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सम्पादकीय

by
Feb 7, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 07 Feb 2006 00:00:00

हम अपनी पीठ स्वयं नहीं देख सकते, किन्तु अगर दूसरे इसे देखकर गन्दगी की बात हमें बताएं, तो हम उसे भी नहीं सुनना चाहते।-महात्मा गांधी (संपूर्ण गांधी वाङ्मय, खंड, 40, पृ. 355)संकेत साफ हैसंप्रग सरकार का सेकुलर चेहरा एक बार फिर उजागर हुआ है। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी के कार्यकाल में बनाई गई 15 सूत्रीय अल्पसंख्यक कल्याण योजना को फाइलों से निकालकर गत 22 जून को कैबिनेट की बैठक में रखा गया। बैठक में लिए गए फैसले को बाद में वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम ने सार्वजनिक करते हुए कहा कि यह 15 सूत्रीय कार्यक्रम अल्पसंख्यकों के सामाजिक, शैक्षिक व आर्थिक उत्थान के लिए तैयार किया गया है। इस कार्यक्रम की खासियत क्या है? यही कि अब सभी सरकारी योजनाओं में 15 प्रतिशत धनराशि हर हाल में अल्पसंख्यक कल्याण के नाम पर खर्च की जाएगी। अब इसमें शायद ही किसी को संदेह हो कि इस मनमोहन सरकार की नजर में अल्पसंख्यक कौन हैं। इस 15 सूत्रीय कार्यक्रम में उर्दू, मदरसा शिक्षा, मदरसों के आधुनिकीकरण, मुस्लिम विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति, मौलाना आजाद शैक्षिक फाउंडेशन के जरिए अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थाओं के आधारभूत ढांचे को सुदृढ़ करने के लिए धन उपलब्ध कराने और मुस्लिमों को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए उन्हें आसान कर्ज देने तथा केन्द्र व राज्य सरकार की नौकरियों में मुस्लिमों की नियुक्ति करने की पेशकश है। वोट बैंक की राजनीति में पूरी तरह डूबी वामपंथी इशारों पर चल रही इस सेकुलर सरकार ने संविधान की भी धज्जियां उड़ाने में अब कोई कसर शेष नहीं रखी है। संविधान की कुछ धाराओं की मनमानी व्याख्या कर मुस्लिमों को सरकार उनकी मजहबी पहचान बनाए रखने के नाम पर शैक्षिक एवं मजहबी संस्थान स्थापित करने, उन्हें चलाने का अबाधित अधिकार पहले से ही देती चली आ रही है। अभी तो दो ही साल हुए हैं इस सरकार को कुर्सी संभाले, पर इतने समय में ही इसने हर वह काम किया है जो इस हिन्दूबहुल देश में हिन्दुओं की भावनाओं पर कुठाराघात करता है। कुर्सी संभालते ही अर्जुन सिंह ने शिक्षा का “निर्विषीकरण” करने की मुहिम छेड़ी, दीपावली के दिन शंकराचार्य जी को गिरफ्तार किया, सेना में धार्मिक चिन्ह दिखाने पर रोक लगाई, पोटा रद्द किया, बनर्जी समिति की झूठी रपट में हिन्दुओं को ही दोषी ठहराया, आई.एम.डी.टी. कानून सर्वोच्च न्यायालय ने निरस्त किया तो घुसपैठियों के संरक्षण के लिए असम में विदेशी नागरिक कानून लागू किया, इलाहाबाद उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के कड़े फैसलों के बावजूद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का मुस्लिम चरित्र बनाए रखने की घोषणा की, पैगम्बर मोहम्मद के कार्टून पर खेद जताया लेकिन हुसैन द्वारा देवी-देवताओं के अभद्र चित्रण पर चूं तक नहीं की, कश्मीर घाटी में मुस्लिमों को सीमा के आर-पार जाने की छूट दी, परमिट दिए, लेकिन कश्मीरी हिन्दुओं की वापसी पर एक कदम नहीं बढ़े और सच्चर कमेटी से सेना में मुस्लिमों की गिनती करवाने की चाल चली। कितने गिनाएं मजहबी उन्माद और जुनून को पोसने वाली इस सरकार के काम। इतना ही नहीं तो सऊदी अरब से मौजूदा भारतीय हज यात्रियों की संख्या का कोटा 147,000 से 157, 000 तक बढ़ा देने की अपील करके इस सरकार ने अपनी चाल-चरित्र पर अब किसी संशय की गुंजाइश तक नहीं छोड़ी है। ये वही सरकार है जो आतंकवाद के शिकार हुए हिन्दुओं के आंसू पोंछने में शर्म महसूस करती है, परन्तु आतंकवादियों के खिलाफ आह्वान करने पर “सांप्रदायिक तनाव पैदा होने की टीस” से कुलबुलाने लगती है। इस सरकार से और उम्मीद भी क्या कीजिएगा। उड़ीसा और आंध्र के किसान कर्ज में डूबकर आत्महत्या को विवश हैं तो जरूरी चीजों के बढ़ते दामों से आम आदमी त्रस्त है, पर सोनिया गांधी से लेकर अंबिका सोनी और मनमोहन सिंह से लेकर अर्जुन सिंह बस एक ही एजेंडा चला रहे हैं- मुस्लिमों की मिजाजपुर्सी। देश के सुखद भविष्य की दृष्टि से सरकार के ये राजनीतिक संकेत खतरनाक हैं, चिंताजनक हैं और हर उस भारत भक्त को सावधान करने को पर्याप्त हैं जो भारत को पूजता है, जो सबके साथ समानता की बात करता है और जो एक देश, एक संस्कृति और एक जन का हामी है।6

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