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मिड-डे-मील यानी मध्याह्न भोजन योजनाजन सहभागिता की बेजोड़ मिसाल-श्याम आचार्यछात्राओं को स्वयं भोजन परोसती हुईं मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजेराजस्थान में करीब 74 लाख स्कूली छात्र-छात्राओं को निजी-सार्वजनिक सहभागिता से कुशल-प्रबंधन के साथ मध्याह्न-भोजन सुलभ कराने की महत्वाकांक्षी योजना (मिड डे मील) ने पूरे देश का ध्यान आकर्षित किया है। राजस्थान सरकार की यह एक सफलतम योजनाओं में से एक है। इस योजना को मिली शानदार सफलता की वजह से ही भारत सरकार ने देश के अन्य राज्यों की सरकारों को निजी-सार्वजनिक सहभागिता अपनाने की हिदायत दी है। इन राज्यों से यह भी कहा गया है कि वे अपने अध्ययन दल भेजकर राजस्थान में इस योजना की कार्यशैली का अध्ययन करवाएं।वैसे तो राजस्थान की पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के समय भी यह योजना चल रही थी। लेकिन उसमें निजी अथवा सार्वजनिक सहभागिता नहीं थी। लेकिन श्रीमती वसुन्धरा राजे के नेतृत्व में बनी भाजपा सरकार ने मिड-डे-मील (मध्याह्न भोजन) को पी.पी.पी. (प्राइवेट, पब्लिक, पार्टीसिपेशन) यानी निजी-सार्वजनिक-सहभागिता का स्वरूप देकर जनता को भी इससे जोड़ दिया है।योजना का उद्देश्यइस योजना के मुख्यत: तीन उद्देश्य हैं। एक-प्राथमिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए नामांकन उपस्थिति में बढ़ोत्तरी करना, साथ ही ड्राप आउट (एक बार स्कूल जाकर फिर जाना बंद कर देना) रोकना। सीखने के स्तर को बढ़ावा देना, विशेषकर वंचित वर्गों के परिवारों को। दो-प्राथमिक शिक्षा (एक से पांच कक्षा) तक के छात्रों का पोषण स्तर बढ़ाना। और तीन – सूखाग्रस्त क्षेत्रों में गर्मी की छुट्टी के दौरान पोषण सहायता देना।योजना का स्वरूप-यह योजना इस समय राज्य के सरकारी और अनुदान प्राप्त करीब 74,500 स्कूलों में लागू की गई है। ये स्कूल राज्य के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में हैं। इस कार्यक्रम के तहत एक से पांच तक की कक्षाओं के करीब 74 लाख छात्र-छात्राओं को दोपहर का पौष्टिक आहार सुलभ कराया जा रहा है। इस पौष्टिक आहार को बनाने के लिए राज्य सरकार पचास पैसे से एक रुपए तक का योगदान देती है। भारत सरकार भी एक रुपया प्रतिदिन प्रति छात्र के हिसाब से प्रदान करती है।पहले छात्रों को घुघरी (उबला हुआ गेहूं अथवा गुड़, चना) दिया जाता था, जिसे बच्चे पसन्द नहीं करते थे। लेकिन अब पूरे हफ्ते अलग-अलग पौष्टिक व्यंजन दिए जाते हैं। जैसे सोमवार-रोटी सब्जी, मंगलवार- दाल, सब्जी/चावल, बुधवार-खिचड़ी (दाल-चावल सब्जी आदि मिले हुए) गुरुवार-दाल-रोटी, शुक्रवार- दालबाटी और शनिवार-रोटी सब्जी। साथ ही सप्ताह में एक दिन कोई मौसमी फल भी बच्चों को दिया जाता है। इस पौष्टिक आहार में कम से कम 400 कैलोरी और 12 ग्राम प्रोटीन होती है।एक नया प्रयोगवसुंधरा सरकार ने इस कार्यक्रम में जन सहभागिता जुटाने के लिए इसका स्वरूप बदल दिया है। व्यापारिक, औद्योगिक, निजी प्रतिष्ठानों, स्वयंसेवी संगठनों, धार्मिक प्रतिष्ठानों और न्यासों से इस योजना को जोड़कर जन आंदोलन का स्वरूप दिया गया है। इस समय अक्षय पात्र फाउंडेशन, नंदी फाउंडेशन, अदम्य चेतना ट्रस्ट, हावेल्स इंडिया लि., हिन्दुस्तान जिंक, इस्कान आदि संगठन इस योजना से जुड़े हैं।