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आतंकवाद, बिरयानी और “कापीराइटर”-मयंक जैनहमारी सहिष्णुता अद्भुत है। आतंकवाद और आतंकवादी भी हमारी सहिष्णुता के दायरे से बाहर नहीं हैं। याद है, हजरतबल में कितने स्नेह से हमारी सरकार ने स्वयं आतंकवादियों को बिरयानी पका पका कर खिलाई थी? इसके पश्चात बिरयानी से तृप्त इन आतंकवादियों को कानून से भाग जाने के लिए “सुरक्षित-रास्ता” प्रदान किया गया था। 1993 में नरसिंह राव सरकार के इस अनोखे कार्यकलाप को लेकर भाजपा ने बवाल खड़ा कर दिया था। “आतंकवादियों के लिए बिरयानी और रामभक्तों के लिए गोलियां।” आडवाणी जी का यह नारा गली-गली में गूंज उठा था। तेरह साल बाद “बिरयानी” और “आतंकवाद” साथ-साथ फिर प्रकट हो गए हैं। कश्मीर से दूर मुम्बई के नरीमन प्वाइंट स्थित हिल्टन टावर्स होटल में बिरयानी की हंडिया में आतंकवाद का गर्म मसाला झोंक दिया गया है। हिल्टन में बिरयानी महोत्सव के अन्तर्गत मध्यकालीन इतिहास के इस्लामी कट्टरपंथी तैमूर लंग के पोस्टर पर कुछ दिल दहला देने वाले वाक्य लिख दिए गए : “उसने हमारे पुरुषों को आतंकित किया, वह हमारी महिलाओं को उठाकर ले गया, लेकिन उसी तैमूर ने हमें “बिरयानी” भेंट की थी।” यह है हिल्टन का शीशों की दीवार वाला रेस्तरां, जो तरह-तरह के भोजनोत्सवों के लिए प्रचलित है। इस बार यहां खट्टे गोश्त की बिरयानी, सौफयानी मुर्ग बिरयानी और सब्ज तहरी के साथ-साथ कई व्यंजन परोसे जा रहे हैं।”एक ओर आज (8 मार्च, 2006) अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जा रहा है, दूसरी ओर हिल्टन के मालिक बिरयानी को एक महाकसाई और बलात्कारी के नाम पर बेच रहे हैं।” अपनी पीड़ा को व्यक्त करते हुए ये शब्द लिखे “मुम्बई समाचार की सम्पादक पिन्की दलाल ने। 9 मार्च, 2006 को हिन्दू मानवाधिकार मंच, मुम्बई के कार्यकर्ताओं ने सुबह होटल में घुसकर हल्ला मचाया और इस पोस्टर की धज्जियां उड़ा दीं। अगले दिन के “दैनिक सामना” के अनुसार हिल्टन प्रबन्धन ने इस पोस्टर को लेकर उठे विवाद पर खेद व्यक्त किया। श्रीनगर से बंगलौर तक, बंगलौर से हैदराबाद तक, हैदराबाद से दिल्ली तक और दिल्ली से वाराणसी तक हिन्दुओं के त्योहार और धर्मस्थल जिहादी हिंसा की चपेट में दिखाई दे रहे हैं। इस गंभीर स्थिति में “महिलाओं के अपहरणकारी” और “आतंक फैलाने वाले” तैमूर की प्रशंसा करने वाला मानसिक रूप से विकृत तो है ही, वह खुल्लम-खुल्ला भारतीय समाज का मजाक भी उड़ा रहा है। यह सब वह केवल बिरयानी बेचने के लिए कर रहा है। इस मानसिकता का आंकलन करना आवश्यक है।राष्ट्रवादियों का मानना है कि इस समस्या की जड़ हैं हमारी इतिहास की किताबें और कम्युनिस्ट इतिहासकार, जिन्होंने मुस्लिम अत्याचारों पर सफेदी पोत कर सच्चाई को दफना दिया है। लेकिन अचरज की बात है कि हिल्टन के इस “कापीराइटर” को वे सारी सच्चाइयां मालूम हैं, जो आम-तौर पर स्कूली पुस्तकों से गायब हैं। “कापीराइटर” को मालूम है कि तैमूर ने आतंक फैलाया था और उसे जानकारी है कि तैमूर ने महिलाओं का अपहरण किया था। इसके बावजूद यह विद्वान “कापीराइटर” तैमूर का प्रशंसक है क्योंकि तैमूर ने हमें बिरयानी बनाना और खाना सिखाया था। अगर “कापीराइटर” ने तैमूर की जीवनी-“तिजूके तैमूरी” पढ़ी होती तो वह जानता कि “थोड़े से समय में ही किले के सभी बंदियों को तलवार से काट दिया गया। एक घंटे के अंदर दस हजार लोगों के सिर काट दिए गए। इस्लाम की तलवार ने काफिरों के रक्त से स्नान किया। किले के खजाने और अन्न के भण्डार को मेरे सैनिकों ने लूट लिया।” पंजाब के खोखरों से लड़ते हुए तैमूर ने अपनी लड़ाइयों का वर्णन बड़े चाव से किया है। बात है सन् 1398 की। इसके पश्चात तैमूर अपने 15,000 तुर्क सैनिकों को लेकर दिल्ली पहुंचा : “जुम्मे के दिन सुबह होते ही मेरे सैनिक अपने आपे से बाहर हो चुके थे। सारे शहर में उन्हें कत्ल, लूटपाट और बंदी बनाने के सिवाय कुछ और नहीं सूझ रहा था। हरेक सैनिक ने 50 से 100 मर्द, औरतों और बच्चों को बंदी बना लिया। किसी ने भी 20 से कम लोगों को बंदी नहीं बनाया… सैयद उलेमा और मुसलमानों के रिहाइशी इलाकों को छोड़कर सारे शहर में तबाही मचाई गई।” (तिजूके तैमूरी) तैमूर के नेतृत्व में दिल्ली में साम्प्रदायिकता का नंगा नाच किया गया था। यह आक्रमण पंथनिरपेक्ष नहीं था। इस नरसंहार में केवल आर्थिक कारणों को ढूढना मूर्खतापूर्ण होगा। यहां मुसलमानों को बाइज्जत छोड़ दिया गया था। यह तरीका था तैमूर की गंगा-जमुनी तहजीब का। लेकिन “कापीराइटर” ऐसे हादसों को महत्वपूर्ण नहीं मानता है, क्योंकि बिरयानी ही उसकी जीवन की आधारशिला है। मैंने हिल्टन टावर्स की इस तस्वीर को दिल्ली विश्वविद्यालय की एक इतिहासकार को दिखाया। आवेश में आकर वह फ्रांसीसी यात्री फ्रांस्वा बरनियर की एक पुस्तक ढूंढ लाईं- “ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर”। इसमें बरनियर लिखते हैं : “हिन्दू दस्ते अवतार की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जो पृथ्वी पर आकर हिन्दुओं को मुसलमानों के आतंक से बचाए।” बहुत दु:ख के साथ वह इतिहासकार कह रही थीं : “सन् 1656 में एक फ्रांसीसी यात्री ने पाया कि लोग मुसलमानों के आतंक से बचने के लिए विष्णु के दसवें अवतार की प्रतीक्षा कर रहे थे। सन् 2006 में हमारी दृष्टि एक बिरयानी की प्लेट तक सीमित रह गई है”। उन्होंने मुझसे पूछा, “क्या हम इससे ज्यादा भी गिर सकते हैं?”9
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