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क्या खास बात है इसमें? पढ़िए हमारे संवाददाता की रपट।
प्रभासाक्षी का विश्व साक्षी!!
-बालेन्दु शर्मा दाधीच
हिन्दी का अंतरताना संस्करण “प्रभासाक्षी डाट काम”, जिसकी नींव 26 अक्तूबर 2001 को उस समय रखी गई थी जब हिंदी के कई पोर्टल (निट जाल व रेडिफ का हिंदी पोर्टल) धन के अभाव व असफलता के बीच बंद हो गए थे और अंग्रेजी समाचार पोर्टल बुलंदियों का झंडा लहरा रहे थे। इन सबके बावजूद भी भारतीय संस्कारों, संस्कृति एवं हिंदी को लोकप्रिय बनाने के लिए इसे सूचना तकनीक के साथ समन्वित कर सशक्त माध्यम में पेश करने का सपना देखा “द्वारिकेश समूह” के मुख्य प्रबंध निदेशक श्री गौतम आर. मोरारका ने। समूह के उपक्रम “द्वारिकेश संवाद लिमिटेड” द्वारा इस सपने को साकार किया पोर्टल के प्रबंध संपादक एवं तकनीकी प्रमुख श्री बालेन्दु शर्मा दाधीच ने। प्रमुख बात यह भी है कि लोकप्रियता की यह बुलंदी प्रभासाक्षी ने विज्ञापन पर बगैर मोटी धनराशि खर्च किए हासिल की है। प्रभासाक्षी का लक्ष्य भारत में संबंधित सूचनाओं का विश्वसनीय स्रोत बनना तो है ही, भारतीय मूल्यों एवं संस्कारों के सापेक्ष खड़ा रहना भी है। प्रभासाक्षी के साथ श्री खुशवंत सिंह, श्री कुलदीप नैयर, श्रीअरुण नेहरू, श्री दीनानाथ मिश्र जैसे प्रभावशाली लेखक जुड़े हैं। इसी अंतरताना संस्करण ने गत 25 अप्रैल को सफलता व लोकप्रियता का नया आयाम रच डाला। प्रभासाक्षी डाट काम ने 4 साल 5 माह के अल्पसमय में ही दैनिक हिट्स (अंतरताना संस्करण देखने वालों की संख्या) की संख्या 2 लाख 57 हजार पार कर ली। प्रभासाक्षी पर होने वाली दैनिक हिट्स में से अधिकांश अमरीका, कनाडा, ब्रिटेन, जर्मनी, यूगोस्लाविया, क्रोशिया, लात्विया, जांबिया जैसे सुदूर देशों से हैं। प्रभासाक्षी की स्थापना क्यों हुई और इतनी जल्दी इसके लोकप्रिय होने के कारण क्या हैं, इस बारे में प्रभासाक्षी के प्रबंध संपादक श्री बालेन्दु शर्मा दाधीच ने बताया-
तकनीक एवं सूचना प्रौद्योगिकी का फायदा तभी है जब उसका लाभ समाज के निचले स्तर तक पहुंचे। अंग्रेजी माध्यम के चलते इसका फायदा 5-7 प्रतिशत अंग्रेजी जानने वाले लोग तो उठा सकते थे लेकिन 95 प्रतिशत हिंदी जानने वाला भारतीय वर्ग एक ऐसे माध्यम की तलाश में था जिससे वह मातृभाषा में आवश्यक सूचनाएं प्राप्त कर सके। इसी को ध्यान में रखकर प्रभासाक्षी की स्थापना की गई। प्रभासाक्षी ने हिंदी भाषा का प्रयोग कर सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में संभावनाओं की एक नई राह खोल दी। इसकी सफलता के पीछे प्रमुख कारण समाचार चैनलों की तरह घटनाओं को त्वरित गति से संकलित कर प्रेषित करना भी है। तकनीकी दृष्टि से भी प्रभासाक्षी को आम पाठक की पसंद के अनुसार विकसित किया गया है। प्रभासाक्षी पर देश-प्रेम एवं संस्कृति को विशेष रूप से महत्व दिया जाता है जिसे विदेशों में बसे भारतीय बेहद पसंद करते हैं। प्रभासाक्षी पर कुल हिट्स का 65 प्रतिशत विदेशों में बसे भारतीयों का है।
हालांकि एक वर्ग विशेष का हिंदी के प्रति पक्षपातपूर्ण रवैया बना हुआ है लेकिन जैसे-जैसे हिंदी की लोकप्रियता बढ़ेगी, अंग्रेजी मानसिकता भी बदलेगी। बदलाव के परिणाम सामने भी आने लगे हैं। हिंदी चैनल लोकप्रिय हो रहे हैं। आने वाले समय में यही बातें हिंदी समाचार पोर्टल पर भी लागू होंगी। प्रस्तुति : प्रवीण दीक्षित
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