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संस्कृत में पाए सर्वाधिक अंक
शाजीना को सम्मानित करते हुए येसुदास
केरल में उस दिन एक इतिहास ही निर्मित हुआ। केरल विश्वविद्यालय में संस्कृत विषय में परास्नातक की छात्रा शाजीना ने सर्वोच्च अंक प्राप्त कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया। उसे 79 प्रतिशत अंक प्राप्त हुए।
24 वर्षीया शाजीना न सिर्फ धाराप्रवाह संस्कृत बोलती है वरन् वह ब्राह्म की संकल्पना से लेकर संस्कृत साहित्य के अनेक ग्रंथों पर सुन्दर व्याख्यान भी देती है। कालिदास कृत अभिज्ञान शाकुन्तलम् हो या फिर कौटिल्य अर्थशास्त्र, उसे संस्कृत साहित्य के विद्वानों के बीच इन पुस्तकों और इनके उद्वरणों पर संवाद करने में आनन्द आता है। संस्कृत पढ़ने का कारण पूछने पर वह कहती है, “संस्कृत भारत की सर्वोत्कृष्ट भाषा है। मुझे इससे लगाव है, इसीलिए पढ़ती हूं।”
अनेक आर्थिक कठिनाइयों को सहने तथा मजहबी रूढ़ियों के बंधनों के बावजूद शाजीना ने संस्कृत-साधना नहीं छोड़ी। उसके पिता साहुल हमीद एक रूढ़िवादी मुस्लिम हैं। वे दिहाड़ी मजदूर हैं और मां सुहरा बीबी भी सामान्य मुस्लिम महिलाओं की तरह गुजर-बसर करने वाली महिला हैं। किन्तु, जब दोनों ने बेटी में प्रतिभा देखी तो उसे प्रोत्साहित करने में वे पीछे नहीं रहे।
शाजीना कहती है, “मुझे घर की हकीकत हमेशा मालूम थी। इसलिए मैंने और मेरी बड़ी बहन ने कभी अपने पिता को धन के लिए कष्ट नहीं दिया। हमने टूशन पढ़ाए और उसी से अपनी पढ़ाई के लिए खर्च निकाला।” अनेक मनीषी व ख्यातिलब्ध संस्थाओं ने शाजीना की उपलब्धि के लिए उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है। कोयम्बतूर आर्ष वैद्य फार्मेसी ने उसे जहां नकद 5001 रुपए प्रदान किए वहीं सुप्रसिद्ध गायक पद्मश्री के.जे. येसुदास ने उसे एक भव्य समारोह में सम्मानित किया। श्रीमद् भागवत् की प्रतिष्ठित व्याख्याता एवं संस्कृत विदुषी सुश्री प्रेमा पाण्डुरंगा ने कोच्चि में उसे एक समारोह में बधाई दी। शाजीना संस्कृत के प्रति अपने लगाव को प्रदर्शित करते हुए कहती है- “प्राथमिक स्तर से देश के प्रत्येक बालक को संस्कृत पढ़ाई जानी चाहिए। यह भाषा, इसका साहित्य हमें सुसंस्कृत व परिष्कृत व्यक्तित्व देता है। संस्कृत के अध्ययन ने मेरे विचारों में क्रान्ति पैदा की है। मैंने इसके द्वारा सर्वपंथ समादर के भाव को सहज ही अनुभव किया है।” प्रदीप कुमार
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