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मनमोहन सरकार ने किए बस वादे

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May 6, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 May 2005 00:00:00

फिर ठगे गए मुसलमान-शाहिद रहीमइस सरकार से खफा हैं मुसलमानप्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम के आर्थिक फार्मूले पर चल रही कांग्रेस नेतृत्व की संयुक्त प्रगतिशील सरकार ने विगत वर्ष में जो कुछ भी किया है, वह आम हिन्दुस्थानी जनता की समझ से बाहर है। विदेशी पंूजी निवेश के लिए पहले से खुले द्वार पर खड़े होकर औद्योगिक घरानों के कारोबार को फलने-फूलने का अवसर प्रदान करने के इस एक वर्षीय इतिहास में मुसलमानों की समस्याओं के समाधान की धुंधली सी तस्वीर भी दिखाई नहीं देती। जन कल्याण और सामाजिक विकास के नाम पर हालांकि हर वर्ष कुछ अनुदान बंटते हैं, लेकिन मुसलमानों को हासिल कुछ भी नहीं होता! इसका एक कारण यह भी है कि खुशहाल मुस्लिम नेता, उलेमा और बुद्धिजीवी मजहबी आधार पर हिस्सा मांगते हैं और जब कोई सरकार “उर्दू” और मदरसों के पक्ष में “बयान” दे देती है, तो वह भी खामोश हो जाते हैं, जैसे मुसलमान केवल उर्दू और मदरसे के लिए ही पैदा हुए हैं।कांग्रेस नेतृत्व की सरकारें पहले भी मुसलमानों को उर्दू काउंसिल, अकलियती कमीशन आदि तथाकथित संगठनों की तख्ती दिखाकर उन्हें वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करती रही है। आज भी संप्रग सरकार मुसलमानों की तरक्की के लिए उन्हीं योजनाओं पर काम कर रही है, जिसे लागू करने की तैयारी विगत 58 वर्षों में भी पूरी न हो सकी।संप्रग सरकार की संचालन नीति का मुख्य आधार है साझा बुनियादी कार्यक्रम यानी “सीएमपी”। दावा यह किया जा रहा है कि इस “फार्मूले” के तहत समाज की बहुत सी समस्याओं का समाधान किया जा रहा है, लेकिन सच्चाई यह है कि इस “सीएमपी” को आप चाहे जिस चश्मे से देखें, मुसलमानों को ढूंढते रह जाएंगे। इस कार्यक्रम में देश की “मुस्लिम आबादी” कहीं दिखाई नहीं देगी! देश की मुस्लिम आबादी को संपूर्ण आबादी में तब तक मिलाया नहीं किया जा सकता जब तक सरकारी तौर पर अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति को संपूर्ण आबादी का हिस्सा न मान लिया जाए। इसके लिए चुनाव घोषणा-पत्र के जरिए कांग्रेसी परम्परा यह है कि वोट लेने के लिए उर्दू, मदरसा, मुसलमानों की आर्थिक उन्नति, शैक्षिक तरक्की आदि के सब्जबाग दिखाए जाते हैं, जिसे देख कर हमारे उलेमा बाग़-बाग़ हो जाते हैं। बाद में मुसलमानों से किए गए वायदों को टाले रखने के लिए अकलियति कमीशन स्थापित किया जाता है, जो वर्षों तक अध्ययन, शोध और विश्लेषण करता रहता है। जब कोई चुनाव वायदों की याद दिलाता है, तो उस अल्पसंख्यक आयोग द्वारा एक अंतरिम रपट पेश कर दी जाती है। और फिर वायदा कर लिया जाता है।संप्रग सरकार ने भी उसी कांग्रेसी परम्परा के अंतर्गत उर्दू भाषा, उर्दू स्कूल, उर्दू शिक्षक और अन्य अकलियती संस्थानों की उन्नति के लिए आयोग बनाया, मगर काम कुछ भी नहीं हुआ। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पिछले दिनों फिर एक उच्च स्तरीय समिति बनायी है। न्यायमूर्ति राजेन्द्र सच्चर समिति के अध्यक्ष हैं। सैय्यद हामिद, डा. टी.के.ऊमन, एम.ए.वासिथ, डा. राकेश बसंत, डा. अख्तर मजीद सदस्य हैं और डा. अबु सालिह शरीफ सचिव। पटेल भवन में दफ्तर खुला है। यह समिति पुन: पूरे देश की मुस्लिम आबादी का सर्वेक्षण करेगी और देखेगी कि यदि वे जीवित हैं, तो रोटी खा ही रहे होंगे। यह रोटी उन्हें कहां से मिल रही है, पिछड़ी जातियों के मुकाबले में उनकी आबादी का अनुपात क्या है? ऐसे सात मुद्दों पर मुस्लिम आबादी का सर्वेक्षण होना है, जिसकी रपट जून, 2006 तक सरकार के समक्ष प्रस्तुत की जाएगी! यह नयी समिति बनाने की जरूरत ही क्यों पड़ी? विगत आयोगों के क्रियाकलापों की जांच का काम करने के बजाए फिर समिति बनाने का मतलब है कि संप्रग सरकार ने फिर मुसलमानों को ठोकर मारकर और पांच वर्ष तक इंतजार करने के लिए मजबूर कर दिया है।स्पष्ट है कि संप्रग सरकार मुसलमानों के प्रति गंभीर और उदार नहीं है, बल्कि उन्हें पारंपरिक रूप से अपने शोषण का शिकार बनाने के लिए पुन: सक्रिय हुई है। इसलिए जरूरी है कि मुसलमान इस “समिति” की उपादेयता को पहले परख लें और आने वाले विधानसभा चुनावों में पुन: ठगे जाने से बचें!NEWS

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