मिड-डे-मील ट्रस्टदानदाताओं और औद्योगिक, धार्मिक, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों एवं न्यासों को दान देने में सुविधा हो इसके लिए राज्य सरकार ने एक “मिड-डे-मील ट्रस्ट” का गठन कर उसका पंजीकरण करवाया है। इस न्यास के तहत सरकार इस कार्यक्रम का पूरे प्रदेश में वांछित आधारभूत ढांचा तैयार कर रही है।गर्मागर्म तरोताजा खानावर्तमान में करीब सवा चार लाख बच्चों को लगभग 2062 स्कूलों में ताजा और गर्मागर्म खाना परोसा जा रहा है। यह खाना साफ-सुथरे और स्वच्छ तरीके से ग्यारह रसोई घरों में मशीनों से तैयार करके भेजा जाता है। ये रसोई घर प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों में विभिन्न न्यासों और गैर सरकारी संगठनों ने बनाए हैं। ऐसे दस और रसोई घर बनाने की प्रक्रिया चल रही है ताकि शेष 2.55 लाख बच्चों को गर्मागर्म ताजा पौष्टिक आहार जल्द मिल सके। ऐसा अनुमान है कि मार्च, 2007 तक करीब छह लाख छयासठ हजार बच्चों को पका हुआ गर्मागर्म खाना मिलना शुरू हो जाएगा। इसके लिए प्रदेश के अलग-अलग इलाकों में यंत्रीकृत रसोई घर बनाने का काम तीव्र गति के साथ चल रहा है।सामुदायिक सहयोगसरकार ने प्रदेश में हर योजना और कार्यक्रम के क्रियान्वयन में जन सहभागिता की अवधारणा को सफल बनाया है। “मिड-डे-मील” कार्यक्रम में सामुदायिक जनसहभागिता विशेषकर महिलाओं की सहभागिता बढ़ी है। ग्राम स्तर पर ग्राम समितियों का गठन हो रहा है ताकि इस कार्यक्रम की पारदर्शिता बनी रहे।आधारभूत ढांचापिछले दो साल में प्रदेश भर के 34 हजार रसोई घरों व भंडारों का निर्माण तो स्कूलों में ही हो गया है। इनकी लागत करीब 216 करोड़ रुपए आई है। इनके अतिरिक्त 14 हजार रसोइ घरों और भंडारों के निर्माण का काम चल रहा है।अन्नपूर्णा महिला सहकारी समितियांराज्य के करीब 3200 स्कूलों में अन्नपूर्णा महिला सहकारी समितियों की ओर से भी गर्मागर्म खाना तैयार करके भेजा जा रहा है। इससे करीब 3 लाख 45 हजार बच्चे लाभ उठा रहे हैं।स्कूल चलोइस योजना ने शिक्षा को घर-घर तक पहुंचाया है, स्कूल चलो अभियान को बढ़ावा दिया है, वहीं बच्चों को पौष्टिक आहार देकर गरीब वर्ग के बच्चों में कुपोषण को भी कम किया गया है। योजना की सफलता का आकलन इसी से किया जा सकता है कि इस योजना के प्रति ग्रामीण क्षेत्रों में एक नई आस्था और विश्वास जगा है।यह एक आदर्श और अनुकरणीय योजना है-सुधांश पंत, आयुक्त, मध्याह्न भोजन योजना, राजस्थान”जन सहभागिता के आधार पर राजस्थान में चल रही इस योजना की सराहना भारत-सरकार ने भी की है। यह योजना अन्य राज्यों में भी चल रही है लेकिन इसमें निजी-सार्वजनिक सहभागिता जुटाने का अनुपम और सफल प्रयास केवल राजस्थान में ही हुआ है। इसका पूरा श्रेय मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे को ही जाता है।” यह कहना है मध्याह्न भोजना योजना, राजस्थान के आयुक्त श्री सुधांश पंत का। वे इस समय राज्य के सहकारी विभाग के पंजीयक (रजिस्ट्रार) हैं, उन्हें इस योजना का अतिरिक्त कार्य भार सौंपा गया है।