कौन सुनेगा मणिपुर का दर्द?
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जगदम्बा मल्ल
विभिन्न प्रकार की समस्याओं से ग्रस्त उत्तर पूर्वी राज्यों का कोई हितचिंतक है भी या नहीं, केन्द्र सरकार की निष्क्रियता को देखते हुए यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से मानस पटल पर रह-रहकर उभरता है। स्वामी रामदेव व अण्णा हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की गूंज से सारा देश गुंजायमान है। वहीं दूरदर्शन, मीडिया और राष्ट्रीय समाज की नजर से दूर मणिपुरी समाज की आज कमर टूट रही है, किंतु इसकी कराह व आह सुनने वाला कोई नहीं है। मणिपुरी समाज आतंकवादियों, अर्द्ध आतंकवादियों तथा छद्म आतंकवादियों की गिरफ्त में फंस गया है। साम्प्रदायिक राजनीति ने मणिपुर को पंगु बना दिया है। लेकिन न तो केन्द्र सरकार और न ही राज्य सरकार में कोई इच्छाशक्ति या पहल दिखाई देती है जो टूटते-बिखरते मणिपुर को बचा ले।
l देशभक्त मणिपुरी समाज
मणिपुरी समाज कट्टर देशभक्त है, निष्ठावान वैष्णव हिन्दू है। भारत के वैदिक धर्म, सनातन संस्कृति, गौरवशाली इतिहास व संत-महात्माओं एवं महापुरुषों से मणिपुरी समाज भी प्रेरणा लेता है। यहां के बहुत से लोग प्रतिवर्ष मथुरा, वृंदावन, अयोध्या, वाराणसी, प्रयागराज तथा अन्य तीर्थ स्थानों की यात्रा करने जाते हैं। मणिपुर के उत्तर में नागालैंड तथा दक्षिण में मिजोरम है। पूर्व में ब्रह्मदेश (वर्मा या म्यांमार) है। नागालैंड व मिजोरम में ईसाई समाज बहुमत में है तथा वहां अलगाववादी संगठन कार्यरत हैं। अंतरराष्ट्रीय चर्च संगठनों के वहां केन्द्र हैं। कम्युनिस्ट व इस्लामी आतंकवादी संगठन वहां सक्रिय हैं। इन तीनों शत्रुओं के भाड़े के टट्टू मणिपुर विधानसभा में विधायक तक बनकर पहुंच चुके हैं। विधानसभा में ये भारत के खिलाफ तथा इन आतंकवादी व शत्रु शक्तियों के पक्ष में भाषण देते हैं। अब मणिपुर में भी ये अपना मुख्य संचालन केन्द्र बनाना चाहते हैं। चर्च की यह चाल तब तक सफल नहीं हो सकती जब तक मणिपुरी समाज हिन्दू बना रहेगा तथा वैदिक संस्कृति का अनुगमन करता रहेगा। इसीलिए मणिपुरी समाज पर भीतर तथा बाहर-दोनों तरफ से आघात किए जा रहे हैं, ताकि उसकी संजीवनी शक्ति खत्म हो जाए तथा उसे नागा तथा मीजो समाज के समान भारतवर्ष के खिलाफ खड़ा किया जा सके। मणिपुरी समाज को ईसाई बनाना, कम्युनिस्ट बनाना, मुसलमान बनाना और जो इनके जाल में नहीं आ पाते अथवा मतांतरण के चक्रव्यूह में नहीं फंस पाते, उन्हें छद्म पंथनिरपेक्ष बना देना-यह सारी कोशिशें यहां एक साथ चल रही हैं। यह सब तभी संभव हो सकेगा जब मणिपुर आर्थिक दृष्टि से कमजोर हो जाए। मणिपुरी समाज की शिक्षा-दीक्षा से भारतीयता खत्म हो जाए। वृहत्तर हिन्दू समाज से उनका धार्मिक, सांस्कृतिक तथा सामाजिक संबंध विच्छेद हो जाए।
l भारतद्रोहियों का षड्यंत्र
