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प्रहारों से घिरे हिन्दू
कांची कामकोटि पीठ के पूज्य शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती जी की ठीक दिवाली की रात गिरफ्तारी से हिन्दू आस्थाओं, प्रतीकों और हिन्दू समाज पर आघातों का जो सिलसिला शुरू हुआ था, वह थमा नहीं है बल्कि और तीखा हुआ है। तिरुमला-तिरुपति में ईसाइयों की बढ़ती गतिविधियां हों या सेना में तिलक और राखी पहनने की पाबंदी, सुन्दरीकरण के नाम पर प्राचीन मंदिरों को तोड़ना हो या देवी-देवताओं के अपमानजनक चित्र बनाना, हिन्दुओं का योजनापूर्वक नरसंहार हो या वंदे मातरम् का अपमान, एक के बाद एक घटनाएं किसी बड़े षडंत्र की ओर इशारा करती हैं। और इस षडंत्र का सहायक बन रहा है सेकुलर सत्ता अधिष्ठान, जो पाठपुस्तकों में हिन्दू मान बिन्दुओं पर कुठाराघात की ओर से आंख फेर लेता है परन्तु दूर किसी देश में किसी मजहब विशेष के मान बिन्दु के “अपमान” के विरोध में संसद में बयान देता है।
भारत के पूर्वोत्तर राज्य हों या जम्मू-कश्मीर, हिन्दुओं को षडंत्रपूर्वक या तो मतान्तरित किया जा रहा है या उन्हें अपने पुरखों की जमीन से खदेड़ बाहर किया जा रहा है। ये सब घटनाएं हो रही हैं, परन्तु सरकारी आंकड़ों में इनकी झलक नहीं दिखाई जाती और यही कारण है कि अंग्रेजी पढ़ाई पढ़ने वाला हिन्दू समाज भी आमतौर पर बेखबर सा अपनी रोजाना की रोजी रोटी की दौड़ में खोया हुआ है। उसे नहीं पता कि संकट कितना गहन हो चुका है और बेखबरी का यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं जब वह अपने हिन्दुस्थान में अल्पसंख्यक बना दिया जाएगा।
इन सब और इनके अलावा कितने ही अन्य संकटों का दस्तावेजी अध्ययन अगर खुद डा. सुब्राह्मण्यम स्वामी करते हैं तो निश्चित जान लीजिए कि वे सच्चाई का आइना ही होंगे। जनता पार्टी के अध्यक्ष एवं पूर्व विधि एवं न्याय मंत्री डा. स्वामी देश से जुड़े कितने ही विषयों का तथ्यान्वेषण करके उनकी वास्तविक स्थिति से परिचित करा चुके हैं। गहन अध्ययन पर आधारित उनकी सद्य प्रकाशित अंग्रेजी पुस्तक “हिन्दूज अंडर सीज-द वे आउट” (प्रकाशक-हर आनंद पब्लिकेशन्स, ई-49/3, ओखला इण्डस्ट्रियल एरिया, फेज-2, नई दिल्ली-20, पृष्ठ-140, मूल्य-250 रु.) का गत 18 सितम्बर को नई दिल्ली में पूज्य सरसंघचालक श्री कुप्.सी. सुदर्शन ने लोकार्पण किया। आई.आई.सी. सभागार में सम्पन्न इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में स्वयं पूज्य शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती जी की उपस्थिति ने इसे गरिमा प्रदान की।
पुस्तक की जानकारी देते हुए डा. सुब्राह्मण्यम स्वामी ने बताया कि हिन्दुओं पर आज चौतरफा हमले हो रहे हैं और ऐसे में हिन्दू समाज को जाग्रत करने की महती आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि हिन्दुओं पर आघात के मुख्यत: चार आयाम हैं- (1) हिन्दू आस्थाओं/प्रतीकों को अपमानित करना, (2) समाज का जनसांख्यिक परिवर्तन करना, (3) हिन्दुओं के विरुद्ध जिहादी गतिविधियां, और (4) भारतीय इतिहास को योजनापूर्वक गलत तरीके से प्रस्तुत करना।
