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दे दो!-राजीव श्रीनिवासनआह दैव! उत्ताल सुनामी लहरों के रौद्र रूप से प्रायद्वीपीय भारत में हजारों-लाखों लोग काल के गाल में यूं अचानक समा गए। यह नि:संदेह झकझोर देने वाली मानवीय त्रासदी थी। अपनों को खो देने वाले उन सैकड़ों हजारों भारतीयों की वेदना की कल्पना असंभव है। प्रियजन तो खोए ही, अपना घर-बार, रोजगार और जो कुछ भी था, सब गंवा दिया!संकट की इस घड़ी में देशवासियों से बस यही विनती है- इस वक्त जो है, सो दे दो ताकि हमारे पीड़ित बंधु-भाई अपने छिन्न-भिन्न हुए जीवन को फिर से तिनका-तिनका करके समेट सकें।26 दिसम्बर को सुबह 6.30 बजे सागर तट पर बसे तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल, अंदमान द्वीप श्रृंखला आदि में सुनामी लहरों की कई मीटर ऊंची दीवार उठी और रास्ते में जो कुछ भी आया, उसे बहा ले गई। इस विभीषिका में कितने लोग असमय मौत के शिकार हुए, उसकी सही जानकारी तो शायद कभी नहीं मिल पाएगी, क्योंकि तट पर ऐसे हजारों-हजार लोग कच्ची-पक्की झोपड़ियों में बसे थे, गरीब, बेसहारा थे जिनका अब कोई अता-पता नहीं है। पूरे के पूरे परिवार बह गए होंगे, जिनके बारे में कोई जान नहीं पाएगा, क्योंकि वे संवेदनाशून्य शासन की नजरों में नहीं आते।चेन्नै तो बुरी तरह प्रभावित हुआ। यहां कुछ प्रत्यक्षदर्शियों के अनुभव बताता हूं। मरीना तट पर अपना सब कुछ गंवा चुके और मौत को करीब से देख चुके एक मछुआरे का कहना था: “पता नहीं, भगवान हमारी परीक्षा क्यों ले रहा है। वास्तव में यह कलिकाल है। पहले कांची में वह सब हुआ और अब यह हो रहा है।” अपने परिवार का एक सदस्य खो चुकी एक बूढ़ी महिला का विलाप देखा नहीं जाता था। झुग्गी-झोपड़ियों में बसे हजारों पीड़ितों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया और यह क्रम अब भी जारी है।विभीषिका के दृश्य चारों ओर बिखरे पड़े थे। निर्बाध लहरों में खिलौनों की तरह बहते वाहन, नावें, जलपोत, ध्वस्त घरों के अवशेष, माल-असबाब। सड़कों, गलियों में बिखरे मृतकों के अवशेष, टूटे घरों के हिस्से और बालू। लाशों का मिलना अब भी जारी है, जिनमें से कई की शिनाख्त करके या तो जलाया जा रहा है या सामूहिक रूप से दफन किया जा रहा है। अपने बच्चों के निर्जीव शरीर थामे माताओं-पिताओं के बिलखने के दृश्य भीतर तक झकझोर जाते हैं। कितने ही नन्हों के शरीर सागर की लौटती लहरें अपने साथ ले जा चुकी हैं।केरल में कोल्लम के पास ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां घरों के बीच से बहती जलधार सीधी सागर में मिलती है या फिर अम्बलपुझा के आस-पास का इलाका, जहां सड़क सागर से बस कुछ ही कदम दूर है। ऐसे इलाकों में कितनी मौतें हुईं, इसका अंदाजा लगाना सहज नहीं है। ये इलाके बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।ऐसा क्यों हुआ? कुछ न कुछ कारण तो जरूर रहा होगा, जो एक भौतिक काया वाला मनुष्य नहीं जान सकता। क्या समुद्र का यूं रौद्र रूप दिखाना कोई संकेत जैसा था?रिक्टर पैमाने पर 8.9 तीव्रता वाले अब तक के सबसे भीषण भूकम्प ने 26 दिसम्बर को स्थानीय समय के अनुसार सुबह 8 बजे सुमात्रा के तट पर प्रहार किया था। सागर के गर्भ में उठे इस प्रचंड भूकम्प से बनी सुनामी लहरें बंगाल की खाड़ी और हिन्द महासागर में फैलती चली गईं और सागर के दूसरे छोर पर बसे श्रीलंका, मालदीव, भारत और सोमालिया पर भीषण प्रहार कर गईं।भारत में जान-माल की सबसे ज्यादा हानि तमिलनाडु में हुई, जहां कई हजार लोग मारे जा चुके हैं या लापता हैं। नागपट्टनम में मेडोना मत के केन्द्र वेलनकन्नी चर्च में प्रार्थनारत 50 से अधिक श्रद्धालुओं को उत्ताल लहरें पलभर में बहा ले गईं।जब किसी टी. जान ने दावा किया था कि गुजरात भूकम्प कोई आकाशीय संकेत था तो मैंने उसकी भत्र्सना की थी, लेकिन अब मुझे कुछ अजीबोगरीब अनुभव हो रहा है। क्या वास्तव में यह कोई प्रकोप जैसा है? तमिलनाडु में सुनामी लहरों की विभीषिका क्या कोई अलौकिक चेतावनी हो सकती है, जिसका कांची कामकोटि पीठ के पूज्य शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती के अपमान से कोई सरोकार है? क्या अधर्म के बढ़ते प्रभाव के विरुद्ध यह कोई संकेत है? तर्कों और तथ्यों की बिना पर व्यवहार करने वाले हम मनुष्यों की समझ से परे कुछ रहस्यमयी शक्तियां मौजूद हैं। याद आते हैं इतिहासकारों द्वारा आपदाओं से पहले दर्ज किए गए कुछ अजीबोगरीब संकेत, कुछ अपशकुन। उदाहरण के लिए, प्रलंयकारी युद्ध से पहले विएतनाम में मेंढकों की बारिश या जूलियस सीजर की मृत्यु से पहले आकाश में दिखने वाले अजीब से दृश्य। कहते हैं कि ध्यान और तप साधना के बल पर दिव्य शक्तियां प्राप्त कर चुके संतों की अलौकिक शक्ति चराचर को प्रभावित कर सकती है। हम कुछ ऐसी स्थितियों से गुजर रहे हैं, जिनके बारे में हम जानते ही नहीं हैं और इसीलिए हमें बड़ी सावधानी से कदम रखने की जरूरत है।NEWS
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