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माधव! तुम्हारी साधना कीदेवदत्तफिर पधारो राष्ट्र-रथ के सारथी हे!या हमें अपने सरीखा तुम बना दो।।वर्ष-शत बीते भरत-भू पर तुम्हारे आगमन को,जब निराशा-तम हमारे बाह्र, अन्तर मध्य छाया।हम पराजित थे, हमारी वृत्ति केवल दासता थी,चन्द टुकड़ों के लिए था आत्म गौरव को गंवाया।।उस घड़ी में यज्ञ ज्वाला थी जलायी।तुम हमें उस यज्ञ की समिधा बना दो।भस्म कर निज का अहं, निज स्वार्थ, सुख की एषणा को,त्याग का आदर्श अप्रतिम, देश को तुमने सिखाया।व्रत लिया जो मंत्रद्रष्टा से प्रगति हित अग्निपथ पर,पूर्ति हित प्रतिश्वास, प्रतिपल, प्रति पहर उसको निभाया।।जो दिशा-निर्देश केशव ने दिया था।तुम हमें उस लक्ष्य-दिशि चलना सिखा दो।।सूर्य की पहली प्रभा बन कर उगो, हे दिव्य माधव!भागवत-बेला पधारी आज है नीराजना की।ध्येय आलोकित हुआ, उन्मुक्त स्वर्णिम द्वार युग का,शत नमन, शत वन्दना, माधव! तुम्हारी साधना की।।हम करें तन-मन समर्पित अर्चना में।अमृत-पथ पर पुष्प सम हमको चढ़ा दो।।NEWS
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