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पर्यावरण की कुण्डली में बैठीविकास की साढ़ेसाती-सुरेन्द्र बांसलपिछले तीन दशकों में पंजाब की धरती ने गेहूं की पैदावार का जो विश्व कीर्तिमान बनाया उसे पूरे संसार ने देखा। प्रति हेक्टेयर 10 टन गेहूं। फिर भी पंजाब का किसान निराश है, क्यों?पंजाब के लगभग 12,413 गांवों में 12 लाख परिवार कृषि से जुड़े हैं। इन सभी परिवारों पर लगभग 12 हजार करोड़ रु. का ऋण है। इनमें बैंकों का ऋण लगभग 6 हजार करोड़ रु. है। बैंक का कर्जा तो फिर भी किसी लक्ष्मण रेखा के भीतर होता है लेकिन महाजनों, “सुक्खी लालों” यानी आढ़तियों एवं नए किस्म के महाजनों का ब्याज तो दिन दूनी रात चौगुनी दर से बढ़ता रहता है। इसका कारण क्या है? पंजाब का किसान तकनीकी रूप से देश का सबसे अधिक सम्पन्न किसान है। एक सर्वेक्षण के अनुसार जहां पूरे देश में लगभग 16 लाख ट्रैक्टर हैं, वहीं अकेले पंजाब में 4 लाख ट्रैक्टर हैं। यानी देश की कुल धरती के 1.54 प्रतिशत हिस्से के किसान तकनीकी दृष्टि से दूसरे किसानों के मुकाबले करीब 24 गुना अधिक क्षमता वाले हैं। यही “हाइटेक” होना पंजाब के किसान के लिए अभिशाप बन गया है।यह अभिशाप इस दृष्टि से ठीक प्रकट होता है कि पंजाब के आधे किसान परिवारों के पास औसतन 5 हेक्टेयर जमीन ही है। उत्पादन तो भूमि की क्षमता के अनुरूप ही होना है, लेकिन तकनीकी औजारों के रखरखाव का खर्चा बहुत अधिक बैठता है। पंजाब में कुल खेती योग्य भूमि 50 लाख हेक्टेयर है। इसमें से 26 लाख हेक्टेयर भूमि पर जबसे धान की बुवाई शुरू हुई है, तब से प्रतिवर्ष भू-जल स्तर 40 सें.मी. नीचे गिर रहा है। 1960 में पंजाब में धान की पैदावार लगभग साढ़े तीन लाख टन थी, जबकि इस समय 143 लाख टन है। हरितक्रांति रूपी दैत्य ने एक तरफ पंजाब को असीम प्राकृतिक संपदा बहाल की लेकिन साथ ही अपने पर्यावरण-विनाशक पैरों से उसे रौंदा-कुचला भी खूब। संपन्नता के लालच में अंधे बने पंजाब के किसान का ध्यान पर्यावरण को पहुंच रही हानि की तरफ गया ही नहीं।धरती की उर्वरा शक्ति क्या होती है? प्राकृतिक संसाधनों या जल स्रोतों का क्या महत्व होता है? कीट-पतंगों, पशु-पक्षियों को परमपिता ने क्यों बनाया? क्यों गुरुओं और ऋषियों ने धर्मस्थलों को पानी से जोड़ पवित्रता प्रदान की? गुरुधामों के साथ क्यों “सर” (तालाब) लगाया? क्यों पक्षियों को दाना खिलाया जाता रहा? क्यों सार्वजनिक स्थलों पर प्रकृति से जुड़े मेलों का प्रचलन था? पंजाब के पशुओं को लाखों यूनिट बिजली फूंक कर क्यों नहलाया जाने लगा है? क्यों नशा आज पंजाबी संस्कृति का पर्याय बन गया है? कभी इस प्रदेश में 17,500 तालाबों, बावड़ियों, कुओं की सजल परम्पराएं थीं। हरित क्रांति का दैत्य सब लील गया। इस दैत्य के सामने ऐसे सैकड़ों प्रश्न विकास के नवनिर्मित पाषाण लेखों से सर फोड़ने के लिए खड़े हैं। पंजाब के ऊंचे माथे में नशे के साथ-साथ विकास के नाम पर कई कुरीतियां भी आ गई हैं। शायद इसीलिए पुराने पेड़, तालाब, बावड़ियां, परिंदे कश्मीरी शरणार्थियों की तरह दर-ब-दर कर दिए गए हैं। शायद यह भी पंथनिरपेक्ष होना ही है, क्योंकि प्रकृति परमात्मा के हस्ताक्षर हैं और शायद परमात्मा के हस्ताक्षरों के प्रति निष्ठुर होना पंथनिरपेक्ष होना ही है। यही कारण है कि हम इसी तरह की पंथनिरपेक्षता साधते-साधते देश-प्रदेश के प्रति निरपेक्ष होते जा रहे हैं।NEWS
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