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टी.वी.आर. शेनायप्रधानमंत्री की साख पर बट्टाटी.वी.आर. शेनायटी.वी.आर. शेनायभेड़ की खाल में भेड़िए की ऐसोप की उस कहानी को प्रचलित हुए दो हजार से ज्यादा साल हो चुके हैं। आज संप्रग हमारे सामने भेड़िए की खाल में मेमनों का दृश्य उपस्थित कर रहा है।मेरा इशारा डा. मनमोहन सिंह और ए.के. एंटोनी की ओर है, जिनकी कांग्रेस में बड़ी अटपटी उपस्थिति है। सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी के कारण उनकी छवि बेदाग रही है। अगर वे “चतुर” और “भलेमानस” होने की कोशिश में भेड़ियों के झुण्ड में शामिल रहते हैं तो वे अपनी साख पर ऐसा बट्टा लगा लेंगे जो मिटाए नहीं मिटेगा।प्रधानमंत्री ने बिहार विधानसभा भंग करने के पीछे बड़े पैमाने पर दल-बदल के खतरे की बात की है। मैं मानता हूं कि कई विधायक पाला बदलने की तैयारी में थे, लेकिन सवाल इस घोषणा के समय को लेकर खड़े हो रहे हैं।मार्च की शुरुआत में ही नवनिर्वाचित बिहार विधानसभा की शक्लोसूरत सामने आ चुकी थी। बड़ी मात्रा में दल-बदल के बिना वहां कोई भी सरकार नहीं बनाई जा सकती थी। क्या हमारे अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री को इन आंकड़ों का स्वरूप पहचानने में ढाई महीने लग गए?विधानसभा भंग करने की घोषणा का तरीका इतना अजीबोगरीब था कि उससे भी खासी त्यौरियां चढ़ गईं। राष्ट्रपति रूस की राजकीय यात्रा पर मास्को में थे। 23 मई को प्रधानमंत्री को रणथंभौर जाना था। तिस पर इतवार की लगभग आधी रात में कैबिनेट ने राष्ट्रपति को विधानसभा भंग करने की सिफारिश की।मामला इतना महत्वपूर्ण था कि आवश्यक कागजात राष्ट्रपति को फैक्स द्वारा भेजे गए थे। और फिर यह मुद्दा इतना साधारण हो गया कि डा. मनमोहन सिंह अगली सुबह गायब हुए बाघों के रहस्य पर चर्चा करने के लिए रणथंभौर के लिए रवाना हो गए! इन दोनों घटनाक्रमों को आप कैसे पचाएंगे?इसका खुलासा केवल उस भय के जरिए ही किया जा सकता है जो रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी- जो लालू-विरोधी मंच से जीते थे- के भाजपा और नीतिश कुमार के साथ हाथ मिलाने की इच्छा से उपजा था। रेल मंत्री को यह कतई गले नहीं उतरा। उन्होंने वाममोर्चे से गुहार की, वाममोर्चे ने तुरंत खतरे की घंटियां बजा दीं- “अगर कांग्रेस ने “साम्प्रदायिक ताकतों” को पटना की सत्ता में आने दिया तो माक्र्सवादी दिल्ली में समर्थन खींच लेंगे।” यह देखते हुए कि नीतिश कुमार के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने में चंद ही घंटे बचे थे, कांग्रेस के पास आधी रात में विधानसभा भंग करने के अलावा कोई रास्ता ही नहीं बचा था। क्या इतवार की रात को मचे इस हड़कम्प की और कोई सफाई हो सकती है?अगर प्रधानमंत्री ने विधानसभा भंग करने का यह निर्णय मार्च में ही कर लिया होता तो उनकी तारीफ हुई होती (हरकिशन सिंह सुरजीत ने यही सलाह दी थी।) इसे ढाई महीने तक लटकाए रखकर डा. मनमोहन सिंह ने उस आरोप को हवा दी है कि वे लालू यादव की तान पर थिरकते हैं।