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फहरा केसरियापंजाब पंजाब में “जो बोले सो निहाल” -राकेश सैनदमदार संघर्षउत्तराखण्ड फिर खिला कमल, फिर आई बहार -दिनेशभाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कहा- ये चुनाव परिणाम उ.प्र. में आने वाले दौर की झलक दिखाते हैं – प्रतिनिधिमणिपुर इबोबी को फिर मिली कमान -प्रतिनिधिपंजाब 23 में से 19 भाजपा ने किया कमालइस सप्ताह आपका भविष्यपचास वर्ष पहलेटी.वी.आर. शेनाय क्या कभी पकड़ा जाएगा क्वात्रोकी? -टी.वी.आर. शेनायअपनी बात प्रिय बन्धुओ, सप्रेम जय श्रीराम।संस्कृति-सत्य भारतीय संगीत सुनकर मुसोलिनी हुआ तनाव मुक्त – वचनेश त्रिपाठी “साहित्येन्दु”गेशे जम्पा-8 क्या वे लोग तिब्बत छोड़ जाएंगे? -नीरजा माधवमंथन वंश बड़ा या देश?- देवेन्द्र स्वरूपगहरे पानी पैठ घुसपैठियों को भारतीय सिद्ध करेंगे कामरेड?जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्राह्मण्यम स्वामी की मांग- संसद में श्वेत पत्र रखे सरकार – प्रतिनिधिदैनिक तरुण भारत, नागपुर द्वारा 1857 के स्वातंत्र्य समर पर निबंध प्रतियोगितासामाजिक समरसता के सूत्र संगत-पंगत ही नहीं, समानता भी आवश्यक – रामफल सिंहकेन्द्रीय मंत्री, विश्व हिन्दू परिषदधर्मपाल: समग्र लेखन अग्रिम ग्राहक योजनाप्रेरक विशेष “योगक्षेमं वहाम्यहम्” – अशोक सिंहल, अन्तरराष्ट्रीय अध्यक्ष, विश्व हिन्दू परिषद्रज्जू भैय्या न्यास द्वारा शिक्षक व मेधावी छात्र-छात्राएं सम्मानित – वि.सं.के., काशीअन्धविश्वास की भी हद होती है सुहागिन महिलाएं विधवा के वेश में जीवन जीने को मजबूर – वि.सं.के., रायपुरहरीकृष्ण अरोड़ा उर्फ हल्लो भइया का स्मरण “उजाले मेरी यादों के साथ रहने दो” – डा. नताशा अरोड़ाराजस्थान मिड-डे-मील यानी मध्याह्न भोजन योजना जन सहभागिता की बेजोड़ मिसाल -श्याम आचार्ययह एक आदर्श और अनुकरणीय योजना है -सुधांश पंत, आयुक्त, मध्याह्न भोजन योजना, राजस्थान56 के अशोक चक्रधर ने कहा- मानवतावादी था, इसलिए पक्का कम्युनिस्ट नहीं बना – वनीता गुप्ताबुक्सा जनजाति ने खोज ही निकाला अपना इतिहास – प्रतिनिधिजम्मू-कश्मीर गठबंधन में दरार के आसार! – खजूरिया एस. कांतकेरल माक्र्सवादियों ने किया मंदिरों पर कब्जा -प्रदीप कुमारबेलूर में विवेकानंद विश्वविद्यालय और विज्ञान भारती की संगोष्ठी प्राचीन भारतीय ज्ञान-विज्ञान के प्रसार का आह्वान – प्रतिनिधिसरसंघचालक कुप्.सी. सुदर्शन ने कहा- गांधी का सर्वधर्म समन्वय मुस्लिमों को साथ क्यों न ले सका? – प्रतिनिधियोग के माध्यम से मानव का सर्वांगीण विकास हो सकता है -शीला दीक्षित, मुख्यमंत्री, दिल्ली – प्रतिनिधि”कालजयी सावरकर” पुस्तक का लोकार्पण सावरकर के बारे में कांग्रेसी मित्र गुमराह हुए -वसंत साठे, वरिष्ठ कांग्रेसी नेताबजट में तीर्थयात्रियों पर बढ़ा किराये का बोझ धर्मयात्रा महासंघ का विरोध – प्रतिनिधिईसाई मिशनरी कपट को हिमाचल का इनकार -अजय श्रीवास्तवहिमाचल ही नहीं, पूरे देश के लिए मतान्तरण बड़ा खतरा तरसेम भारती, अध्यक्ष, अ.