|
दिल जुड़े-प्रतिनिधिपूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अक्तूबर, 2003 में आसियान (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन) सम्मेलन में जिस कार रैली की बात कही थी वह इस वर्ष सच्चाई में बदली। उन्होंने कहा था, एशियाई देशों की एकता को बढ़ावा देने के लिए इन देशों से गुजरने वाली एक कार रैली मददगार साबित होगी। वर्तमान केन्द्र सरकार ने “आसियान” के साथ पूर्ववर्ती सरकार की नीतियों पर अमल जारी रखा और अंतत: प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने 22 नवम्बर को गुवाहाटी में पहली दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों की कार रैली का उद्घाटन किया। भारत-आसियान कार रैली को एशियाई देशों के शांतिपूर्ण, संपन्न और स्थिर भविष्य की शुरुआत मानी जा रही है। गुवाहाटी से शुरू हुई यह कार रैली लगातार 20 दिनों तक चली। यह रैली भारत के बाद “आसियान” के सदस्य देश म्यांमार, थाईलैंड, ब्रूनेई, फिलीपीन, लाओस, विएतनाम, कंबोडिया, मलेशिया और सिंगापुर से गुजरती हुई इंडोनेशिया के बाताम शहर में 11 दिसम्बर को संपन्न हुई। इस रैली को भारत ने प्रायोजित किया था और इस पर आने वाला खर्च (करीब 80 लाख डालर) भारत के विदेश मंत्रालय और भारतीय औद्योगिक महासंघ की ओर से वहन किया गया था। रैली में करीब 250 कारों के काफिले ने 20 दिन में 8000 किलोमीटर का फासला तय किया।थाईलैंड के पहाड़ी प्रदेश नोंगखाई से गुजरती हुई कार रैलीसूर्यास्त के समय म्यांमार में एक पड़ाव पर पहुंचा रैली का काफिलालाओस की राजधानी विएनचिएन पहुंचने पर कार रैली का भव्य स्वागत किया गया।लाओस के विएनचिएन शहर से कार रैली को रवाना करते हुए प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह।डा. सिंह उन दिनों विएनचिएन के दौरे पर थे।गुवाहाटी में भारत-आसियान कार रैली का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने कहा कि प्राकृतिक संपदा से भरपूर भारत का उत्तर-पूर्वी हिस्सा “आसियान” जैसे क्षेत्रीय सहयोग संगठन में भारत की सहभागिता का महाद्वार है। इस कार रैली का देश और विदेशों में अभूतपूर्व स्वागत हुआ। रैली में हिस्सा लेने वाली कारों और उनके चालकों को देखने के लिए रास्ते भर में सैकड़ों लोगों की भीड़ जुटती थी। गुवाहाटी से कोहिमा तक के 450 कि.मी. मार्ग पर रैली का जोर-शोर से स्वागत हुआ। लोग राजमार्ग के दोनों तरफ घंटों खड़े रह कर काफिले की राह देखते और काफिले का स्वागत कर चालकों का उत्साह बढ़ाते। अपने देश में ही नहीं, बल्कि जहां-जहां से भारत-आसियान कार रैली गुजरी, हर जगह लोगों ने उत्साह के साथ उसका स्वागत किया।