इस सब दृष्टि से नागा अलगाववादियों द्वारा अहूत आर्थिक नाकेबंदी के गत 28 नवम्बर को 120 दिन हो गए। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-39 (इम्फाल-कोहिमा-दीमापुर-गुवाहाटी) तथा राष्ट्रीय राजमार्ग- 53 (इम्फाल-जिरिबम-सिल्चर-गुवाहाटी) पर नाकेबंदी है (हालांकि ये पंक्तियां लिखे जाने से पूर्व गत 28 नवम्बर को आतंकी गुटों ने इस नाकेबंदी को हटाने की घोषणा की है, लेकिन पूरी तरह से नहीं, तात्कालिक रूप से)। यह आर्थिक नाकेबंदी यूनाइटेड नागा काउंसिल (यूएनसी) तथा आल नागा स्टूडेंट्स एसोसिएशन, मणिपुर (एएनएसएएम) ने लगायी है। नागाओं की मांग है कि वे मणिपुर में नहीं रहना चाहते हैं। उनकी अलग राजनीतिक इकाई बना दी जाए अथवा कोई अलग व्यवस्था कर दी जाए, जिससे कि वे मणिपुर से अलग अपनी सत्ता स्थापित कर सकें।
वास्तव में ये नागा आन्दोलनकारी उस क्षेत्र को नागालैण्ड में शामिल कर वृहत्तर नागालैण्ड का निर्माण करना चाहते हैं। और यदि ऐसा नहीं भी हो पाता है तो कम से कम मणिपुरियों को कमजोर तो कर ही देंगे और उनकी हिन्दू निष्ठा पर चोट कर सकेंगे। इस षड्यंत्र के लिए अलगाववादी संगठन एनएससीएन (आईएम) तथा चर्च ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। चर्च तथा एनएससीएन (आईएम) का यह गठजोड़ एक तीर से दो शिकार कर रहा है। इनके इस प्रयास में सफलता मिलती दिखाई दे रही है। लगातार उथल-पुथल के कारण अन्य प्रांतों के लोग अपना व्यवसाय व घर-बार छोड़कर यहां से पलायन कर रहे हैं। मणिपुरी समाज का युवा वर्ग भी मणिपुर छोड़कर अन्य राज्यों व शहरों में पलायन कर रहा है। मणिपुरी समाज का जो वर्ग यहां रह रहा है वह धीरे-धीरे स्वयं को हिन्दू कहना बंद कर रहा है और उसने हिन्दू के स्थान पर मैतेई कहना व लिखना शुरू कर दिया है। माथे पर चन्दन का टीका लगाना व गले में तुलसी की माला नई पीढ़ी से दूर होती जा रही है। यहां पाश्चात्य संस्कृति के कारण मुक्त यौनाचार और उससे उत्पन्न समस्याएं (व्यक्तिगत एवं सामाजिक) बढ़ रही हैं।
l नागा–कुकी का चक्कर
मणिपुर में बड़ी संख्या में कुकी समुदाय के लोग हैं। ये कुकी व नागा अधिकांशत ईसाई हैं, किन्तु दोनों एक-दूसरे को फूटी आंख भी देखना पसंद नहीं करते। नागा समाज शक्तिशाली है और कुकी लोगों को लगातार परेशान करते हैं। कुकी लोग भी मौका मिलते ही बदला लेते हैं। इन कुकी लोगों का कहना है कि वे नागा समाज के साथ नहीं रह सकते और इसलिए वे सदर पहाड़ी जिला नाम से एक अलग कुकी जिले की मांग कर रहे हैं, इसलिए वे भी जवाबी आर्थिक नाकेबंदी किए हुए हैं। यूनाइटेड नागा काउंसिल (यूएनसी), आल नागा स्टूडेन्ट्स एसोसिएशन, मणिपुर (एएनएसए-एम), चर्च और चर्च प्रायोजित संगठन तथा एनएससीएन (आईएम)-ये सब मिलकर कुकी लोगों के सदर पहाड़ी जिले की मांग का विरोध कर रहे हैं। इसीलिए सरकार पर दबाव बनाने के लिए कुकी सदर हिल्स डिस्ट्रिक्ट डिमाण्ड कमेटी (एसएचडीडीसी) तथा विभिन्न नागा संगठनों ने अपने-अपने इलाकों में आर्थिक नाकेबंदी कर रखी है। इस कारण मणिपुर में आर्थिक तबाही मच गई है। अधिकांश कुकी समाज ईसाई है और नागा समाज की बहुतायत संख्या भी ईसाई हैं। चर्च इनके बीच समन्वय बैठाकर मैतेई हिन्दुओं पर हमला करने हेतु प्रेरित करता है। इन सारी समस्याओं की अनदेखी करते हुए यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रण्ट (यूएनएलएफ-आरके मेद्येन या सनायाइमा गुट), कांग्ली पाक कम्युनिस्ट पार्टी (केसीपी) व इसका सशस्त्र बल-रिवोल्यूशनरी प्रोटेक्सन फोर्स (आरपीएफ) तथा