भा.अनुसूचित जाति व जनजाति महासंघ, (हिमाचल प्रदेश)भोलेभाले लोगों को गुमराह करके बनाते हैं ईसाई2जनता कभी अचेत नहीं होती। उसके नायक अचेत या भ्रममय हो सकते हैं।-वृन्दावनलाल वर्मा (झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, पृ.117)बजट 2007 पर विशेष सम्पादकीय-सुषमा स्वराजएक निष्प्राण, अभारतीय बजटकिसी भी देश के लिए बजट उसके नव-निर्माण और विकास का आधार होता है। लेकिन वित्त मंत्री श्री पी. चिदम्बरम ने एक ऐसा बजट प्रस्तुत किया है जिसमें न कोई दिशा है, न कोई सोच। केवल रस्म अदा करने के लिए कुछ बातें प्रस्तुत कर दी हैं, क्योंकि फरवरी में बजट सदन में पेश करना ही पड़ता है। इस बजट में न कोई आभा है, न ही कोई आत्मा। इसे पूरी तरह से निष्प्राण बजट कहा जाना चाहिए।लगभग 3 वर्ष पहले यूपीए सरकार ने देश को वचन दिया था कि उसके हाथ आम आदमी का दुख-दर्द सहलाएंगे, यह हाथ उसके सर पर होगा, उसके कष्टों में सहायता के लिए आगे बढ़ेगा। लेकिन पिछले तीन वर्षों से भारत का आम आदमी उस हाथ की तलाश ही करता रहा और अब उसे हाथ दिखा भी तो वह उसकी जेब पर था, जो दनादन उसकी जेब खाली करने को आतुर है।आम आदमी हताशा के अंधेरे में इस बार के बजट में कुछ आशा ढूंढ रहा था। प्रधानमंत्री मुख्यमंत्रियों को पत्र लिख रहे थे। दो दिन पहले ही दो प्रदेशों के मतदाताओं ने कांग्रेस के खिलाफ मतदान किया था। इसलिए कहीं न कहीं गृहिणी को यह उम्मीद जरुर थी कि उसके राशन का बिल थोड़ा घटेगा। लेकिन वित्त मंत्री ने बहुत अजीब प्राथमिकता इस बजट में दिखाई जब कस्टम डूटी दस प्रतिशत घटाकर कुत्तों के अंग्रेजी खाने का दाम बहुत कम कर दिया, लेकिन आम आदमी के खाने वाली दाल, चावल, गेहूं, चीनी पर एक नये पैसे की भी राहत नहीं दी। अजीब तरह की प्राथमिकता वाला यह बजट उपहास का कारण बना और लोगों के लिए कोई राहत लेकर नहीं आया।प्रधानमंत्री ने इस बजट को शिक्षा और स्वास्थ्य का कीर्ति स्तंभ कहा है, पर आंकड़े कुछ और ही दर्शाते हैं। वित्त मंत्री ने दो वर्ष पहले शिक्षा पर अतिरिक्त उपकर लगाया था। इस बार के बजट में उन्होंने एक आंकड़ा दिया कि इस उपकर से 10,393 करोड़ रुपयों की आमदनी हुई। जिस सर्व शिक्षा अभियान की वित्त मंत्री सबसे ज्यादा दुहाई देते हैं, उसके लिए कुल आवंटन 10,671 करोड़ रुपए का किया है। इसका अर्थ है अतिरिक्त उपकर से जो कुछ भी उगाहा गया उसमें मात्र 300 करोड़ रुपए से भी कम और डालकर सर्वशिक्षा अभियान को राशि आवंटित कर दी गयी। इस वर्ष उच्च शिक्षा के लिए 6,483 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है और एक प्रतिशत का अतिरिक्त उपकर और लगा दिया है। जिसका अर्थ है कि करदाताओं से लगभग 5,200 करोड़ रुपए की उगाही की जाएगी और केवल अपने बजट से 1,200 करोड़ का आवंटन होगा। आज वैश्वीकरण के युग में जब प्रतियोगिता और प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है, ज्ञान को भारत अपनी शक्ति के रुप में पहचानता है और हम ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था का निर्माण करने की बात कहते हैं, तब यदि वाकई हम ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था का निर्माण करना चाहते हैं तो हमें उच्च शिक्षा के लिए बहुत बड़े पैमाने पर धन लगाना होगा। 