उन्होंने कहा कि हिन्दू प्रतीक चिन्हों के अपमान से लेकर देवी-देवताओं को भौंड़े वस्त्र पहनाना इसी हिन्दुत्व विरोधी अभियान का हिस्सा है। आतंकवादी षडंत्रपूर्वक हिन्दुओं की हत्याएं कर रहे हैं। उत्तर पूर्व में जनसांख्यिक बदलाव किए जा रहे हैं। डा. स्वामी ने कहा कि अब समय आ गया है जब हिन्दू समाज इन सब प्रहारों के खिलाफ खुद को तैयार करे। उन्होंने शंकराचार्य जी को “ज्ञानयोगी” और श्री सुदर्शन को “कर्मयोगी” की संज्ञा दी और कहा कि सबसे बड़े हिन्दुत्वनिष्ठ संगठन रा.स्व.संघ के सरसंघचालक और सर्वोच्च आध्यात्मिक संत पूज्य शंकराचार्य क्रमश: “अर्जुन” और “कृष्ण” हैं। चूंकि ये दोनों ही आज हमारे मार्गदर्शक हैं अत: हिन्दू समाज की जीत निश्चित है।
एक अन्य संदर्भ में डा. स्वामी ने पुस्तक में लिखा है कि चीन ने अमरीका से अपना वैर भाव भुलाकर आर्थिक प्रगति पर ध्यान केन्द्रित किया और आगे बढ़ा। भारत भी यदि सन 2010 तक अपनी विकास दर 10 प्रतिशत करने पर ध्यान केन्द्रित करता और तब तक अपनी आण्विक महत्वाकांक्षाओं पर नियंत्रण रखते हुए पोकरण-2 का विस्फोट 2010 के बाद करता तो ज्यादा हितकर होता।
पुस्तक लोकार्पित करने के बाद मुख्य वक्ता के नाते श्री सुदर्शन ने कार्यक्रम को सम्बोधित किया। उन्होंने कहा कि हिन्दू समाज पर गत 800 वर्ष से ऐसे संकट अनेक बार आए हैं और हर बार हमने उनका सफल प्रतिकार किया है। अपनी आंतरिक कमजोरी के कारण 500 वर्ष तक मुस्लिम सुल्तानों के और फिर 175 वर्ष तक हम अंग्रेजों के अधीन रहे। यह बताया जाता है कि मुस्लिमों ने हम पर आधिपत्य जमाने की पूरी कोशिश की, भारतवर्ष के लोग पराजित होते रहे, पर उन आक्रांताओं का कोई प्रतिकार नहीं किया गया। श्री सुदर्शन ने कहा कि यह धारणा गलत है। सन् 636 में हजरत उमर, सन् 712 में मोहम्मद बिन कासिम और उसके 150 वर्ष बाद गजनवी, फिर मोहम्मद गोरी ने भारतवर्ष पर आक्रमण किए। यहां के लोगों ने उनका भरपूर प्रतिकार किया, इसमें बलिदान दिए।
इतिहास के पन्नों से श्री सुदर्शन द्वारा बताए भारतीयों के सबल प्रतिकार के इन उदाहरणों को सभागार में बैठे श्रोता पूरी गंभीरता से सुन रहे थे। पूज्य सरसंघचालक ने आगे बताया, सन् 1206 में पृथ्वीराज चौहान की पराजय के बाद मुस्लिमों ने भारत में अपना राज स्थापित किया था। उससे पूर्व लगभग 570 साल तक उन्हें भारतीय समाज का संघर्ष झेलना पड़ा था। जहां दूसरे देशों में उन्होंने अपना आधिपत्य सहजता से जमा लिया था वहीं भारत में वे अपने 500 साल के शासन में हिन्दुओं को इस्लाम में मतान्तरित नहीं कर पाए। मुस्लिमों ने दुनिया के अनेक देशों पर आक्रमण किए।
श्री सुदर्शन ने आगे कहा, इधर यूरोप में इस्लाम जितना ही असहिष्णु ईसाई पंथ उठ खड़ा हुआ। इस्लामवादियों के खिलाफ कई क्रूसेड हुए और यूरोप का काफी हिस्सा मुस्लिमों से मुक्त करा लिया गया। आखिर क्या कारण था कि मुस्लिम आक्रांता हमारी संस्कृति को आंच नहीं पहुंचा पाए और कुल आबादी का केवल 12-13 प्रतिशत ही मतान्तरित कर पाए? इस महत्वपूर्ण बिन्दु को श्री सुदर्शन ने विस्तार से समझाते हुए कहा कि चूंकि हमारे यहां समाज को आपस में जोड़ने वाली सुघड़ जाति व्यवस्था थी, यानी हमारे यहां मजबूत आर्थिक-सामाजिक व्यवस्था थी जहां हर जाति का कार्य-व्यापार तय था, कोई किसी दूसरे के काम में दखल नहीं देता था। समाज परस्पर निर्भर था इसलिए वे हमारे समाज को तोड़ नहीं पाए। पर चूंकि हर 300 वर्ष में युग धर्म बदलता रहता है अत: हमारे यहां भी व्यवस्था में बदलाव आए। मगर, श्री सुदर्शन ने कहा, जो शाश्वत है, सनातन धर्म है वह नहीं बदलता। यह बात मुस्लिमों को भी समझनी चाहिए और उस शाश्वत की पहचान करनी चाहिए।