म्यांमार, लाओस, विएतनाम, कंबोडिया और इंडोनेशिया से गुजरते हुए भारतीय चालकों ने उन देशों को करीब से जाना। थाईलैंड से निकलकर रैली ने जब मलेशिया में प्रवेश किया तो शहनाई की धुन और “बोल राधा बोल” जैसे गीतों ने भारतीय चालकों का मन मोह लिया। रैली शाम को जब बटरबर्थ पहुंची तो वहां एक और सुखद आश्चर्य उनके इंतजार में था। मलेशिया में भारत के उप-उच्चायुक्त संजय पांडा ने उनके स्वागत में खास भारतीय भोजन तैयार करवाया था। रैली का सफर कई बार प्राकृतिक बाधाओं तथा लंबी दूरी के कारण शारीरिक और मानसिक रूप से थका देने वाला रहा। यात्रा की थकान के बावजूद चालकों और उनके सहयोगियों में आखिर तक उत्साह बना रहा। दक्षिण एशियाई देशों में परस्पर व्यापारिक और सामाजिक संबंध बढ़ाने के लिए आयोजित की गई इस रैली की सफलता वास्तव में दूरियां पाटने और दिलों को जोड़ने वाली सिद्ध हुई।नई वर्ष 58, अंक 32 पौष कृष्ण 14, 2061 वि. (युगाब्द 5106) 9 जनवरी, 2005सुनामी कीविभीषिकासूनामी का कहरआपदाग्रस्त लोगों की सहायता के लिए सरसंघचालककुप्.सी.सुदर्शन की अपीलहरसंभव सहायता करेंसागर में सूनामी लहरों से मची विभीषिका और जान-माल की अकल्पनीय क्षति पर रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री कुप्.सी.सुदर्शन ने एक अपील जारी करके देशवासियों का आह्वान किया कि संकट में फंसे बंधुओं की मदद के लिए हरसंभव सहायता दें। यहां हम श्री सुदर्शन की उस अपील का अविकल पाठ प्रकाशित कर रहे हैं। सं.मनुष्य सहस्राब्दियों से प्रकृति पर विजय प्राप्त करने का प्रयत्न करता आ रहा है, किन्तु प्रकृति भी कैसी है कि बीच-बीच में ऐसा रौद्र रूप दिखा देती है कि मनुष्य का सारा गर्व चूर हो जाता है। रविवार की प्रात:काल इंडोनेशिया में 8.5 रिक्टर पैमाने के भूकम्प ने समुद्री उत्ताल तरंगों का ऐसा रौद्र रूप दिखाया कि थाईलैण्ड, श्रीलंका, अन्दमान-निकोबार और भारत के पूर्व किनारे पर कन्याकुमारी से लेकर आंध्र प्रदेश के तटीय प्रदेशों में पानी गांवों और शहरों में घुस गया। परिणामस्वरूप सैकड़ों लोग बह गए, सैकड़ों मृत्यु के शिकार हो गए, छोटी-मोटी झोंपड़ियां बह गर्इं और कुछ स्थानों पर लोग फंसे हुए हैं। इनमें अधिकतर मछुआरे हैं जो समुद्र से अपनी आजीविका कमाते हैं तथा अन्य वे सारे देशी व विदेशी पर्यटक हैं जो क्रिस्मस की छुट्टियों में सैर करने गए थे।इस अनाहूत प्राकृतिक आपत्ति में आपदाग्रस्त बंधुओं की सहायता करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य बनता है। अत: मैं अपने देशवासियों से अपील करता हूं कि वे उदार ह्मदय से अपने अभागे बंधुओं के प्रति सहायता का हाथ बढ़ायें। संघ के स्वयंसेवक तो सदा के समान सहायता के काम में जुट गए हैं। इस सम्पूर्ण सहायता का केन्द्र-बिन्दु होगा चेन्नै स्थित “सेवाभारती” का कार्यालय, जिसका पता है:-सेवाभारती तमिलनाडु “शक्ति”, 1, एम.वी.स्ट्रीट, पंचवटी, चेटपट, चेन्नै-600031 दूरभाष: (044) 28361049, 28360243 सहायता राशि चैक, ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिए “सेवाभारती, तमिलनाडु” के नाम भेजी जा सकती है। कम्बल, गर्म कपड़े, दवाएं आदि राहत सामग्री भी भेज जा सकते है।