6,483 करोड़ रुपए का आवंटन शिक्षा के क्षेत्र में हमारी महत्वाकांक्षाओं को कतई पूरा नहीं कर पाएगा।स्वास्थ्य के क्षेत्र में वित्त मंत्री ने कई अनुच्छेद पढ़ डाले, किंतु प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना के अन्तर्गत राजग सरकार द्वारा देश के विभिन्न राज्यों में छह नए अ.भा. आयुविज्र्ञान संस्थान (एम्स) खोलने की योजनाओं का उल्लेख तक नहीं किया। तीन वर्ष पहले घोषित इस योजना में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, उत्तराखंड, बिहार और उड़ीसा, इन 6 राज्यों में एम्स का निर्माण किया जाना तय किया गया था। सभी स्थलों पर शिलान्यास करके चारदीवारियां बना दी गईं। पर राजग सरकार के जाने के बाद वहां एक र्इंट तक आगे नहीं रखी गयी। वित्तमंत्री का बजट भाषण इस पर मौन है।एक और बात है, जिसकी तरफ ज्यादा लोगों का ध्यान अभी तक नहीं गया है। वित्त मंत्री ने इस बजट में भारत के गरीब लोगों के लिए एक बहुत बड़े खतरे का रास्ता खोला है। उन्होंने नए शोध के नाम पर क्लीनिकल ट्रायल्स पर कस्टम डूटी को घटाया है। हम सब जानते हैं कि दवा के क्षेत्र में भारत में कोई बहुत गहरा या व्यापक शोध नहीं हुआ। ये सारे शोध पश्चिमी देशों में हो रहे हैं। शोधकत्र्ता उनके होते हैं, शोध पूरा हो जाने के बाद पेटेंट उनके नाम पर होगा, दवा का उत्पादन उनके देश में होगा, उत्पादन से होने वाली आय उन देशों के खजानों में जाएगी लेकिन गिन्नीपिग (प्रयोगशाला के चूहे) बनेगी भारत की गरीब जनता। लगता है यह बजट भारत की किसी इमारत में नहीं बल्कि न्यूयार्क के किसी पांच सितारा होटल में बैठकर बनाया गया है। इसमें देश की मिट्टी की सोंधी सुगंध पूरी तरह गायब है और अमरीकी चकाचौंध छायी है। इसीलिए तो कुत्तों में भी फर्क किया गया है। वित्तमंत्री के इस बजट से दूध-रोटी से पलने वाले देशी कुत्तों का खाना महंगा रहेगा, लेकिन पेडीगिरी (विदेशी नस्ल का खाद्य) खाकर पलने वाले विदेशी नस्ल के कुत्तों का खाना सस्ता हो जाएगा।विजय का विश्वासजिसके साथ धर्म है, वह विजयी होगा ही। दुष्चक्र चलाने वाले अन्तत: हारते ही हैं। पंजाब और उत्तराखण्ड के चुनावी नतीजों ने एक बार पुन: केसरिया भाजपा को समर्थन दिया है। भाजपा अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह ने ठीक ही कहा है कि ये परिणाम कांग्रेस की आतंकवाद के प्रति ढीली नीति, महंगाई और तुष्टीकरण के खिलाफ जनमत है। पंजाब में अमरिंदर सरकार के घनघोर भ्रष्टाचार और प्रतिशोधी राजनीति ने आम मतदाता को कांग्रेस से दूर किया तो उत्तराखण्ड में भाजपा कार्यकर्ताओं की एकजुटता, लगातार जनसम्पर्क, विभिन्न नेताओं द्वारा एक मंच पर एक स्वर से बोलने की समझदारी और पहाड़ में महिलाओं द्वारा एवं विशेषकर परम्परागत कांग्रेस मतदाताओं द्वारा भी भाजपा के पक्ष में आने से माहौल बदला। यह कहना अपने आप में पर्याप्त नहीं होगा कि जनता ने केवल महंगाई के मुद्दे पर कांग्रेस को नकारा। वास्तव में कांग्रेसनीत यू.