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लोकतंत्र का मजाक-राजेन्द्र देसाईसम्पादक, दैनिक गोवादूत, पणजी (गोवा)गोवा में कांग्रेस नेतृत्व वाली दिगम्बर कामत सरकार को विश्वास मत में सफल दिखाने के लिए विधानसभा अध्यक्ष प्रताप सिंह राणे ने संविधान की सारी मर्यादाएं भंग कर दीं। उन्होंने जिस तरह लोकतंत्र का भद्दा मजाक बनाया, उसकी जितनी निंदा की जाए, कम है। देश के वरिष्ठ संविधानविदों, विशेषज्ञों, समीक्षकों ने राणे के इस कृत्य की तीखी भत्र्सना की है। परिणामस्वरूप यह विषय अब राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केन्द्रीय गृहमंत्री और सबसे बढ़कर सर्वोच्च न्यायालय तक जा पहुंचा है। राजनीति में 35 साल का अनुभव रखने वाले और गोवा में मुख्यमंत्री के रूप में सबसे अधिक कार्यकाल तक काम करने वाले प्रताप सिंह राणे विधानसभा अध्यक्ष पद के रूप में जिस प्रकार की कार्यवाही कर रहे हैं वह गोवा के राजनीतिक इतिहास में सम्मानित शब्दों में तो नहीं ही लिखी जाएगी।2 जून, 2007 को विधानसभा चुनाव के बाद गोवा में किसी भी पार्टी को बहुमत न मिलने के कारण राष्ट्रवादी कांग्रेस, महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी के सहयोग से कांग्रेस को सरकार बनाने का मौका मिला। पर्रीकर सरकार गिराने के बाद कांग्रेस के पाले में पहुंचे दिगम्बर कामत मुख्यमंत्री बनाए गए। मगर कांग्रेस के भीतर ही दिगम्बर कामत के विरोधियों की कमी नहीं थी। कुछ लोग मंत्री पद न मिलने से नाराज थे। इन्हीं में एक विधायक विक्टोरिया फर्नांडीस ने मंत्री पद न मिलने के कारण बगावत का झंडा उठा दिया। उन्होंने सार्वजनिक स्तर पर कांग्रेस पर आरोप मढ़े और कहा कि महिला सशक्तिकरण का नारा देने वाली कांग्रेस की असलियत कुछ और ही है। उधर सरकार को समर्थन दे रही महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी भी नाराज थी क्योंकि उसे गृह और वित्त विभाग मिलने की उम्मीद थी। इसके कारण महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी कांग्रेस को समर्थन पर पुनर्विचार कर रही थी। सेव गोवा डेमोक्रेटिक फ्रंट और यूनाइटेड गोवन डेमोक्रेटिक फ्रंट भी पहले से ही सरकार के विरोधी हो गए थे। इस सबके बीच सरकार में भीतरी संघर्ष भी चरम पर थे। परिणामत: 25 जुलाई की आधी रात को इन सभी असंतुष्टों ने भाजपानीत गठबंधन को समर्थन देने की घोषणा करके कामत सरकार को अल्पमत में ला खड़ा किया।40 सदस्यों वाली विधानसभा में भाजपा के 14, महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी के 2, सेव गोवा पार्टी के 2 और यूनाइटेड गोवन डेमोक्रेटिक फ्रंट के 1 विधायक सहित कांग्रेस के भी एक विधायक के साथ आने से भाजपानीत गठबंधन के पास 20 विधायक हो गए। कांग्रेस के जहां 22 विधायक थे वह आंकड़ा 18 पर आ गया। कामत सरकार की जड़ें हिल गईं और गोवा विधानसभा में वित्तीय कामकाज के लिए सत्र आरंभ हो गया। इस समय सरकार का गिरना निश्चित था। 26 जुलाई को जब सत्र आरंभ हुआ तो सत्तारूढ़ विधायकों ने सदन में हंगामा मचाया। मगर इसके बहाने अध्यक्ष राणे ने सदन को एक घंटे के लिए स्थगित कर दिया। सदन फिर से शुरू हुआ पर सत्तारूढ़ विधायकों ने फिर से हंगामा किया और वित्तीय कामकाज में बाधा डालने का प्रयास किया। राणे ने दो दिन के लिए सदन स्थगित करके अपने पक्षपाती रवैये का उदाहरण सामने रखा। सदन में 30 जुलाई को राज्यपाल जमीर ने सरकार से विश्वास मत प्राप्त करने की विपक्ष की मांग पर कार्यवाही करने की अनुमति दी। लेकिन इसके बावजूद अध्यक्ष राणे ने सत्तारूढ़ पक्ष द्वारा विपक्ष के विरुद्ध दो अयोग्यता याचिकाओं पर चर्चा को प्राथमिकता देते हुए महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी के दो विधायकों सुदीन धावलिकर और दीपक धावलिकर को सदन की कार्यवाही में शामिल होने से प्रतिबंधित कर दिया। इस प्रक्रिया से विश्वास मत प्राप्त करने में कामत सरकार को एक प्रकार से सहायता ही मिली। आश्चर्य की बात है कि राणे ने अध्यक्ष पद की गरिमा का भी ध्यान नहीं रखा, नियमों का पालन नहीं किया। भाजपा के मनोहर पर्रीकर और उनके सहयोगियों ने विधानसभा अध्यक्ष के इस रवैये का विरोध किया। विपक्ष ने यहां तक कहा कि दो विधायकों को बाहर रखकर विश्वासमत प्रस्ताव पर कार्यवाही करना गैर कानूनी है, मगर राणे टस से मस नहीं हुए। स्पष्ट रूप से राणे ने लोकतंत्र का भद्दा मजाक उड़ाने की ही कोशिश की और पूरे विपक्ष के बहिर्गमन के बाद प्रस्ताव के ध्वनि मत से पारित होने की घोषणा कर दी। इतना ही नहीं तो राणे ने अपना मत भी सरकार के पक्ष में डाला। कामत सरकार बच गई।गोवा में लोकतंत्र को इस तरह अपमानित किए जाने पर भाजपानीत गठबंधन ने दिल्ली आकर केन्द्रीय गृहमंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक के सामने अपनी शिकायत दर्ज कराई। मगर उन लोगों से क्या उम्मीद कीजिएगा जिनके कथित इशारे पर गोवा-षडंत्र रचा गया। मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुंच गया है। 6 अगस्त को इस पर कार्यवाही होने की उम्मीद है। गोवा की जनता की उम्मीदें अब न्यायालय पर टिकी हैं। उसका कहना है कि अगर इसी तरह का बर्ताव कांग्रेस ने अन्य राज्यों में भी किया तो इस देश में लोकतंत्र का भविष्य क्या होगा। जहां विपक्षी दलों की आवाज दबाई जाती हो उस राज्य में घोर अराजकता नहीं होगी तो क्या होगा? निश्चित रूप से गोवा की घटना कांग्रेस की राजनीति का एक आईना है और यह पूरे देश के लिए चिन्ता का विषय है।11
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