हिन्दू जीवन पद्धति और अवधारणा की चर्चा करते हुए श्री सुदर्शन ने कहा कि भारत विविधताओं का देश है, जहां सभी प्रकार के मौसम, लोगों के रंग, रूप, गुण और भौगोलिक असमानताएं हैं। ये सब भगवान की इच्छा के अनुसार है। मत-पंथ की विविधता भी भगवान ने स्वयं निर्मित की। हिन्दू हैं, मुस्लिम हैं तो ईसाई भी हैं। उसने सबको हिन्दू या सबको मुस्लिम या ईसाई नहीं बनाया है। अत: सभी मुस्लिम हों या सभी ईसाई हों यह विचार गलत है। हिन्दू मानस है सबसे मिलकर चलना। हिन्दू धर्म है, जीवन पद्धति है, रिलीजन नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी तीन बार अपने फैसलों में यही बात दोहराई है। धर्म के अंतर्गत ही व्यक्ति, समाज, प्रकृति और परमात्मा के बीच तालमेल की व्यवस्था है। वेदों की ऋचाओं में इतना ज्ञान, विज्ञान समाया है, पर लोग इसे जानते नहीं हैं, क्योंकि उनकी शिक्षा अंग्रेजों की बनाई शिक्षा पद्धति से हुई है। आज हिन्दू को अपनी हिन्दू पहचान के बारे में ही संभ्रम है। अंग्रेजों ने हमारे गौरवपूर्ण इतिहास को हमसे छिपाया। आज दुनिया संघर्ष के कगार पर खड़ी है अत: हमें अपनी गौरवमयी धरोहर को पहचानना होगा। यह ज्ञान हमें नई पीढ़ी को देना होगा। हमें “कोमा” से जागना होगा। अपनी पहचान के प्रति सचेत होकर आसुरी शक्तियों को पराजित करना होगा।
पुस्तक की विषय वस्तु की चर्चा करते हुए श्री सुदर्शन ने कहा कि हिन्दू समाज इन भीतर ही भीतर चल रहे आक्रमणों को पहचाने क्योंकि ये दीमक की भांति समाज को खोखला कर रहे हैं। रा.स्व.संघ इसी उद्देश्य से गठित हुआ और हर क्षेत्र में आसुरी शक्तियों को पराजित करने के लिए लोग काम कर रहे हैं। हम इतिहास के पन्नों में समाने वाले नहीं हैं। नई व्यवस्था जन्म लेने वाली है, आज उसकी प्रसव पीड़ा दिखाई दे रही है। युग परिवर्तन के जो-जो संकेत होते हैं, वे आज दिख रहे हैं। सन् 2011 में भारत का भाग्य सूर्य दुनिया में चमकना प्रारम्भ होगा। पूज्य सरसंघचालक के इस सारगर्भित वक्तव्य के बाद शंकराचार्य जी ने अपना आशीर्वाद देते हुए कहा कि विधर्मियों ने कितने ही प्रयास किए पर हिन्दू समाज, संस्कृति को बदल नहीं सके। हमने अतिथि रूप में यहां आए विभिन्न मत-पंथों को सम्मान की नजरों से देखा, परन्तु अगर वे हमारे यहां मतान्तरण करते हैं तो वह स्वीकार्य नहीं है। अतिथि के रूप में समाज विरोधी कृत्य करने वाले का सामना करना धर्म है। पूज्य जयेन्द्र सरस्वती जी ने कहा कि जब-जब धर्म की हानि होगी, संत-महात्माओं का प्रभाव बढ़ेगा अत: चिंता की बात नहीं है। विधर्मी षडंत्र में कभी सफल नहीं होंगे। रा.स्व.संघ समाज को जोड़ने का कार्य कर रहा है, पर केवल उतना ही पर्याप्त नहीं है। हर हिन्दू की अपनी संस्कृति पर आस्था बढ़े, समाज एकजुट हो और धर्म रक्षा के लिए सन्नद्ध हो तो किसी भी संकट का सामना किया जा सकता है। लोकार्पण समारोह में पूर्व केन्द्रीय मंत्री डा. मुरली मनोहर जोशी, श्री अरुण शौरी, श्री वेद प्रकाश गोयल, पूर्व राज्यपाल श्री केदारनाथ साहनी, न्यायमूर्ति रामा जायस, श्री ए.आर. कोहली सहित बड़ी संख्या में चिंतक, बुद्धिजीवी, पत्रकार उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन हर आनंद पब्लिकेशन्स के निदेशक श्री नरेन्द्र कुमार ने किया। अंत में सेंट विवेकानंद स्कूल की नन्हीं छात्राओं ने वन्दे मातरम् का बहुत अच्छा और पूरा गान किया। द प्रतिनिधि
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