नवीद शाह से ब्याही जा चुकी थी। मीरपुर मठेलो से निकलकर ये खबर लाहौर, कराची, इस्लामाबाद, फैसलाबाद, रावलपिंडी…तक पहुंच गई। चर्चे होने लगे, अखबारनवीस कालम भरने लगे, पर आहत हिन्दू माता-पिता का दर्द कम होने की बजाय बढ़ता रहा। इलाके के हिन्दू समुदाय का उन्हें साथ था, सो हौसला बंधा रहा। पर वहीं के पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता मियां मिट्ठो की दहशत भी कम नहीं थी। पूरे देश में रिंकल की कहानी बतियाई जाने लगी। पर नतीजा कुछ नहीं। बेटी मां-बाप के पास नहीं पहुंची। हिन्दू समुदाय के बड़े-बुजुर्गों का लगातार यही कहना था-रिंकल को बंदूक की नोक पर अगवा किया गया है। उससे इस्लाम जबरन कबूलवाया गया है। जबकि स्थानीय मुस्लिमों का कहना था- वह नवीद से निकाह करना चाहती थी, मोबाइल और इंटरनेट के जरिए वे दोनों करीब आए थे, यह सिलसिला महीनों से चल रहा था, वगैरह-वगैरह। निष्पक्ष लोगों के अनुसार, अखबारों को दिए इंटरव्यू और अदालत में हलफनामे में रिंकल ने दबाव में आकर कहा- लिखा कि उसने मर्जी से यह किया है। 27 फरवरी को निचली अदालत में रिंकल ने वह कथित हलफनामा दिया था। अदालत में इस “फतह” पर मियां मिट्ठो की बन आई। वह रिंकल को काफिले के साथ अपने परिवार की सरपरस्ती वाली एक सूफी दरगाह में ले गया। उसके कारिंदे रास्ते भर अपनी स्वचालित बंदूकों से हवा में जश्नी गोलियां दागते रहे। रिंकल और नवीद के आजू-बाजू बंदूकधारी देखे जा सकते थे। दरगाह में मियां मिट्ठो के बड़े भाई 70 की उम्र के मियां शमन ने “दुआएं” दीं। शमन ने ही इस दरगाह में रिंकल को तीन दिन पहले इस्लाम कबूलवाया था। और रिंकल ही क्यों, उसके अनुसार, पिछले साल उसने 200 लोगों को इस्लाम कबूलवाया था। उस जश्नी नजारे को देखकर हिन्दू नेताओं को बेहद गुस्सा आया, आना ही था। उन्होंने एक ही बात पूछी, अगर रिंकल ने, जैसा मुस्लिम कह रहे हैं, खुद से इस्लाम कबूला था, तो फिर ये बंदूकों की क्या जरूरत है, गोलियां क्यों दागी जा रही हैं?
कराची के मानवाधिकार कार्यकत्र्ता और एक बड़े वकील अमरनाथ मोटूमल ने कहा कि ये साफ दिखाता है कि कट्टरवादी तत्व हिन्दुओं को शर्मसार करना चाहते हैं और वे हमारी लड़कियों को जबरन हमसे दूर ले जाने पर आमादा हैं। रिंकल के लाचार माता-पिता अपना दुखड़ा लेकर निचली अदालत में गए। उन्होंने अपनी दरख्वास्त में लिखा कि उनकी बेटी को एक मुस्लिम दबंग ने अगवा कर लिया है, उन्हें न पुलिस की मदद मिली, न न्यायपालिका की, क्योंकि वे (माता-पिता) अल्पसंख्यक हैं। मियां मिट्ठो को आतंकवादी और ठग बताते हुए कहा कि वह लड़कियों को अगवा कर उन्हें अपने घर ले जाकर गलत काम करता है। सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाले नंदलाल ने जी कड़ा करके अपील करने की हिम्मत जुटाई थी। मां सुलच्छनी देवी ने बेटी की याद में बहते आंसू थामने की नाकाम कोशिश करते हुए कहा, “रिंकल मेरा खून है और मेरा खून रहेगी। बस, वो घर लौट आए। …मेरी बेटी लौटा दो।”
उधर मियां मिट्ठो अपने खिलाफ आरोपों से कन्नी काटकर कहता रहा, मैं तो बस उसके (रिंकल के) इंसानी हकों को बचा रहा हूं। मियां शमन को भी अपने किए का कोई पछतावा नहीं।
इस मामले ने मियां मिट्ठो की सत्तारूढ़ पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी में, कहते हैं, कुछ लोगों ने भवैं तरेरी हैं। सिंध सूबे के पार्टी के एक बड़े नेता को मियां का इस तरह का “बर्ताव” देखकर “बेचैनी” है। उसका कहना है कि हुकूमत हिन्दुओं को बराबरी का माहौल नहीं दे रही इसलिए जबरन मतांतरण हो रहे हैं। सूबे के स्थानीय पुलिस अधिकारी पीर मोहम्मद शाह मानते हैं कि मियां मिट्ठो की हरकतों ने हालात और बिगाड़ दिए हैं। पूरे हिन्दू समुदाय को चिढ़ाया गया, जिससे उन्हें यह भरोसा होने लगा कि बंदूक की नोक पर मतांतरण हुआ है।
