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संस्कृति-सत्य

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Mar 12, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 12 Mar 2006 00:00:00

स्वामी तैलंगधर का चमत्कारवचनेश त्रिपाठी “साहित्येन्दु”सन् 1891 की बात है जब काशी में नगर पालिका बनी थी नल से जल लेने के लिए पम्प लगाए गए। तब गंगा जी से जल खींचने के लिए अंग्रेजों ने भदैनी में नल लगाने का निश्चय किया। वहीं एक राम मन्दिर था जिसके बारे में अंग्रेज क्लेक्टर (जिलाधीश) ने अपनी सरकार को सूचित कर दिया, “यहां कोई मन्दिर नहीं है।” यह बात सरासर झूठ थी। इसलिए उस जिलाधीश ने छल-कपट से मन्दिर को तोड़ने का षड्यंत्र रचा। मंदिर के महंत सीताराम को जब इस षड्यंत्र का आभास हुआ तो उन्होंने मन्दिर की रक्षा का आह्वान किया। इस पर काशी के हिन्दू मन्दिर की रक्षा के लिए तत्पर हो गए। मंदिर तोड़ने आई बड़ी-बड़ी मशीनों को जनता ने गंगा नदी में फेंक दिया। इस षड्यंत्र में लिप्त एक धनी व्यक्ति सीताराम के घर में भी जनता ने आग लगा दी। इसके अतिरिक्त सेन्ट्रल टेलीग्राफ ऑफिस व काशी रेलवे स्टेशन भी जला दिए गए। जिलाधीश मि. ह्वाइट ने दमन करके अनेक लोगों को गिरफ्तार कर लिया। उन पर जुर्माना भी किया गया किन्तु राम मन्दिर पर किसी अंग्रेज के हाथ डालने की हिम्मत न हुई। अंग्रेज सरकार को विवश होकर आदेश जारी करना पड़ा कि कोई भी राम मन्दिर को वहां से हटाने का प्रयत्न न करे। काशी (भदैनी) का यह आन्दोलन “श्रीराम हल्ला आन्दोलन” के नाम से प्रसिद्ध हुआ।इसी आन्दोलन में योगीराज तैलंग स्वामी को भी जिलाधीश ह्वाइट ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। वे 40 दिन तक जेल में बिना अन्न-जल ग्रहण किए रहे। इससे जेलर भी उनके सामने नत्-मस्तक हो गया। एक बार स्वामी रामकृष्ण परमहंस स्वामी तैलंग से मिलने गए। उन्होंने स्वामी “जीवंत विश्वनाथ” कहा था।16वीं शताब्दी के प्रारंभ में वर्तमान तेलंगाना, क्षेत्र के विजना जिले के होलिया नामक स्थान पर एक ब्राह्मण परिवार में तैलंग स्वामी का जन्म हुआ था। जब वे 40 वर्ष के थे तब पिताजी का निधन हुआ। इसके 12 वर्ष बाद माताजी भी नहीं रहीं। माता के दाह-संस्कार के बाद वे उसी स्थान पर माथे पर भभूति लगाकर 20 वर्ष तक साधना करते रहे। वहीं पटियाला के योगी भगीरथ से दीक्षा ली और तब इनका नाम “गणपति स्वामी” पड़ा। फिर ये द्वारिका, नेपाल, मानसरोवर, काशी और मुम्बई में तीर्थाटन करते रहे। मुम्बई में कर्नल अल्काट और रूसी मैडम ब्लेवेट्स्की ने जब थियोसोफिकल सोसायटी बनाकर हिन्दुओं को अपने योग-सिद्ध जन्यचमत्कारों से भ्रमित करने का प्रचार किया तो तैलंग स्वामी ने ब्लवेेट्स्की को झूठा साबित करते हुए उसकी योग सिद्धि को छलावा सिद्ध कर दिया।कहा जाता है कि तैलंग स्वामी ने एक बार मानसरोवर में एक दीन-हीन विधवा के 7 वर्षीय पुत्र, जिसकी सर्प दंश से मृत्यु हो चुकी थी, श्मशान में ही स्वामी जी ने अपने स्पर्श से जीवित कर दिया। एक अन्य घटना में नेपाल यात्रा के दौरान एक दिन जंगल में तप-निरत स्वामी जी के चरणों में घायल शेर आ बैठा। तैलंग स्वामी उस पर हाथ फेरने लगे तभी नेपाल नरेश के सैनिक वहां पहुंच गए और यह सब देखकर चकित हो गए। तैलंग स्वामी ने सैनिकों से कहा, “शेर को मत मारो, इसने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?” थोड़ी देर बाद शेर जंगल में चला गया। तैलंग स्वामी ने ही काशी के पंचगंगा घाट की गुफा में 50 मन का शिवलिंग प्रतिष्ठित किया। आज उस स्थान को “तैलंग स्वामी मठ” कहा जाता है।तैलंग स्वामी ने शक संवत 1809 की पौष शुक्ल एकादशी को 280 वर्ष की आयु में समाधि लेकर संसार त्याग देने की बात अपने शिष्यों को एक माह पूर्व ही बता दी थी। निर्धारित समयानुसार उन्होंने अपने आश्रम पंचगंगा घाट में जल समाधि ले ली। अब भी यहां उस दिन की याद में “आराधना दिवस” मनाया जाता है। आश्रम में उनकी खड़ाऊं, टोपी, खप्पर और कमंडलु रखे हुए हैं।19

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