भीतर लोमहर्षक अनुभव भेद भुलाकर सब सहायता को दौड़ पड़े। स्वयंसेवकों का सेवाकार्य नरसिंह राव का अन्तिम अपमान गोवा में कांग्रेस का साम्प्रदायिक अभियान उत्तराञ्चल में माओवाद जनकपुर में राम बारातपाञ्चजन्य विशेष आंखों देखी – आपबीती सिर्फ पानी और विनाश!!! -जयशंकर नारायणनसमुद्री तूफान पीड़ितों की सहायता हेतु दिल्ली में अभियान आप अपनी सहायता यहां भी भेज सकते हैं -सत्यनारायण बंसल, प्रान्त संघचालक, दिल्लीबस, इस वक्त जो भी हो दे दो! -राजीव श्रीनिवासनभारतीय ज्ञानपीठ का मूर्तिदेवी सम्मान समारोह यशदेव शल्य को मूर्तिदेवी सम्मान-प्रतिनिधिडा. गजानन बा. पलसुले को संत कवि दासगणु पुरस्कार -प्रतिनिधिइतिहास पर बवाल-गेरुआ हो या लाल? इतिहास झुठलाते कम्युनिस्ट -डा. सीतेश आलोकदिल्ली पूर्व सैनिक सेवा परिषद् ने मनाई विजय दिवस की वर्षगांठ -प्रतिनिधिदेहरादून राष्ट्रीय अपंग विकास संस्था द्वारा चुनौतियों पर विजयी प्रतिभाशाली सम्मानित -रामप्रताप मिश्रपंजाब पर्यावरण की कुण्डली में बैठी विकास की साढ़ेसाती -सुरेन्द्र बांसलसरोकार मेनका गांधी, सांसद, लोकसभा क्या मछली एक स्वास्थ्यवर्धक भोजन है? -एस.सी. पाण्डे, शिवालिक नगर, बी.एच.ई.एल., हरिद्वार (उत्तराञ्चल)नेपाल के पूर्व मंत्री डा. अशरफी शाह ने कहा- प्रजातंत्र केवल काठमाण्डू तक सीमित -प्रतिनिधिमीरा पंचशती समारोह सम्पन्न मीरा के भक्तिरस पर चर्चा -नवीन कुमार झारामकृष्ण मठ (चेन्नै) की शताब्दी सहायता हेतु प्रार्थनादीनानाथ बत्रा सम्मानित भारतीय शिक्षा के अप्रतिम योद्धा -प्रतिनिधिपूर्वाञ्चल कल्याण आश्रम का वार्षिकोत्सव सेवा की आड़ में मतान्तरण का अधिकार किसी को नहीं -इन्द्रेश कुमार, सह-सम्पर्क प्रमुख, रा.स्व.संघलोकसभा अध्यक्ष पद पर सोमनाथ दा के सात महीने बस, अभी से असहाय?दिल्ली में विस्थापित कश्मीरी हिन्दुओं का सम्मेलन दु:ख-दर्द की दवा ढूंढते हैं……श्रद्धाञ्जलि वरिष्ठ माक्र्सवादी नेता नृपेन चक्रवर्ती नहीं रहे -प्रतिनिधिसम्पादकीय चुनावों की आहटमंथन प्रकृति के सामने असहाय मानव -देवेन्द्र स्वरूपटी.वी.आर. शेनाय सुनामी ने याद दिलाए इतिहास के सबकमाटी का मन खतरे में देश की खाद्यान्न सुरक्षा डा.रवीन्द्र अग्रवालकही-अनकही प्राकृतिक आपदा-एक अच्छा कवच दीनानाथ मिश्रसंस्कार सफरनामा : अमृतसर आस्था के दीप -विमल लाठपाञ्चजन्य पचास वर्ष पहले उ.प्र. के मंत्री द्वारा उर्दू में बजट! विशेष प्रतिनिधि द्वाराआम चुनाव में मुस्लिम- वोट प्राप्त करने की चाल मुस्लिम साम्प्रदायिकता को प्रोत्साहनबाल जगतसुनो कहानीबूझो तो जानेंहिन्दू-भूमि षोडश संस्कार -सुरेश सोनीदो कविताएं -हलीम आईनाविद्वान और ज्ञानी ज्ञानी के पास होती हैसरल-मधुरपुस्तक -समीक्षा युद्धकाल में रूप रस माधुरी -समीक्षकपाठकीय कांग्रेस का हाथ किसके साथ गरीब या कम्युनिस्ट?