अंतिम पृष्ठलखनऊ में "भारतीय नववर्ष मेला" बनासांस्कृतिक पहचान
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लखनऊ में “भारतीय नववर्ष मेला” बना
शशि सिंह
गत दिनों लखनऊ के बाल संग्रहालय परिसर में भारतीय नववर्ष मेला धूमधाम से सम्पन्न हुआ। “भारतीय नववर्ष मेला समिति” द्वारा आयोजित चार दिवसीय मेले की शुरुआत चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (23 मार्च) को राम कथा मर्मज्ञ संत प्रेमभूषण महाराज द्वारा हवन-पूजन और उद्बोधन से हुई। समापन (26 मार्च) सामाजिक कार्यकर्ता श्री सिराज मेंहदी द्वारा आयोजित ऐसे कवि सम्मेलन और मुशायरे से हुआ जहां केवल भारतीयता की बातें हुईं।
23 मार्च को उद्घाटन के अवसर पर संत प्रेमभूषण ने संबोधित करते हुए कहा कि जो समाज अपने अतीत, धरोहर, परंपरा और इतिहास को भूल जाता है वह जल्द ही समाप्त हो जाता है। उन्होंने कहा कि लखनऊ के पत्रकारों की पहल पर बनी “भारतीय नववर्ष मेला समिति” द्वारा आयोजित यह मेला एक अच्छा प्रयास है। इसके माध्यम से निश्चित ही राष्ट्रीयता को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने कहा कि राष्ट्र जागरण का इस तरह का प्रयास तो संतों का है, पत्रकारों के इस प्रयास में हमारे जैसे संत पूरी तरह से साथ हैं और रहेंगे। पूर्व राज्यसभा सदस्य व वरिष्ठ पत्रकार श्री राजनाथ सिंह “सूर्य” ने मेले की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डाला और कहा कि साल-दर-साल लोगों की बढ़ती भागीदारी इस बात का प्रमाण है कि यह मेला अब लखनऊ की सांस्कृतिक पहचान बन चुका है।
अथक प्रयासों से शुरू हुए मेले से इस बार राजधानी का हर वर्ग और समूह जुड़ा। पूर्व महापौर डा. दिनेश शर्मा मेले के संयोजक और सिंधी समाज के अगुआ श्री मुरलीधर आहुजा सह संयोजक रहे। इन दोनों के नेतृत्व में मेला समिति ने इस सांस्कृतिक अभियान को आगे बढ़ाया। नतीजतन पूरा समाज जुड़ गया।
सब लोगों के सम्मिलित प्रयास से चार दिन का यह मेला व्यापक जन हिस्सेदारी के साथ हुआ। मेले के दूसरे दिन (24 मार्च) की शाम अवध के बिरहा और श्री श्री रवि शंकर के “आर्ट आफ लिविंग” की सांस्कृतिक मंडली की भजन संध्या से सजी। तनु नारायण ने स्वयं गाकर लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस कार्यक्रम में मनकामेश्वर मंदिर की महंत दैव्यागिरी विशेष रूप से उपस्थित रहीं। तीसरे दिन राजधानी के कवि, साहित्यकार और संस्कृतिकर्मी श्री आदित्य द्विवेदी के संयोजकत्व में श्री विभू वाजपेयी व साथी कलाकारों ने शिव तांडव की रोमांचक और मनमोहक नृत्य-प्रस्तुति दी। इसी क्रम में प्रख्यात भजन गायक श्री किशोर चतुर्वेदी की भजन संध्या का आयोजन किया गया। समापन 26 मार्च को कवि सम्मेलन और मुशायरे से हुआ। द
17वां भाऊराव देवरस सेवा सम्मान
मालवीय जी से लें सेवा की प्रेरणा
-डा. कृष्ण गोपाल, सह-सरकार्यवाह, रा.स्व.संघ
“सेवा की दृष्टि यदि लेनी है तो वह पंडित मदनमोहन मालवीय से ली जा सकती है। जो कहते थे “मैं किसी दुखी व्यक्ति के अंत:करण में प्रवेश कर उसके दुख की वैसी ही अनुभूति कर सकूं जैसा कि वह दुखी व्यक्ति अनुभव कर रहा है”। वे स्वर्ग की कामना के स्थान पर दुखी-पीड़ित व्यक्तियों के दुखों के नाश करने में समर्थ होने की कामना करते थे”। उक्त उद्गार रा.स्व.संघ के सह-सरकार्यवाह डा. कृष्ण गोपाल ने गत 25 मार्च को लखनऊ में 17वें भाऊराव देवरस सेवा सम्मान समारोह को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। समारोह में वरदान सेवा संस्थान के प्रतिनिधि डा. सुरेश कुमार संगल तथा मेघालय शिक्षा समिति के अध्यक्ष श्री रिनोमो सुंगो को न्यास द्वारा 51,000 रुपए, अंगवस्त्र, श्रीफल एवं स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया गया।
डा. कृष्ण गोपाल ने अपने उद्बोधन में पूर्वोत्तर राज्यों की यथार्थ स्थिति का वर्णन करते हुए कहा कि अंग्रेजों ने षड्यंत्रपूर्वक वहां के लोगों के मन में यह भाव जगाने की कोशिश की कि उनका अस्तित्व अलग है। वे भारत की संस्कृति का हिस्सा नहीं हैं। उनकी सम्प्रभुता उन्हें मिले। लगभग 100 से अधिक आतंकवादी संगठन पूर्वोत्तर राज्यों में सक्रिय हैं, जो इन राज्यों को देश से अलग करने की मांग के लिए वहां के लोगों को उकसाते हैं। देश और समाज को इस विषय में चिंता करनी चाहिए।
समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित संसद सदस्य श्री राजनाथ सिंह ने अपने उद्बोधन में समाजसत्ता एवं धर्मसत्ता का नियंत्रण कम होने के लिए राजसत्ता को जिम्मेदार बताया और कहा कि सेवा कार्य करने के लिए मन का बड़ा होना जरूरी है। समारोह को पूज्य स्वामी अभयानंद सरस्वती महाराज ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम का संचालन डा. विजय कर्ण ने किया। इस अवसर पर श्री ब्रह्मदेव शर्मा “भाईजी”, डा. दिनेश शर्मा, डा. कमलेश, श्री ओमप्रकाश सहित अनेक गण्यमान्यजन उपस्थित थे। द प्रतिनिधि
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