एक विशेष भेंट में श्री पंत ने “पाञ्चजन्य” को बताया कि राज्य में इस योजना की जड़ें इसलिए जमीं क्योंकि इसमें निजी-सार्वजनिक सहभागिता है। अनेक गैर सरकारी संगठन और प्रतिष्ठान इसमें शामिल हैं। इस कार्यक्रम के प्रति ग्रामीणों में विश्वास जगा है। पिछड़े और गरीब तबके को लगा है कि उनका बच्चा शिक्षा के साथ-साथ पौष्टिक आहार भी प्राप्त करेगा। राज्य सरकार भी चाहती है कि प्रदेश में एक से पांच तक की कक्षाओं में ग्रामीण क्षेत्र के बालक-बालिकाओं का नामंकन बढ़े, उन्हें पौष्टिक आहार मिले, उनका कुपोषण समाप्त हो और “ड्राप आउट” कम हो।समय-समय पर इस योजना की देखरेख स्वयं मुख्यमंत्री करती हैं और जनसहभागिता जुटाने के प्रयासों में देश-विदेश में प्रयास करती रहती हैं।कार्य की कठिनाइयों के बारे में पूछे जाने पर श्री पंत का कहना था कि जनसहभागिता की अवधारणा के बाद इस योजना में जनता की भागीदारी और रुचि भी बढ़ रही है। साथ ही योजना में कोई खामी न रह जाए, कमियां न पनपें, इसके लिए अब तक हमने करीब पांच जिलों में अनेक बार आकलन एवं निरीक्षण करवाया है। शीघ्र ही 32 जिलों में यह कार्य विधिवत् पूरा हो जाएगा। कार्यक्रम के निरीक्षण के मापदण्ड भी तय किए गए हैं। स्थानीय निकाय के अधिशासी अधिकारी से लेकर जिलाधिकारी तक इस योजना का कहां-कहां और कितने विद्यालयों का निरीक्षण करेंगे और समीक्षा करेंगे, यह निर्धारित है। इस निरीक्षण की मासिक और त्रैमासिक रपट बनेगी जो विभागाध्यक्ष को भेजी जाएगी। इसी तरह से राज्य स्तरीय राष्ट्रीय पोषाहार सहायता कार्यक्रम की भी एक राज्य स्तरीय समीक्षा समिति बनी हुई है। इसके अध्यक्ष स्वयं मुख्य सचिव हैं। इस कार्यक्रम का पिछले छह माह में अनेक बार मूल्यांकन किया गया है। अभी तक की समीक्षा रपटों का अध्ययन कर यह पता लगाया जा रहा है कि हमने इस योजना से वांछित लक्ष्य कहां तक प्राप्त किया है। इस योजना के माध्यम से हमारा मुख्य लक्ष्य है बच्चों का स्कूलों में, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में ठहराव बढ़े, “ड्राप आउट” कम हो और बच्चों को पौष्टिक आहार मिले ताकि वे कुपोषण से बचें।श्री पंत का कहना है कि हमारा लक्ष्य है कि पूरे प्रदेश में योजना का आधारभूत ढांचा विकसित हो, दातव्य प्रतिष्ठान व न्यास इससे अधिकाधिक जुड़ें, योजना के माध्यम से ग्रामीणजन में प्रारंभिक शिक्षा के प्रति अधिकाधिक रुचि बढ़े। अच्छी बात यह है कि बड़े-बड़े निजी प्रतिष्ठानों ने भी इस योजना के महत्व को स्वीकारा है और वे सेवा भावना से मिड-डे-मील कार्यक्रम में जुड़ रहे हैं।एक सवाल के जवाब में श्री पंत ने कहा, “हम अभी से ऐसी संरचना कर रहे हैं कि सरकारी विभाग, गैर सरकारी संगठन, निजी प्रतिष्ठान एवं न्यास और उद्योग जगत के लोग इस योजना को सेवा भावना से लें और कहीं भी अनियमितता अथवा ढिलाई दिखे तो उसे रोकने के लिए उचित कार्रवाई करें। यदि यह योजना सही मायने में जन सहभागिता से जुड़ गई तो इसमें अनियमितता की गुंजाइश कम होगी, क्योंकि यह योजना एक पारदर्शी योजना का स्वरूप ले लेगी जिसका उद्देश्य होगा जनहित और जन कल्याण।16
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