गहरे पानी पैठ काबा शरीफ में भारतीय प्रतिनिधिNEWSआंखों देखी – आपबीतीसिर्फ पानी और विनाश!!!श्री जयशंकर नारायणन आर्ष विद्या गुरुकुलम के पूज्य स्वामी दयानंद सरस्वती के शिष्य हैं तथा चेन्नै में साफ्टवेयर इंजीनियर हैं। वे हर सप्ताह चेन्नै सागर तट के किनारे बसे गांवों में वैदिक विरासत की कक्षाओं में अध्यापन के लिए जाते हैं। 26 दिसम्बर को नौ बजे वे कोवलम सागर तट पर थे। यहां प्रस्तुत है पाञ्चजन्य के लिए विशेष रूप से भेजा गया उनका आलेख, जिसमें उन्होंने अपने अनुभव बताए हैं। -सं.-जयशंकर नारायणनहर बार की तरह 26 दिसम्बर, 2004 के दिन भी सुबह 9 बजे हम मछुआरों के बच्चों की कक्षा में कोवलम के समुद्र तट पर थे। मैं अपने तीन मित्रों के साथ वहां गया था। “ऐम फार सेवा” संस्था के उस गांव में चल रहे काम के बारे में मैं उन्हें बताने वाला था। उस समय हम समंदर के किनारे चहल-कदमी कर रहे थे। समंदर में डुबकी लगाने के बारे में हम सोच ही रहे थे कि बिना किसी पूर्व सूचना, बिना किसी आहट या आवाज के, बिना किसी पूर्व अहसास के लहरों में उफान बढ़ने लगा। हमें लगा कि पूर्णिमा का दिन है, शायद ज्वार की लहरें हैं। लेकिन कुछ ही पल बाद विशाल लहरें आईं, उन्होंने हमें दूर ढकेल दिया और पूरी तरह भिगो दिया। यह क्या हो रहा था, समझने में हमें थोड़ी देर लगी लेकिन स्थिति की गंभीरता का अहसास होते ही हम किनारे पर स्थित मंदिर की तरफ दौड़े। हाल ही में किनारे पर बने इस मंदिर का हमने जीर्णोद्धार कराया था। उसके बाद 6 से 10 मीटर ऊंची उत्ताल लहरें आने लगीं। समंदर किनारे बसे मछुआरों के घरों में, मंदिर परिसर में पानी भरने लगा। लहरें मछुआरों के घर, नौकाएं सब बहाकर ले गईं। हम भयभीत से यह सब देखते रहे। बच्चे डर के मारे चीख रहे थे। बड़ों को समुद्र में गए अपने परिजनों के बारे में चिंता हो रही थी। हमने विध्वंस, पीड़ा और दुख को अपने आस-पास सब तरफ देखा। और यह सब केवल कुछ ही मिनटों में हुआ था।समंदर किनारे के उस मंदिर के सामने कुछ दुपहिए वाहन और कारें खड़ी थीं। उनमें से एक कार हमारी भी थी। लोगों में मची भगदड़, जान-बचाने के लिए भागते लोगों को हम देख ही रहे थे कि किसी ने आकर हम बताया- आपकी कार बह गई। हम बाहर की तरफ दौड़े। हम यह देखकर स्तब्ध रह गए कि हमारी कार और अन्य एम्बेसडर कारें उन महाकाय लहरों पर छोटे खिलौनों की तरह डूब-उतरा रही थीं। लहरें अब बिजली के खंभों की ऊंचाई तक जा पहुंची थीं। लहरों ने हमारी कार को एक दीवार पर उछाल दिया। इसके बाद हमें अपनी कार दिखाई नहीं दी। हमने अपना ध्यान आस-पास के लोगों की तरफ मोड़ा। बिजली के तारों से टकराती लहरों को देख कर हमें करंट लगने की चिंता हुई। लेकिन सौभाग्य से बिजली की आपूर्ति रोक दी गई थी। पांच मिनट का यह समय हमें अंतहीन लग रहा था। पांच मिनट के बाद समंदर पीछे हटा। लहरें जब लौटीं तो अपने साथ कुछ दुपहिए और एम्बेसडर कारें भी बहाकर ले गईं। सागर तट से दो सौ मीटर अंदर चला गया था।