26 मार्च को सुबह जब इस्लामाबाद में सर्वोच्च न्यायालय में मामले की सुनवाई हुई तो माहौल गरमाया हुआ था ही। सुनवाई के दौरान कई भावुक क्षण आए तो कई बार तनातनी भी दिखी। खचाखच भरी अदालत में मुख्य न्यायाधीश इफ्तिखार मोहम्मद चौधरी जबरन मतांतरण के दो मामले देख रहे थे-एक रिंकल का और दूसरा 29 साल की डा.लता कुमारी का। चौधरी ने कहा, दोनों मामलों में अगवा करके जबरन मतांतरित करने के गंभीर आरोप लगाए गए हैं। सुनवाई शुरू होते ही लता के पिता रमेश कुमार बेटी के प्यार में बार-बार बौराए से न्यायाधीश की कुर्सी की तरफ लपककर इनसाफ की गुहार लगाते, फिर पछाड़ खाकर गिर पड़ते। लता के घर की महिलाएं सुबक उठतीं, आंखों से आंसू ढुलक पड़ते। नंदलाल और सुलच्छनी देवी भी पथराए से सब देख-सुन रहे थे। एक मौके पर तो रमेश कुमार आपे से बाहर हो गए, वे खड़े होकर आंखों में आंसू भरकर “इनसाफ करो इनसाफ करो” चिल्ला उठे, तब पहरेदारों ने उस बेकाबू पिता को उठाकर कमरे से बाहर कर दिया। लता की मां और बहन बाहर गलियारे में जमीन पर बार-बार सिर नवाकर धार्मिक पुस्तकों पर आंखें गढ़ाए पाठ करती रहीं। मियां मिट्ठो और उसके कारिंदे मूंछों पर ताव देते रहे। लता का मामला निचली अदालत में चार सुनवाइयों के बाद सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा था। काला बुर्का पहने छह पुलिस अधिकारियों से घिरी लता जब अदालत पहुंची तो वह बेहद घबराई हुई थी। सदमे के चलते वह अदालत में कुछ बोल ही नहीं पा रही थी। उसकी ऐसी हालत देखकर मुख्य न्यायाधीश को लगा कि शायद अकेले में बोल पाए, सो उन्होंने रिंकल और लता को छोड़कर सबको कमरे से बाहर कर दिया। सुनवाई के बाद मुख्य न्यायाधीश चौधरी ने कहा कि इस मामले में आपराधिक आयाम को अनदेखा नहीं किया जा सकता। रिंकल और लता को तीन हफ्ते के लिए पुलिस की हिफाजत में रहकर अपने भविष्य के बारे में सोचना चाहिए। उसके बाद मुख्य न्यायाधीश ने आदेश दिया कि 18 अप्रैल को अगली सुनवाई होने तक दोनों मतांतरितों को पुलिस की सुरक्षा में कराची के एक महिला आश्रय स्थल-पनाह- में वापस ले जाया जाए।
रिंकल की इस पीड़ा की कसक अमरीका तक महसूस की गई। वहां के एक सांसद ब्रेड शरमन ने 13 मार्च को राष्ट्रपति जरदारी को चिट्ठी लिखकर कहा था कि सिंध में हिन्दुओं के दमन को रोकने के लिए जरूरी कदम उठाएं। रिंकल को सकुशल उसके घर वापस लौटाया जाए। लेकिन न जाने क्यों, भारत की तरफ से अभी तक इतनी बड़ी घटना पर कहीं से कोई आवाज नहीं सुनाई दी! विडम्बना तो यह है कि जिस वक्त पाकिस्तानी अदालत में रिंकल गुहार कर रही थी लगभग उसी वक्त प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह दक्षिण कोरिया में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री गिलानी को कारोबारी रियायतों पर राजी होने का शुक्रिया अदा कर उनकी पीठ थपथपा रहे थे! द
26 मार्च को रिंकल ने अदालत में यह कहा-
“पाकिस्तान में सब लोग एक-दूसरे के साथ मिले हुए हैं, यहां इंसाफ सिर्फ मुसलमान के लिए है, हिन्दू के लिए कोई इंसाफ नहीं है। मुझे यहीं कोर्ट-रूम में मार डालो, लेकिन दारूल-अमन मत भेजो, ये सब लोग मिले हुए हैं, ये हमें मार डालेंगे।”
-पाकिस्तान के के.टी.एन. चैनल पर सुनवाई की रपट देने वाले संवाददाता ने रिंकल के ये शब्द अपनी रपट में दोहराए।
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