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राजा और राजनीतिक दलफिर आमने-सामनेकाठमाण्डू प्रतिनिधिनेपाल नरेश श्री 5 ज्ञानेन्द्र द्वारा शासन की बागडोर अपने हाथ में लिए जाने का विरोध करने वाले राजनीतिक दलों की संख्या अचानक बढ़ने लगी है। आपातकाल हटने के बाद बने घटनाक्रम में प्रजातंत्र के लिए अलग-अलग तरीके से आवाज उठाने वाले दल भी जहां विश्व जनमत को देखकर साझा कार्यक्रम के तहत आन्दोलन करने के लिए तैयार हो गए हैं। वहीं नेपाल के प्रथम निर्वाचित प्रधानमंत्री बिश्वेश्वर प्रसाद कोइराला के भतीजे एवं नेपाली कांग्रेस के केन्द्रीय सदस्य प्रकाश कोइराला ने अपनी ही पार्टी के निर्णय का सार्वजनिक रूप से विरोध करते हुए राजा के समर्थन में आवाज बुलंद की है।यहां तक कि एमाले और नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (माले) भी सात दलों के संयुक्त आन्दोलन में शामिल होने का मन बना चुकी है। इसी तरह, आन्दोलन को छोड़ सरकार में शामिल होने वाली नेपाल मजदूर किसान पार्टी भी एमाले के साथ मिलकर आन्दोलन करने को तैयार हुई है। खुद नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष गिरिजा प्रसाद कोइराला, शेर बहादुर देउबा की पार्टी नेपाली कांग्रेस (प्रजातांत्रिक) के साथ मिलकर आन्दोलन करने को तत्पर हैं।सत्ता की बागडोर संभालने के बाद राजा ज्ञानेद्र राजनीतिक दलों के विरोध की परवाह न करते हुए अपने तरीके से शासन करते रहे हैं। शायद अन्तरराष्ट्रीय दबाव के कारण उन्होंने आपातकाल हटा लिया। नेपाल नरेश ने वि.सं. 2062 के अन्त तक नगरपालिकाओं का चुनाव कराने की भी घोषणा की है। लेकिन राजधानी काठमाण्डू और जिला मुख्यालयों को छोड़ दें तो ग्रामीण क्षेत्रों पर माओवादियों की पकड़ के कारण नगरपालिकाओं का चुनाव समय पर हो सकेगा या नहीं, यह आने वाला समय ही बताएगा। नेपाली कांग्रेस, नेपाली कांग्रेस (प्रजातांत्रिक), नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एमाले), नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माले), नेपाल मजदूर किसान पार्टी, नेपाल सद्भावना पार्टी (आनन्दी देवी) और जनमोर्चा नेपाल ने संयुक्त प्रजातांत्रिक आन्दोलन के लिए साझा कार्यक्रम बनाया है। इसमें सातों राजनीतिक दलों की संयुक्त सहमति से प्रतिनिधि सभा की पुनस्स्थापना, संविधान सभा द्वारा नए संविधान का निर्माण और उससे पहले सर्वदलीय सरकार का गठन प्रमुख है, लेकिन राजा की ओर से अभी इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई है। नेपाल नरेश संविधान सभा व प्रतिनिधि सभा की पुनस्स्थापना के पक्ष में नहीं दिखायी दे रहे हैं। राजनीतिक दल राजा से सत्ता की बागडोर जल्दी वापस लेना चाहते हैं, पर ये दल चुनाव में भाग लेने को तैयार नहीं हैं। इस कारण टकराव की स्थिति पैदा हो गयी है। दोनों के बीच संवाद, सहमति की संभावना कोसों दूर है। आज भी राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता गांवों में जाने से परहेज करते हैं।राजा के प्रत्यक्ष शासन के विरोध में राजनीतिक दलों ने जो एकता दिखायी है, उसे भारत सहित अमरीका, ब्रिटेन जैसे देशों ने भी सराहा है। इन देशों का कहना है कि माओवादी समस्या का समाधान करने के लिए संवैधानिक शक्तियों को आपस में मिलकर काम करना चाहिए। नेपाल के विकास कार्यों में इन देशों की बड़ी भूमिका रही है। इसलिए अन्तरराष्ट्रीय जगत के सुझावों की अनदेखी करना नेपाल के लिए आसान नहीं होगा।NEWS
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