जाते-जाते उसने कई चट्टानें उघाड़ दी थीं। ये चट्टानें आमतौर पर कभी दिखाई नहीं देती थीं। प्रभु कृपा से हमारी कार को लहरें बहा कर नहीं ले जा सकी थीं। हालांकि जहां हमने उसे खड़ा किया था वहां से करीब 50 फीट की दूरी पर पत्थरों और मलबे के बीच वह फंसी थी। लहरें पीछे हटीं तो मैं अपने मित्र के साथ मंदिर की चार दीवारी लांघ कर अपनी कार की तरफ दौड़ा। मेरे उस मित्र के पिता पोर्ट ब्लेयर में काम करते हैं। मुझे कार के स्टार्ट होने की जरा भी उम्मीद नहीं थी, लेकिन भगवान की कृपा से वह चल पड़ी। कार का पिछला हिस्सा क्षतिग्रस्त हुआ था तथा उसकी लाइटें टूट कर चकनाचूर हो गई थीं। मेरी पत्नी श्रीविद्या बच्चों को तथा वहां आई गांव की उन महिलाओं को धीरज बंधा रही थी, जिनके परिजन समंदर में मछलियां पकड़ने गए थे। मैं और मेरा मित्र कार में सवार हुए। हम मुख्य सड़क की तरफ चले। रास्ते में नौकाओं के टूटे-फूटे टुकड़े बिखरे थे। कार से उतरकर उन्हें सड़क से हटाया। यह सब करते-करते हमने देखा कि एक बार फिर समंदर बिना किसी आवाज के, लेकिन भयावह ढंग से आगे बढ़ता आ रहा था। लहरें ऊंची और ऊंची उठती जा रही थीं- उनके उफान में भयंकर ऊर्जा थी। श्रीविद्या तथा बाकी महिलाएं अभी मछुआरों के साथ खड़ी थीं। हमने जोर से आवाज लगाई और उनसे दौड़ कर कार में आकर बैठने को कहा। लोगों ने भी उनसे तुरंत कार में बैठकर वहां से चले जाने के लिए कहा। वे दौड़कर आईं, कार में बैठीं और हम वहां से तेजी से चल पड़े। एक बार फिर उत्ताल लहरें किनारे की तरफ उफनती हुई आ रही थीं। चलते हुए हमने देखा कि आतंकित लोग जो कुछ समेट सकते थे उठाकर भाग रहे थे। हमने 4-5 विकलांग और कमजोर लोगों को अपनी कार में बिठा लिया। हम इल्लालूर की ओर बढ़ चले जहां हम हर हफ्ते कक्षाएं लेते हैं। चलते-चलते हमने कई बच्चों को तिरुपोरूर तक छोड़ा। पूरे रास्ते हमने देखा कि गांव के लोग सड़क पर खड़े थे। उन्होंने हमसे समंदर के बारे में कई सवाल किए। हमने उन्हें दिलासा दी कि डरने की जरूरत नहीं है और न ही वे अफवाहों का विश्वास करें। कई लोग गांव के आस-पास छोटे-छोटे टीलों की ओर दौड़ रहे थे। उनमें से बहुतों को हमने रोक कर धीरज बंधाया और अपने घर लौटने के लिए कहा। शरीर में लगी रेत साफ कर हमने इल्लालूर की अपनी कक्षा में पढ़ाना शुरू किया लेकिन कक्षा ज्यादा देर तक चल नहीं पाई। घबराए, डरे लोग ट्रैक्टर और ट्रकों- लारियों में बैठ कर आ रहे थे। हमने कक्षा बंद की और वहां से चल पड़े। हमारे पास डबल रोटी थी जो हमने वहां के वृद्ध लोगों में बांट दी। हड़बड़ी में वे बिना कुछ खाए ही घर छोड़ आए थे। अंदरूनी सड़कों से होते हुए हम चेन्नै पहुंचे।NEWS
टिप्पणियाँ