पी.ए. सरकार ने पिछले तीन वर्षों से मुस्लिम तुष्टीकरण, हिन्दू संवेदनाओं पर आघात, आतंकवाद को झूला झुलाने और कश्मीर पर विश्वासघात की जो नीति अपनाई उससे आम आदमी के मन में एक गुस्सा धधक रहा है। इन कारणों के साथ महंगाई भी जुड़ गई और जनता पुन: आशा भरी निगाहों से भाजपा की ओर मुड़ी। पंजाब में अकाली-भाजपा गठबंधन और उत्तराखण्ड में भाजपा की सरकार पर अब जनता के इस विश्वास पर खरा उतरने की जिम्मेदारी है। उत्तराखण्ड और पंजाब के नेता भी जानते हैं कि सत्ता स्थाई नहीं रहती। वह कभी आती है, कभी भी जा सकती है। पिछली बार भी भाजपा को उत्तराखण्ड में हारना नहीं था। वह जीती बाजी हारी, उससे कुछ सबक भी लिए, एकजुटता दिखाई और इस बार जीत गए। हालांकि कुछ क्षेत्रों में तो उसकी पराजय ग्यारह या चौदह मतों से हुई, जिसकी पीड़ा भी बहुत होगी। तीरथ सिंह रावत और अजय भट्ट जैसे कर्मठ और समर्पित कार्यकर्ता बाल भर दूरी से हार गए। लेकिन प्रेम अग्रवाल ने ऋषिकेश से विजय प्राप्त कर अच्छा सिक्का जमाया क्योंकि उनकी सीट के बारे में आशंकाएं भी कम व्यक्त नहीं की गई थीं। उधर भाजपा स्व. मानवेन्द्र शाह के निधन से रिक्त टिहरी लोकसभा सीट हारी। इसमें उसकी अपनी काफी कमजोरी रही। विधानसभा चुनाव के दौर में लोकसभा सीट पर जितना ध्यान दिया जाना चाहिए था, नहीं दिया गया।अब उत्तराखण्ड प्रतीक्षा कर रहा है एक सुशासन की। उत्तराखण्ड देवभूमि है। पर सबसे अधिक दुर्दशा यहीं के तीर्थ स्थानों की है। तीर्थों की गरिमा के अनुरूप वहां का विकास नहीं किया गया। कुछ समय पहले हमने पांचजन्य में ही गंगोत्री की विकट स्थिति के बारे में लिखा था। इसके साथ ही विशेषकर गढ़वाल के स्वाभिमान को जगाना और बढ़ाना बहुत आवश्यक है। कुमाऊं को सौभाग्य से ऐसे नेता मिले जिनकी केन्द्रीय शासन में दखल रही है और वहां पहले से ही शिक्षा का बड़े पैमाने पर विस्तार हुआ। लेकिन गढ़वाल तीर्थों से समृद्ध होने के बावजूद पथरीली उपेक्षा का शिकार रहा। गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषाओं को भी अतिरिक्त प्रोत्साहन की आवश्यकता है। उत्तराखण्ड हिन्दू मानस में सदियों से सभ्यता और संस्कृति का केन्द्र रहा है। यह देवभूमि है। भारत के चार प्रसिद्ध तीर्थ- बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमनोत्री यहीं हैं। हिमालय की इस पावन भूमि को पुन: भारत के मानचित्र पर एक सुविकसित, सुसंस्कृत और समृद्ध प्रदेश बनाने की जिम्मेदारी भाजपा पर है, जो इसे विकास का एक आदर्श नमूना बनाकर दिखा सकती है। यह चुनौती है।3
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