अन्य सभी आतंकवादी संगठन, चर्च व भूमिगत मुस्लिम संगठन- ये सभी सेना पर पिल पड़े हैं। ये सेना के ऊपर बेबुनियाद आरोप लगाकर उसे बदनाम कर रहे हैं और आतंकवादियों के मानवाधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं। इन भूमिगत आतंकवादियों और खुलेआम साथ दे रहे उनके नागरिक संगठनों एवं गैरसरकारी संगठनों ने मणिपुर में ऐसा माहौल तैयार कर दिया है कि मानो सारी समस्याओं की जड़ भारतीय सेना ही है। दिल्ली के अनेक मानवाधिकारवादी संगठन भी मणिपुर के आतंकवादियों की वकालत कर रहे हैं। इरोम शर्मिला चानू को अपना मुखौटा बनाकर एक तरफ मणिपुर के राष्ट्रीय समाज को पीस रहे हैं, दूसरी तरफ सेना को बदनाम कर रहे हैं। इस कार्य से उनके चीनी आका प्रसन्न होकर उनके लिए मौज-मस्ती के साधन भेज रहे हैं।
l मिशनरियों को आजादी
इस उथल-पुथल और अशांत वातावरण में ईसाई मिशनरियां निर्भय होकर विचरण कर रही हैं, जोर-जबरदस्ती से मतान्तरण करा रही हैं। मणिपुरी आतंकवादी संगठन, नागा आतंकवादी संगठन तथा कुकी आतंकवादी संगठन-आतंकवादियों के ये तीनों प्रकार के संगठन चर्च विस्तार व मतान्तरण का विरोध ही नहीं करते, क्योंकि चर्च उनको सूचना व संसाधन प्रदान करता है। आईएसआई तथा कट्टर मुस्लिम आतंकवादी संगठन भी यहां कुण्डली मारकर अपनी चालें चल रहे हैं। मणिपुर का राष्ट्रवादी समाज इसे समझ रहा है, किन्तु असहाय है। बन्दूक की धांय-धांय से उनकी जुबान बन्द है। केन्द्र सरकार बहरी, गूंगी व अन्धी बन गई है। राज्य सरकार की भी यही अवस्था है। परिणामस्वरूप मणिपुर के राष्ट्रीय वैष्णव समाज पर बाहर व भीतर-दोनों तरफ से मार पड़ रही है। हालात भी दिन-प्रतिदिन खराब हो रहे हैं। हाल ही में पेट्रोल 240 रुपए प्रति लीटर, गैस 2000 रुपए प्रति सिलेंडर तथा मिट्टी तेल 100 रुपए प्रति लीटर के भाव से बिक रहा था। अब तो वह भी नहीं मिल रहा है। सारे पेट्रोल पंप खाली पड़े हैं। इन्हीं के अनुपात में खाद्यान्न के भी भाव असामान छू रहे हैं। अस्पतालों में आक्सीजन व दवाइयों की कमी हो गयी है। लोग दवा व आक्सीजन के अभाव में मर रहे हैं, किन्तु इनकी व्यथा सुनने वाला कोई नहीं है।
गत 2 व 3 नवम्बर को गृहमंत्री पी. चिदम्बरम ने मणिपुर में कई योजनाओं का उद्घाटन किया। यहां के लोगों को बड़ी आशा थी कि वे आर्थिक नाकेबंदी खत्म कराएंगे। किन्तु स्थिति जस की तस, कुछ नहीं हुआ। मणिपुर की सरकार ने 9 नवम्बर को सदर पहाड़ी जिले के गठन की मांग मान ली है। इसलिए नागा आतंकवादी नाराज हैं और आर्थिक नाकेबंदी जारी है। सड़क के दोनों तरफ लगभग 2000 गाड़ियां खड़ी हैं। कई वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया है। बीच-बीच में बम विस्फोट भी होता रहता है। क्या मणिपुरी समाज की ऐसे ही दुर्गति होती रहेगी? इस आर्थिक नाकेबंदी तथा इसकी आड़ में चलने वाले षड्यंत्रों से बचाने के लिए राज्य सरकार तथा केन्द्र सरकार कुछ नहीं करेगी? राष्ट्रीय हिन्दू समाज का भी तो कुछ कर्तव्य बनता है। मणिपुरियों के इन बुरे दिनों में भारत का राष्ट्रीय समाज क्या साथ नहीं देगा? अब और अधिक देरी करने से परिणाम बहुत खतरनाक हो सकते हैं।
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