अपने रेल मंत्री की खातिर प्रधानमंत्री इतना पीछे झुक रहे हैं कि अब वे मध्यावधि चुनाव की बात भी नहीं कर रहे। उधर कांग्रेस चुनाव टालने के पीछे तरह-तरह के बहाने उछाल रही है- बच्चों के इम्तहान, गर्मी, मानसून! संप्रग लालू यादव को जितना संभव हो, समय दे रही है ताकि वे अपने आदमियों को ठीक-ठीक जगह “फिट” कर सकें। क्या यह महज संयोग था कि दो “गैर मददगार” जिलाधिकारियों का अचानक तबादला कर दिया गया? (उनमें से एक ने तो राजद अध्यक्ष के दोस्त शहाबुद्दीन के घर पर छापा मारने तक की हिम्मत दिखाई थी!)क्या बिहार में कांग्रेस जिन नियमों पर चली है वे अन्य राज्यों में भी लागू किए जाएंगे? खास तौर पर गोवा में, क्योंकि वहां भी बिना दल-बदल के लोकप्रिय सरकार बनने की कोई उम्मीद नहीं है। गोवा विधानसभा भी निलम्बित है। क्यों नहीं इसे पूरी तरह भंग करके नए चुनाव घोषित कर दिए जाने चाहिए?थोड़ा और दक्षिण की तरफ बढ़ते हैं। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि आखिर एंटोनी भी अपनी साख को धूमिल करने पर आमादा क्यों दिख रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री एंटोनी को करुणाकरन की छोड़ी राज्यसभा की सीट पेश की गई थी। तो भी एंटोनी इस वक्त केरल विधानसभा के विधायक ही हैं। वे राज्यसभा और विधानसभा, दोनों जगह एक साथ नहीं रह सकते। लेकिन अगर वे चेरथला की विधानसभा सीट छोड़ते हैं तो खतरा है कि वाम मोर्चा उसे जीत लेगा जो कांग्रेस के गाल पर तमाचे जैसा होगा।एंटोनी पर कानून में एक सुराख में से जगह बनाकर आने का दबाव डाला जा रहा है। कानून उन्हें दिल्ली और तिरुअनंतपुरम में से कोई एक चुनने के लिए 15 दिन का समय देता है। एक दूसरा कानून कहता है कि अगर विधानसभा चुनाव साल या उससे कम समय के भीतर होने तय हैं तो उपचुनाव होना जरूरी नहीं है।केरल विधानसभा चुनावों की अंतिम संभावित तारीख है 6 जून, 2006। एंटोनी राज्यसभा सीट के बारे में अपना फैसला 10 जून, 2005 तक घोषित कर सकते हैं। अगर आखिरी दिन तक वे राज्यसभा सीट के बारे में चुप्पी साधे रहते हैं तो भी चेरथला में उपचुनाव कराने की कोई कानूनी बाध्यता नहीं है। पर यदि 6 जून से पहले एंटोनी विधानसभा से इस्तीफा दे देते हैं तो चुनाव आयोग उपचुनाव की प्रक्रिया शुरू कर देगा।इस स्थिति के दो पहलू हैं। पहला, अपने पुराने दोस्त को एक धोखेबाज वकील की सी हरकत करते देखना बड़ा दु:खदायी होगा। दूसरा और ज्यादा महत्वपूर्ण पहलू है कि इसके कारण चेरथला के 141,138 मतदाताओं पर एक साल बिना किसी प्रतिनिधित्व के भुगतना पड़ेगा।लोकतंत्र का सार यही है कि शक्ति लोगों के हाथों में निहित रहती है जो उनके जनप्रतिनिधियों के जरिए व्यवहार में लाई जाती है। बिहार और गोवा में जो चल रहा है- और जो चेरथला में हो सकता है- वह शर्मनाक है। क्या यह शर्म की बात नहीं है कि कांग्रेस के सदस्य होने के कारण दो भले व्यक्ति न केवल संविधान के मर्म का उल्लंघन कर रहे हैं बल्कि अपनी अंतरात्मा का भी दमन कर रहे हैं? डा. सिंह और श्री एंटोनी- बिहार, गोवा और चेरथला में चुनाव घोषित करो, और अभी करो!(26 मई, 2005)NEWS
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